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‘जम्मू कश्मीर की मीडिया को खुद नहीं पता कि राज्य में क्या हो रहा है’

केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रपति के आदेश से 5 अगस्त को जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को खत्म किए जाने से एक दिन पहले 4 अगस्त से ही राज्य में मोबाइल, लैंडलाइन और इंटरनेट सहित संचार के सभी संसाधनों पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया था. इसके पहले वहां भारी संख्या में अतिरिक्त सुरक्षा बलों को भी तैनात कर दिया गया था.


संचार माध्यमों पर रोक के साथ प्रदेश में अप्रत्याशित बंद का सामना कर रही जम्मू कश्मीर की मीडिया बेहद मुश्किल दौर से गुजर रही है. स्थानीय अख़बारों जैसे ग्रेटर कश्मीर, राइजिंग कश्मीर और कश्मीर रीडर की वेबसाइट्स 4 अगस्त से अपडेट नहीं हुई हैं.


कश्मीर टाइम्स का जम्मू संस्करण छप रहा है और अपनी वेबसाइट को अपडेट करने में भी सफल रहा लेकिन उसका कश्मीर संस्करण पूरी तरह से ठप्प पड़ा हुआ है.


राज्य में मीडिया की स्वतंत्रता को बहाल करने के लिए कश्मीर टाइम्स की कार्यकारी संपादक अनुराधा भसीन ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने तत्काल सुनवाई की मांग के लिए दाखिल याचिका पर फिलहाल सुनवाई नहीं की है.


कश्मीर का विशेष दर्जा हटाने के बाद उपजी परिस्थितियों पर कश्मीर टाइम्स की कार्यकारी संपादक अनुराधा भसीन से बातचीत.


केंद्र सरकार द्वारा जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को हटाने के फैसले को किस तरह से देखती हैं?


अनुच्छेद 370 को हटाया जाना बहुत ही चौंकाने वाला था. यह जम्मू कश्मीर और भारत के बीच में एक कानूनी ही नहीं बल्कि राजनीतिक और भावनात्मक रूप से जुड़ा हुआ था. एक मात्र भावनात्मक लिंक वही रह गया था.


हम अक्सर ये बात करते थे अगर आप इससे छेड़छाड़ करते हैं बहुत खतरनाक हो सकता है लेकिन हमने कभी नहीं सोचा था कि ये ऐसा कर ही देंगे. इसके बहुत सारे नुकसान हैं. आंतरिक और लोकतांत्रिक, कई तरीके से इसके नतीजे बुरे हो सकते हैं. जिस तरह से संविधान को तोड़-मरोड़कर इस पूरी प्रक्रिया को अंजाम दिया गया, वह भारतीय लोकतंत्र पर एक तरह का हमला है.


कानून साफ है कि विशेष दर्जे या अनुच्छेद 370 पर कोई भी संशोधन होता है तो उसे जम्मू कश्मीर की संविधान सभा कर सकती है, लेकिन जम्मू कश्मीर की संविधान सभा मौजूद नहीं है. अब अगर संशोधन करना है तो वह अधिकार जम्मू कश्मीर विधानसभा से पास होगा लेकिन जम्मू कश्मीर विधानसभा भी नहीं है. लेकिन यह अधिकार राज्यपाल, राष्ट्रपति या संसद को नहीं जा सकता है.

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