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लाख की खेती बदल रही है इन महिलाओं की ज़िंदग़ी- नीरज सिन्हा

गीता देवी ठेठ गंवई महिला हैं। घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। कच्चा और खपरैल वाला मकान। खेती भी जीने लायक नहीं। लेकिन उन्होंने अपनी तंगहाली को दूर करने का रास्ता निकाला और लाह की खेती के गुर सीखे। स्थानीय भाषा में लाह कहा जाता है मगर प्रचलित भाषा में वह लाख है।

कुछ दिनों तक फाका काटा, लेकिन हिम्मत नहीं हारी। वह इसमें रमती चली गईं। नतीजा सामने था। साल भर की आमदनी ने ही उनकी ज़िंदगी बदल दी है।

झारखंड की राजधानी रांची से करीब 50 किलोमीटर दूर जंगलों से घिरे आदिवासी बहुल गुटीडीह गांव की रहने वाली गीता निरक्षर हैं। लेकिन लाख की खेती ने उन्हें बहुत कुछ सिखा दिया। तभी तो बच्चे किस कक्षा में पढ़ते हैं, पूछने पर कहती हैं बेटी वन में हैं और छोटे बेटा का एडमिशन कराना है।

उनके पास घर में हर तरह का सामान मौजूद है, जो नहीं है उसे वह ख़रीद रहीं हैं। गीता बताती हैं कि पिछले साल लाख की खेती से दो लाख रुपए की आमदनी हुई थी। इससे वह घर की जरूरत के हर सामान खरीद रही हैं।

उन्होंने बताया, "सबसे पहले मैंने टीवी लिया। फिर बर्तन-बासन, ओढ़ना-बिछौना और पसंद की कुछ साड़ियां। हाल ही में पति के लिए बाइक खरीदी है।"

बदल गई ज़िंदगी

आंकड़े बताते हैं कि लाख उत्पादन में झारखंड पूरे देश में पहले स्थान पर पहुंचा है। 2013 में झारखंड में 11 हजार टन लाख का उत्पादन हुआ जबकि पूरे देश का उत्पादन 19 हजार टन था।

गीता देवी कहती हैं कि इस साल ठीकठाक आमदनी हुई, तो पैसे दोगुना करने वाला खाता खोलवाएंगी।

लाख की चूड़ियां आपको पसंद हैं? इस सवाल पर वह कहती हैं, "लाख तो महंगी होती हैं ना, पचास-सौ से एक हजार तक में लाख की चूड़ियां बिकती हैं। इसलिए अभी कांच की चूड़ियां ही ठीक हैं।" अब वह लाख की चूड़ियां भी बनाना सीखेंगी।

लाख की चूड़ियाँ तो बेशक़ीमती होती ही हैं मगर इनके अलावा लाख का इस्तेमाल हैंडीक्राफ़्ट में भी ख़ासा होने लगा है। इसके साथ ही परफ़्यूम, वॉर्निश और फलों की कोटिंग में भी लाख का इस्तेमाल किया जाता है। साथ ही डाकघरों से पार्सल या ज़रूरी दस्तावेज़ भेजने के लिए पैकेट, लिफ़ाफ़े को सील करने में भी लाख उपयोगी होता है।

गुटीडीह और आसपास के गांव की कई महिलाएं अब गीता की राह पर चल पड़ी हैं। गांव की सुप्रिया देवी बताती हैं कि पिछले नवंबर महीने में बड़े-बड़े साहब लोग इस गांव में लाख की खेती देखने आए थे। गीता की खूब वाहवाही हुई थीं। गीता को लाख वाली दीदी के नाम से भी जाना जाता है।

गुटीडीह गांव में सरकार द्वारा संचालित बालबाड़ी सेविका कृति देवी बताती हैं कि लाख की खेती से गांवों में उन्नति का रास्ता दिखने लगा हैं। इस दिशा में महिलाएं समूह बनाकर काम कर रही हैं।

झारखंड राज्य आजीविका प्रमोशन सोसायटी के अभियान निदेशक परितोष उपाध्याय बताते हैं कि गुटीडीह समेत कई गांवों में महिला किसानों के सशक्तिकरण का अभियान असरदार दिखने लगा हैं। हम और भी कई कार्यक्रम चलाने में जुटे हैं।

