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“आम आदमी को नहीं मालूम कि कांग्रेस की विचारधारा क्या है”, दार्शनिक राठौड़


आकाश सिंह राठौड़ दार्शनिक हैं, जिन्होंने भारतीय राजनीतिक विचार, न्यायशास्त्र, मानव अधिकारों और दलित नारीवादी सिद्धांत के दर्शन पर काम किया है. राठौड़ ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय, बर्लिन विश्वविद्यालय और न्यू जर्सी स्टेट यूनिवर्सिटी में अध्यापन किया है. फिलहाल वह रोम (इटली) के लुइस विश्वविद्यालय से संबद्ध एथोस नामक थिंक टैंक से जुड़े हैं. वह रीथिंकिंग इंडिया श्रृंखला के संपादक हैं जो 14 संस्करणों का एक संग्रह है. इसका उद्देश्य प्रगतिशील वामपंथी मूल्यों को स्पष्ट और मजबूत बनाने के लिए अलग-अलग पृष्ठभूमि के लेखकों को साथ लाना है. यह श्रृंखला जाति, अर्थशास्त्र, जेंडर, संस्थानों, अधिकारों और अल्पसंख्यकों की अवधारणाओं और प्रथाओं पर केंद्रित है. जल्द ही प्रकाशित होने जा रहे पहने भाग का शीर्षक, विजन फॉर ए नेशन : पाथ्स एंड पर्सपेक्टिव्स है. राठौड़ ने राजनीतिक मनोवैज्ञानिक और सामाजिक सिद्धांतकार आशीष नंदी के साथ इसका संपादन किया है.

कारवां के रिपोर्टिंग फेलो तुषार धारा ने राठौड़ से वामपंथियों की विफलता और दुनिया की तरह भारत में दक्षिणपंथ को मिल रहे जन समर्थन पर बात की. राठौड़ के अनुसार, भारतीय संविधान में मौजूद वामपंथी आदर्शों के जरिए दक्षिणपंथ को चुनौती देने की आवश्यकता है.

तुषार धारा : 14 खंडों के लिए 130 लेखकों को क्यों साथ लाना पड़ा? क्या यह प्रगतिशील आदर्शों की पुनः अभिव्यक्ति है?

आकाश सिंह राठौड़ : लेखकों की पृष्ठभूमि वामपंथियों से लेकर मध्यममार्गी और प्रगतिशीलों तक है. व्यक्तिगत तौर पर मैं आंबडेकरवादी हूं. लेकिन ये लेखक कमोबेश ऐसे लोग हैं जो संविधान की प्रस्तावना में निहित उन मूल्यों को मानते हैं जो बताते हैं कि भारत को कैसा होना चाहिए. जो लोग बहुसंख्यकवाद की चुनौती को समझते हैं, हम उनसे सहयोग ले रहे हैं. फिलहाल एक विशेष वर्ग के लोग इसका परिणाम भुगत रहे हैं. अल्पसंख्यकों, जिनमें ऐतिहासिक रूप से वंचित लोग शामिल हैं जैसे दलित-बहुजन, आदिवासी या धार्मिक समूह जैसे मुस्लिम और ईसाई और भौगोलिक और राजनीतिक रूप से हाशिए पर रहने वाले पूर्वोत्तर भारत के लोग इस विचारधारा का सामना कर रहे हैं. लेकिन यह विचारधारा हिंसा, अधिकारों के हनन, जीवन और आजीविका को नुकसान, लिंचिंग और भीड़ की मानसिकता के जरिए अभिव्यक्त होती है. जैसे-जैसे यह और फलती-फूलती है, वैसे-वैसे वह बहुमत को निशाना बनाने लगती है. अल्पसंख्यक की स्वतंत्रता और अधिकारों का हनन करने का अर्थ है सभी के अधिकारों का हनन करना. कोई भी व्यक्ति सुरक्षित या मजबूत नहीं होगा, सभी परिणाम भुगतेंगे. यह वास्तविकता हम सभी को प्रभावित करेगी. हमारे सभी अधिकारों के ऊपर राजनीतिक सनक का खतरा मंडरा रहा है. यदि हम इसी गति से जारी रहे, तो कौन मुक्त रहेगा?

