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किसानों के हक में होगा यह कानून

119 साल पुराने भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन पर संसद ने इस हफ्ते मुहर लगा दी है। उद्योग जगत प्रस्तावित कानून को औद्योगिकीकरण के लिए नुकसानदेह बता रहा है, तो दूसरी तरफ ऐसा तबका भी है, जो मानता है कि यह बदलाव किसानों के हितों के लिहाज से पर्याप्त नहीं है। इस विधेयक को पारित कराने के सूत्रधार केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश से विजय गुप्ता ने बातचीत की-

आकस्मिक कार्य के नाम पर किसानों की जमीन का जबरन अधिग्रहण रोकने के लिए बनाए गया कानून अपने मकसद में कितना कामयाब हो पाएगा?

सवाल कामयाबी का नहीं, बल्कि किसानों को त्वरित और उचित मुआवजे के जरिये न्याय दिलाने का है। इसी मकसद से केंद्र सरकार ने भूमि अर्जन, पुर्नवास एवं पुनर्स्थापन कानून बनाया है। यह कानून किसानों को उनकी जमीन की उचित कीमत दिलाने का अधिकार देता है। अब किसी राज्य में किसानों से जमीन का अधिग्रहण जबरन नहीं किया जा सकेगा। कानून में ऐसी व्यवस्था की गई है कि यदि आकस्मिक कार्यो के लिए जमीन का अधिग्रहण किया भी जाता है, तो कम से कम 80 फीसदी किसानों की सहमति अनिवार्य है।

उत्तर प्रदेश के भट्टा-पारसौल में किसानों से जबरन जमीन के अधिग्रहण के बाद केंद्र सरकार को इस कानून बनाने की याद आयी थी। क्या इस कानून भट्टा परसौल के किसानों को लाभ मिल सकेगा?

यह सही है कि भट्टा-पारसौल में किसानों के उत्पीड़न और उनके साथ हुए अन्याय को देखते हुए ही केंद्र सरकार ने नया कानून बनाने की पहल की थी। लेकिन केंद्र के सामने देश भर के किसानों की पीड़ा थी। रही बात भट्टा-पारसौल के किसानों को लाभ मिलने की, तो इससे उन किसानों को इस कानून से लाभ मिलेगा, जिन्होंने अभी तक राज्य सरकार से मुआवजा नहीं लिया है। यही स्थिति अन्य राज्यों के किसानों पर भी लागू होगी। लेकिन यदि राज्य सरकारे चाहें, तो वे नए कानून को पिछले वर्षो से लागू कर सकती है। यह उनकी इच्छाशक्ति पर निर्भर करता है।

दो वर्ष पूर्व ग्रामीण विकास मंत्रालय ने भूमि अधिग्रहण विधेयक का जो मसौदा तैयार किया था, उसमें और बनाए नए कानून में काफी अंतर है। कहा जा रहा है कि राज्य सरकारों� और उद्योग जगत के दबाव में इतने ज्यादा संशोधन किए गए हैं।

यह सही है कि ग्रामीण विकास मंत्रालय ने भूमि अधिग्रहण विधेयक का जो मसौदा तैयार किया था, वह काफी कठोर था। पर केंद्र सरकार का इरादा कभी किसी कानून को जबरन राज्यों पर थोपना का नहीं रहा। इसी मकसद से सरकार ने सभी पक्षों के सुझावों और सलाह को महत्व देते हुए विधेयक के मसौदे में संशोधन किए। लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं है कि मौजूदा कानून कठोर नहीं है या फिर किसी एक पक्ष को ध्यान में रखकर बनाया गया है।

भूमि अधिग्रहण कानून लाने का मकसद खेतिहर जमीन बचाना भी था। लेकिन नए कानून में भी खेतिहर जमीन के अधिग्रहण पर पूरी तरह रोक नहीं लगाई गई है।

नहीं, नए कानून में बहुफसलीय जमीन के अधिग्रहण पर पूरी तरह रोक लगाई गई है। कोई सरकार किसानों से उसकी खेतिहर भूमि का जबरन अधिग्रहण नहीं कर सकेगी। खेतिहर भूमि के अधिग्रहण के लिए कई सख्त प्रावधान किए गए हैं। इसके तहत जब सरकार के पास कोई और विकल्प नहीं होगा, तभी वह सिर्फ पांच फीसदी खेतिहर जमीन का अधिग्रहण कर सकेगी। लेकिन उसके बदले किसानों को न सिर्फ बाजार कीमत से चार गुना अधिक कीमत देनी होगी, बल्कि उसके और उसके परिवार के भरण-पोषण की भी राज्य सरकार को व्यवस्था करनी होगी। नए कानून में पुनर्वास की भी व्यापक व्यवस्था की गई है।