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‘मेरे पास कोई बटन नहीं है जिसे दबाकर चीजें तुरंत बदल दूं’- नीतीश कुमार

बिहार में इस साल विधानसभा चुनाव हैं, लेकिन लगता नहीं कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को इस चुनौती की ज्यादा फिक्र है. विजय सिम्हा से बातचीत में नीतीश बता रहे हैं कि उनकी सरकार तीन सबसे प्रमुख मुद्दों- निवेश, शिक्षा और भूख पर कैसे आगे बढ़ने वाली है और क्यों उन्हें इस मामले में केंद्र से मदद मिलने की उम्मीद नहीं है.

(तहलका हिन्दी से साभार)

बिहार में भूख अभी भी एक समस्या है, लेकिन इसे दरकिनार किया जा रहा है. हमने एक जगह देखा कि एक परिवार में लोग खाने के लिए बकरी की खाल पका रहे थे. इस बिहार तक पहुंचने में आपको कितना वक्त लगेगा?

बिहार में काफी गरीबी है. यहां गरीबी रेखा के नीचे गुजर कर रहे लोगों की संख्या को लेकर केंद्र सरकार का जो दावा है उससे कहीं ज्यादा लोग इस रेखा के नीचे जिंदगी बिता रहे हैं. हमारा आकलन बताता है कि राज्य में ऐसे लोगों की संख्या तकरीबन 1.4 करोड़ है जबकि केंद्र इसे 65 लाख बताता है. यदि हमें गरीबों तक पहुंचना है तो सबसे पहले गरीबी से जुड़े आंकड़े ठीक करने होंगे.

तो भूखों को खाना कब तक मिलेगा?

सबसे पहले मैं आपको यह बताता हूं कि काम कैसे होता है. हमारी टीमें गरीबी रेखा में शामिल लोगों के नाम की सूची के हिसाब से काम करती हैं. हम कहते हैं कि सूची में 1.4 करोड़ लोगों का नाम होना चाहिए जबकि केंद्र कहता है कि इसमें सिर्फ 65 लाख लोगों का नाम होगा. यदि हम लोगों की सही संख्या पर एकराय नहीं हो पाते तो मेरी उन तक पहुंच कैसे होगी? राज्य सार्वजनिक वितरण प्रणाली का संचालन नहीं करते. यह केंद्र सरकार चलाती है. यदि लोगों को सब्सिडी वाला अनाज मिले तो उन्हें जानवरों की खाल नहीं खानी पड़ेगी, लेकिन सबसे पहले गरीबों की संख्या पर एकराय होनी चाहिए. इस मामले में हम पीड़ित हैं. मैंने केंद्र को खाद्य सुरक्षा कानून लागू करने के बारे में लिखा है. मैंने यह भी कहा है कि यदि आप हमारे सर्वे से संतुष्ट नहीं हैं तो गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों की खुद गिनती करवाएं. लेकिन यह नहीं हो सकता कि खाद्य सुरक्षा के लिए वाहवाही तो केंद्र को मिले और गरीबी रेखा में नाम न होने के कारण लोग हमें गालियां दें.

नया निवेश राज्य की अर्थव्यवस्था में फिर से जान डाल सकता है. राज्य इस दिशा में कोशिश भी कर रहा है, लेकिन ऐसा लग रहा है कि बड़े निवेशक यहां आना नहीं चाहते. ऐसा क्यों?

बड़े निवेशक  बिहार में दो क्षेत्रों में निवेश करना चाहते हैं: थर्मल पावर और एथनॉल. लेकिन थर्मल पावर प्लांट बिना कोयले के नहीं बन सकते. कोयले के लिए पानी की जरूरत होती है. पानी राज्य का विषय है, लेकिन अब केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय से अनुमति लेने की नई व्यवस्था शुरू हो गई है. मंत्रालय कह रहा है कि गंगा बेसिन का पानी कोयले के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाएगा. अब समस्या यह है कि राज्य में गंगा बेसिन के अलावा पानी और कहां से आएगा? यदि मंत्रालय इस पानी के इस्तेमाल पर रोक लगा देगा तो निवेश कहां से आएगा? ऐसे ही गन्ने से एथनॉल बनाने का प्रस्ताव भी 2007 से केंद्र के पास अटका पड़ा है. केंद्र की वजह से चीजें आगे नहीं बढ़ पा रही हैं.

निवेशकों का कहना है कि बिहार में जमीन न मिलना एक समस्या है और आप इस मामले में उनकी मदद नहीं कर रहे.

मैं उनके लिए जमीन का अधिग्रहण क्यों करूं? हम सड़क, रेलवे और पुलों के लिए जमीन का अधिग्रहण कर रहे हैं इसके लिए भारी मुआवजा भी दे रहे हैं. जहां तक निजी निवेशकों की बात है तो हम उनसे कहते हैं कि वे अपने लिए जमीन का मोलभाव खुद करें. यदि इस काम में हम शामिल होते हैं तो दो बातें होंगी. पहली तो यह कि जमीन की कीमत ज्यादा हो जाएगी क्योंकि हम काफी ज्यादा मुआवजा देकर अधिग्रहण करते हैं और जब हम यह निवेशकों को सौंपेंगे तो इसमें हमारे मुआवजे के साथ-साथ वहां पर हम विकास के जो आधारभूत काम करेंगे उनकी लागत भी शामिल होगी. दूसरी बात यह है कि हम जमीन सिर्फ लीज पर दे सकते हैं, जबकि निवेशक अपने नाम से यह जमीन ले सकते हैं. इसके अलावा हमारे पड़ोसी प. बंगाल के नंदीग्राम और सिंगूर का उदाहरण पुराना नहीं हुआ है. आपको ऐसे निवेशक मिले होंगे जिनकी बिहार आने में दिलचस्पी नहीं है और इसलिए वे बहाने बना रहे हैं. हकीकत में निवेश करने वाले किसी निवेशक ने मुझसे जमीन का अधिग्रहण करने को नहीं कहा.

