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'subheading' => 'एम्पलॉयमेंट एंड अनएम्पलॉमेंट सिचुएशन अमांग सोशल ग्रुप्स इन इंडिया',
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--></p>
<p> </p>
<p> </p>
<p><span style="font-family:\; font-size:undefined"><em><span style="font-family:\">एक नजर</span></em></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर लगातार ऊंची बनी होने के बावजूद भारत अपनी ग्रामीण जनता की जरुरत के हिसाब से मुठ्ठी भर भी नये रोजगार का सृजन नहीं कर पाया है। नये रोजगारों का सृजन हो रहा है लेकिन यह अर्थव्यवस्था के ऊंचली पादान के सेवा</span></span><span style="font-family:\; font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">क्षेत्र मसलन वित्त</span></span><span style="font-family:\; font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">जगत</span></span><span style="font-family:\; font-size:undefined">, </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">बीमा</span></span><span style="font-family:\; font-size:undefined">, </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">सूचना</span></span><span style="font-family:\; font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">प्रौद्योगिकी और सूचना प्रौद्योगिकी के दम पर चलने वाले हलकों में हो रहा है ना कि विनिर्माण और आधारभूत ढांचे के क्षेत्र में जहां ग्रामीण इलाकों से पलायन करके पहुंचे कम कौशल वाले लोगों को रोजगार हासिल करने की उम्मीद हो सकती है। किसी तरह घिसट</span></span><span style="font-family:\; font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">खिसट करके चलने वाली ग्रामीण अर्थव्यवस्था</span></span><span style="font-family:\; font-size:undefined">, </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">ग्रामीण इलाकों के कुटीर और शिल्प उद्योगों का ठप्प पड़ना</span></span><span style="font-family:\; font-size:undefined">, </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">घटती खेतिहर आमदनी और मानव</span></span><span style="font-family:\; font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">विकास के सूचकांकों से मिलती खस्ताहाली की सूचना</span></span><span style="font-family:\; font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">ये सारी बातें एकसाथ मिलकर जो माहौल बना रही हैं उसमें ग्रामीण इलाकों में बेरोजगारी को बढ़ना तो है ही</span></span><span style="font-family:\; font-size:undefined">, </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">शहरों की तरफ ग्रामीण जनता का पलायन भी होना है। </span></span></p>
<p><br />
<span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">अर्थव्यवस्था के मंदी की चपेट में आने से पहले भी नये रोजगार का सृजन नकारात्मक वृद्धि के रुझान दिखा रहा था।नेशनल कमीशन फॉर इंटरप्राइजेज इन द अनऑर्गनाइज्ड सेक्टर</span></span><span style="font-family:\; font-size:undefined">(</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">एनसीईयूस</span></span><span style="font-family:\; font-size:undefined">) </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">के मुताबिक खरबों डॉलर की हमारी इस अर्थव्यवस्था में हर </span></span><span style="font-family:\; font-size:undefined">10 </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">में </span></span><span style="font-family:\; font-size:undefined">9 </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">व्यक्ति असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं और कुल भारतीयों का तीन चौथाई हिस्सा रोजाना </span></span><span style="font-family:\; font-size:undefined">20 </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">रुपये में गुजारा करता है। बहुत से अर्थशास्त्री तर्क देते हैं कि गांवों से शहरों की तरफ पलायन अर्तव्यवस्था की तरक्की के लिहाज से एक जरुरी शर्त है। बहरहाल</span></span><span style="font-family:\; font-size:undefined">, </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">वैश्विक अर्थव्यवस्था के भीतर भारत कम लागत के तर्क से अपनी हिस्सेदारी बढ़ा रहा है और इससे आमदनी में कम बढ़ोतरी का होना लाजिमी है। ऐसे में चूंकि क्रयशक्ति मनमाफिक नहीं बढ़ रही इसलिए घरेलू मांग में बढोतरी ना होने के कारण नये रोजगारों का सृजन भी खास गति से नहीं हो रहा।</span></span></p>
<p><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">आंकड़ों से जाहिर होता है कि वांछित लक्ष्य तक पहुंचने की जगह रोजगार के मामले में हमारी गाड़ी उलटे रास्ते पर लुढ़कने लगी है।मिसाल के तौर पर साल साल </span></span><span style="font-family:\; font-size:undefined">1994 </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">से </span></span><span style="font-family:\; font-size:undefined">2005 </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">के बीच के दशक में बेरोजगारी में प्रतिशत पैमाने पर </span></span><span style="font-family:\; font-size:undefined">1 </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">अंक की बढ़ोतरी हुई है। अस्सी के दशक के शुरुआती सालों से लेकर </span></span><span style="font-family:\; font-size:undefined">2005 </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">के बीच ग्रामीण पुरुषों में स्वरोजगार प्राप्त लोगों की तादाद </span></span><span style="font-family:\; font-size:undefined">4 </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">फीसदी कम हुई है।आंकड़ों से जाहिर है कि घटती हुई आमदनी के बीच कार्यप्रतिभागिता के मामले में ग्रामीण गरीब एक दुष्चक्र में फंस चुके हैं। </span></span></p>
<p><span style="font-family:\; font-size:undefined"><em><span style="font-family:\">आंकड़ों से यह भी जाहिर होता है कि अस्सी के दशक के शुरुआती सालों से ग्रामीण इलाकों की महिलाओं के लिए रोजगार की सूरते हाल या तो ज्यों की त्यों ठहरी हुई है या फिर और बिगड़ी दशा को पहुंची है। एक तो किसानों की आमदनी खुद ही कम है उसपर गजब यह कि इस आमदनी का </span></em></span><span style="font-size:undefined"><em><span style="font-family:\">45 </span></em></span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><em><span style="font-family:\">फीसदी हिस्सा</span><span style="font-family:\"> </span><span style="font-family:\">कृषि</span></em></span><span style="font-size:undefined"><em><span style="font-family:\">-</span></em></span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><em><span style="font-family:\">इतर कामों से हासिल होता है और कृषि</span></em></span><span style="font-size:undefined"><em><span style="font-family:\">-</span></em></span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><em><span style="font-family:\">इतर काम कहने से बात थोड़ी छुपती है मगर सीधे सीधे कहें तो यह दिहाड़ी मजदूरी का ही दूसरा नाम है। मजदूरी भी कम मिलती है क्योंकि गांव के दरम्याने में जो भी काम करने को मिल जाय</span><span style="font-family:\"> </span><span style="font-family:\">किसानों को उसी से संतोष करना पड़ता है। फिलहाल केवल </span></em></span><span style="font-size:undefined"><em><span style="font-family:\">57 </span></em></span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><em><span style="font-family:\">फीसदी किसान स्वरोजगार में लगे हैं और </span></em></span><span style="font-size:undefined"><em><span style="font-family:\">36 </span></em></span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><em><span style="font-family:\">फीसदी से ज्यादा मजदूरी करते हैं। इस </span></em></span><span style="font-size:undefined"><em><span style="font-family:\">36 </span></em></span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><em><span style="font-family:\">फीसदी की तादाद का </span></em></span><span style="font-size:undefined"><em><span style="font-family:\">98 </span></em></span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><em><span style="font-family:\">फीसदी दिहाड़ी मजदूरी के भरोसे है यानी आज काम मिला तो ठीक वरना आसरा कल मिलने वाले काम पर टिका है।</span></em></span></p>
<p style="text-align:justify">**page**<br />
[inside]स्वास्थ्य अधिकारों को लेकर "कॉमनवेल्थ" की पहल (CHRI) ने घरेलु मजदूरों पर एक <a href="/upload/files/Domestic%20Work%20is%20Work%20CHRI%202021%282%29.pdf">रिपोर्ट</a> जारी की है. <a href="/upload/files/Domestic%20Work%20is%20Work%20CHRI%202021%281%29.pdf">रिपोर्ट</a> का नाम रखा है-डोमेस्टिक वर्क इज वर्क[/inside]</p>
<blockquote>
<p style="text-align:justify"><br />
कॉमनवेल्थ, हिन्दी में कहें तो राष्ट्रमंडल, ऐसे देशों का समूह जो पहले ब्रितानी हुकूमत के उपनिवेश थे अब एक संप्रभु राष्ट्र राज्य हैं. कुल नौ देश इसके सदस्य हैं. जिसमें भारत भी एक सदस्य है.</p>
</blockquote>
<p style="text-align:justify">आज से कुछ वर्षों पहले मानव अधिकारों और मजदूरों के अधिकारों से सम्बंधित संगठनों ने <span style="color:#e74c3c"><span style="font-size:14px">घरेलू</span></span><span style="font-size:14px"><span style="color:#e74c3c"> मजदूरों </span></span>के अधिकारों के लिए मांग उठाई थी. मांग के अनुरूप अंतरराष्ट्रीय मजदूर संगठन के भागीदार देशों ने सन् 2011 में एक सम्मेलन बुलाया. सम्मेलन ने घरेलु मजदूरों के मुद्दों पर एक <span style="color:#9b59b6">अभिसमय</span> तैयार किया. नाम रखा जाता है-<strong>C189</strong>. जिसे कुल 35 देशों ने सत्यापित किया. 35 में से 9 देश कॉमनवेल्थ के सदस्य हैं.</p>
<p style="text-align:justify">सम्मेलन के 10 साल बाद, CHRI की इस रिपोर्ट का मकसद घरेलू मजदूरों से सम्बंधित किये गए वादों की कॉमनवेल्थ देशों में हुई प्रगति को जांचना है. <br />
CHRI की इस रिपोर्ट ने दो ऐसे देशों को भी शामिल किया है जिन्होंने अभिसमय पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं. हालांकि यह देश घरेलू मजदूरों के अधिकारों को स्वीकार करते है- दक्षिण अफ्रीका, जमैका. <br />
क्या है इस रिपोर्ट की अनुशंसाएं-</p>
<ul>
<li style="text-align:justify">घरेलू मजदूरों के अभिसमय को बचे हुए देश स्वीकार करें और अर्थव्यवस्था में घरेलु मजदूरों की भूमिका को भी स्वीकार करें.</li>
<li style="text-align:justify">घरेलू मजदूर मिलकर मजदूर संगठनों का गठन करें ताकि उनकी आवाज में वजन आ सके.</li>
<li style="text-align:justify">अभिसमय के घोषणा वाली तारीख को एक महत्वपूर्ण दिवस के रूप में मनाया जाए.</li>
<li style="text-align:justify">लोगों के बीच में C189 के बारे में जानकारी बढ़ाई जाए. या यूँ कहें लोगों की स्वीकार्यता भी ली जाए. </li>
<li style="text-align:justify">घरेलू मजदूरों पर अधिक से अधिक आंकड़े जुटाए जाये ताकि नीति निर्माण में आसानी हो.</li>
<li style="text-align:justify">घरेलू मजदूरों के मुद्दों पर क्षेत्रीय, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय गठबन्धनों को बढ़ावा दिया जाए.</li>
<li style="text-align:justify">घरेलू मजदूरों के लिए एक फंड का गठन किया जाए.</li>
</ul>
<p>**page**<br />
दुनियाभर में "सेवानिवृत्ति के बाद आय" के लिए कई प्रणालियाँ उपलब्ध है. <a href="https://www.uk.mercer.com/our-thinking/global-pension-index-2021.html">मर्सर और सीएफए </a>नाम की दो संस्थाओं ने 43 देशों की प्रणालियों का अध्ययन किया है. अध्ययन में प्रणाली की मजबूती और कमजोरी को जांचा है.और उसे <a href="/upload/files/Mercer%281%29.pdf">सूचकांक</a> का रूप दिया है. इस [inside]सूचकांक का नाम ग्लोबल पेंशन इंडेक्स है जिसमें शामिल कुल 43 देशों में भारत ने 40 वा स्थान हासिल किया है.[/inside] </p>
<ul>
<li>इस सूचकांक के अनुसार डेनमार्क और आइसलैंड का सेवानिवृत्ति के बाद आय तंत्र सबसे बेहतर है.</li>
<li>दुनिया में अधिकतर देशों की अर्थव्यवस्था बीमार है. महामारी के दौर में इंसान के स्वास्थ्य पर भी खतरे के बादल मंडराते रहते हैं. इसलिए जरूरी है उन प्रणालियों का आलोचनात्मक विश्लेषण करना.</li>
<li>भारत में "सेवानिवृत्ति के बाद आय" के लिए कमाई पर आधारित तंत्र है. जिसे कर्मचारी भविष्य निधि (EPFO) कहते हैं. जिसमें सरकार, स्वयं और रोजगार देने वाली संस्था योगदान करते हैं. </li>
<li>भारत में सामाजिक सुरक्षा देने का दायित्व राज्य पर है. इसलिए भारत सरकार ने असंगठित क्षेत्र के लिए भी एक योजना निकाली है. साथ ही राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली भी प्रसिद्धी हासिल कर रही है.</li>
<li>भारत की इस प्रणाली में सुधार जरूरी है अन्यथा इसकी क्षमता और वहनीयता संदेह के घेरे में आ जाएगी.</li>
<li>भारत की बात करे तो सूचकांक मान में गिरावट आई है. 2020 में सूचकांक मान 45.7 था जो कम होकर 2021 में 43.3% हो गया. जिसके पीछे का कारण शुद्ध प्रतिस्थापन दर में कमी आना है.</li>
<li>अंतरराष्ट्रीय संगठन <a href="https://data.oecd.org/pension/net-pension-replacement-rates.htm">OECD</a> के अनुसार शुद्ध प्रतिस्थापन दर का अर्थ है शुद्ध पेंशन प्राप्ति में सेवानिवृति पूर्व आय का भाग.</li>
<li>इस सूचकांक में कई उप-सूचकांक में.भारत के संदर्भ में इन उप-सूचकांकों की दर इस प्रकार है.</li>
</ul>
<blockquote>
<p>पर्याप्तता- 35.5 (100 में से)<br />
वहनीयता-41.8<br />
अखंडता-61.0</p>
</blockquote>
<p><br />
सूचकांक में भारत को 'C+' श्रेणी वाला देश माना गया है. भारत को सूचकांक में अपना मान बढ़ाने के लिए कुछ उपाय करने चाहिय-</p>
<blockquote>
<p>गरीब वृहद्जनों को न्यूनतम आर्थिक गारंटी.<br />
पेंशन सेवा का विस्तार किया जाए.<br />
पेंशन के लिए न्यूनतम आयु निर्धारित की जाए.<br />
निजी पेंशन प्रणालियों पर बेहतर निगरानी की जाए.</p>
</blockquote>
<p>**page**<br />
पुरे देश में गिग इकॉनोमी की चर्चा है लेकिन वो सिर्फ आंकड़ो के मायाजाल तक. इससे इतर काम करने वाले कर्मचारियों की बात भी जरूरी है. बात करने का जिम्मा उठाया है बेंगलुरु की नेशनल लो <a href="https://www.nls.ac.in/">स्कूल ऑफ़ इंडिया</a> युनिवर्सिटी ने. नाम रखा है- [inside]"इज प्लेटफ़ॉर्म वर्क डिसेंट वर्क? अ केस ऑफ़ फ़ूड डिलीवरी वर्कर्स इन कर्नाटका."(जारी 8 सितम्बर,2021)[/inside]</p>
