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बबीता ने जैविक खेती से 374 किसानों को जोड़ा

आम तौर पर पढ़ी-लिखी महिलाएं खेतीबारी में कम ही रुचि रखती हैं. उनका रुझान दूसरे कार्यो की ओर अधिक होता है. बबीता कश्यप इस मामले में अपवाद हैं. उन्होंने खेती की ओर रुख किया और गांव-गांव में महिलाओं को इससे जोड़ने का अभियान छेड़ा. बबीता ने रासायनिक खेती के बजाय जैविक खेती को अपनाया. 2005 में रामगढ़ से एकाउंट ऑनर्स की पढ़ाई पूरी करने वाली बबीता हमेशा कुछ नया करने की जुगत में रहती हैं. वे झारखंड बागवानी मिशन के ऑरगेनिक फार्मिग ऑथोरिटी ऑफ झारखंड के तहत लोहरदगा जिले में 500 हेक्टेयर पर जैविक कृषि के कार्य कर रही हैं.

तीन तरह के फसलों की खेती
बबीता कश्यप अपनी संस्था प्रगति एडुकेशन एकेडमी की सीइओ यानी मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं. उनकी संस्था ग्रामीणों की आजीविका, मानव तस्करी, प्रौढ़ शिक्षा और आरबीसी यानी रेसिडेंसियल ब्रिज कोर्स के लिए कार्य करती हैं. बबीता किसानों को तीन तरह की फसलों की जैविक खेती के लिए प्रेरित करती हैं. वे बताती हैं कि मेडिशनल मिशन के तहत सतावर, एलोबिरा, अश्वगंधा आदि फसलों की खेती, आरगेनिक मिशन के तहत मटर, फ्रेंचबिन, पत्तागोभी की खेती व स्पाइस मिशन के तहत विभिन्न प्रकार के मसाले जैसे लहसुन, अदरख आदि की खेती किसानों से करायी जाती है.

374 किसान हैं जुड़े
उनके इस अभियान से लोहरदगा जिले के भंडरा प्रखंड के छह गांव के 374 किसान जुड़े हैं, जो अपनी 500 हेक्टेयर भूमि पर जैविक विधि से खेती कर रहे हैं. किसानों की फसलों की सिंचाई के लिए ड्रिप बोरिंग की व्यवस्था की गयी है. इस अभियान के तहत सिड प्रोडेक्शन यूनिट (एसपीयू) भी लगाये गये हैं. फसल को सुखाने के लिए ड्राइंग शेड की भी व्यवस्था की गयी है. वे बताती हैं कि रासायनिक खाद से भूमि व मानव स्वास्थ्य को होने वाले खतरे को देखते हुए लोगों का रुझान जैविक कृषि की ओर हुआ है.

वर्मी कंपोस्ट का भी प्रशिक्षण देती हैं
जैविक खेती के लिए किसानों को जैविक खाद की आवश्यकता होती है. इसलिए यह आवश्यक है कि किसान खुद जैविक खाद तैयार करें. जैविक खाद की जरूरत को पूरा करने के लिए बबीता कश्यप 200 महिलाओं को वर्मी कंपोस्ट के प्रशिक्षण कार्यक्रम से जोड़ चुकी हैं.

परिवार को संभालते हुए करती हैं काम
बबीता कश्यप अपने परिवार को संभालते जैविक खेती के लिए कार्य करती हैं. उनका एक छोटा बेटा है, जिसका नाम प्रणीत कुमार मेहता है. वह डीएवी स्कूल की नर्सरी कक्षा में पढ़ाई करता है. इस सवाल पर कि वे बच्चे की देखरेख करते हुए कैसे काम करती हैं, बबीता कहती हैं कि कई कार्यक्रमों व जगहों पर इसे भी साथ लेकर जाना मजबूरी हो जाती है. वे कहती हैं कि जब यह गर्भ में था तभी से काम कर रही हूं. वे परिवार व काम के बीच तालमेल बनाने की भरसक कोशिश करती हैं. उनके पति दिनेश कुमार मेहता उनके कामकाज में भरपूर सहयोग करते हैं. वे उनकी संस्था प्रगति एडुकेशन एकेडमी के सचिव की भूमिका में भी हैं.

