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इंटरव्यू/भूपेश बघेल: “राज्यों को कर्ज की ओर ढकेल रहा केंद्र”

-आउटलुक,

“बघेल ने विकास के छत्तीसगढ़ मॉडल के बारे में विस्तार से बात की”

भूपेश बघेल ने हाल ही छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री के रूप में तीन साल का कार्यकाल पूरा किया है। उनके नेतृत्व में दो दर्जन से अधिक क्षेत्रों में उपलब्धियां हासिल करके यह प्रदेश एक मॉडल बन कर उभरा है। इसके लिए उसे राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कार भी मिले हैं। आउटलुक के लिए आशुतोष शर्मा के साथ बातचीत में बघेल ने विकास के छत्तीसगढ़ मॉडल के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि कैसे उनकी सरकार महात्मा गांधी के ‘ग्राम स्वराज’ विचार को अमल में लाने का प्रयास कर रही है। उन्होंने कहा कि कोविड-19 महामारी के दौरान केंद्र सरकार राज्यों को वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) का बकाया देने के बजाय उन पर कर्ज लेने के लिए दबाव बना रही है। बघेल का दावा है कि आर्थिक समस्याएं बढ़ने और केंद्र के असहयोग के बावजूद उनकी सरकार महिलाओं, किसानों, श्रमिकों और वनवासियों की आर्थिक स्थिति बेहतर बनाने में लगी है। इसके लिए सरकार ने टिकाऊ विकास की नीतियां अपनाई हैं। राज्य में बिजली संकट को दूर करने के लिए उनकी सरकार जल्दी ही स्थानीय स्तर पर खरीदे गए गोबर से बिजली तैयार करेगी। बघेल के साथ बातचीत के मुख्य अंश:

बीते 3 वर्षों में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री के तौर पर आपका मुख्य फोकस क्या रहा है?

हमारी सरकार किसानों और वनवासियों की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए काम कर रही है। शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार सृजन हमारी प्राथमिकता हैं। छत्तीसगढ़ में किसानों को उनकी उपज का सबसे अधिक समर्थन मूल्य दिया जा रहा है। उदाहरण के लिए तेंदूपत्ता संग्रह की दर 2,500 रुपये प्रति बैग से बढ़ाकर 4,000 रुपये प्रति बैग कर दी गई है। हम स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से 52 छोटे वनोपज खरीद रहे हैं। छोटी फसलों की प्रोसेसिंग, पैकेजिंग और मूल्य संवर्धन से लाखों लोगों को अतिरिक्त आमदनी हो रही है। छत्तीसगढ़ बड़े पैमाने पर काजू का उत्पादन करता है। पहले लोग 50 रुपये प्रति किलो की दर से काजू बेचते थे। अब उसी फसल को 300 से 1800 रुपये किलो की दर से बेच रहे हैं। इससे वनवासियों की आय बढ़ी है। इसी तरह हल्दी, महुआ के फूल और दूसरे औषधीय पौधों से जुड़ी भी हमारे पास सफलता की कहानियां हैं। सरकार की मदद से महिला स्वयं सहायता समूह स्थानीय जड़ी बूटियों से कम से कम 18 तरह की दवाएं तैयार कर रही हैं। वर्ष 2021 में वनोपज खरीदने, उनकी प्रोसेसिंग और मार्केटिंग के क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन के लिए छत्तीसगढ़ को 10 राष्ट्रीय पुरस्कार मिले। इसके अतिरिक्त वन अधिकार कानून के तहत हमने 19 लाख हेक्टेयर जमीन का मालिकाना हक आदिवासियों को देने का काम शुरू किया है।

आपकी सरकार ने धान की खरीद में रिकॉर्ड बनाया है। यह उपलब्धि कैसे हासिल हुई?

छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा भी कहा जाता है। पहले धान सिर्फ न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीदा जाता था। लेकिन हमारी सरकार आने के बाद हमने किसानों से 2,500 रुपये प्रति क्विंटल की दर से धान खरीदना शुरू किया। शुरू में केंद्र सरकार ने कुछ दिक्कतें पैदा कीं। उसके बाद हमने 2020 में राजीव गांधी किसान न्याय योजना शुरू की। इस योजना के तहत हमने एक साल के भीतर किसानों के खाते में 5,700 करोड़ रुपये ट्रांसफर किए। हम 9,000 रुपये प्रति हेक्टेयर की दर से भुगतान कर रहे हैं। वर्ष 2022 से हम किसानों को उनकी पूरी फसल की कीमत अदा करेंगे। आदिवासी बहुल इलाकों में मिलेट की खरीद के लिए भी हम ऐसी ही व्यवस्था अपना रहे हैं। देश में छत्तीसगढ़ में पहली बार ऐसी व्यवस्था अपनाई जा रही है। हमारी सरकार किसानों को फसलों के विविधीकरण के लिए प्रोत्साहित कर रही है। हमने फॉरेस्ट प्लांटेशन के लिए इंसेंटिव दिया है और नकदी फसलों की भी शुरुआत की है।  हम डेरी, पोल्ट्री और मछली पालन जैसे सेक्टर को भी बढ़ावा दे रहे हैं।

छत्तीसगढ़ सरकार मवेशी रखने वालों से गाय का गोबर भी खरीदती है। सरकार इसका क्या कर रही है?