<p>किए गए <a href="/upload/files/OCCASIONAL-PAPER-SERIES-10-final%281%29.pdf">अध्ययन</a> में प्लेटफ़ॉर्म वर्कर्स के अनुभवों को एकत्रित किया गया है.<br />
<a href="/upload/files/OCCASIONAL-PAPER-SERIES-10-final%282%29.pdf">अध्ययन</a> बताता है कि कर्मचारियों को ना तो न्यूनतम मेहनताना मिलता है और ना ही काम करने का निश्चित समय.</p>
<p>**page**</p>
<p style="text-align:justify"><span style="font-size:12pt"><span style="background-color:white"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) से संबंधित वार्षिक रिपोर्ट उपरोक्त सभी संकेतकों पर डेटा प्रदान करती है. राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) द्वारा तैयार की गई तीसरी पीएलएफएस वार्षिक रिपोर्ट (जुलाई</span></span> 2019-<span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">जून</span></span> 2020) <span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">जुलाई</span></span> 2021 <span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">में जारी की गई है</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">. <span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">यह रिपोर्ट</span></span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333"> <span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">श्रम अर्थशास्त्रियों द्वारा</span></span> 2020 <span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">के राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन की अवधि के दौरान बेरोजगारी की स्थिति और देश में आजीविका की असुरक्षा पर उपयोगी अंतर्दृष्टि प्रदान करने के संबंध में महत्वपूर्ण है. ऐसा इसलिए है क्योंकि पीएलएफएस पर हाल ही में जारी</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333"> <a href="https://im4change.org/upload/files/Annual_Report_PLFS_2019_20.pdf" style="outline:none; transition:all 0.2s ease-in-out 0s; background-color:rgba(108, 172, 228, 0.2); color:blue; text-decoration:underline" title="https://im4change.org/upload/files/Annual_Report_PLFS_2019_20.pdf"><span style="color:#035588">वार्षिक रिपोर्ट</span></a> </span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">में जुलाई</span></span> 2019 <span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">से जून</span></span> 2020 <span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">तक की अवधि से संबंधित तस्वीर पेश करती है. यह</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333"> <a href="https://im4change.org/upload/files/Annual_Report_PLFS_2019_20.pdf" style="outline:none; transition:all 0.2s ease-in-out 0s; background-color:rgba(108, 172, 228, 0.2); color:blue; text-decoration:underline" title="https://im4change.org/upload/files/Annual_Report_PLFS_2019_20.pdf"><span style="color:#035588">रिपोर्ट</span></a>, </span></span> <span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">देशव्यापी लॉकडाउन (लगभग</span></span> 69 <span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">दिनों की) की अवधि के दौरान रोजगार-बेरोजगारी संकट की स्थिति पर प्रकाश डालती है.</span></span></span></span></span></span></p>
<p><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">पीएलएफएस</span></span></span> <span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">2019-20 </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">की वार्षिक रिपोर्ट से पता चलता है कि सीडब्ल्यूएस में कामगारों (ग्रामीण</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">, </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">शहरी और ग्रामीण+शहरी) को रोजगार में उनकी स्थिति के अनुसार तीन व्यापक श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है. ये व्यापक श्रेणियां हैं: (</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">i) </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">स्वरोजगार</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">; (ii) </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">नियमित वेतन/वेतनभोगी कर्मचारी</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">; </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">और (</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">iii) </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">आकस्मिक श्रम. </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">'</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">सभी स्वरोजगार</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">' </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">की श्रेणी के अंतर्गत</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">, </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">दो उप-श्रेणियाँ बनाई हैं अर्थात </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">'</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">स्वपोषित श्रमिक और सभी नियोक्ता</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">' - </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">एक साथ संयुक्त</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">, </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">और </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">'</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">घरेलू कामकाज में अवैतनिक सहायक</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">'. <span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">चार्ट-</span></span></span></span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">1 </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">में रोजगार में स्थिति के आधार पर सीडब्ल्यूएस में श्रमिकों का वितरण प्रस्तुत किया गया है. स्व-नियोजित व्यक्ति</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">, </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">जो बीमारी के कारण या अन्य कारणों से काम नहीं करते थे</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">, </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">हालांकि उनके पास स्व-रोजगार का काम था</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">, </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">उन्हें </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">'</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">सभी स्वरोजगार (पुरुष/महिला/ग्रामीण/शहरी/ग्रामीण+शहरी क्षेत्रों में व्यक्ति) श्रेणी के तहत शामिल किया गया है.</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">' <span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">इस प्रकार</span></span></span></span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">, '</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">सभी स्व-नियोजित (पुरुष/महिला/ग्रामीण/शहरी/ग्रामीण+शहरी क्षेत्रों में व्यक्ति)</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">' </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">श्रेणी के तहत दिए गए अनुमान </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">'</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">स्वपोषित श्रमिकों</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">, </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">सभी नियोक्ता</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">' </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">और </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">'</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">घरेलू उद्यम में अवैतनिक सहायक</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">' <span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">श्रेणियों के तहत अनुमानों के योग से अधिक होंगे. हमने स्व-नियोजित श्रमिकों के प्रतिशत हिस्से की गणना की है</span></span></span></span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">, </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">जिनके पास घरेलू उद्यम में काम था</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">, </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">लेकिन बीमारी या अन्य कारणों से काम नहीं किया.</span></span></span></span></span></p>
<p><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">राष्ट्रीय स्तर पर</span></span></span> <span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">'</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">स्व-नियोजित श्रमिक (अर्थात ग्रामीण + शहरी व्यक्तियों) जो घरेलू उद्यम में काम करते थे</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">, </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">लेकिन बीमारी या अन्य कारणों से काम नहीं कर पाए</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">' <span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">का प्रतिशत हिस्सा </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">1.4 </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">प्रतिशत से गिरकर </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">2017-18 </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">और </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">2018-19 </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">के बीच </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">1.2 </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">प्रतिशत हो गया. हालांकि</span></span></span></span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">, 2019-20 <span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">में यह आंकड़ा बढ़कर </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">3.4 </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">प्रतिशत हो गया</span></span></span></span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">, </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">जो <span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">2017-18 </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">के स्तर से अधिक था.</span></span></span> </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">'</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">ग्रामीण महिला</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">', '</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">ग्रामीण व्यक्ति</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">', '</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">शहरी पुरुष</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">', '</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">ग्रामीण महिला</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">', '</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">ग्रामीण व्यक्ति</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">', '</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">शहरी पुरुष</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">', </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">शहरी महिला</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">', '</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">शहरी व्यक्ति</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">', '</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">ग्रामीण+शहरी पुरुष</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">' </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">और </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">'</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">ग्रामीण+शहरी महिला</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">' '</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">स्व-नियोजित श्रमिकों</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">, </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">जो घरेलू उद्यम में काम करते थे</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">, </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">लेकिन बीमारी या अन्य कारणों से काम नहीं किया</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">' </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">के प्रतिशत हिस्से से संबंधित एक समान प्रवृत्ति देखी गई है</span></span></span></span></span></p>
<ol>
<li>
<p>अपेक्षाकृत अधिक नियमित समय अंतराल पर श्रम बल के आंकड़ों की उपलब्धता की अहमियत को ध्‍यान में रखते हुए राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) ने अप्रैल 2017 में आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) का शुभारंभ किया. पीएलएफएस के मुख्‍यत: दो उद्देश्य हैं:<br />
वर्तमान साप्ताहिक स्थिति (सीडब्‍ल्‍यूएस) में केवल शहरी क्षेत्रों के लिए तीन माह के अल्‍पकालिक अंतराल पर प्रमुख रोजगार और बेरोजगारी संकेतकों (अर्थात श्रमिक-जनसंख्या अनुपात, श्रम बल भागीदारी दर, बेरोजगारी दर) का अनुमान लगाना.</p>
<p>प्रति वर्ष ग्रामीण और शहरी दोनों ही क्षेत्रों में सामान्य स्थिति (पीएस + एसएस) और सीडब्‍ल्‍यूएस दोनों में रोजगार और बेरोजगारी संकेतकों का अनुमान लगाना.</p>
<p>प्रथम वार्षिक रिपोर्ट (जुलाई 2017-जून 2018) दरअसल मई 2019 में जारी की गई थी जिसमें ग्रामीण एवं शहरी दोनों ही क्षेत्रों को कवर किया गया और जिसमें सामान्य स्थिति (पीएस + एसएस) तथा वर्तमान साप्ताहिक स्थिति (सीडब्‍ल्‍यूएस) दोनों में रोजगार व बेरोजगारी के सभी महत्वपूर्ण मापदंडों के अनुमान दिए गए. यह दूसरी वार्षिक रिपोर्ट है जिसे एनएसओ द्वारा जुलाई 2019 -जून 2020के दौरान किए गए आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण के आधार पर जारी किया जा रहा है.<br />
