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इन महिलाओं ने खेती से दी कैंसर को मात, 4 साल से कोई नया मामला नहीं

मल्लियां (बरनाला)। संगरूर से 14-15 किलोमीटर दूर बरनाला का छोटा सा गांव मल्लियां। यहां कैंसर से तीन मौतें हो चुकी हैं। दो पीड़ित हैं। कीटनाशकों के इस्तेमाल से पैदा होने वाली सब्जियां इन मौतों का कारण थीं। लेकिन, 170 घरों वाले इस गांव में पिछले चार वर्षों में कैंसर का कोई नया मामला सामने नहीं आया है। ऐसा संभव हो पाया यहां की महिलाओं के कारण। जो अपनों को इस जानलेवा बीमारी से बचाने के लिए पिछले चार वर्षों से आलू, प्याज, धनियां, मूली, साग से लेकर सभी जैविक सब्जियां अपने किचन गार्डन में ही उगा रही हैं। और दूसरे कई गांवों को भी अपने अभियान से जोड़ लिया है।

इस की शुरुआत भोतणां गांव की कमलजीत कौर ने 2010 में तब की थी, जब गांव की परमिंदर कौर और परमजीत की ब्रेस्ट कैंसर से मौत हो गई थी। कुछ दिन बाद उनकी परिचित सुरिंदर कौर के साथ भी यही हुआ। इन मौतों ने उन्हें झकझोर दिया। उन्हें पता चला कि खेती में कीटनाशकों के ज्यादा इस्तेमाल के कारण कैंसर उनके गांव और आसपास के क्षेत्र में तेजी से पांव पसार रहा है। सोचने लगीं कि वह ऐसा क्या करें, जिससे उन्हें अपने छह साल के बेटे अमनजोत को ऐसी जहरीली सब्जियां न खिलानी पड़े। उनका यह भय उन्हें ऑर्गेनिक फार्मिंग पर काम करने वाली संस्था "खेती विरासत मिशन' के पास ले गया।

पहले खुद सीखा अब दूसरों को सिखा रही हैं

यहां कमलजीत की मुलाकात अमनजोत कौर से हुई, जिन्होंने उन्हें किचन गार्डन में जैविक सब्जियां उगाने की सलाह दी। संस्था ने उन्हें गुड़ अमृत, नीम और हींग आदि से देसी कीटनाशक और खाद बनाना सिखाया। खेती के गुण बताए। फिर कमलजीत ने घर के किचन गार्डन में ही जैविक सब्जियां उगाना शुरू किया। इसके बाद कमलजीत और अमनजोत ने गांव की दूसरी महिलाओं को भी जैविक खेती से जोड़ने का अभियान शुरू किया।

यह आसान काम नहीं था। झिड़कियां सुननी पड़ीं- तुम तो खाली हो, इसलिए मुंह उठा कर चले आते हो। घर में बगीचा लगाएंगे तो सांप-कीडे़ आएंगे। लेकिन वे घबराई नहीं। जैविक सब्जियाें के फायदे बताए। मदद का भरोसा दिलाया। एक-एक कर गांव के सभी 260 घरों की महिलाओं को अपने अभियान से जोड़ लिया। भोतणां के बाद दोनों ने आसपास के गांवों की महिलाओं को भी जैविक खेती के लिए प्रेरित करना शुरू किया। शुरुआत मल्लियां से की।

बच्चों को जहर देने से बेहतर मेहनत करना है

यहां सबसे पहले 63 साल की राजविंदर कौर से मिलीं। उनके पास पहले से किचन गार्डन था। कैंसर की खबरों ने उन्हें भी बुरी तरह डरा दिया था। कमलजीत के अनुभव को जानकर वे भी इस अभियान से जुड़ गईं। देसी खाद और देसी दवाएं बनाना सीखा। फिर गांव में दूसरी महिलाओं को जैविक खेती के फायदे के बारे में बताया। अब गांव केे 170 घरों के किचन गार्डन में आर्गेनिक सब्जियां उगाई जाने लगीं हैं। पांचवीं पास राजविंदर कौर कहती हैं कि इस काम में मेहतन तो जरूर है, लेकिन अपने बच्चों को जहर देने से तो बेहतर है। कैंसर के कारण अपनी चुन्नी वट्‌ट (पंजाब की रस्म, जिसमें दुपट्टा बदल कर मुंहबोली बहन बनाया जाता है।

रिश्तेदारी भी सगी बहनों की तरह ही निभानी होती है) सुरिंदर कौर को खो चुकीं 62 साल की सुखजीत कौर को भी जैविक खेती करते हुए अभी करीब डेढ़ साल ही हुआ है। वे कीटनाशक को ही कैंसर की वजह मानती हैं। उनका कहना है कि सुरिंदर की मौत ने उन्हें बुरी तरह डरा दिया था। वे किसी अपने को ऐसे मरते नहीं देखना चाहतीं। इसलिए उनको यह कोशिश शुरू की है। उन्होंने अपने बागीचे में फलियों से लेकर प्याज तक लगाया हुआ है। एक-दूसरे को देख कर शुरू हुआ जैविक सब्जियां उगाने का अभियान अब 20 से अधिक गांवों में फैल चुका है। करीब एक हजार महिलाएं इससे जुड़ी हैं।

हम यह पता कर रहे हैं किस गांव में सबसे ज्यादा कैंसर के मामले हैं। पंजाब में जब तक ज्यादा कीटनाशक का प्रयोग नहीं रोका जाता, तब तक बीमारियां बढ़ेंगी ही। इसका बड़ा कारण सब्जियां हैं। कीटनाशकों का स्प्रे को करने के बाद 24 से 48 घंटे तक सब्जी नहीं तोड़नी चाहिए, लेकिन वो तुरंत बाजार में आ जाती हैं।
- सुरजीत ज्याणीं, स्वास्थ्य मंत्री, पंजाब

एक लाख पर 139 को है कैंसर

पंजाब सरकार के आंकड़ों के मुताबिक राज्य में एक लाख आबादी में 90 को कैंसर है। मालवा बेल्ट के बठिंडा, फिरोजपुर, मानसा, अबोहर, बरनाला, फरीदकोट जिलों में यह संख्या 139 है। रोजाना 18 व्यक्ति कैंसर से मरते हैं। 23, 874 लोग इस बीमारी से पीड़ित हैं और अबतक 33, 318 जानें जा चुकी हैं।