Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 73
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 74
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
Notice (8): Undefined variable: urlPrefix [APP/Template/Layout/printlayout.ctp, line 8]agricultural-crisis/खेतिहर-संकट-70.html"/> खेतिहर संकट | खेतिहर संकट | Im4change.org
Resource centre on India's rural distress
 
 

खेतिहर संकट

खास बात

· घाटे का सौदा जानकर तकरीबन २७ फीसदी किसान खेती करना नापसंद करते हैं। कुल किसानों में ४० फीसदी का मानना है कि विकल्प हो तो वे खेती छोड़कर कोई और धंधा करना पसंद करेंगे। #

पिछले चार दशकों में भूस्वामित्व की ईकाइ का आकार ६० फीसदी घटा है। साल १९६०-६१ में भूस्वामित्व की ईकाइ का औसत आकार २.हेक्टेयर था जो साल २००२-०३ में घटकर .०६ हेक्टेयर रह गया।"

· पंजाब में नाइट्रोजन जनित उर्वरक और कीटनाशकों के भारी इस्तेमाल से पानी, खाद्यान्न और पशुचारे में नाइट्रटेट और कीटनाशी अवयवों का का संघनन खतरे की सीमा से ऊपर तक बढ़ा है ।*#

· साल १९९७ से २००६ के बीच १,६६,३०४ किसानों ने आत्महत्या की।*

किसानी के संकट की कई वजहों हैं, मसलन-घटती आमदनी, लागत ज्यादा फायदा कम, बढता कर्ज आदि।*

 

किसानी में व्याप्त संकट के कारण महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल, आंध्रप्रदेश, पंजाब, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में किसानों ने आत्महत्या की।*

# सम आस्पेक्टस् ऑव फार्मिंग, २००३, सिचुएशन एसेसमेंट ऑव फार्मरस्,एनएसएस, ५९ वां दौर(जनवरी-दिसंबर २००३)

" सम आस्पेक्टस् ऑव ऑपरेशनल लैंड होल्डिंग इन इंडिया, २००३, रिपोर्ट संख्या-. 492(59/18.1/3), एनएसएस, ५९ वां दौर, (जनवरी-दिसंबर २००३)

अगस्त, २००६

*# वर्ल्ड डेवलपमेंट रिपोर्ट-एग्रीकल्चर फॉर डेवलपमेंट २००८, www.worldbank.org

* के नागराज(२००८): फार्मर्स् स्यूसाईड इन इंडिया,मैग्नीट्यूड एंड स्पैटियल पैटर्नस्,मैक्रोस्कैन।

 

एक नजर

कहा जा रहा है जिस मंदी ने पूरे विश्व को चपेट में ले रखा है उससे भारत अपने ग्रामीण बाजार की ताकत के कारण बच सका। हालांकि यह बाक सच है कि ग्रामीण भारत के भीतर उपभोक्ता बनने की अकूत संभावनाएं हैं लेकिन देश अभी इन संभावनाओं को साकार करने के आसपास भी नहीं पहुंचा है।राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के आंकड़ों के अनुसार एक तिहाई किसानों को खेती नापसंद है और 40 फीसदी का कहना है कि अगर उनका बस चले तो वे खेती को छोड़ जीविका का कोई और ही रास्ता ढूंढ लें। किसानों के गिरते जीवन-स्तर का सबसे दर्दनाक बयान उनके कैलोरी-उपभोग के आंकड़ें करते हैं। साल 1983 में ग्रामीण आबादी में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन कैलोरी-उपभोग की मात्रा 2309 किलो कैलोरी थी जो साल 1998 में घटकर 2011 किलो कैलोरी हो गई यानी 15 सालों में कैलोरी उपभोग के मामले में 15 फीसदी की गिरावट आयी।

ये बात ठीक है कि ग्रामीण भारत में सोना और मोटरसाईकिल की खरीदारी को लेकर एक विचित्र ललक है और ये चीजें खास तौर से दहेज में देने के लिए खरीदी जाती हैं मगर यह खरीदारी गैर-खेतिहर आमदनी या फिर उधार के पैसों से होती है।प्रति व्यक्ति भूस्वामित्व की ईकाई का आकार भी घट रहा है। साल 1960 में प्रति किसान भूस्वामित्व की ईकाई का आकार 2.6 हेक्टेयर था जो बांट-बखरे के कारण साल 2000 में घटकर 1.4 हेक्टेयर रह गया। खेती लगातार घाटे का सौदा बनते जा रही है।