बी. पीएलएफएस के तहत नमूने की संरचना</p>
<p>1- अर्थात शहरी क्षेत्रों में एक रोटेशनल पैनल नमूना संरचनाहै. इस रोटेशनल पैनल स्‍कीम में शहरी क्षेत्रों के प्रत्‍येक चयनित परिवार के यहां चार बार आगमन होता है. प्रथम आगमन के तय कार्यक्रम के अनुसार इसकी शुरुआत की जाती है और बाद में ‘पुनर्आगमन’ कार्यक्रम के अनुसार समय-समय पर तीन बार आगमन सुनिश्चित किया जाता है. शहरी क्षेत्र में प्रत्‍येक स्‍तर के भीतर एक पैनल के लिए नमूने दरअसल दो स्‍वतंत्र उप-नमूनों के रूप में लिए गए. रोटेशन योजना के तहत यह सुनिश्चित किया जाता है कि प्रथम चरण वाली नमूना इकाइयों (एफएसयू)[1] के 75 प्रतिशत का मिलान दो निरंतर आगमन के बीच अवश्‍य हो जाए. ग्रामीण नमूनों में कोई पुनर्आगमन नहीं हुआ. ग्रामीण क्षेत्रों के लिए, एक स्‍तर/उप-स्‍तर के लिए नमूने बेतरतीब ढंग से दो स्वतंत्र उप-नमूनों के रूप में लिए गए. ग्रामीण क्षेत्रों के लिए, सर्वेक्षण अवधि की प्रत्येक तिमाही में वार्षिक आवंटन के 25% एफएसयू को कवर किया गया.</p>
<p>सी. नमूना लेने की विधि</p>
<p>वार्षिक रिपोर्ट के लिए ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में जुलाई 2019- जून 2020के दौरान प्रथम दौरे या आगमन के लिए नमूने का आकार: जुलाई 2019- जून 2020 के दौरान अखिल भारतीय स्‍तर पर सर्वेक्षण के लिए आवंटित कुल 12800 एफएसयू (7024 गांव और 5776 शहरी फ्रेम सर्वे या यूएफएस ब्‍लॉक) में से कुल 12,569 एफएसयू (6,913 गांव और 5,656 शहरी ब्‍लॉक) का सर्वेक्षण पीएलएफएस कार्यक्रम के प्रचार के लिए किया जा सका. सर्वेक्षण में शामिल परिवारों की संख्‍या 1,00,480 (ग्रामीण क्षेत्रों में 55,291और शहरी क्षेत्रों में 45,189) थी. इसी तरह सर्वेक्षण में शामिल लोगों की संख्‍या 4,18,297(ग्रामीण क्षेत्रों में 2,40,231और शहरी क्षेत्रों में 1,78,066) थी.</p>
<p>महत्‍वपूर्ण रोजगार एवं बेरोजगारी संकेतकों की अवधारणात्‍मक रूपरेखा : आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) में महत्‍वपूर्ण रोजगार एवं बेरोजगारी संकेतकों जैसे कि श्रम बल भागीदारी दरों (एलएफपीआर) कामगार-जनसंख्‍या अनुपात ( डब्‍ल्‍यूपीआर), बेरोजगारी दर (यूआर), इत्‍यादि के अनुमान दिए जाते हैं. इन संकेतकों को नीचे परिभाषित किया गया है:</p>
<p>ए. श्रम बल भागीदारी दर (एलएफपीआर): एलएफपीआर को कुल आबादी में श्रम बल के अंतर्गत आने वाले व्‍यक्तियों (अर्थात कहीं कार्यरत या काम की तलाश में या काम के लिए उपलब्‍ध) के प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया जाता है.</p>
<p>बी. कामगार-जनसंख्‍या अनुपात (डब्‍ल्‍यूपीआर): डब्‍ल्‍यूपीआर को कुल आबादी में रोजगार प्राप्‍त व्‍यक्तियों के प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया जाता है.</p>
<p>सी. बेरोजगारी दर (यूआर) : इसे श्रम बल में शामिल कुल लोगों में बेरोजगार व्‍यक्तियों के प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया जाता है.</p>
<p>डी. कार्यकलाप की स्थिति- सामान्‍य स्थिति : किसी भी व्‍यक्ति के कार्यकलाप की स्थिति का निर्धारण निर्दिष्‍ट संदर्भ अवधि के दौरान उस व्‍यक्ति द्वारा किए गए कार्यों के आधार पर किया जाता है. जब सर्वेक्षण की तारीख से ठीक पहले के 365 दिनों की संदर्भ अवधि के आधार पर कार्यकलाप की स्थिति का निर्धारण किया जाता है तो इसे उस व्‍यक्ति के सामान्‍य कार्यकलाप की स्थिति के तौर पर जाना जाता है.</p>
<p>ई. कार्यकलाप की स्थिति – वर्तमान साप्‍ताहिक स्थिति (सीडब्‍ल्‍यूएस) : जब सर्वेक्षण की तारीख से ठीक पहले के सात दिनों की संदर्भ अवधि के आधार पर कार्यकलाप की स्थिति का निर्धारण किया जाता है तो इसे उस व्‍यक्ति की वर्तमान साप्‍ताहिक स्थिति (सीडब्‍ल्‍यूएस) के रूप में जाना जाता है.</p>
</li>
</ol>
<p>सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) के तहत राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) द्वारा तैयार [inside]आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण 2019-20 (23 जुलाई, 2021 को जारी)[/inside] की वार्षिक रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष इस प्रकार हैं (कृपया एक्सेस करने के लिए <a href="https://im4change.org/upload/files/Annual_Report_PLFS_2019_20.pdf">यहां</a> और <a href="https://im4change.org/upload/files/Press_note_AR_PLFS_2019_20.pdf">यहां क्लिक करें</a>):</p>
<p style="text-align:justify"><span style="font-size:11pt"><span style="background-color:white"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">विवरण</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333"> 1: </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">सभी उम्र के व्यक्तियों के लिए पीएलएफएस</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">, 2019-20 </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">और पीएलएफएस</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">, 2017-18 </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">के दौरान सामान्य स्थिति (पीएस+एसएस)* में एलएफपीआर</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">, </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">डब्‍ल्‍यूपीआर और यूआर (प्रतिशत में)</span></span></span> </span></span></span></p>
<p><span style="font-size:11pt"><span style="background-color:white"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"> </span></span></span></p>
<table cellspacing="0" class="Table" style="background:white; border-collapse:collapse; border:none; width:1104px">
<tbody>
<tr>
<td colspan="10" style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:1px inset; border-right:1px solid #dddddd; border-top:1px solid #dddddd; vertical-align:top; width:670px">
<p style="margin-left:8px; margin-right:11px; text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.0pt"><span style="color:#333333">अखिल भारतीय</span></span></strong></span></span></p>
</td>
</tr>
<tr>
<td rowspan="2" style="background-color:#ddd9c3; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:1px inset; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:94px">
<p><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.0pt"><span style="color:#333333">दरें</span></span></strong></span></span></p>
</td>
<td colspan="3" style="background-color:#ddd9c3; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:191px">
<p style="margin-left:8px; margin-right:11px; text-align:center"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.0pt"><span style="color:#333333">ग्रामीण</span></span></strong></span></span></p>
</td>
<td colspan="3" style="background-color:#ddd9c3; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:191px">
<p style="margin-left:8px; margin-right:11px; text-align:center"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.0pt"><span style="color:#333333">शहरी</span></span></strong></span></span></p>
</td>
<td colspan="3" style="background-color:#ddd9c3; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:193px">
<p style="margin-left:8px; margin-right:11px; text-align:center"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.0pt"><span style="color:#333333">ग्रामीण + शहरी</span></span></strong></span></span></p>
</td>
</tr>
<tr>
<td style="background-color:#ddd9c3; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:55px">
<p style="text-align:justify"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.0pt"><span style="color:#333333">पुरुष</span></span></strong></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:#ddd9c3; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:72px">
<p style="margin-left:13px; text-align:justify"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.0pt"><span style="color:#333333">महिला</span></span></strong></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:#ddd9c3; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:64px">
<p style="text-align:justify"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.0pt"><span style="color:#333333">व्यक्ति</span></span></strong></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:#ddd9c3; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:55px">
<p style="text-align:justify"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.0pt"><span style="color:#333333">पुरुष</span></span></strong></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:#ddd9c3; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:69px">
<p style="margin-left:13px; text-align:justify"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.0pt"><span style="color:#333333">महिला</span></span></strong></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:#ddd9c3; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:67px">
<p style="text-align:justify"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.0pt"><span style="color:#333333">व्यक्ति</span></span></strong></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:#ddd9c3; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:55px">
<p style="text-align:justify"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.0pt"><span style="color:#333333">पुरुष</span></span></strong></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:#ddd9c3; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:72px">
<p style="margin-left:13px; text-align:justify"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.0pt"><span style="color:#333333">महिला</span></span></strong></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:#ddd9c3; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:66px">
<p style="text-align:justify"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.0pt"><span style="color:#333333">व्यक्ति</span></span></strong></span></span></p>
</td>
</tr>
<tr>
<td style="background-color:#ddd9c3; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:1px inset; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:94px">
<p style="text-align:center"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">(1)</span></span></strong></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:#ddd9c3; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:55px">
<p style="text-align:center"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">(2)</span></span></strong></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:#ddd9c3; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:72px">
<p style="text-align:center"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">(3)</span></span></strong></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:#ddd9c3; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:64px">
<p style="text-align:center"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">(4)</span></span></strong></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:#ddd9c3; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:55px">
<p style="text-align:center"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">(5)</span></span></strong></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:#ddd9c3; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:69px">
<p style="text-align:center"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">(6)</span></span></strong></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:#ddd9c3; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:67px">
<p style="text-align:center"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">(7)</span></span></strong></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:#ddd9c3; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:55px">
<p style="text-align:center"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">(8)</span></span></strong></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:#ddd9c3; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:72px">
<p style="text-align:center"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">(9)</span></span></strong></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:#ddd9c3; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:66px">
<p style="text-align:center"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">(10)</span></span></strong></span></span></p>
</td>
</tr>
<tr>
<td colspan="10" style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:1px inset; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:670px">
<p style="margin-left:8px; margin-right:11px; text-align:center"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.0pt"><span style="color:#333333">पीएलएफएस</span></span></strong><strong> </strong><strong><span style="color:#333333">2019-20</span></strong></span></span></p>
</td>
</tr>
<tr>
<td style="background-color:#ddd9c3; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:1px inset; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:94px">