उत्तर प्रदेश की तरह छत्तीसगढ़ भी आवारा पशुओं की समस्या से संघर्ष कर रहा था। इससे निजात पाने के लिए हमने करीब 8,000 गौस्थान बनाए। उसके बाद गोधन न्याय योजना के तहत दो रुपये प्रति किलो की दर से गाय का गोबर खरीदना शुरू किया। पिछले साल हमने 54 लाख क्विंटल गोबर खरीदा। इस खरीद के बदले अभी तक हम 116 करोड़ रुपये का भुगतान कर चुके हैं। इस गोबर से वर्मी कंपोस्ट और ऑर्गेनिक खाद बनाई जाती है। हमने अभी तक किसानों को कम से कम 14 लाख क्विंटल वर्मी कंपोस्ट खाद की बिक्री की है। इससे रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता भी कम हुई है। गोबर का इस्तेमाल दीया, फूलदान और मूर्तियां बनाने जैसे कार्यों में भी होता है। कम से कम 70 हजार महिलाएं इस समावेशी विकास की मुहिम के साथ जुड़ी हुई हैं। अब हम गाय के गोबर से बिजली पैदा करने जा रहे हैं। रायपुर, दुर्ग और बेमेतरा में इसका प्रयोग सफल रहा है।

हमने स्थानीय स्तर पर इस्तेमाल होने वाले जुगाड़ का प्रयोग किया और दिखाया कि गाय के गोबर से बिजली पैदा की जा सकती है। बड़े पैमाने पर बिजली उत्पन्न करने के लिए हमने भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर और जर्मनी की कुछ कंपनियों के साथ बात की है ताकि वे हमें इसके लिए जरूरी टेक्नोलॉजी उपलब्ध कराएं। इसके अलावा गोबर से ऑर्गेनिक प्लांट बनाने की योजना भी है।

ज्यादातर गैर-भाजपा शासित राज्यों की शिकायत है कि फंड उपलब्ध कराने में केंद्र सरकार उनके साथ भेदभाव करती है। आपका अनुभव अभी तक कैसा रहा है?

केंद्र सरकार को छत्तीसगढ़ को 13,000 करोड़ रुपये देने हैं। यह राशि कई केंद्रीय करों के मुआवजे के मद में बकाया है। केंद्र तीन वर्षों से यह रकम जारी नहीं कर रहा है। इसी तरह केंद्र को कोयले के मुआवजे के तौर पर छत्तीसगढ़ को 4,000 करोड़ रुपये देने हैं। सुप्रीम कोर्ट निर्देश भी दे चुका है। लेकिन यह रकम देने के बजाय केंद्र हमारे ऊपर कर्ज लेने का दबाव बना रहा है। महामारी को देखते हुए उसे राज्यों को आर्थिक सहायता उपलब्ध करानी चाहिए थी। इसके विपरीत वह उन्हें कर्ज के जाल में फंसा रहा है। यह सब भाजपा शासित राज्यों में भी हो रहा होगा, लेकिन वे अभी कुछ कह नहीं पा रहे हैं।

विकास का छत्तीसगढ़ मॉडल आखिर है क्या? आप कांग्रेस पार्टी के उत्तर प्रदेश में चुनाव प्रभारी भी हैं। तो छत्तीसगढ़ का मॉडल योगी आदित्यनाथ के विकास के मॉडल से कैसे अलग है?

सात साल पहले गुजरात मॉडल की हर जगह चर्चा होती थी। उस मॉडल ने गरीबों को और गरीब तथा अमीरों को और अधिक अमीर बनाया। उत्तर प्रदेश उसी मॉडल पर चल रहा है। छत्तीसगढ़ का मॉडल महात्मा गांधी के ‘ग्राम स्वराज’ विचार पर आधारित है। हम श्रमिकों, किसानों और वंचितों की आर्थिक खुशहाली के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं। यही कारण है कि शहरों और कस्बों में रौनक दिखाई देती है। टेक्सटाइल, ऑटोमोबाइल, जेम्स-ज्वेलरी और रियल एस्टेट जैसे विभिन्न सेक्टर में विकास हो रहा है। उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ दोनों कृषि आधारित अर्थव्यवस्थाएं हैं। दोनों राज्यों में किसानों के आर्थिक सशक्तीकरण के बिना अर्थव्यवस्था को मजबूत नहीं किया जा सकता है। किसान ही यहां सबसे बड़े उपभोक्ता हैं। अगर किसानों की ही खरीद क्षमता नहीं होगी तो व्यापारी और व्यवसाय मुनाफा कैसे कमाएंगे?

हमने 22 लाख किसानों, 13 लाख वनवासियों और 10 लाख दिहाड़ी मजदूरों की जेब में पैसे डाले हैं। हमारी सरकार ने राजीव गांधी ग्रामीण भूमिहीन कृषि मजदूर न्याय योजना शुरू की है। इसके तहत भूमिहीन गरीब परिवारों को हर साल 6,000 रुपये की वित्तीय सहायता दी जाती है।

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