Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 73
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 74
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
Notice (8): Undefined variable: urlPrefix [APP/Template/Layout/printlayout.ctp, line 8]interview/interview-filmmaker-meera-nair-outlook.html"/> साक्षात्कार | इंटरव्यू- भारत में व्यावसायिक राजनीति है: मीरा नायर | Im4change.org
Resource centre on India's rural distress
 
 

इंटरव्यू- भारत में व्यावसायिक राजनीति है: मीरा नायर

-आउटलुक,

सलाम बॉम्बे (1988) और मॉनसून वेडिंग (2001) जैसी सदाबहार फिल्मों के लिए पहचानी जाने वाली अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त फिल्मकार मीरा नायर ने बीबीसी वन टेलीविजन की मिनी सीरीज के साथ वापसी की है। 1993 में विक्रम सेठ के बेस्ट सेलर उपन्यास ए सूटेबल बॉय पर इसी नाम से उन्होंने यह मिनी सीरीज बनाई है, जो अब नेटफ्लिक्स पर देखी जा सकती है। न्यूयॉर्क में रहने वाली फिल्मकार ने गिरिधर झा के साथ बातचीत में अपने नए काम, करिअर और कई मुद्दों पर बात की। कुछ अंशः

बीबीसी के साथ ए सूटेबल बॉय कैसे संभव हो पाया?

1993 में जब यह उपन्यास लिखा गया था तभी से मुझे यह बहुत पसंद है। 2017 में मुझे पता चला कि बीबीसी इस पर काम कर रहा है, तो मैंने फौरन उन लोगों को फोन किया और कहा कि मैं इसका निर्देशन करना चाहती हूं। लंबे समय से मुझे यह उपन्यास पसंद था और मैं सच में इसका निर्देशन करना चाहती थी। जब मैं इससे जुड़ी तब शुरुआती आठ अध्याय पहले ही लिखे जा चुके थे।  

उपन्यास 1,350 पन्नों का है, छह घंटे की मिनी सीरीज बनाना कठिन नहीं था?

जैसा कि मैंने बताया, मेरे जुड़ने से पहले स्क्रीन राइटर एंड्रयू डेविस और विक्रम सेठ शुरुआती आठ घंटे का खाका तैयार कर चुके थे। जब मैं जुड़ी तो हमें इसे छह घंटे तक सीमित करना था। इसके बाद हमें संतुलित तरीके से हमारी कहानी को प्राइड ऐंड प्रेज्यूडिस जैसी कहानी से कि लता मेहरा (तान्या मानिकतला) से शादी कौन करेगा, से बाहर निकालना था, क्योंकि यह भारत के बारे में अधिक था। लगभग वैसा ही जैसे लता भारत है। देश को बस अभी-अभी आजादी मिली है और वह अपनी पहचान तलाश रहा है। पहले लोकतांत्रिक चुनाव होने वाले हैं। अपनी पहचान की तलाश में लता की भी अपनी यात्रा है। यह ऐसी समानता है, जिस पर मैं काम करना चाहती थी। हम सब जानते हैं, राजनीति बहुत कुछ वैसी ही है, जैसी हम आज देख रहे हैं। यह चौंकाने वाली बात है कि उस वक्त भी ठीक ऐसा ही हो रहा था। हम उन बीजों को फलते देख रहे हैं, जो कई तरीकों से उस वक्त बोए गए थे। इसके साथ हमने यह देखा कि हमारे पास क्या था- हिंदू-मुस्लिम संस्कृतियों के बीच संगीत, भाषा, कविता और दोस्ती और आज तक मौजूद खूबसूरत समन्वय। यही वह दुनिया है, जो हमारी आंखों के सामने बस अभी नष्ट हो रही है। मैं इसे सहेजने के लिए हमेशा तैयार थी।

उपन्यासकार के रूप में यह कहानी विक्रम सेठ की थी, लेकिन फिल्मकार के रूप में यह आपकी हो गई। काम के दौरान किताब से क्या लेना है या क्या छोड़ना है, इसको लेकर कोई रचनात्मक मतभिन्नता?

मैं इसे किसी टकराव के रूप में नहीं देखती। स्क्रीन एडॉप्टेशन के नेचर को लेकर हम पूरी तरह स्पष्ट थे कि हमें कहानी से अनावश्यक बातें हटा देनी हैं। यह कहानी उस समय के भारत की राजनीति की व्यापक दुनिया और लता-मान कपूर (ईशान खट्टर) की राह के बीच संतुलन को फिर से बनाने के बारे में है। हमारा जोर इसी पर था। और इसके लिए महेश कपूर (राम कपूर) और नवाब (आमिर बशीर) की कहानी सुनाने की जरूरत थी, जो उन मुसलमानों के साथ न्याय करने की कोशिश करते हैं, जिन्होंने पाकिस्तान नहीं जाने का फैसला किया। यह अधिक महत्वपूर्ण था।

वैनिटी फेयर (1994) और द नेमसेक (2006) से द रिलक्टेंट फंडामेंटलिस्ट (2012) और ए सूटेबल बॉय तक, आपका झुकाव क्लासिक्स की ओर रहा है। बतौर फिल्म निर्माता, ऐसी पुस्तकों पर फिल्में बनाना आसान होता है या कठिन?