<p><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.0pt"><span style="color:#333333">एलएफपीआर</span></span></strong></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:55px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">56.3</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:72px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">24.7</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:64px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">40.8</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:55px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">57.8</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:69px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">18.5</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:67px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">38.6</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:55px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">56.8</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:72px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">22.8</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:66px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">40.1</span></span></span></span></p>
</td>
</tr>
<tr>
<td style="background-color:#ddd9c3; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:1px inset; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:94px">
<p><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.0pt"><span style="color:#333333">डब्‍ल्‍यूपीआर</span></span></strong></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:55px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">53.8</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:72px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">24.0</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:64px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">39.2</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:55px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">54.1</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:69px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">16.8</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:67px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">35.9</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:55px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">53.9</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:72px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">21.8</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:66px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">38.2</span></span></span></span></p>
</td>
</tr>
<tr>
<td style="background-color:#ddd9c3; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:1px inset; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:94px">
<p><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.0pt"><span style="color:#333333">यूआर</span></span></strong></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:55px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">4.5</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:72px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">2.6</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:64px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">4.0</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:55px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">6.4</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:69px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">8.9</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:67px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">7.0</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:55px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">5.1</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:72px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">4.2</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:66px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">4.8</span></span></span></span></p>
</td>
</tr>
<tr>
<td colspan="10" style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:1px inset; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:670px">
<p style="margin-left:8px; margin-right:11px; text-align:center"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.0pt"><span style="color:#333333">पीएलएफएस</span></span></strong><strong> </strong><strong><span style="color:#333333">2018-19</span></strong></span></span></p>
</td>
</tr>
<tr>
<td style="background-color:#ddd9c3; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:1px inset; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:94px">
<p><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.0pt"><span style="color:#333333">एलएफपीआर</span></span></strong></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:55px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">55.1</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:72px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">19.7</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:64px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">37.7</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:55px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">56.7</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:69px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">16.1</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:67px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">36.9</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:55px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">55.6</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:72px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">18.6</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:66px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">37.5</span></span></span></span></p>
</td>
</tr>
<tr>
<td style="background-color:#ddd9c3; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:1px inset; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:94px">
<p><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.0pt"><span style="color:#333333">डब्‍ल्‍यूपीआर</span></span></strong></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:55px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">52.1</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:72px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">19.0</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:64px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">35.8</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:55px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">52.7</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:69px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">14.5</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:67px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">34.1</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:55px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">52.3</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:72px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">17.6</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:66px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">35.3</span></span></span></span></p>
</td>
</tr>
<tr>
<td style="background-color:#ddd9c3; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:1px inset; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:94px">
<p><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.0pt"><span style="color:#333333">यूआर</span></span></strong></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:55px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">5.6</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:72px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">3.5</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:64px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">5.0</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:55px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">7.1</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:69px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">9.9</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:67px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">7.7</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:55px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">6.0</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:72px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">5.2</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:66px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">5.8</span></span></span></span></p>
</td>
</tr>
<tr>
<td colspan="10" style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:1px inset; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:670px">
<p style="margin-left:8px; margin-right:11px; text-align:center"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.0pt"><span style="color:#333333">पीएलएफएस</span></span></strong><strong><span style="color:#333333"> 2017-18</span></strong></span></span></p>
</td>
</tr>
<tr>
<td style="background-color:#ddd9c3; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:1px inset; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:94px">
<p><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.0pt"><span style="color:#333333">एलएफपीआर</span></span></strong></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:55px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">54.9</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:72px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">18.2</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:64px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">37.0</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:55px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">57.0</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:69px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">15.9</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:67px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">36.8</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:55px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">55.5</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:72px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">17.5</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:66px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">36.9</span></span></span></span></p>
</td>
</tr>
<tr>
<td style="background-color:#ddd9c3; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:1px inset; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:94px">
<p><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.0pt"><span style="color:#333333">डब्‍ल्‍यूपीआर</span></span></strong></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:55px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">51.7</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:72px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">17.5</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:64px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">35.0</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:55px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">53.0</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:69px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">14.2</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:67px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">33.9</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:55px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">52.1</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:72px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">16.5</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:66px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">34.7</span></span></span></span></p>
</td>
</tr>
<tr>
<td style="background-color:#ddd9c3; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:1px inset; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:94px">
<p><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.0pt"><span style="color:#333333">यूआर</span></span></strong></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:55px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">5.8</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:72px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">3.8</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:64px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">5.3</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:55px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">7.1</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:69px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">10.8</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:67px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">7.8</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:55px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">6.2</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:72px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">5.7</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:66px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">6.1</span></span></span></span></p>
