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पी.वी. सतीश : लीक से हटकर लकीर खींचने वाले शख्स

बिना शोरगुल मचाए उसने काम किया। न काम का श्रेय लिया; बस अपने हिस्से का काम किया। और एक दिन इस दुनिया को अलविदा कह दिया। उनका जाना भी खामोशी की तहों में छिप गया। लेकिन, पहले भी उनका काम बोल रहा था और आज भी उनका काम बोल रहा है। 

पी.वी. सतीश; पेरियापटना वेंकटसुब्बैया सतीश। आपकी पैदाइश सन् 1945 के जून महीने की है। जन्म, कर्नाटक के मैसूर जिले के खाते–पीते घर में हुआ था। वर्ष 1970 में आपने भारतीय जन संचार संस्थान से पत्रकारिता की तालीम हासिल की। फिर नई दिल्ली और उसके बाद हैदराबाद के दूरदर्शन केंद्र में प्रोड्यूसर की हैसियत से काम किया। यहाँ लगभग दो दशक वक्त बिताया।

इसी समय–काल में सैटेलाइट इंस्ट्रक्शन टेलीविजन एक्सपेरिमेंट (SITE) का परीक्षण किया गया था। पी.वी. सतीश की इसमें महती भूमिका रही। इसी दौरान सतीश का परिचय संयुक्त आंध्र प्रदेश के ग्रामीण इलाकों की समस्याओं से हुआ।

सन् 1983 में अपने कुछ साथियों की मदद से ‘डक्कन डेवलपमेंट सोसाइटी’ की स्थापना की।इस एनजीओ का मुख्यालय बना ‘पास्तापुर’ गाँव। जो कि हैदराबाद से करीब 120 किलोमीटर दूर, संगारेड्डी जिले में पड़ता है। जलवायु के दृष्टिकोण से ये इलाका अर्द्ध–शुष्क प्रकार की श्रेणी में आता है।

सोसाइटी की स्थापना के बाद सतीश का यहाँ आना–जाना बढ़ गया। इसी दौरान किसानों की तकलीफों को गहराई से समझा। जिसका परिणाम हुआ दूरदर्शन की नौकरी से विलगाव; सन् 1987 में दूरदर्शन की नौकरी छोड़ दी।

 

मीडिया का लोकतांत्रीकरण

 

तस्वीर में- रेडियो संघम के लिए महिलाएँ

मीडिया सूचनाओं को पहुंचाने का एक जरिया है; ऐसा माना जाता है। पर मीडिया तक पहुँच गिने–चुने लोगों की रहती है। सतीश ने इस असमानता पर प्रहार किया। देश के पहले सामुदायिक रेडियो की शुरुआत की। और संचालन की जिम्मेदारी आदिवासी महिलाओं को सौंप दी। महिलाएँ असाक्षर थीं पर अनजान नहीं। उन्हें एडिटिंग से लेकर अन्य तकनीकी पहलुओं की जानकारी थी। संघम रेडियो पर सफल महिलाओं की कहानियाँ सुनाई जाती थी।

1990 के दशक तक डीडीएस का ठीक–ठाक नाम हो गया था। मीडिया में उनकी विजयगाथा दिखाई जाने लगी थी। महिलाओं ने एक सवाल किया कि वे हमारी कहानियाँ बता सकते हैं तो हम क्यों नहीं? फिर क्या! मोर्चा अपने हाथों में ले लिया। खुद वीडियो बनाती थीं और खुद ही उसका प्रसारण करती थीं। ये आत्मनिर्भरता का ही एक उदाहरण था।

 

पास्तापुर मॉडल

 

हरित क्रांति के परिणामस्वरूप वाणिज्यिक फसलों की खेती का रकबा बढ़ गया, खाद्य फसलों की विविधता में कमी आने लगी। पारंपरिक कृषि प्रणाली को विलुप्ति के कगार पर खड़ा कर दिया। अधिक सिंचाई के कारण मिट्टी का क्षरण होने लगा। छोटे खेतों का महत्त्व घटने लगा।