यह नहीं कह सकती कि मेरे लिए यह कठिन था या आसान। किसी खास किताब की खासियत से प्रेम के कारण मैं ऐसा करने को प्रेरित होती हूं। लेकिन मॉनसून वेडिंग और क्वीन ऑफ काटवे जैसे ओरिजनल स्क्रीनप्ले से तो यही लगता है कि फिल्म बनाने और स्क्रीनप्ले के क्राफ्ट में कोई खास अंतर नहीं है। इसलिए हर बात मायने रखती है। इतना तो है कि किताब आपके सामने खजाने की तरह है, खासकर ए सूटेबल बॉय, क्योंकि इससे आप कुछ भी ले सकते हैं।

इतने साल में तब्बू के साथ आपका अनुभव कैसा रहा? आपने नेमसेक में भी उनके साथ काम किया और अब ए सूटेबल बॉय में उन्होंने अलग ढंग का किरदार निभाया है?

तब्बू असाधारण प्रतिभा की धनी हैं। काम को लेकर सहजता, और खुद के भीतर एक रहस्य की क्षमता के कारण वे दूसरी ही दुनिया की स्टार हैं। उनके साथ काम करने का यह एक असाधारण निर्बाध रास्ता है। हमेशा से यह ऐसा ही रहा है।

और युवा कलाकार, जो इस फिल्म में हैं?

युवा कलाकार अद्भुत हैं। ईशान खट्टर ने मान का किरदार गजब उतारा है। वह बहुत ही प्यारा सा शैतान लड़का है और शानदार अभिनेता भी। और वैसी ही लेकिन अलग तरह से ओस की बूंद-सी तान्‍या मानिकतला है। असाधारण तरीके से वह उस दौर की लड़की है और उसके भीतर एक आधुनिक लड़की भी है। मुझे अच्छे कलाकारों के साथ काम करना पसंद है-नामचीन से लेकर पूरी तरह नौसिखिए तक। यहां तक कि कबीर दुर्रानी का किरदार निभाने वाले दानिश राजवी ने भी वास्तव में लगभग उस समय को जीया। ए सूटेबल बॉय के 110 कलाकारों के साथ ठीक ऐसा ही था। राजा की भूमिका निभाने वाले मनोज पाहवा, हमारी पीढ़ियों के बेहतरीन अभिनेताओं में से एक हैं। वे गंभीर, दिग्गज अभिनेता हैं।

आप भारत की अग्रणी फिल्म निर्माता हैं, जिन्होंने हॉलीवुड की सीमा को तोड़ा। 1980 के दशक में फिल्म बनाई। सलाम बॉम्बे से पहले आपकी यात्रा कितनी कठिन थी?

आज से वह समय अलग था। ईश्वर का शुक्रिया। उस वक्त हम उनके लिए वाकई विदेशी थे। जब ऑस्कर के लिए सलाम बॉम्बे नामांकित हुई, तो वे जानते ही नहीं थे कि मंच पर इंडिया शब्द कैसे कहा जाए। मैंने इसे वहां (हॉलीवुड) साबित करने के लिए बनाया भी नहीं था। मेरे लिए हमेशा यही मायने रखता है कि हम कौन हैं और अपनी कहानी कैसे अपने तरीके से कही जाए। मैं हमेशा कहती हूं, आप अपनी कहानी नहीं कह सकते तो कोई दूसरा इसे नहीं करेगा। अपने आसपास मैंने जो भी देखा उस पर मिसिसिपी मसाला (1991) बनाई। इस बारे में मैंने स्क्रीन पर कभी कोई कहानी नहीं देखी थी। आज लोग जागरूक हैं। अब अश्वेत जीवन मायने रखता है। कमला हैरिस मिसिसिपी मसाला की प्रोडक्ट जैसी हैं। मेरा मानना है कि आपको दूसरी हॉलीवुड रोमांटिक कॉमेडी बनाने के लिए कहीं जाने की जरूरत नहीं है, लेकिन मिसिसिपी मसाला या मानसून वेडिंग (2001) या द नेमसेक (2006) के लिए हमारी अपनी कहानी होनी चाहिए, अपनी रिदम के साथ।

पूरा इंटरव्यू पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.