</td>
</tr>
</tbody>
</table>
<p style="margin-left:8px; margin-right:11px; text-align:justify"><span style="font-size:11pt"><span style="background-color:white"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><em><span style="font-size:10.0pt"><span style="color:#333333">नोट</span></span></em></strong><strong><em><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">: *(</span></span></em></strong><strong><em><span style="font-size:10.0pt"><span style="color:#333333">पीएस</span></span></em></strong><strong><em><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333"> + </span></span></em></strong><strong><em><span style="font-size:10.0pt"><span style="color:#333333">एसएस</span></span></em></strong><strong><em><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">) = (</span></span></em></strong><strong><em><span style="font-size:10.0pt"><span style="color:#333333">प्रमुख कार्यकलाप की स्थिति</span></span></em></strong><strong><em><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333"> + </span></span></em></strong><strong><em><span style="font-size:10.0pt"><span style="color:#333333">सहायक आर्थिक कार्यकलाप की स्थिति</span></span></em></strong><strong><em><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">)</span></span></em></strong></span></span></span></p>
<p style="text-align:justify"><span style="font-size:11pt"><span style="background-color:white"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.0pt"><span style="color:#333333">प्रमुख कार्यकलाप की स्थिति</span></span></strong><strong><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333"> –</span></span></strong><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">ऐसे कार्यकलाप की स्थिति जिस पर किसी व्‍यक्ति ने सर्वेक्षण की तिथि से ठीक पहले</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333"> 365 </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">दिनों के दौरान अपेक्षाकृत लंबा समय (अवधि संबंधी प्रमुख पैमाना) व्‍यतीत किया था</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">, </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">उसे उस व्‍यक्ति के सामान्‍य प्रमुख कार्यकलाप की स्थिति माना गया.</span></span></span></span></span></span></p>
<p style="text-align:justify"><span style="font-size:11pt"><span style="background-color:white"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.0pt"><span style="color:#333333">सहायक आर्थिक कार्यकलाप की स्थिति</span></span></strong><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">– </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">ऐसे कार्यकलाप की स्थिति जिसमें किसी व्‍यक्ति ने अपने सामान्‍य प्रमुख कार्यकलाप के अलावा सर्वेक्षण की तिथि से ठीक पहले</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333"> 365 </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">दिनों की संदर्भ अवधि के दौरान</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333"> 30 </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">दिन या उससे अधिक समय तक कुछ आर्थिक गतिविधि की थी</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">, </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">उसे उस व्‍यक्ति के सहायक आर्थिक कार्यकलाप की स्थिति माना गया.</span></span></span></span></span></span></p>
<p style="text-align:justify"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:black">बेरोज़गारी दर:</span></span></strong></span></span></p>
<ul style="list-style-type:square">
<li style="text-align:justify"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">वित्तीय वर्ष </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">2019-20 </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">में बेरोज़गारी दर गिरकर </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">4.8% </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">तक पहुँच गई है</span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">, </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">जबकि वर्ष </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">2018-19 </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">में यह </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">5.8% </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">और वर्ष </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">2017-18 </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">में </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">6.1% </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">पर थी.</span></span></span></span></li>
</ul>
<p style="text-align:justify"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:black">कामगार जनसंख्या दर:</span></span></strong></span></span></p>
<ul style="list-style-type:square">
<li style="text-align:justify"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">इसमें वर्ष </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">2018-19 </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">में </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">35.3% </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">और वर्ष </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">2017-18 </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">में </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">34.7% </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">की तुलना में वर्ष </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">2019-20 </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">में सुधार हुआ है तथा यह </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">38.2% </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">पर पहुँच गई है.</span></span></span></span></li>
</ul>
<p style="text-align:justify"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:black">श्रम बल भागीदारी अनुपात:</span></span></strong></span></span></p>
<ul style="list-style-type:square">
<li style="text-align:justify"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">वर्ष </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">2019-20 </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">में यह पिछले दो वर्षों में क्रमशः </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">37.5% </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">और </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">36.9% </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">की तुलना में बढ़कर </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">40.1% </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">हो गया है. अर्थव्यवस्था में </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">‘</span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">श्रम बल भागीदारी अनुपात</span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">’ </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">जितना अधिक होता है यह अर्थव्यवस्था के लिये उतना ही बेहतर होता है.</span></span> </span></span></li>
</ul>
<p style="text-align:justify"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:black">लिंग आधारित बेरोज़गारी दर:</span></span></strong></span></span></p>
<ul style="list-style-type:square">
<li style="text-align:justify"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">आँकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि वर्ष </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">2019-20 </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">में पुरुष और महिला दोनों के लिये बेरोज़गारी दर गिरकर क्रमशः </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">5.1% </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">और </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">4.2% </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">पर पहुँच गई है</span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">, </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">जो कि वर्ष </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">2018-19 </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">में क्रमशः </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">6% </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">और </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">5.2% </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">पर थी.</span></span></span></span>
<ul style="list-style-type:circle">
<li style="text-align:justify"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">वर्ष के दौरान </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">‘</span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">कामगार जनसंख्या दर</span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">’ </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">और </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">‘</span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">श्रम बल भागीदारी अनुपात</span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">’ </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">में भी तुलनात्मक रूप से सुधार हुआ है.</span></span></span></span></li>
</ul>
</li>
</ul>
<p style="text-align:justify"> </p>
<p>**page**</p>
<p style="text-align:justify"><span style="font-size:12pt"><span style="background-color:white">[inside] ग्रामीण विकास पर स्थायी समिति की रिपोर्ट: अनुदान की मांग (2021-22), तेरहवीं रिपोर्ट, [/inside] 9 मार्च, 2021 को लोकसभा में प्रस्तुत की गई और 9 मार्च, 2021 को राज्य सभा में रखी गई,<span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333"> </span><span style="color:#333333">सत्रहवीं लोकसभा</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">, </span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">लोकसभा सचिवालय</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">, </span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">ग्रामीण विकास मंत्रालय की इस रिपोर्ट देखने के लिए कृपया <a href="https://www.im4change.org/upload/files/13th%20report%20Standing%20Committee%20on%20Rural%20Development%202020-2021%2017th%20Lok%20Sabha%20MoRD.pdf">यहां क्लिक करें</a>. ग्रामीण विकास विभाग (ग्रामीण विकास मंत्रालय के तहत) की अनुदान मांगों (</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">2021-22) </span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">को लोकसभा में मांग संख्या </span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">86</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333"> के तहत पेश किया गया था</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">, </span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">जिसमें सरकार द्वारा डीओआरडी को </span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">131,519.08</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333"> करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे. ग्रामीण विकास पर स्थायी समिति ने उपरोक्त अनुदानों की मांग की जांच की और </span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">2020-21</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333"> के दौरान योजनाओं के प्रदर्शन की समीक्षा की. समिति की टिप्पणियों/सिफारिशों को रिपोर्ट में दिया गया है. रिपोर्ट में शामिल योजनाएं हैं: महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा)</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">; </span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण (पीएमएवाई-जी)</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">; </span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">प्रधान मंत्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाई)</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">; </span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन डीएवाई-एनआरएलएम</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">; </span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (एनएसएपी)</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">; </span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">श्यामा प्रसाद मुखर्जी ग्रामीण-शहरी मिशन (एसपीएमआरएम)</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">; </span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">और सांसद आदर्श ग्राम योजना (एसएजीवाई).</span></span></span></span></p>
<p style="text-align:justify"><span style="font-size:12pt"><span style="background-color:white"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">---</span></span></span></span></p>
