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फुलवारी की सब्जी बाड़ी -बाबा मायाराम

हम अपनी फुलवारी में सब्जी बाड़ी व रंग-बिरंगे फूल लगाते हैं। इसमें कई तरह की हरी भाजियां, फल व सब्जियां होती हैं। बच्चों को हरी ताजी भाजियां खिचड़ी में पकाकर खिलाते हैं, जिससे बच्चों को पोषण मिलता है। अब इस पहल में महिला समूह, पालक और किसान जुड़ गए हैं। यह परमेश्वरी व शिवकुमारी थीं, जो बिलासपुर जिले के करहीकछार गांव में फुलवारी कार्यकर्ता हैं।

फुलवारी एक तरह का झूलाघर है, जिसे बिलासपुर जिले में कार्यरत जन स्वास्थ्य सहयोग संस्था संचालित करती है। यह संस्था करीब दो दशकों से स्वास्थ्य के क्षेत्र में कार्यरत है। संस्था का गनियारी स्थित अस्पताल है। साथ ही ग्रामीण क्षेत्र में तीन स्वास्थ्य उपकेन्द्र हैं। इसके साथ ही 6 माह से 3 वर्ष तक के बच्चों के लिए गांवों में फुलवारी केन्द्र चलाए जा रहे हैं।

बिलासपुर जिला बहुत पिछड़ा और गरीब माना जाता है। यहां के लोग पलायन कर दूर-दूर तक काम करने के लिए जाते रहे हैं। बिलासपुरिया नाम से मशहूर इन लोगों को कड़ी मेहनत के बावजूद भी दो वक्त की रोटी नसीब नहीं होती। ऐसे कठिन समय में बच्चों की उचित देखभाल और आहार के प्रति ध्यान देना मुश्किल है। फुलवारी ( झूलाघर) में सब्जी बाड़ी में इससे मदद मिल रही है।

फुलवारी का शाब्दिक अर्थ भी फूलों की बगिया होता है। इन फुलवारी केन्द्रों में इस अवधि में स्वादिष्ट, गरम पतले और मुलायम भोजन के साथ बच्चों का खास ध्यान रखने की भी जरूरत होती है। इस सबके मद्देनजर जन स्वास्थ्य सहयोग ने वर्ष 2006 से फुलवारी नामक कार्यक्रम चलाया है जिसमें गांव के 6 माह से लेकर 3 साल तक के बच्चों को रखा जाता है। जहां उन्हें पका पकाया खाना खिलाया जाता है। एक फुलवारी में 10 बच्चों के लिए एक महिला कार्यकर्ता होती है और 10 से ज्यादा बच्चे हुए तो दो महिला कार्यकर्ताओं की नियुक्ति होती है। अब इन्ही कार्यकर्ताओं के द्वारा सब्जी बाड़ी कार्यक्रम चलाया जा रहा है।

करहीकछार की परमेश्वरी व शिवकुमारी ने बताया कि उन्होंने फुलवारी में सब्जी बाड़ी ( किचिन गार्डन) लगाई है। जिसमें पालक भाजी, लाल भाजी, मुगलानी भाजी, मैंथी, धनिया, भटा, टमाटर और मिर्ची लगी है। हरी भाजियों को दाल-चावल की खिचड़ी के साथ पकाकर बच्चों को खिलाते हैं। इसे पोषण आहार में शामिल किया जाता है।

उन्होंने बताया कि अब गांव पहले भी बाड़ी की परंपरा थी, जिसमें कई कारणों से कमी आ रही थी, लेकिन अब नियमित रूप लोगों ने बाड़ी पर ध्यान देना शुरू किया है।  उन्होंने (शिवकुमारी) खुद उनके घर में  सब्जी बाड़ी लगाई थी। उन्होंने पिछले वर्ष 1 क्विंटल आलू से 12 क्विंटल आलू का उत्पादन पाया। उनके आलू घर से ही बिक गए, और 12 हजार से ज्यादा की कमाई हुई।

