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जिस तरह अंग्रेजों ने बिरसा मुंडा को जेल में मार डाला, उसी तरह भारत सरकार ने स्टेन को: स्वामी के साथी

-आउटलुक,

"लेकिन हम फिर भी समूहों में गाएंगे,  पिंजरे में बंद पंछी अभी भी गा सकता है।"

ये शब्द किसी और के नहीं बल्कि फादर स्टेन स्वामी के थे, जिन्होंने जेल से अपने एक साथी जेसुइट पादरी को लिखे पत्र में कहा था। दोनों हाथों में लगातार झटके के साथ तेज पार्किंसंस बीमारी से पीड़ित स्टेन ने पत्र लिखने के लिए इस दर्द को उठाया, क्योंकि वो अन्य कैदियों की दुर्दशा को उजागर करना चाहते थे। उन्होंने अपने पत्र में लिखा था, "ऐसे कई गरीब विचाराधीन कैदी, जो नहीं जानते कि आखिर उन पर क्या आरोप लगाए गए हैं, उन्होंने अपनी चार्जशीट नहीं देखी है और बिना किसी कानूनी सहायता के सालों से जेल में हैं”। उन्होंने पत्र के जरिये अपने साथियों को बताया था कि कैसे उनके साथी कैदियों ने उन्हें खिलाया, उनकी देखभाल की, दैनिक क्रिया में मदद की और कैसे उन्होंने उनकी एकजुटता की भावना से प्रेरणा ली।

जेल से लिखे एक अन्य पत्र में उन्होंने कहा, 'मैं आशान्वित हूं। संसार मानवता रहित नहीं है। जेल में अंधेरे और अमानवीय जीवन की स्थितियों के बावजूद, मेरे कैदी साथी जीवंत मानवता को अपने दिलों में जीवित रखते हैं।'

एक इंसान के रूप में स्टेन... एक कार्यकर्ता के रूप में स्टेन

'वो मानवता के पक्के हिमायती थे। और विडंबना देखिए कि उनके साथ ही सबसे अमानवीय व्यवहार किया गया'। 42 वर्षीय आदिवासी कार्यकर्ता आलोका कुजूर, जो नेतरहाट फायरिंग रेंज के खिलाफ आदिवासी प्रतिरोध के दौरान स्टेन से मिली थी वो कहती हैं, "ये सेना द्वारा फील्ड फायरिंग अभ्यास के लिए नेतरहाट हिल्स में बड़े क्षेत्र निर्धारित करने के सरकार के फैसले के खिलाफ एक संघर्ष था। सरकार के इस निर्णय से कमजोर आदिवासी समुदायों का बड़े पैमाने पर विस्थापन हो सकता था।"

2004 से उनके साथी दामोदर तुरी आउटलुक को बताते हैं, 'हम ‘विस्थापन विरोधी जन विकास आंदोलन’ का हिस्सा थे जिसने आदिवासियों के अवैध विस्थापन के लिए काम किया था। उन्होंने और मैंने मिलकर मानवाधिकारों के लिए कई लड़ाईयां लड़ीं। वो ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने आदिवासी हित के लिए 50 साल से अधिक समय दिया। उन्होंने आदिवासियों के भूमि, जीवन और सम्मान के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी और मनगढ़ंत आरोपों में जेलों में बंद हजारों आदिवासी पुरुषों और महिलाओं की रिहाई की मांग की।'

उन्हें जेल क्यों हुई?

तुरी बताते हैं, 'अपने पूरे जीवन में वो कभी भीमा कोरेगांव नहीं गए और इस मामले से उनका दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं था। ये केंद्र सरकार, झारखंड सरकार और एनआईए को बहुत अच्छी तरह से पता था। बेजुबानों को आवाज देने की कोशिश के लिए उन्हें जेल में डाला गया था।'

जब उनकी गिरफ्तारी हुई थी तो उनकी सेहत कैसी थी? इसके बारे में बताइए...