<p style="text-align:justify"><span style="font-size:12pt"><span style="background-color:white">[inside] श्रम पर स्थायी समिति की रिपोर्ट: अंतर-राज्यीय प्रवासी श्रमिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा और कल्याण उपाय (2020-21), सोलहवीं रिपोर्ट [/inside], 11 फरवरी, 2021 को लोकसभा में प्रस्तुत की गई और 11 फरवरी, 2021 को राज्यसभा में रखी गई, सत्रहवीं लोकसभा, लोकसभा सचिवालय, श्रम और रोजगार मंत्रालय द्वारा जारी इस रिपोर्ट को देखने के लिए <a href="https://www.im4change.org/upload/files/Standing%20Committee%20Report%20on%20Labour%20Social%20Security%20and%20Welfare%20Measures%20for%20Inter%20State%20Migrant%20Workers%202020-21%20Sixteenth%20Report.pdf">यहां क्लिक करें</a>. <span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">वर्तमान महामारी ने सरकार को प्रवासी कामगारों की दुर्दशा पर गंभीरता से विचार करने के लिए मजबूर किया है</span><span style="color:#333333">, </span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">यह देखते हुए कि संकट के दौरान उनमें से लाखों लोगों ने खुद को अभूतपूर्व संकट में पाया है. तदनुसार</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">, </span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">भारत सरकार ने अपने विभिन्न अंगों के माध्यम से कुछ नई योजनाएं तैयार कीं और कुछ अन्य योजनाएं पहले से ही अस्तित्व में हैं ताकि महामारी और इसके परिणामस्वरूप लगाए गए लॉकडाउन के कारण प्रवासी श्रमिकों की कठिनाइयों को कम किया जा सके. इस तरह की योजनाओं में अन्य बातों के साथ-साथ प्रधानमंत्री गरीब कल्याण रोजगार अभियान</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">, </span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">, </span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">आत्मानिर्भर भारत योजना</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">, </span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">किफायती रेंटल हाउसिंग कॉम्प्लेक्स</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">, </span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">आयुष्मान भारत-प्रधान मंत्री जन आरोग्य योजना आदि शामिल हैं.</span></span></span></span></p>
<p style="text-align:justify"><span style="font-size:12pt"><span style="background-color:white"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">संकट के दौरान प्रवासी मजदूरों की दयनीय दुर्दशा को देखते हुए और ऐसे श्रमिकों की स्थिति को कम करने के लिए शुरू की गई विभिन्न योजनाओं की प्रभावशीलता का आकलन करने के लिए समिति ने इस विषय को जांच और रिपोर्ट में इसको दर्ज किया. इस प्रक्रिया में</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">, </span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">समिति ने श्रम और रोजगार मंत्रालय</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">, </span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">उपभोक्ता मामले</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">, </span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">खाद्य और सार्वजनिक वितरण (उपभोक्ता मामले और खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग)</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">, </span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">स्वास्थ्य और परिवार कल्याण</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">, </span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">आवास और शहरी मामले</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">, </span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">ग्रामीण विकास</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">, </span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">कौशल विकास और उद्यमिता और इन मंत्रालयों/विभागों से पृष्ठभूमि की जानकारी और लिखित स्पष्टीकरण प्राप्त करने के अलावा इन मौखिक और लिखित बयानों के आधार पर</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">, </span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">समिति ने इस विषय पर विस्तृत विवरण दिया है जैसा कि बाद के अध्यायों में बताया गया है.</span></span></span></span></p>
<p style="text-align:justify"><span style="font-size:12pt"><span style="background-color:white"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">संसदीय स्थायी समिति की रिपोर्ट के अनुसार</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">, </span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">अंतर्राज्यीय प्रवासी मजदूरों सहित अकुशल श्रमिकों को स्थायी आजीविका प्रदान करने के लिए मनरेगा से बेहतर कोई योजना नहीं है. वास्तव में</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">, </span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">2005 में मनरेगा कानून को लागू करके</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">, </span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">भारतीय संसद ने एक ऐसी प्रक्रिया को गति प्रदान की थी जो नागरिकता के विचार से मिलकर एक विशिष्ट और महत्वपूर्ण कल्याणकारी प्रावधान प्रदान करती है. चूंकि सामाजिक-आर्थिक अधिकार</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">, </span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">काम करने के अधिकार सहित</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">, </span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">लंबे समय से राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों का हिस्सा रहे हैं</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">, </span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">समिति का मानना है कि मंत्रालय ने 262 में अकुशल श्रमिकों</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">, </span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">विशेष रूप से प्रवासी श्रमिकों के लिए मनरेगा के तहत स्वीकृत कार्य मजदूरी रोजगार के लिए पर्याप्त अवसर प्रदान किया होगा. समिति की रिपोर्ट में यह सलाह दी गई है कि मंत्रालय को अकुशल/प्रवासी श्रमिकों को न केवल महामारी के दौरान</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">, </span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">बल्कि हर समय</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">, </span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">किसी भी आकस्मिकता को पूरा करने और गरीब वर्गों की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए मजदूरी रोजगार के प्रावधान में अपने प्रयास को जारी रखना चाहिए.</span></span></span></span></p>
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<p>[inside]लेशन्स् फॉर सोशल प्रोटेक्शन फ्रॉम द कोविड-19 रिपोर्ट 1 & 2: स्टेट रिलीफ (फरवरी, 2021 में जारी)[/inside] नामक रिपोर्ट (देखने के लिए <a href="https://www.im4change.org/upload/files/IIHS.pdf">यहां क्लिक करें</a>) COVID -19 और भारत में लगे लॉकडाउन का उपयोग सामाजिक सुरक्षा के सुरक्षात्मक पहलू का आकलन करने के लिए एक महत्वपूर्ण समय के तौर पर देखता है, इस संबध में एक दूसरे से जुड़े तीन प्रश्ननों के जरिये इसे समझने का प्रयास किया गया है।</p>
<p>सबसे पहला प्रश्न है कि COVID -19 के प्रभाव से निपटने के लिए तत्काल राहत के उपाय क्या हैं और साथ ही लॉकडाउन में हमारी सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों की वर्तमान स्थिति कैसी है? दूसरा, इन उपायों से लॉकडाउन जैसी जटिल और विवश स्थितियों में प्रभावी रूप से राहत कैसे पहुंचाई जाए ? तीसरा, तात्कालिक राहत के लिये उठाए गए ये कदम न केवल मध्यम अवधि के लिए बल्कि दूरगामी सामाजिक सुरक्षा प्रणाली बनाने और उसमे सुधार करने के लिए कैसे कारगर साबित होंगे?</p>
<p>लेखक गौतम भान, अंतारा राय चौधरी, नेहा मर्गोसा, किंजल संपत और निधि सोहने ने भारत सरकार द्वारा कोविड-19 माहामारी के दौरान लगाए गए चार चरणबद्ध लॉकडाउन और 20 मार्च से 31 मई, 2020 के बीच 181 घोषणाओं का विश्लेषण किया है। शोधकर्ताओं ने अपने विश्लेषण में मुख्य रूप से सामाजिक सुरक्षा से निकटता से संबंधित तीन प्रकार की राहत पर ध्यान केंद्रित किया है जिसमें भोजन, नकदी हस्तांतरण और श्रम सुरक्षा शामिल है। यह रिपोर्ट इन तीन प्रकार की राहत से जुड़ी घोषणाओं, परिपत्रों, सूचनाओं और आदेशों पर केंद्रित है।</p>
<p>इसके अलावा, शोधकर्ताओं ने रिपोर्ट की संरचना करने वाले तीन प्रमुख विश्लेषणात्मक फ्रेम नियोजित किये हैं जिसमें आईडेंटिटी यानी पहचान, अधिकार की परिभाषा और वितरण तंत्र शामिल हैं। ये तीनों किसी भी सामाजिक सुरक्षा को समझने की मौजूदा प्रणाली के मुख्य घटक माने गए हैं। शोध का पहला हिस्सा पहचान पर केंद्रित है, जिसमें राहत स्कीम से जुड़ने के लिये जरूरी योग्यता, प्रत्यक्ष राहत के लिए डेटाबेस का उपयोग और जरूरी सत्यापन प्रक्रिया शामिल है।</p>
<p>शोध का दूसरा भाग अधिकार को परिभाषित करने पर जोर देता है, जिसमें आकलन किया गया है कि लॉकडाउन के दौरान राहत के रूप में क्या दिया गया, साथ ही उन कारकों पर विचार किया गया जिन्होनें इस पूरी प्रक्रिया का नेतृत्व किया है। वहीं शोध के तीसरे हिस्से में डिलीवरी तंत्र को देखा गया है, जो संचार के माध्यम, प्रक्रिया और एक उचित समय सीमा के भीतर सही व्यक्ति तक राहत पहुँचाने पर केंद्रित रहा।</p>
<p>लॉकडाउन के दौरान लागू किए गए राहत उपायों का एक बड़ा संग्रह हैं, जिसका आलोचनात्मक आकलन करना जरूरी है। इस दौरान पहले से जारी और नये उपायों के साथ मौजूदा वितरण तंत्र आगे बढ़ा है। साथ ही बीच-बीच में किए गए अस्थायी उपायों से भी राहत प्राप्त करने वालों की नई श्रेणियां, अधिकार के नए रूप और वितरण के नए तंत्र विकसित हुए हैं। हमारे लिये यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि हम इस समय लागू किए गए सामाजिक सुरक्षा उपायों की निरंतरता और नवाचार से सीखें ताकि कोविड-19 माहामारी के बाद भी इन सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों को सुधारने की ओर काम किया जा सके।</p>
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<p>एशियन डेवल्पमेंट बैंक (ADB) और अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) द्वारा जारी [inside]टैक्लिंग द कोविड-19 यूथ एम्पलॉएमेंट इन एशिया एंड द पेसिफिक (18 अगस्त, 2020 को जारी)[/inside] नामक रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष इस प्रकार हैं (उपयोग करने के लिए कृपया <a href="https://www.im4change.org/upload/files/adb-ilo-covid-19-youth-employment-crisis-asia-pacific.pdf">यहाँ क्लिक करें</a>)</p>
<p>• भारत में 3 महीने के नियंत्रण परिदृश्य (लघु नियंत्रण) की वजह से, लगभग <a href="https://www.im4change.org/upload/files/ADB%20ILO%20report%20table.jpg">41 लाख</a> के आसपास युवा नौकरियों से हाथ धो सकते है, इसके बाद पाकिस्तान 15 लाख युवाओं की नौकरियां जा सकती हैं.</p>
<p>• भारत में 6 महीने के नियमन परिदृश्य (लंबे समय तक रहने) की वजह से, 61 लाख के आसपास युवा नौकरियों से हाथ धो सकते है, इसके बाद पाकिस्तान 23 लाख युवाओं की नौकरियां जा सकती हैं.</p>
<p>• फिजी (29.8 प्रतिशत), भारत (29.5 प्रतिशत) और मंगोलिया (28.5 प्रतिशत) में, युवा बेरोजगारी की दर 30 प्रतिशत के करीब बढ़ सकती है, और संक्षिप्त नियंत्रण (3 महीने) की वजह से श्रीलंका युवा बेरोजगारी की दर में उस स्तर (32.5 प्रतिशत) से अधिक हो सकती है.</p>
<p>• लंबे नियंत्रण (6 महीने) की वजह से, भारत में युवा बेरोजगारी दर बढ़कर 32.5 प्रतिशत हो सकती है.</p>
<p>• भारत में सात क्षेत्रों में युवाओं की नौकरियों के नुकसान का सबसे अधिक अनुपात कृषि (28.8 प्रतिशत) में महसूस किया जाएगा, इसके बाद निर्माण (24.6 प्रतिशत), खुदरा व्यापार (9.0 प्रतिशत), अंतर्देशीय परिवहन (5.7 प्रतिशत), कपड़ा और वस्त्र उत्पाद (4.2 प्रतिशत), अन्य सेवाएँ (3.1 प्रतिशत) और होटल और रेस्तरां (1.9 प्रतिशत) शामिल हैं. अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों में 22.7 प्रतिशत युवाओं को नौकरियों का नुकसान उठाना पड़ेगा.</p>
<p>• युवाओं की नौकरियां खत्म होने का खेल पूरे साल 2020 तक जारी रहेगी और इसके परिणामस्वरूप युवा बेरोजगारी दर दोगुनी हो सकती है. 2020 में एशिया और प्रशांत के 13 देशों में 1 से 1.5 करोड़ युवा रोजगार (पूर्णकालिक समकक्ष) खो सकते हैं. ये अनुमान आउटपुट में अपेक्षित गिरावट और परिणामस्वरूप COVID-19 परिदृश्य से पहले के दौर की सापेक्ष श्रम मांग में कमी पर आधारित हैं. अनुमानों में भारत और इंडोनेशिया जैसे बड़े देशों के साथ-साथ फिजी और नेपाल जैसे छोटे भी शामिल हैं.</p>
<p>• प्रशिक्षुता और इंटर्नशिप के प्रावधान पर प्रभाव के साथ काम-आधारित शिक्षा के व्यवधान भी महत्वपूर्ण हैं. कोविड-19 पर कर्मचारियों के विकास और प्रशिक्षण के साथ सार्वजनिक और निजी उद्यमों और अन्य संगठनों पर एक सर्वेक्षण से संकेत मिलता है कि, भारत में, दो-तिहाई फर्म-स्तरीय प्रशिक्षुता और तीन चौथाई इंटर्नशिप पूरी तरह से बाधित थे. इसके बावजूद, भारत में दस में से छह कंपनियां प्रशिक्षुओं और प्रशिक्षुओं को वेतन या वजीफा प्रदान करती रहीं.</p>
<p>• प्रशिक्षुता और इंटर्नशिप जारी रखने से रोकने वाली कंपनियों के रूप में सबसे बड़ी चुनौतियां (1) हाथ से प्रशिक्षण देने में कठिनाइयाँ थीं, (2) बुनियादी ढाँचे के मुद्दे (दोनों देश), (3) उपयोगकर्ताओं की सीमित डिजिटल साक्षरता (भारत में), और (4) लागत (फिलीपींस में) थी.</p>
<p>• सार्वजनिक और निजी उद्यमों और अन्य संगठनों के लिए COVID-19 महामारी के संदर्भ में कर्मचारियों के विकास और प्रशिक्षण पर वैश्विक सर्वेक्षण ADB और ILO सहित दस अंतर्राष्ट्रीय और क्षेत्रीय विकास भागीदारों द्वारा शुरू किया गया था. इस रिपोर्ट में उल्लिखित प्रतिक्रियाएँ भारत में कार्यरत 71 फर्मों और फिलीपींस में कार्यरत 183 फर्मों के एक नमूने पर आधारित हैं. यह गौरतलब है कि प्रत्येक प्रश्न का उत्तर देने वालों की एक अलग संख्या है. यह रिपोर्ट लिखते समय, सर्वेक्षण के परिणाम अभी तक प्रकाशित नहीं हुए थे.</p>