मुंबईया फिल्मों में नजर आने वाले मगरूर जमींदार बस हमारी कल्पना की ऊपज बनकर रह गए हैं। जिन्हें धनी किसान(10 हेक्टेयर से ज्यादा की मिल्कियत वाले) कहा जाता है बेचारे उन गरीबों की भी तादाद बिहार और बंगाल जैसे निर्धन गिने जाने वाले राज्यों में एक फीसदी से कम और तुलनात्मक रुप से धनी माने जाने वाले राज्यों पंजाब और हरियाणा में 8 फीसदी है।जो बाकी बचे वे सारे किसान छोटे,मंझोले और सीमांत किसान की श्रेणी में आते हैं और गुजर-बसर लायक आमदनी जुटाने के लिए रोजाना की हाड़तोड़ मशक्कत पर मुनहस्सर हैं।

भारत में कृषि-योग्य भमि का 60 फीसदी हिस्सा सिंचाई के लिए वर्षा जल पर निर्भर है और इस जमीन पर अभी हरित क्रांति ने अपनी धानी चूनर नहीं लहरायी है। ये बात ठीक है कि पुराणकथा का दर्जा पा चुकी हरित क्रांति ने देशवासियों में भरोसा जगाया कि पेट भरने के लिए विदेशों का मुंह देखने की जरुरत नहीं है लेकिन इस पुराणकथा की सफलता की कहानी उन्हीं इलाकों में लिखी जा सकी जहां सिंचाई की सुविधा है और आकार के हिसाब से देखें तो हरित क्रांति के हिस्से में देश की कुल कृषि-योग्य भूमि का लगभग एक तिहाई हिस्सा आता है।हरित क्रांति वाले इलाकों में भी खेतिहर संकट पाँव पसार चुका है क्योंकि खेती में लागत ज्यादा है,भूजल का स्तर लगातार नीचे जा रहा है, जमीन की उर्वरा शक्ति छीज रही है और खेतिहर ऊपज का मोल भी कुछ खास उत्साहित करने वाला नहीं है। नतीजतन खाद्यान्न उत्पादन की जो वृद्धिदर अस्सी के दशक में 3.5 फीसदी थी वह घटकर नब्बे के दशक में 1.8फीसदी रह गई। अस्सी के दशक में किसानों की आतमहत्या की बात एकदम अनहोनी थी और कभी ये भी सोचा गया कि किसानों की आत्महत्या का मामला कुछ गरीब इलाकों का ही रोग-लक्षण है लेकिन अब बात एकदम बदल गई है और किसानों की आत्महत्या की खबरें पंजाब, हरियाणा, कर्नाटक और केरल जैसे धनी और अग्रणी माने वाले राज्यों से भी आ रही हैं।

गरीब और सिंचाई के लिए वर्षाजल पर निर्भर रहने वाले किसानों का फायदा और भी कम हो गया है। खेतिहर लागत लगातार बढ़ते जा रही है और इस संकट पर सितम की हालत यह कि ना तो उनकी पहुंच में कोई वैज्ञानिक बीज भंडार मौजूद है और ना ही कर्ज लेने के लिए कोई भरोसेमंद संस्था।साथ में स्वास्थ्य और शिक्षा की बुनियादी सुविधाएं भी उन्हें नहीं मिल रहीं। भारत में किसानों को सब्सिडी दी जाती है और इस पर बड़ी तीखी टिपण्णियां की जाती हैं लेकिन ऑर्गनाइजेशन फॉर योरोपीयन इकॉनॉमिक को-ऑपरेशन के देशों में किसानों को जितनी सब्सिडी हासिल है उससे तुलना करें तो पता चलेगा कि भारत के किसान को मिलने वाली सब्सिडी इन देशों के किसानों को मिलने वाली सब्सिडी के शतांश भी नहीं है।(भारत में प्रति किसान सब्सिडी 66 डॉलर है जबकि जापान में 26 हजार डॉलर, अमेरिका में 21 हजार डॉलर और ऑर्गनाइजेशन फॉर योरोपीयन इकॉनॉमिक को-ऑपरेशन के देशों में 11 हजार डॉलर)