शिवकुमारी की सब्जी बाड़ी में बोहार भाजी, कांदा भाजी, जाल भाजी, पालक भाजी, कांदा भाजी लगी थी। आलू, प्याज, तिवड़ा और बटरा भी था। इसके अलावा, उन्होंने बाड़ी में फलदार पेड़ भी लगाए हैं- जैसे अमरूद, अनार, आम, केला, नींबू, पपीता, नारियल, कटहल इत्यादि।

उन्होंने बताया कि वे देसी बीजों से सब्जी उत्पादन करते हैं। अपनी फसलों से खुद बीज बचाकर रखते हैं और उगाते हैं। इसके साथ ही पूरी तरह जैविक तरीके से सब्जी खेती करते हैं। इसमें किसी भी प्रकार का रासायनिक खाद व जहरीले कीटनाशकों का उपयोग नहीं करते हैं। गाय के गोबर खाद को डालते हैं। और कीट लगने पर राख व पके हुए चावल के पानी का छिड़काव करते हैं।

जन स्वास्थ्य सहयोग के कार्यकर्ता प्रकाशमनी मानिकपुरी बताते हैं कि बाड़ी की शुरूआत पहले हाथ धोनेवाले बेकार पानी से सब्जियां व फूल लगाने से हुई थी। लेकिन इसकी उपयोगिता व महिलाओं की रूचि देखकर कार्यक्रम का यह हिस्सा बना लिया गया। 

अब जन स्वास्थ्य सहयोग की सभी 95 फुलवारियों में सब्जी बाड़ी की जा रही है। यह फुलवारी तीन स्वास्थ्य केन्द्रों सेमरिया, शिवतराई और बम्हनी के गांवों में हैं और सभी बिलासपुर जिले के अंतर्गत हैं।

इसके अलावा, फुलवारी कार्यकर्ता भी उनके घर में सब्जी बाड़ी लगाती हैं, जिससे उन्हें हरी ताजी सब्जियां मिलती हैं और बाजार से सब्जियों को खरीदना भी नहीं पड़ता। सब्जियों में लगनेवाले खर्च की बचत भी हो जाती है। इलाके के महिला स्वयं सहायता समूह भी यह पहल से जुड़ गए  हैं।

जन स्वास्थ्य सहयोग से जुड़े रवि कुरबडे व प्रकाश मनी मानिकपुरी ने बताया कि संस्था की तरफ से सब्जी बीज भी वितरित किए जाते हैं, और सब्जी लगाने के तौर-तरीके बताए जाते हैं। संस्था खुद अपने गनियारी स्थित परिसर में जैविक तरीके के धान व पौष्टिक अनाजों की खेती करती है। यहां के बीज बैंक में धान की कई किस्में व देशी अनाजों की किस्में संग्रहित हैं। संस्था का मानना है कि बीमारी के इलाज के साथ उससे बचाव भी जरूरी है। भोजन में पोषक आहारों को शामिल करने से कुछ हद तक बीमारी से बचा जा सकता है।

कुल मिलाकर, फुलवारी की सब्जी बाड़ी से कई फायदे सामने आ रहे हैं। एक दो बच्चों के पोषण आहार में हरी ताजी सब्जियां शामिल हुई हैं। दूसरी रासायनिक खेती की जगह जैविक तरीके से सब्जियां उगाई जा रही हैं, जो मिट्टी पानी व पर्यावरण के संरक्षण के लिए जरूरी हैं। लुप्त होते देसी बीजों से सब्जियों उगाई जा रही हैं, जिससे देसी बीजों का संरक्षण व संवर्धन हो रहा है। गांवों में सब्जी बाड़ी की परंपरा को फिर से पुनर्जीवित किया जा रहा है। महिला समूहों से यह कार्यक्रम जुड़ा है, इस कारण यह महिला सशक्तीकरण का भी अच्छा उदाहरण है। यह कार्यक्रम छत्तीसगढ़ की खान-पान की संस्कृति से जुड़ता है। कुल मिलाकर, यह पहल सराहनीय होने के साथ अनुकरणीय भी है।  

 

फोटो- प्रकाशमनी मानिकपुरी