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<p> यह वार्षिक रिपोर्ट, राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) द्वारा जुलाई 2018 से जून 2019 तक किए गए आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) पर आधारित है. इस सर्वे के लिए 12,720 प्रथम चरण इकाइयों - FSUs (6,983 गाँवों और 53737 शहरी ब्लॉकों) में 1,01,579 घरों (ग्रामीण क्षेत्रों में 55,812 और शहरी क्षेत्रों में 45,767) और 4,20,757 व्यक्तियों (ग्रामीण क्षेत्रों में 2,39,817 व्यक्ति और शहरी क्षेत्रों में 1,80,940) की गणना की गई है. सर्वे में सामान्य स्थिति (पीएस + एसएस) तथा वर्तमान साप्ताहिक स्थिति (सीडब्यूएस) दोनों में रोजगार व बेरोजगारी के सभी महत्वपूर्ण मापदंडों के अनुमान प्रस्तुत किए गए हैं. सामान्य स्थिति (ps + ss) दृष्टिकोण के लिए संदर्भ अवधि 1 वर्ष है और वर्तमान साप्ताहिक स्थिति दृष्टिकोण के लिए अवधि 1 सप्ताह है. शहरी क्षेत्रों में एक रोटेशनल पैनल नमूना डिजाइन का उपयोग किया गया था। इस रोटेशनल पैनल योजना में शहरी क्षेत्रों में प्रत्येक चयनित घर का चार बार दौरा किया जाता है - शुरुआत में पहले दौरे में अनुसूची के साथ और तीन बार समय-समय पर पुनरीक्षण कार्यक्रम के साथ. ग्रामीण नमूनों में कोई पुनरावृत्ति नहीं हुई. यहां प्रस्तुत घरेलू और जनसंख्या, श्रम बल, कार्यबल और बेरोजगारी के अनुमान ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में पहले दौरे के अनुसूचियों में एकत्र किए गए आंकड़ों पर आधारित हैं.</p>
<p>राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) द्वारा की गई [inside]आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण की वार्षिक रिपोर्ट (जुलाई 2018 से जून 2019 तक)[/inside] के प्रमुख निष्कर्ष इस प्रकार हैं, (देखने के लिए <a href="https://im4change.org/docs/annual-report-on-periodic-labour-force-survey-july-2018-june-2019.pdf">यहां क्लिक करें.</a>)</p>
<p><strong>सामान्य स्थिति में श्रम बल (ps+ss)</strong></p>
<p>• लगभग 55.1 प्रतिशत ग्रामीण पुरुष, 19.7 प्रतिशत ग्रामीण महिलाएँ, 56.7 प्रतिशत शहरी पुरुष और 16.1 प्रतिशत शहरी महिलाएँ श्रमिक थीं.</p>
<p>• 15-29 वर्ष की आयु वर्ग में भारत में श्रम बल भागीदारी दर (LFPR-Labor Force Participation Rate) 38.1 प्रतिशत थी: जोकि ग्रामीण क्षेत्रों में 37.8 प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों में 38.7 प्रतिशत थी.</p>
<p>• 15 वर्ष और उससे अधिक आयु वर्ग में भारत में श्रम बल भागीदारी दर 50.2 प्रतिशत थी: जोकि ग्रामीण क्षेत्रों में 51.5 प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों में 47.5 प्रतिशत थी.</p>
<p><strong> श्रमिक जनसंख्या अनुपात (WPR) सामान्य स्थिति में (ps+ss)</strong></p>
<p>• अखिल भारतीय स्तर पर श्रमिक-जनसंख्यान अनुपात (डब्ल्यूपीआर) लगभग 35.3 प्रतिशत था. यह ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग 35.8 प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों में 34.1 प्रतिशत था.</p>
<p>• अखिल भारतीय स्तर पर श्रमिक-जनसंख्याह अनुपात (डब्ल्यूपीआर) ग्रामीण पुरुषों के लिए 52.1 प्रतिशत, ग्रामीण महिलाओं के लिए 19.0 प्रतिशत, शहरी पुरुषों के लिए 52.7 प्रतिशत और शहरी महिलाओं के लिए 14.5 प्रतिशत था.</p>
<p>• 15-29 वर्ष की आयु के व्यक्तियों में, भारत में श्रमिक-जनसंख्याि अनुपात (डब्ल्यूपीआर) 31.5 प्रतिशत था: इस आयु वर्ग में यह ग्रामीण क्षेत्रों में 31.7 प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों में 30.9 प्रतिशत था.</p>
<p>• 15 वर्ष और उससे अधिक आयु वर्ग के लिए भारत में श्रमिक-जनसंख्याक अनुपात (डब्ल्यूपीआर) 47.3 प्रतिशत था: यह ग्रामीण क्षेत्रों में 48.9 प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों में 43.9 प्रतिशत था.<br />
सामान्य स्थिति में श्रमिकों के रोजगार की स्थिति (ps+ss)</p>
<p>• भारत में स्वपोषित श्रमिकों की संख्या, ग्रामीण पुरुषों में 57.4 प्रतिशत, ग्रामीण महिलाओं में 59.6 प्रतिशत, शहरी पुरुषों में 38.7 प्रतिशत और शहरी महिलाओं में 34.5 प्रतिशत थी.</p>
<p>• श्रमिकों में, ग्रामीण पुरुषों में लगभग 14.2 प्रतिशत, ग्रामीण महिलाओं में 11.0 प्रतिशत, शहरी पुरुषों में 47.2 प्रतिशत और शहरी महिलाओं में 54.7 प्रतिशत नियमित वेतन/वेतनभोगी कर्मचारी थे.</p>
<p>• भारत में दिहाड़ी-मजदूरी करने वाले श्रमिकों का अनुपात ग्रामीण पुरुषों में लगभग 28.3 प्रतिशत, ग्रामीण महिलाओं में 29.3 प्रतिशत, शहरी पुरुषों में 14.2 प्रतिशत और शहरी महिलाओं में 10.3 प्रतिशत था.<br />
<br />
<strong>सामान्य स्थिति में श्रमिकों के काम का उद्योग (पीएस+एसएस)</strong></p>
<p>• 2018-19 के दौरान, ग्रामीण क्षेत्रों में, लगभग 53.2 प्रतिशत पुरुष श्रमिक और 71.1 प्रतिशत महिला श्रमिक कृषि क्षेत्र में कार्यरत थे. ग्रामीण क्षेत्रों में निर्माण क्षेत्र में काम कर रहे पुरुष और महिला श्रमिकों का अनुपात क्रमशः 15.4 प्रतिशत और 6.0 प्रतिशत था. ग्रामीण क्षेत्रों में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टक में काम कर रहे पुरुष और महिला श्रमिकों का अनुपात क्रमशः 7.3 प्रतिशत और 9.0 प्रतिशत था.</p>
<p>• 2018-19 के दौरान, शहरी भारत में लगभग 25.2 प्रतिशत पुरुष उद्योग, व्यापार, होटल और रेस्तरां क्षेत्रों में काम कर रहे थे, जबकि मैन्युफैक्चरिंग और 'अन्य सेवा’ क्षेत्रों में क्रमशः 21.9 प्रतिशत और 22.3 प्रतिशत शहरी पुरुष काम कर रहे थे.</p>
<p>• शहरी क्षेत्रों में महिला श्रमिक 'अन्य सेवा' क्षेत्र यानी सर्विस सेक्टर ('व्यापार, होटल और रेस्तरां' और 'परिवहन, भंडारण और संचार के अलावा') में सबसे अधिक अनुपात (45.6 प्रतिशत) में काम कर रही थीं, उसके बाद मैन्युफैक्चरिंग (24.5) प्रतिशत) और 'व्यापार, होटल और रेस्तरां' (13.8 प्रतिशत) में कार्यरत थीं.<br />
</p>
<p><strong>अनौपचारिक क्षेत्र और सामान्य स्थिति में श्रमिकों के रोजगार की शर्तें (ps+ss)</strong></p>
<p>• भारत में, गैर-कृषि क्षेत्र में 68.4 प्रतिशत श्रमिक अनौपचारिक क्षेत्र में काम कर रहे थे. पुरुष श्रमिकों के बीच अनौपचारिक क्षेत्र की हिस्सेदारी 71.5 प्रतिशत थी और गैर-कृषि में महिला श्रमिकों की संख्या लगभग 54.1 प्रतिशत थी.</p>
<p>• गैर-कृषि क्षेत्र में नियमित वेतन/वेतनभोगी कर्मचारियों में, 69.5 प्रतिशत के पास कोई लिखित नौकरी अनुबंध नहीं था: 70.3 प्रतिशत पुरुषों के पास और 66.5 प्रतिशत महिलाओं के पास कोई लिखित नौकरी अनुबंध नहीं था.</p>
<p>• गैर-कृषि क्षेत्र में नियमित वेतन/वेतनभोगी कर्मचारियों में, 53.8 प्रतिशत श्रमिक भुगतान छुट्टी (paid leave) के लिए पात्र नहीं थे: 54.7 प्रतिशत पुरुष और 50.6 प्रतिशत महिला श्रमिक भुगतान छुट्टी (paid leave) के लिए पात्र नहीं थी.</p>
<p>• गैर-कृषि क्षेत्र में नियमित वेतन/वेतनभोगी कर्मचारियों के बीच, 51.9 प्रतिशत श्रमिक किसी भी सामाजिक सुरक्षा लाभ के लिए पात्र नहीं थे: 51.2 प्रतिशत पुरुष और 54.4 प्रतिशत महिला श्रमिक किसी भी सामाजिक सुरक्षा लाभ के लिए पात्र नहीं थीं.<br />
<br />
<strong>सामान्य स्थिति में बेरोजगारी दर (ps+ss) </strong></p>
<p>• देश में बेरोजगारी दर 5.8 प्रतिशत थी. ग्रामीण क्षेत्रों में, बेरोजगारी दर पुरुषों में 5.6 प्रतिशत और महिलाओं में 3.5 प्रतिशत थी, जबकि शहरी क्षेत्रों में, पुरुषों में यह दर 7.1 प्रतिशत और महिलाओं में 9.9 प्रतिशत थी.</p>
<p>• 15 वर्ष या उससे अधिक आयु के शिक्षित (माध्यमिक और उससे ऊपर के उच्चतम स्तर के) व्यक्तियों में, बेरोजगारी दर 11.0 प्रतिशत: ग्रामीण क्षेत्रों में 11.2 प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों में 10.8 प्रतिशत थी.</p>
<p>• ग्रामीण पुरुष युवाओं (15-29 वर्ष की आयु के व्यक्तियों) के बीच बेरोजगारी दर 16.6 प्रतिशत थी जबकि 2018-19 के दौरान ग्रामीण महिला युवातियों में बेरोजगारी दर 13.8 प्रतिशत थी. शहरी पुरुष युवाओं में बेरोजगारी की दर 18.7 प्रतिशत थी जबकि शहरी महिला युवतियों में बेरोजगारी दर इस अवधि में 25.7 प्रतिशत थी.</p>
<p><strong>कृपया ध्यान दें</strong></p>
<p><em>श्रम बल भागीदारी दर (एलएफपीआर): एलएफपीआर को कुल आबादी में श्रम बल के अंतर्गत आने वाले व्यमक्तियों (अर्थात कहीं कार्यरत या काम की तलाश में या काम के लिए उपलब्धब) के प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया जाता है.</em></p>
<p><em>कामगार-जनसंख्या अनुपात (डब्यू तल पीआर): डब्यू ने पीआर को कुल आबादी में रोजगार प्राप्तम व्य क्तियों के प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया जाता है.</em></p>
<p><em>बेरोजगारी दर (यूआर) : इसे श्रम बल में शामिल कुल लोगों में बेरोजगार व्यबक्तियों के प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया जाता है.</em></p>
<p><em>कार्यकलाप की स्थिति- सामान्य स्थिति : किसी भी व्यरक्ति के कार्यकलाप की स्थिति का निर्धारण निर्दिष्टर संदर्भ अवधि के दौरान उस व्यैक्ति द्वारा किए गए कार्यों के आधार पर किया जाता है. जब सर्वेक्षण की तारीख से ठीक पहले के 365 दिनों की संदर्भ अवधि के आधार पर कार्यकलाप की स्थिति का निर्धारण किया जाता है तो इसे उस व्येक्ति के सामान्यद कार्यकलाप की स्थिति के तौर पर जाना जाता है.</em></p>
<p><em>कार्यकलाप की स्थिति – वर्तमान साप्ताभहिक स्थिति (सीडब्यूि एस) : जब सर्वेक्षण की तारीख से ठीक पहले के सात दिनों की संदर्भ अवधि के आधार पर कार्यकलाप की स्थिति का निर्धारण किया जाता है तो इसे उस व्याक्ति की वर्तमान साप्ता्हिक स्थिति (सीडब्यूथ एस) के रूप में जाना जाता है.</em><br />
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<p>डॉमेस्टिक वर्कर्स सेक्टर स्किल काउंसिल (DWSSC) - कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय के दायरे में काम करने वाली एक <a href="http://dwsscindia.in/about-us-2/">गैर-लाभकारी कंपनी</a>, ने भारत में COVID-19 लॉकडाउन के दौरान एक सर्वे किया. इस सर्वे में डीडब्ल्यूएससी ने आठ राज्यों-दिल्ली, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, असम, पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड और तमिलनाडु में फैले 200 श्रमिकों के बीच एक रैंडम सैम्पल सर्वे किया. डीडब्ल्यूएससी के अनुसार, अगर सैंपल साइज बड़ा होता तो परिणाम भिन्न हो सकते थे. सर्वे के परिणाम लॉकडाउन के दौरान डॉमेस्टिक वर्कर्स को हो रही समस्याओं की तरफ इशारा करते हैं.</p>
<p>डॉमेस्टिक वर्कर्स सेक्टर स्किल काउंसिल द्वारा जारी [inside]डॉमेस्टिक वर्कर्स पर लॉकडाउन के प्रभाव (जून 2020 में जारी)[/inside] नामक इस सर्वे के मुख्य निष्कर्ष इस प्रकार हैं (एक्सेस करने के लिए कृपया <a href="https://im4change.org/upload/files/DWSSC_Survey_Report.pdf">यहां क्लिक करें.</a>):</p>
<p>• लगभग 96 प्रतिशत डॉमेस्टिक वर्कर्स ने लॉकडाउन के दौरान काम करना बंद कर दिया, जबकि केवल 4 प्रतिशत ने काम करना जारी रखा.</p>
<p>• लॉकडाउन के दौरान, जब नागरिकों की आवाजाही प्रतिबंधित की गई तो डॉमेस्टिक वर्कर भी प्रभावित हुए. उन्हें इस लॉकडाउन के दौरान काम करने के लिए मना किया गया और सरकार ने लॉकडाउन अवधि के दौरान नियोक्ताओं को उन्हें भुगतान करने की सलाह दी. लगभग 85 प्रतिशत डॉमेस्टिक वर्कर्स को लॉकडाउन अवधि के दौरान उनके नियोक्ताओं द्वारा कोई भुगतान नहीं किया गया, जबकि इसी दौरान केवल 15 प्रतिशत डॉमेस्टिक वर्कर्स को तनख्वाह मिल रही थी. बड़े शहरों में रहने वाले अधिकांश डॉमेस्टिक वर्कर्स को उनके नियोक्ताओं द्वारा भुगतान किया जा रहा था.</p>
<p>• DWSSC के इस सर्वे से पता चलता है कि लगभग 30 प्रतिशत डॉमेस्टिक वर्कर्स के पास जरूरतों के लिए पर्याप्त पैसा / नकदी नहीं बची है. यह उनकी सबसे बड़ी चुनौती थी क्योंकि उन्हें नहीं पता था कि वे कब तक उनके पास बची थोड़ी सी धनराशि के साथ गुजारा कर पाएंगे. अधिकांश डॉमेस्टिक वर्कर्स को उनके नियोक्ताओं ने लॉकडाउन अवधि के दौरान वेतन नहीं दिया थी.</p>
<p>• लगभग 38 प्रतिशत डॉमेस्टिक वर्कर्स को भोजन की व्यवस्था करने में समस्याओं का सामना करना पड़ा क्योंकि पास की दुकानों में उपलब्ध स्टॉक सीमित थे. हालांकि सभी नहीं, लेकिन कुछ डॉमेस्टिक वर्कर्स को भी पीडीएस दुकानों से राशन प्राप्त करने में समस्याओं का सामना करना पड़ा.</p>
<p>• मोटे तौर पर एक-चौथाई डॉमेस्टिक वर्कर्स को भोजन से संबंधित किसी भी समस्या का सामना नहीं करना पड़ा और उनमें से ज्यादातर या तो ऐसे थे जो वापस अपने मूल स्थान पर लौट गए थे या फिर ऐसे श्रमिक जिनके नियोक्ता उन्हें लॉकडाउन अवधि के दौरान मजदूरी / वेतन का भुगतान कर रहे थे.</p>
<p>• लगभग 23.5 प्रतिशत डॉमेस्टिक वर्कर्स अपने मूल स्थानों पर वापस चले गए क्योंकि उनके पति / अभिभावक (पिता) दिहाड़ी मजदूर जैसे पेंटर, राजमिस्त्री, आदि थे. अधिकांश डॉमेस्टिक वर्कर्स मुख्य रूप से बड़े शहरों से अपने गांव वापस लौटे थे. लगभग 76.5 प्रतिशत डॉमेस्टिक वर्कर्स उन शहरों / कस्बों में वापस आ गए हैं जहाँ वे अपने परिवारों के साथ रह रहे थे.</p>
<p>• सरकार द्वारा लॉकडाउन अवधि के दौरान दी जा रही सुविधाओं का लाभ उठाने के लिए केवल 41.5 प्रतिशत डॉमेस्टिक वर्कर्स सरकारी हेल्पलाइन के बारे में जानते थे.</p>
<p>• डॉमेस्टिक वर्कर्स की अधिकांश आबादी (लगभग 98.5 प्रतिशत) कोविड -19 से संक्रमित होने से बचने के लिए बरती जाने वाली सावधानियों के बारे में जानते थे.</p>
<p>• DWSSC की <a href="http://dwsscindia.in/about-us-2/">वेबसाइट</a> के अनुसार, डॉमेस्टिक वर्कर्स या डॉमेस्टिक हेल्प सेक्टर से लगभग 2 करोड़ श्रमिक अपनी रोजी-रोटी चलाते हैं, जिनमें अधिकतर महिलाएं हैं, जिनकी सेवाओं पर कभी किसी का ध्यान नहीं जाता. ये लाखों डॉमेस्टिक वर्कर्स गाँवों में निम्न मध्यम वर्गीय परिवारों से लेकर महानगरों में सबसे संपन्न लोगों तक पाए जा सकते हैं. एक हिसाब से डॉमेस्टिक वर्कर्स घरों मंा 'जीवन रेखा' के रूप में कार्य करते हुए पूर्णकालिक और अंशकालिक, लिव-इन और लिव-आउट के रूप में कई प्रकार की सेवाएं प्रदान करते हैं, और इसलिए उन्हें 'डॉमेस्टिक वर्कर्स' कहा जाता है. इस पेशे से जुड़ी प्रथाएं अनिच्छुक और पूरी तरह से अस्वीकार्य हैं, इसी वजह से ही डॉमेस्टिक वर्क को अभी तक सम्मानित पेशे या व्यापार की तरह नहीं देखा जाता है.</p>
<p>• एक डॉमेस्टिक वर्कर किसी व्यक्ति या परिवार के लिए विभिन्न प्रकार की सेवाएं दे सकता है, जो कुशल और अकुशल श्रमिक के रूप में कार्य करते हुए बच्चों, बुजुर्गों, बीमार, विकलांगों के अलावा घरेलू रखरखाव, खाना पकाने, कपड़े धोने, खरीदारी आदि की देखभाल करता है. डीडब्ल्यूएसएससी की <a href="http://dwsscindia.in/about-us-2/">वेबसाइट</a> के मुताबिक, डॉमेस्टिक वर्क असंगठित क्षेत्र के सबसे बड़े क्षेत्रों में से एक हैं और इनकी संख्या 47 लाख से लेकर 2 करोड़ 50 लाख के बीच है. ज्यादातर डॉमेस्टिक वर्कर्स, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदायों के हैं.<br />