दूसरे कार्यो से भी जुड़ाव
बबीता कश्यप महिलाओं को सशक्त व आत्मनिर्भर बनाने के लिए दूसरे कार्यो से भी जुड़ी हैं. वे उन्हें कौशल विकास के विभिन्न तरह का प्रशिक्षण जैसे इंबोडरी, फाइल मेकिंग, सिलाई-कढ़ाई आदि का प्रशिक्षण उपलब्ध कराती हैं. उनके प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम से 25 महिलाएं जुड़ी हुई हैं.

सर्टिफिकेशन की प्रक्रिया जारी
बबीता कश्यप जिन किसानों की जमीन पर जैविक खेती करा रही हैं उसके सर्टिफिकेशन की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. 14 फरवरी को इंदौर से बायो सर्ड नामक एजेंसी के प्रतिनिधियों ने आकर जैविक खेती वाली भूमि व फसल का मुआयना किया. दरअसल, भारत सरकार ने कुछ प्रमुख एजेंसियों को जैविक खेती का प्रमाण पत्र देने के लिए अधिकृत किया है. उसी के तहत एजेंसी के लोग जैविक खेती का दावा करने वालों के खेत को देखते हैं और भारत सरकार व राज्य बागवानी मिशन व संबंधित किसान या काम करने वाली एजेंसी को रिपोर्ट कर स्थिति के बारे में बताते हैं. बबीता के पति व सहयोगी दिनेश कुमार मेहता कहते हैं : अभी हमारा फस्र्ट ईयर सर्टिफिकेशन हुआ है. दरअसल, जिस भूमि पर यूरिया व डीएपी का प्रयोग हो चुका होता है, उसे इस तरह का प्रमाण पत्र हासिल करने में तीन साल तक का समय लग जाता है. जबकि वनभूमि व ऐसे उर्वरकों के प्रयोग नहीं हुई भूमि पर खेती करने की स्थिति में जल्द प्रमाण पत्र मिल जाता है.

जैविक विधि से खेती के बारे में पहले किसानों को कम जानकारी थी. अब उन्हें इसकी जानकारी होने पर वे तेजी से इस विधि को अपना रहे हैं. इस तरह की फसलों की कीमत भी सामान्य फसलों से डेढ़ से दो गुणी अधिक मिल जाती है. बबीता इस विधि से खेती करवाने के लिए किसानों को केंचुआ खाद, गोबर, पंचगव्य, नीम का तेल, करंज व नीम की खल्ली जैसी चीजों का प्रयोग करने के लिए प्रोत्साहित करती हैं. उनके अनुसार, खेत को 17 तरह के तत्वों की जरूरत होती है, जो इन्हीं चीजों के माध्यम से मिल सकती है. दरअसल, किसान इस बात से भी परेशान हैं कि अत्यधिक उर्वरक के प्रयोग के कारण उनकी भूमि खराब हो गयी है. किसी साल फसल अच्छी होती है तो किसी साल खराब. फसल जल्द सड़ जाती है. उर्वरक वाले टमाटर दो-तीन दिन में सड़ने लगते हैं, तो जैविक टमाटर एक सप्ताह तक ठीक-ठाक रहते हैं. ऐसे में किसान नहीं चाहते कि उनकी फसल जल्द खराब हो जाये या बर्बाद हो जाये, इसलिए भी वे जैविक खेती अपनाने में रुचि ले रहे हैं. बहरहाल, बबीता को अपने किसानों के लिए जैविक खेती के प्रमाणन का इंतजार है और फिलहाल उनसे जुड़े किसान जैविक विधि से उपजायी फसलों की अच्छी कीमत बाजार में वसूल रहे हैं.

(आलेख राहुल सिंह)