धारा : इस श्रृंखला में क्या-क्या प्र​काशित होगा?

राठौड़ : हमने "विचार" पुस्तक के साथ श्रृंखला की शुरुआत की है. जो बताती है कि प्रगतिशील लोग क्या मानते हैं और क्यों हम इसे सही मानते हैं. विचारों की किताब में हम जो कहना चाह रहे हैं वह यह है कि अगर हम एक राष्ट्र के रूप में सफल होना चाहते हैं, तो हमें न्याय, स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व के विचारों पर टिके रहना होगा. फिर भले वह संवाद कितना ही मुश्किल क्यों न लगे या चुनावों में हम बुरी तरह से पराजित ही क्यों न हों. दूसरा खंड अल्पसंख्यकों पर केंद्रित है और तीसरा रोजगार के निर्माण पर. भारत में रोजगार का बड़ा संकट है. यहां तक ​​कि दक्षिणपंथी झुकाव वाले थिंक टैंक भी मानते हैं कि हमें हर साल बीस मिलियन नौकरियां पैदा करनी होगी. इसके बजाय हम नौकरियां गुमा रहे हैं. चौथा खंड हमारे अधिकारों और विकास के लिए उनकी केंद्रीयता पर है. ये सभी प्रकाशन के लिए तैयार हैं, हम प्रति माह एक खंड प्रकाशित करेंगे. सभी तरह की विचाधारा वाली पार्टियों के लोग इस बात से सहमत हैं कि हमारे संस्थान विफल हो रहे हैं और हमें यह पता लगाने की आवश्यकता है कि इन संस्थानों को कैसे ठीक किया जाए. जो लोग पिछले पचास या साठ वर्षों से सत्ता में थे उन्हें यह स्वीकार करने की जरूरत है कि उन्होंने क्या गलत किया. इन संस्थानों को विफल क्यों होने दिया गया? जेंडर, अनुसूचित जाति, आदिवासियों और अन्य पिछड़े वर्गों पर पुस्तकें हैं.

धारा : सेंटर-लेफ्ट की किन विफलताओं के चलते ऐसा हुआ?

राठौड़ : एक दशक या उससे अधिक समय तक भारत का सेंटर-लेफ्ट अपने प्रगतिशील मूल्यों की अभिव्यक्ति से ज्यादा राजनीति के गिरते स्तर से चिंतित रहा. यह अस्पष्ट विचारधारा है. अगर मैं किसी से भी पूछूं, "कांग्रेस की विचारधारा क्या है?" तो आसान जवाब नहीं मिलता, लेकिन अगर मैं यह पूछूं कि "भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा क्या है?" तो जवाब आसान होता है. यह हो सकता है कि मुझे यह उत्तर पसंद नहीं आए लेकिन अगर सड़क पर औसत व्यक्ति यह नहीं कह सकता है कि आप क्या चाहते हैं, तो यह एक समस्या है और सेंटर-लेफ्ट पार्टियों ने अपनी कमजोरियों से इस विमर्श को बनने दिया है. एक दिन ये धर्मनिरपेक्षता की बात करते हैं और अगले दिन हिंदू वोटों के लिए मंदिर पहुंच जाते हैं. फिर एक और दिन अनुसूचित जातियों के अधिकारों के लिए होढ़ कर रहे होते हैं और अगले दिन आरक्षण को कमजोर बना रहे होते हैं. हम यह कहने के लिए एक साथ आ रहे हैं कि हमारे पास मूल्यों की एक पूंजी है जो स्पष्ट और मूल्यवान हैं. हम इसे उन दलों को सिखाना चाहते हैं जो अस्पष्ट हैं कि "क्या मैं धर्मनिरपेक्ष शब्द का उपयोग कर सकता हूं, या क्या यह एक गंदा शब्द है?" हम उन्हें याद दिलाना चाहते हैं कि यह वही है जिसके लिए 1940 के दशक में हम एक राष्ट्र के रूप में साथ आए थे.
 
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