शिक्षा एक और बुनियादी मसला है. आप यहीं पले-बढ़े हैं. तब की स्थितियों से यदि आज की तुलना करें तो क्या बदलाव देखते हैं?

सबसे बड़ा बदलाव तो यही है कि हम बच्चों को स्कूल भेज रहे हैं. जब हमारी सरकार बनी थी तब 25 लाख बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे थे. अब यह संख्या आठ लाख से भी कम रह गई है. दूसरा बदलाव यह रहा कि अब हम उन्हें बेहतर शिक्षा उपलब्ध कराने की कोशिश कर रहे हैं.  छात्रों की उपस्थिति बढ़ाने के लिए जरूरी है कि अच्छे शिक्षक हों और मध्याह्न् भोजन भी अच्छा हो. इसलिए हम शिक्षकों के प्रशिक्षण और मध्याह्न् भोजन की गुणवत्ता पर जोर दे रहे हैं. हाल ही में हमने इग्नू की मदद से 40 हजार शिक्षकों को ट्रेनिंग देना भी शुरू किया है. आपको यह भी समझना चाहिए कि मेरे पास कोई बटन नहीं कि उसे दबाऊं  और मेरा काम हो जाए. हम एक-एक करके ही चीजें सुधार सकते हैं. हालात अब पहले से बेहतर हैं, लेकिन अभी और काम करने की जरूरत है. लड़कियों को स्कूल जाने के लिए ड्रेस और पैसा दिया जा रहा है और वे अब स्कूल जा भी रही हैं.

स्कूल में आने के बाद बच्चों का बौद्धिक विकास एक महत्वपूर्ण कारक हो जाता है. आज का बिहार इस मोर्चे पर पिछड़ता हुआ दिख रहा है.

यह सिर्फ बिहार की समस्या नहीं है. सारे देश में यही हाल है. फिर भी भाषाएं सीखने और गणित के मामले में बिहार के छात्र आज भी अव्वल हैं. मैं आपको फिर याद दिलाना चाहूंगा कि हमने अभी काम शुरू ही किया है. यहां लोग काम करना भूल चुके थे. अब वे फिर से शुरू कर रहे हैं. अभी से आप इतने आगे का मूल्यांकन नहीं कर सकते. हमारी प्राथमिकता यह थी कि कोई भी बच्चे स्कूल जाने से न छूट पाए. हमने 15 हजार नए स्कूल खोले हैं और दो लाख शिक्षकों को भर्ती किया है. हालांकि अभी आठ लाख बच्चे स्कूल से बाहर हैं. उनमें से पांच लाख महादलित परिवारों से हैं या मुस्लिम समुदाय से. इनपर विशेष ध्यान देने की जरूरत है. हमने इनके लिए अलग से केंद्र खोले हैं जहां ऐसे बच्चों को रखकर उन्हें स्कूल जाने के लिए तैयार किया जाता है. इन सब के लिए लगातार काम करने की जरूरत होती है. अब तक कुछ नहीं हुआ था. यह प्रक्रिया अभी शुरू हुई है.

बिहार की छवि विदेशों में सुधर रही है. क्या आप मॉरीशस को बिहार में विशेष रियायतें देने की कोशिश कर रहे हैं? विकास के लिए राज्य का विदेशों से गठबंधन क्या एक नया चलन बनने जा रहा है?

मॉरीशस के साथ मिलकर हम बहुत कुछ करने जा रहे हैं. यहां मॉरीशस का एक दूतावास होगा. उन्हें यहां जमीन देनेवाले हैं जहां वे अपना ऑफिस खोलेंगे. मारीशस की तकरीबन आधी आबादी बिहारी मूल की है. मैं केंद्र सरकार से इस बारे में बात कर चुका हूं और विदेश मंत्रालय को नियमों के हिसाब से इसपर आगे कार्रवाई करनी है.

इससे क्या होगा?

मॉरीशस के लोग अपनी जड़ें ढूंढ़ना चाहते हैं. हम उनकी मदद करने को तैयार हैं. मॉरीशस के प्रधानमंत्री बिहार आ चुके हैं. यहां उन्होंने स्कूल और अस्पताल शुरू किए हैं. 

भारतीय राजनीति में परिवारों का दखल काफी ज्यादा होता है, लेकिन जिस तरह से आपने परिवार और राजनीति के बीच संतुलन साधा है, वह बिल्कुल अलग है. यह कैसे संभव हुआ?

अपने परिवार और राजनीति को देखने का सबका अपना तरीका होता है. मैं पूरी तरह से एक पारिवारिक आदमी हूं, लेकिन इसका किसी और चीज से क्या लेना-देना? जब आप राजनीति में होते हैं तो आपको सबके साथ अपने परिवार के सदस्य की तरह व्यवहार करना होता है. दुनिया में हर इंसान का परिवार होता है, लेकिन हमें अपने कर्तव्य और जो अवसर मिला है उसके प्रति ईमानदार रहना पड़ता है. मेरे खयाल से कई लोगों में असुरक्षा की भावना होती है. उन्हें लगता है कि यदि उनका परिवार मजबूत स्थिति में होगा तो वे सुरक्षित रहेंगे. मुझे असुरक्षा महसूस नहीं होती. मुझे पता है कि सबको एक दिन जाना है. तो डर किस बात का.