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शुद्ध अनाज चाहिए, तो मध्‍यप्रदेश के मंडला-डिंडौरी चले आइए

जबलपुर। पड़ोसी जिलों के खेतों से निकलने वाली राहर, कोदों-कुटकी, चावल और मक्का में किसी तरह का रसायन नहीं है। यह अनाज पूरी तरह से जैविक उत्पाद हैं। कुछ इस तरह की फसलों की पैदावार करने वाले मंडला और डिण्डौरी जिले देश में आर्गेनिक खेती के मामले में अव्वल बने हुए हैं। जिसके चलते प्रदेश सरकार ने इन जिलों को जैविक खेती का हब बनाने का फैसला लिया है।

इसके बाद किसानों को उनकी फसल के वाजिब और अच्छे दाम मिलने लगेंगे। यह बात कम ही लोगों को मालूम होगी, लेकिन प्रदेश में मंडला और डिण्डौरी के किसान कई दशक से बिना रसायन के हर साल 6 से 8 लाख मीट्रिक टन जैविक उत्पाद मुहैया करा रहे हैं। कृषि वैज्ञानिकों से लेकर कृषि विभाग तक खुद इस बात को मान चुका है कि इससे बेहतर जैविक उत्पाद कहीं नहीं हो सकते।

10 लाख मीट्रिक टन उत्पादन

मंडला में लगभग 3 लाख हेक्टेयर में यह खेती हो रही है। इसी तरह डिण्डौरी में 3 लाख 10 हजार हेक्टेयर में जैविक फसल का उत्पादन हो रहा है। दोनों जिलों में रबी और खरीफ सीजन की फसलों का कुल उत्पादन 10 लाख मीट्रिक टन है, जिसमें से 6 से 8 लाख मीट्रिक टन सिर्फ जैविक फसलों की पैदावार है।

जैविक फसलों में अरहर, कोदों, कुटकी, मक्का, चना, मटर, सरसों, अलसी के अलावा बड़ी मात्रा में कुछ जगह धान की पैदावार हो रही है। अभी तक किसानों को जैविक फसलों का सही दाम नहीं मिल रहा था। जितनी डिमाण्ड जैविक उत्पादों की मुंबई, दिल्ली जैसे बड़े शहरों में है, उस हिसाब से यदि बड़े निवशकों ने किसानों का माल खरीदा तो छोटे से छोटा किसान भी करोड़पति हो जाएगा।

इतना कम रसायन

- मंडला में प्रति हेक्टेयर 5 किलोग्राम रसायन की खपत दर्ज की गई है। यह किसी भी दूसरे जिले की अपेक्षा न के बराबर है।

- डिण्डौरी में रसायनों की खपत 15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है। जबकि कुछ इलाकों में इससे कम दर्ज की गई है।

- वहीं जबलपुर, नरसिंहपुर, गोटेगांव, सिहोरा सहित संभाग के अन्य जिलों में रसायनों की खपत 130 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है। इसे कम करने और जैविक बनाने की पहल अब शुरू की जा रही है।

व्यापारी और एनजीओ बनाते रहे मूर्ख

मंडला, डिण्डौरी के किसानों के जैविक उत्पाद कम दाम में खरीदने वालों में कुछ व्यापारी और कुछ एनजीओ शामिल हैं। किसानों के माल पर अपनी कंपनी का लेबल लगाकर बड़े शहरों में यह माल व्यापारी बेच रहे हैं। जो राहर किसानों से 10 रुपए किलो में खरीदी जाती है उसे मुंबई, दिल्ली जैसे शहरों में 100 रुपए किलो तक बेचा जा रहा है। ठीक यही हाल दूसरी फसलों का है।

मंडला और डिण्डौरी जिले प्रदेश और देश में सबसे कम रसायन खपत वाले जिले हैं। यहां का 90 फीसदी फसल उत्पादन जैविक हो रहा है। इसलिए इन जिलों को जैविक हब के रूप में तैयार करने का निर्णय राज्य सरकार ने लिया है।

-बीपी त्रिपाठी, संयुक्त संचालक कृषि