तब डीडीएस की ओर से हस्तक्षेप किया जाता है; परती (बंजर) जमीन को फिर से ताजा कर दिया। जलवायु के अनुकूल रहने वाली कृषि पद्धतियों को अपनाने के लिए प्रेरित किया। डीडीएस ने महिला किसानों को जोडकर समूहों का गठन किया; और बोई जाने वाली फसलों में वैविध्य का तड़का लगाया। जिसने नज़ारा बदल दिया, इलाके में बाजरा और रागी जैसी फसलें लहलहाने लगी।

खाद्यान्न वितरण की वैकल्पिक पद्धति

 

पत्रकार सोपान जोशी ने लल्लनटॉप को दिए साक्षात्कार में बताया कि “डीडीएस के महिला समूहों की ओर से योजना आयोग को एक प्रस्ताव दिया जाता है कि किसानों को दी जाने वाली सब्सिडी को तीन वर्ष की एक साथ दे दिया जाए! जिसके बदले इन किसानों को मोटे अनाजों का एक हिस्सा महिला संघमों को देना होगा। महिला संघमों ने पारंपरिक तरीके से अनाजों को सहेज कर रखा। धीरे–धीरे मोटे अनाजों का चलन बढ़ गया।” 

 

महिलाओं के अधिकारों के हिमायती

 

सतीश ने अपनी शिक्षा को असाक्षर महिलाओं पर नहीं थोपा बल्कि उनसे सीखने का भरसक प्रयास किया। फैसला नहीं सुनाया, फैसला मिलकर लिया। फ्रांटलाइन में लिखे एक लेख में आशीष कोठारी बताते हैं कि सतीश का किया काम किसी क्रांति से कम नहीं है।भूमि के पुनर्वितरण में ऊंची जाति के लोगों ने अपने रोब का फायदा उठाते हुए अच्छी जमीन अपने नाम कर दी थीं। पथरीली जमीनें तथाकथित निचली जातियों के हिस्से में आई। इस पर खेती–बाड़ी की संभावना कम हो गई थी। कई किसान भूमिहीन हो गई थे; मजदूर बन गए थे।

सतीश ने लोगों को अपने बूते पर सशक्तिकरण का रास्ता अख्तियार किया। लैंगिक और जातीय बेड़ियों पर प्रहार किया। आज की तसवीर बदली हुई है।

 

जैव–विविधता जात्रा (यात्रा)

 

हर साल, जनवरी महीने में जैव विविधता यात्रा निकाली जाती है। जिसमें गांव–गांव, ढाणी–ढाणी जाकर बीजों को एकत्रित किया जाता है। फिर इन बीजों को संरक्षित कर दिया जाता है। जैव–विविधता को बचाने का सबसे बेहतरीन तरीका है।

कोठारी लिखते हैं कि जब पूरी दुनिया साल 2023 को ‘पोषक अनाजों के अंतरराष्ट्रीय वर्ष’ के रूप में मना रही है, तब सतीश के योगदान को याद करना जरूरी हो जाता है। सतीश ने मोटे अनाजों को पोषक अनाजों तक की यात्रा करवाई; तीन दशक लग गए...19 मार्च, 2023 को मिलेट्स मैन ऑफ इंडिया कहे जाने वाले पी.वी. सतीश का निधन हो गया।....मिलेट्स मैन ऑफ इंडिया अब नहीं रहे।


पी.वी. सतीश जी को अलग-अलग मीडिया संस्थानों द्वारा दी गई श्रद्दांजलि.

मिलेट्स मैन पीवी सतीश कृषि-जैव विविधता और महिला अधिकारों को बढ़ावा देने के थे चैंपियन By- M Somasekhar For Rural Voice, Please click here.

P.V. Satheesh: A quiet revolutionary who helped transform lives of Dalit women farmers By- ASHISH KOTHARI For The Hindu Frontline, Please click here 
P.V. SATHEESH: A REVOLUTIONARY PASSES ON By- KALPAVRIKSH FAMILY For Vikalp sangam, Please click here

In Memoriam: P V Satheesh was an agrarian revolutionary By- G V Ramanjaneyulu For Down to earth, Please click here.

'Millet Man' PV Satheesh, Founder of Deccan Development Society, Passes Away by- The Quint, Please click here.
 
‘Millet Man’ P.V. Satheesh की कहानी by Lallantop please click here.