उन दिनों को याद करते हुए जब वो स्टेन की दैनिक भोजन बनाने में मदद करते थे, तुरी कहते हैं, 'उन्हें 83 साल की उम्र में गिरफ्तार किया गया था। वो पार्किंसंस जैसी गंभीर बीमारी का सामना कर रहे था, जिसके कारण वो एक ग्लास पानी भी नहीं उठा पाते थे। इसके साथ ही उनके दोनों हाथों में गंभीर झटके आते थे और उन्हें लगातार देखभाल की जरूरत होती थी। वो लम्बर स्पोंडिलोसिस और प्रोस्टेट समस्याओं के भी मरीज थे। उनके हर्निया के दो ऑपरेशन हुए थे और उनकी किडनी भी ठीक से काम नहीं कर रही थी। उनके दोनों कानों के सुनने की क्षमता कम हो गई थी।

जेल के अंदर उनकी कैसी हालत थी? क्या उनकी तबीयत खराब हो रही थी?

बॉम्बे हाईकोर्ट में अंतरिम जमानत की गुहार लगाते हुए, स्टेन ने एक बार कहा था, 'अगर जमानत नहीं मिली तो मेरी स्थिति और खराब हो जाएगी, संभवत: बहुत जल्द मर जाऊंगा।' महाराष्ट्र की जेलों में कोविड-19 मामलों में अचानक वृद्धि के बावजूद उन्हें जमानत देने से लगातार इंकार किया गया।' उनके वकीलों ने हमें बताया कि तलोजा जेल जहां उन्हें रखा गया था, वहां 3,500 से अधिक कैदी थे और सभी कैदियों को एलोपैथिक दवाएं देने वाले केवल तीन आयुर्वेदिक डॉक्टर थे। स्टेन, जेल में कोविड-19 की चपेट में आए थे और बाद में इस महामारी के शिकार होने के बाद बिगड़ी सेहत की वजह से दम तोड़ दिया।

स्टेन स्वामी की मृत्यु के लिए आप क्या (या किसे) जिम्मेदार मानते हैं?

तुरी भावुक होते हुए कहते हैं, 'जिस तरह ब्रिटिश भारत में औपनिवेशिक सरकार ने आदिवासी नेता बिरसा मुंडा को जेल में मार डाला था, उसी तरह आज दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की सरकार ने एक 84 वर्षीय आदिवासी कार्यकर्ता स्टेन स्वामी की हत्या कर दी। उन्होंने अपनी अंतिम सांस तक भारतीय न्यायपालिका में अपना विश्वास बनाए रखा। लेकिन आज न्यायपालिका ने उन्हें विफल कर दिया।' वो लगातार अनुरोध कर रहे थे कि उन्हें रांची जाने और अपने साथियों के साथ रहने की अनुमति दी जाए। उन्हें घर में नजरबंद रखा जा सकता था। लेकिन, उनकी ये सारी याचना बहरे कानों पर पड़ी, जहां किसी ने उनकी इस गुहार को नहीं सुना।

'आज इस मौत के बारे में सुनकर जज कहते हैं, 'मैं स्तब्ध हूं।' गुस्से में तुरी कहते हैं मैं उनसे पूछना चाहता हूं- आखिर अब हम आपके सदमे का क्या करें, सर?'

उनके संगठन 'बगइचा' के बारे में बताइए?

कुजूर आउटलुक को बताती हैं कि 'बगइचा' का मतलब सादरी में बगीचा है। इसकी स्थापना करीब 15 साल पहले हुई थी। मुझे याद है कि कैसे उद्घाटन के दिन हमने आदिवासी नायक बिरसा मुंडा की मूर्ति स्थापित की थी। स्टेन ने आदिवासियों को सशक्त बनाने और माओवादी होने के आरोप में नाबालिगों की अवैध हिरासत के खिलाफ लड़ने के लिए 'बगइचा' की स्थापना की थी।

वहीं, तुरी कहते हैं, 'उन्होंने अन्यायपूर्ण विस्थापन, मानवाधिकारों के उल्लंघन, अवैध भूमि अधिग्रहण और अधिक भूमि अधिग्रहण के लिए तैयार या संशोधित नीतियों के खिलाफ लगातार काम किया, जिससे स्वदेशी लोग भूमिहीन हो गए।

स्टेन ने झूठे आरोपित आदिवासी कैदियों के अधिकारों के लिए कब लड़ना शुरू किया?