कटाई होने के बाद फुटकर खरीदार या किसी संस्था के लोग गांवों से ही लाख क्रय करते हैं। फिर उन्हें लाख की फैक्ट्रियों में ले जाकर बेची जाती है। किसान बताते हैं कि झारखंड के गांवों में छत्तीसगढ़, बंगाल से भी लाख खरीदने वाले आते हैं।

महिलाओं का सशक्तिकरण

लाख अनुसंधान के प्रधान वैज्ञानिक डॉक्टर एके जायसवाल बताते हैं कि खेती के लिए कुसुम और बेर के पेड़ों पर लाख के कीड़े छोड़े जाते हैं।

गुटीडीह गांव से कुछ पहले ही सड़क किनारे लखी बेदिया का घर है। वे कुसुम और बेर के पेड़ में लगाए लाख की टहनियों को काटते दिखे। साथ में उनकी पत्नी रतनी देवी और बेटा विजय बेदिया भी थे। लखी बेदिया बीपीएल श्रेणी में आते हैं। बेटा दसवीं कक्षा का छात्र है।

लखी बताते हैं कि बेटे के कहने पर ही दो-तीन साल से वे लोग लाख की खेती में दिलचस्पी लेने लगे।

हमें गांव की कुछ महिलाएं ग्राम प्रधान लोधी बेदिया से मिलवाने उनके घर तक ले गईं। लोधी बेदिया अभी खेतों से लौटे ही थे।

उन्होंने विनम्रता से खाट पर बैठने को कहा। उन्होंने लाख किसान सहदेव बेदिया और अन्य लोगों को आवाज़ दी। फिर कहा, चलिए बताता हूँ लाख की खेती का हिसाब। वे आस-पास के पहाड़ों, जंगलों को दिखाते हैं। बताते हैं कि इन जंगलों में बेर, कुसुम के पेड़ खूब हैं।

कुसुम और बेर के पेड़ पर लगने वाले लाख अच्छे किस्म के माने जाते हैं। लेकिन इस बार जो बारिश-तूफान आया था, उससे फ़सल थोड़ी खराब हुई है। ग्राम प्रधान बताते हैं कि लाख वैज्ञानिकों ने अब सेमलता के पेड़ों पर लाख के कीड़े डालने के तरीके भी ईजाद किए हैं। इसलिए गांव के कई लोगों ने सेमलता के पौधे पर लाख लगाने शुरू किए हैं।

उत्पादन बढ़ने पर नुकसान

लोधी बेदिया बताते हैं कि इस इलाके के गुटीडीह, सोसोजारा, जाराडीह, टाटीसिंगारी, बांधटोली, सारजमडीह, मंसाबेड़ा, मदुकमडीह आदि गावों के लोगों ने अब लाख की खेती को ही जिंदगी का आधार बनाया है। वे बताते हैं कि पिछले साल इस इलाके के ग्रामीणों ने कम से कम एक करोड़ का कारोबार किया है। उन्होंने भी सवा लाख के लाख बेचे थे।

सहदेव बेदिया के मुताबिक पिछले साल उनकी खेती पिट गई थी, लेकिन गीता के कहने पर उनकी पत्नी मोहनी देवी ने इस साल लाख की खेती पर ही जोर दिया है।

लाख की दर के बारे में पूछने पर ग्राम प्रधान बताते हैं कि इस बार रेट नहीं खुला है। महीने के अंत तक खुल जाएगा। लाख अनुसंधान केंद्र के अधिकारी गांव वालों की सहमति से ही दर तय करेंगे।

वे बताते हैं कि पिछले साल छह सौ रुपए किलो बिका था। सुन रहे हैं कि इस बार दो साल चालीस का रेट होगा।

इतना कम क्यों। इस पर ग्रामीण बताते हैं कि पिछले साल अच्छी कमाई के बाद बहुत लोग लाख की खेती मे ही जुट गए। उत्पादन अधिक होगा, तो कारोबारी रेट ढीला कर ही देगा।