कुजूर बताती हैं, 'साल 2015 में एक जांच में फर्जी नक्सल सरेंडर घोटाला उजागर हुआ था, जिसमें 514 पुरुष झारखंड,  ज्यादातर रांची और पड़ोसी जिलों में रहने वाले आदिवासी समुदायों के थे। जिनको केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) में फर्जी नौकरियों का ऑफर दिए जाने के साथ नक्सलियों के रूप में आत्मसमर्पण करने का लालच दिया गया था। साथ ही यह भी पता चला था कि इनमें से प्रत्येक ने इस ऑफर के लिए बिचौलियों को 1 लाख रुपये से 2.5 लाख रुपये के बीच भुगतान भी किया था।'

वो आगे कहती हैं, 'इन लोगों को इंसाफ दिलाने की लड़ाई में स्टेन सबसे आगे थे। उन्होंने इन मामलों के लिए अथक प्रयास किया, कई अधिकारियों और मंत्रियों के साथ बातचीत भी की। और अंत में, सभी 514 पुरुषों को रिहा कर दिया गया। इस प्रक्रिया में, स्टेन ने महसूस किया कि यह एक बहुत बड़ी समस्या थी। हजारों झूठ को लेकर आरोपी ठहराए जाने वाले आदिवासी पुरुष और महिलाएं सलाखों के पीछे हैं और उनकी दलील सुनने वाला कोई नहीं है।'

'उन्होंने 'मूक दर्शक' नहीं रहने का फैसला किया। उनकी इस पहल के लिए परसेंटेड प्रिजनर्स सॉलिडेरिटी कमेटी (पीपीएससी) ने भी उनका साथ दिया। तुरी ने बताया, 9 अक्टूबर, 2020 को उनकी गिरफ्तारी से पहले स्टेन स्वामी का आखिरी संदेश था - 'मैं मूक दर्शक नहीं बल्कि खेल का हिस्सा हूं और इसके लिए जो भी कीमत चुकानी पड़े उसके लिए तैयार हूं’।

जेल में उनकी हालत के बारे में बताएं

अपने आखिरी वीडियो संदेश में उन्हें यह कहते हुए देखा जा सकता है, 'मैंने झारखंड राज्य के खिलाफ झारखंड उच्च न्यायालय में जेलों में बंद करीब 3,000 युवा आदिवासियों की ओर से मामला दर्ज कराया, जो राज्य के साथ विवाद का विषय बन गया और जिसके बाद वे मुझे रास्ते से हटाना चाहते थे।'

कुजूर का कहना है कि 'दो छापे के बाद भी, एक बार पुणे पुलिस और फिर एनआईए द्वारा, 15 घंटे से अधिक देर तक पूछताछ, उनका लैपटॉप, पेन ड्राइव, फोन छीन लेना और उनके सोशल मीडिया अकाउंट्स को प्रतिबंधित करना, एनआईए यह साबित नहीं कर पाया कि स्टेन एक माओवादी थे या वह भीमा कोरेगांव मामले से जुड़े थे'।

वो रोते हुए कहती हैं, 'स्टेन की गिरफ्तारी के बाद, एनआईए ने यहां झारखंड में अपना कार्यालय खोला। वह आगे कहती है, 'अभी दो दिन पहले, स्टेन स्वामी के वकीलों ने यूएपीए मामलों में जमानत के प्रावधान की मांग करते हुए अदालत में एक याचिका दायर की थी। और त्रासदी तो देखिए कि उस व्यक्ति ने अपनी जमानत पर सुनवाई से एक दिन पहले ही दम तोड़ दिया।'

राज्य के लिए आपका संदेश

कुजूर अफसोस जताते हुए कहती हैं, 'हम सबने, सलाखों के पीछे के सभी 3000 आदिवासियों, हमारे सभी साथियों और सभी बेगुनाह लोगों ने अपने अभिभावक को खो दिया है'। वहीं, तुरी कहते हैं, 'अगर इस सरकार में स्टेन स्वामी की हत्या के बाद भी कोई शर्म बची है, तो अभी भी समय है। मैं उनसे सभी राजनीतिक कैदियों को पूरी तरह से रिहा करने की अपील करता हूं, इससे पहले कि उनके हाथ खून से लथपथ हो जाएं'।

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