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<p>[inside]श्रमबल सर्वेक्षण(2017-18) के नये आंकड़ों के विश्लेषण पर आधारित शोध आलेख सर्जिकल स्ट्राइक ऑन एम्पलॉयमेंट: द रिकार्ड ऑफ द फर्स्ट मोदी गवर्नमेंट[/inside] के अनुसार:</p>
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<p>--- साल 2017-18 में ग्रामीण क्षेत्रों के कार्य-योग्य आयु के 25 फीसद पुरुष और 75 फीसद महिलाओं को रोजगार हासिल नहीं था.</p>
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<p>--- साल 2011-12 में रोजगार की दशा पर केंद्रित एनएसएसओ का पिछला सर्वेक्षण हुआ था और साल 2017-18 में हालिया पीरियॉडिक लेबर फोर्स सर्वे. इस अवधि के बीच बेरोजगारी की दशा में नाटकीय बदलाव आये हैं.</p>
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<p>--- अखिल भारतीय स्तर पर देखें तो उक्त अवधि में ग्रामीण क्षेत्रों की कार्य-योग्य आयु वाली आबादी में रोजगार-प्राप्त पुरुषों की संख्या में 6.8 प्रतिशत की कमी आयी है जबकि कार्य-योग्य उम्र की ग्रामीण महिला आबादी में रोजगार प्राप्त महिलाओं की संख्या 11.7 प्रतिशत घटी है.</p>
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<p>--- शहरी क्षेत्रों में कार्य योग्य आबादी में रोजगार प्राप्त पुरुषों की संख्या उक्त अवधि(2011-12 से 2017-18 के बीच) में 4.2 प्रतिशत घटी है जबकि महिलाओं में 1.2 प्रतिशत.</p>
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<p>--- कार्य प्रतिभागिता दर में गिरावट का रुझान नये आंकड़ों में तकरीबन सभी बड़े राज्यों में नजर आ रहा है और यह रुझान ग्रामीण तथा शहरी एवं स्त्री तथा पुरुष कामगारों पर समान रुप से लागू होता है.</p>
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<p>---- देश की सर्वाधिक आबादी वाले 22 राज्यों में कोई भी राज्य ऐसा नहीं जहां कार्य-प्रतिभागिता दर में कमी नहीं आयी हो.</p>
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<p>--- कार्य-योग्य आयु की ग्रामीण महिला आबादी में बेरोजगारों की तादाद में इजाफा विशेष रुप से उल्लेखनीय है. अखिल भारतीय स्तर पर देखें तो साल 2017-18 में कार्य-योग्य उम्र की मात्र एक चौथाई महिलाओं को रोजगार हासिल था.</p>
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<p>---- राज्य स्तर पर यह आंकड़ा और भी ज्यादा खराब स्थिति के संकेत करता है. मिसाल के लिए, साल 2017-18 में बिहार में मात्र 4 फीसद ग्रामीण महिलाओं को रोजगार हासिल हुआ. उत्तरप्रदेश और पंजाब में 15 प्रतिशत से भी कम ग्रामीण महिलाओं(कार्य-योग्य आयु की) को रोजगार हासिल हुआ.</p>
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<p>--- देश की सर्वाधिक आबादी वाले 22 राज्यों में केवल तीन राज्य--- आंध्रप्रदेश, छत्तीसगढ़ तथा हिमाचल प्रदेश ही ऐसे हैं जहां साल 2017-18 में कार्य-योग्य आयु की 50 फीसद से ज्यादा ग्रामीण महिलाओं को रोजगार हासिल हुआ. साल 2011-12 में 22 राज्यों में से 7 राज्यों में 50 प्रतिशत से ज्यादा ग्रामीण महिलाओं को रोजगार हासिल हुआ था.</p>
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<p>---- साल 2011-12 से 2017-18 के बीच कृषि-क्षेत्र में रोजगार पाने वाले पुरुषों की तादाद में 4 प्रतिशत तथा इस क्षेत्र में रोजगार पाने वाली महिलाओं की तादाद में 6 प्रतिशत की कमी आयी है. साल 2017-18 में कृषि-क्षेत्र में 28 प्रतिशत ग्रामीण पुरुषों तथा 13 प्रतिशत ग्रामीण महिलाओं को कृषि-क्षेत्र में रोजगार हासिल हुआ.</p>
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<p>--- उक्त अवधि में निर्माण-कार्य(कंस्ट्रक्शन) के क्षेत्र में रोजगार की स्थिति में भारी तब्दीली आयी है. साल 2004-05 से 2011-12 के बीच निर्माण-कार्य का क्षेत्र रोजगार के विस्तार के लिहाज से प्रमुख क्षेत्र बनकर उभरा. साल 2004-05 से 2011-12 के बीच निर्माण-कार्य के क्षेत्र में रोजगार-प्राप्त लोगों में ग्रामीण पुरुषों की तादाद 3.4 प्रतिशत तथा ग्रामीण महिलाओं की तादाद 1.1 प्रतिशत बढ़ी.</p>
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<p>--- निर्माण-कार्य के क्षेत्र में रोजगार-प्राप्त ग्रामीण आबादी के बढ़ने की प्रमुख वजह रही रोजगार की तलाश में पलायन कर निकले लोगों का किसी अन्य क्षेत्र में रोजगार हासिल ना होना और अंतिम विकल्प के रुप में निर्माण-कार्य के क्षेत्र में गहन परिश्रम और सामाजिक सुरक्षा विहीन काम चुनना.</p>
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<p>--- साल 2011-12 के बाद निर्माण-कार्य के क्षेत्र में उपलब्ध रोजगार में कमी आयी है. साल 2011-12 से 2017-18 के बीच निर्माण-कार्य के क्षेत्र में रोजगार प्राप्त लोगों की तादाद में ग्रामीण पुरुषों की संख्या 0.4 प्रतिशत बढ़ी है जबकि ग्रामीण महिलाओं की तादाद में 0.7 प्रतिशत की कमी आयी है.</p>
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<p>--- दिहाड़ी कामगारों के एतबार से देखें तो ग्रामीण और शहरी तथा स्त्री और पुरुष सरीखे तमाम कामगार-वर्गों के लिए रोजगार के अवसर कम हुए हैं. रोजगार के अवसरों में कुल 3 प्रतिशत की कमी आयी है.</p>
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<p>---- स्वरोजगार प्राप्त लोगों की संख्या में भी कमी के रुझान हैं. साल 2011-12 में स्वरोजगार प्राप्त लोगों की तादाद 20.2 प्रतिशत थी जो साल 2017-18 में घटकर 18.1 प्रतिशत हो गई. </p>
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<p>[inside]स्टेट ऑफ़ वर्किंग इंडिया 2019[/inside] रिपोर्ट (देखने के लिए कृपया <a href="https://im4change.org/docs/431State_of_Working_India_2019_Centre_for_Sustainable_Employment_Azim_Premji_University.pdf">यहाँ क्लिक करें</a>), जिसे सेंटर फॉर सस्टेनेबल एम्प्लॉयमेंट, अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी द्वारा तैयार किया गया है.</p>
<p>• इस रिपोर्ट को 2016 और 2018 के बीच की अवधि में नौकरियों की स्थिति और रोजगार सृजन के लिए कुछ विचारों के साथ प्रस्तुत किया गया है.</p>
<p>• भारत में साल 2019 के शुरुआती कुछ महीने श्रम अर्थशास्त्रियों और सांख्यिकीविदों के लिए असामान्य रूप से घटनाओं से भरपूर रहे हैं. नए साल की शुरुआत में ही रोजगार सृजन को लेकर चल रहे विवाद ने तब एक नया मोड़ ले लिया जब सोमेश झा ने बिजनेस स्टैंडर्ड अखबार में रोजगार पर एक नए राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) की रिपोर्ट का खुलासा कर दिया. सोमेश झा ने नये आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) को लीक कर इसके ’निष्कर्षों की सूचना दी, जिससे पता चला कि 2017-2018 में बेरोजगारी दर 6.1 प्रतिशत तक बढ़ी है, जोकि अबतक सबसे ज्यादा है.</p>
<p>• भारत की श्रम सांख्यिकी प्रणाली में बदलाव किए जा रहे है. राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएस-ईयूएस) द्वारा आयोजित पाँच-वर्षीय रोजगार-बेरोजगारी सर्वेक्षण, जिसे साल 2011-12 में आखरी बार जारी किया गया था, को बंद कर दिया गया है. लेबर ब्यूरो (LB-EUS) द्वारा किए जाने वाले वार्षिक सर्वेक्षण भी बंद कर दिए गए हैं. इस श्रृंखला में अंतिम उपलब्ध सर्वेक्षण 2015 में जारी किया गया है.</p>
<p>• वर्तमान एनडीए सरकार ने पिछले लेबर ब्यूरो सर्वेक्षण (2016-17) के परिणाम और एनएसएसओ द्वारा किए जाने वाले नए आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) के परिणाम जारी नहीं किए हैं. इसी वजह से हमारे पास 2015-16 के बाद राष्ट्रीय प्रतिनिधि घरेलू सर्वेक्षण के आधार पर आधिकारिक रोजगार संख्या उपलब्ध नहीं है.</p>
<p>• आधिकारिक सर्वेक्षण के आंकड़ों की अनुपस्थिति में, इस रिपोर्ट को तैयार करने के लिए 2016 और 2018 के बीच रोजगार की स्थिति को समझने के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था की निगरानी के लिए केंद्र के उपभोक्ता पिरामिड सर्वेक्षण (CMIE-CPDX) से डेटा का उपयोग किया है.</p>
<p>• सीएमआईई-सीपीडीएक्स (CMIE-CPDX) एक राष्ट्रीय प्रतिनिधि सर्वेक्षण है जो लगभग 160,000 घरों और 522,000 व्यक्तियों को शामिल करता है और इसे तीन खंडों में किया जाता है, प्रत्येक में चार महीने होते हैं, जोकि हर साल जनवरी से शुरू होता है. 2016 में इस सर्वेक्षण में एक रोजगार-बेरोजगारी मॉड्यूल जोड़ा गया था.</p>
<p>• सीएमआईई-सीपीडीएक्स (CMIE-CPDX) के विश्लेषण से पता चलता है कि 2016 और 2018 के बीच 50 लाख लोगों की नौकरियां चली गईं. इस सिलसिले की शुरुआत नवंबर 2016 में हुई नोटबंदी से जुड़ी नौकरियों में गिरावट से हुई, हालांकि इन प्रवृत्तियों के आधार पर कोई भी प्रत्यक्ष कारण संबंध स्थापित नहीं किया जा सकता है.</p>
<p>• विश्लेषण से यह भी पता चलता है कि सामान्य रूप से, बेरोजगारी 2011 में तेजी से बढ़ी है. PLFS और CMIE-CPDX दोनों की कुल बेरोजगारी दर 2018 में लगभग 6 प्रतिशत है, जो कि 2000 से 2011 के दशक में दोगुनी थी.</p>
<p>• भारत के बेरोजगार ज्यादातर उच्च शिक्षित और युवा हैं. शहरी महिलाओं में, स्नातक तक पढ़ी कामकाजी उम्र की महिलाएं आबादी का 10 प्रतिशत हैं, लेकिन उनमें से 34 प्रतिशत बेरोजगार हैं. 20-24 वर्ष आयु वर्ग के युवा सबसे अधिक बेरोजगार हैं. उदाहरण के लिए, शहरी पुरुषों में, इस आयु वर्ग के युवा कामकाजी उम्र की आबादी का 13.5 प्रतिशत हैं, लेकिन उनमें से 60 प्रतिशत बेरोजगार हैं.</p>
<p>• उच्च शिक्षितों के बीच बढ़ती बेरोजगारी के अलावा, साल 2016 के बाद कम शिक्षित (और संभावित, अनौपचारिक) श्रमिकों को भी नौकरियों से हाथ धोना पड़ा है और उनके लिए भी से नौकरी के अवसरों में कमी आई है.</p>
<p>• आमतौर पर, पुरुषों की तुलना में महिलाएं बहुत अधिक प्रभावित होती हैं. पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में बेरोजगारी दर ज्यादा है और साथ ही श्रम बल भागीदारी दर भी पुरुषों से कम है.</p>
<p>• 2016 और 2018 के बीच लेबर फोर्स के साथ-साथ वर्क फोर्स के आकार में गिरावट आई है और बेरोजगारी की दर में वृद्धि हुई है, जोकि चिंता का विषय है.</p>
<p>• नीचे दी गई तालिका से, यह देखा जा सकता है कि: <br />
1) हालाँकि WPR, LFPR और UR के स्तर सर्वेक्षणों के बीच काफी भिन्न हैं, फिर भी रुझान समान हैं; <br />
2) सर्वेक्षणों में महिलाओं की तुलना में पुरुषों के स्तर बहुत बेहतर हैं. <br />
3) और एलएफपीआर और डब्ल्यूपीआर मोटे तौर पर सर्वेक्षण में समान हैं, जबकि सर्वेक्षणों में यूआर में अधिक भिन्नता है.</p>
<p><img alt="Table" src="/siteadmin/tinymce/uploaded/Table_7.jpg" /></p>
<p><em><strong>Note:</strong> Labour Force Participation Rate (LFPR, percentage of working age people working or looking for work); Workforce Participation Rate (WPR, percentage of working age people working); and Unemployment Rate (UR, percentage of those in the labour force who are looking for work)</em></p>
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<p>सेंटर फॉर सस्टेनेबल एम्प्लॉयमेंट, अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी द्वारा जारी की गई [inside] स्टेट ऑफ़ वर्किंग इंडिया 2018 [/inside] नामक रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष इस प्रकार हैं (देखने के लिए कृपया <a href="https://im4change.org/docs/577State_of_Working_India_2018.pdf">यहां क्लिक करें</a>):</p>
<p>• 1970 और 1980 के दशक में, जब जीडीपी की वृद्धि दर लगभग 3-4 प्रतिशत थी, तो रोजगार की वृद्धि लगभग 2 प्रतिशत प्रति वर्ष थी. 1990 के दशक से और विशेष रूप से 2000 के दशक में, जीडीपी की वृद्धि 7 प्रतिशत तक बढ़ गई लेकिन रोजगार वृद्धि 1 प्रतिशत या उससे भी कम हो गई है. सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि के मुकाबले रोजगार वृद्धि का अनुपात अब 0.1 प्रतिशत से कम है.</p>
<p>• 2013 और 2015 के दौरान कुल सत्तर लाख रोजगार कम हुए हैं. प्राइवेट स्रोतों से प्राप्त हुए हाल-फिलहाल के आंकड़ों से पता चलता है कि 2015 के बाद भी रोजगारों में गिरावट लगातार जारी है.</p>
<p>• बेरोजगारी की दर कुल मिलाकर 5 प्रतिशत से अधिक है, और युवाओं और उच्च शिक्षितों के लिए 16 प्रतिशत से अधिक है.</p>
<p>• बढ़ती मजदूरी के बावजूद भी श्रमिक, सातवें केंद्रीय वेतन आयोग द्वारा निर्धारित न्यूनतम भत्तों से काफी कम में काम कर रहे हैं. </p>
<p>• जब मुद्रास्फीति के लिए समायोजित किया जाता है, तो अधिकांश क्षेत्रों में मजदूरी की दर 3 प्रतिशत प्रति वर्ष या उससे अधिक हो गई है.</p>
<p>• 2010 और 2015 के बीच, मुद्रास्फीति के लिए समायोजित होने पर मजदूरी में संगठित निर्माण में 2 प्रतिशत प्रति वर्ष, असंगठित विनिर्माण में 4 प्रतिशत, असंगठित सेवाओं में 5 प्रतिशत, और कृषि में 7 प्रतिशत की वृद्धि (आखिरी में 2015 के बाद से बृद्धि बंद हो गई है) हुई है. साल 2000 के बाद से, अपवाद के तौर पर कृषि क्षेत्र को छोड़ दें तो, अधिकांश क्षेत्रों में लगभग 3-4 प्रतिशत की दर से मजदूरी में बढ़ोतरी हुई है. इस दर के हिसाब से असल मजदूरी हर दो दशकों में दोगुनी हो जाती है.</p>
<p>• 82 प्रतिशत पुरुष और 92 प्रतिशत महिला कर्मचारी 10,000 रुपये प्रति महीने से कम कमाते हैं. साल 2015 में, राष्ट्रीय स्तर पर, 67 प्रतिशत परिवारों की मासिक आय 10,000 रुपये थी. जबकि इसके मुकाबले सातवें केंद्रीय वेतन आयोग (सीपीसी) द्वारा अनुशंसित न्यूनतम वेतन 18,000 रुपये प्रति माह है. यहां तक कि संगठित विनिर्माण क्षेत्र में भी 90 प्रतिशत उद्योग न्यूनतम सीपीसी से नीचे मजदूरी का भुगतान करते हैं.</p>
<p>• 1980 के दशक की शुरुआत में, एक करोड़ रुपये की वास्तविक फिक्स्ड कैपिटल (2015 की कीमतों में) से संगठित विनिर्माण क्षेत्र में 90 नौकरियां चलती थीं. 2010 तक, यह आंकड़ा गिरकर 10 रह गया है.</p>
<p>• संगठित निर्माण क्षेत्र में सभी श्रमिकों में 30 प्रतिशत श्रमिक, कॉन्ट्रेक्ट यानी अनुबंधित श्रमिक हैं. 2000 के दशक की शुरुआत से ही कॉन्ट्रेक्ट और मजदूरी के अन्य अनिश्चित तरीकों में बढ़ोतरी देखने को मिली है.</p>
<p>• श्रमिक उत्पादकता, साल 1982 से छह गुना से अधिक हो गई है, लेकिन उत्पादन करने वाले श्रमिकों की वास्तविक मजदूरी में केवल 1.5 गुना बढ़ोतरी हुई है.</p>
<p>• आईटी और आधुनिक रिटेल सहित नए सेवा क्षेत्र में रोजगार 2011 में 11.5 प्रतिशत से बढ़कर 2015 में 15 प्रतिशत हो गया. हालांकि, 50% से अधिक सेवा क्षेत्र का रोजगार अभी भी छोटे कारोबारियों, घरेलू सेवाओं और अन्य प्रकार के छोटे अनौपचारिक क्षेत्र पर टिका है.</p>
<p>• सभी प्रकार के सेवा क्षेत्र में महिला श्रमिकों का 16 प्रतिशत हिस्सा ही कार्यरत है, जबकि 60 प्रतिशत महिलाएं घरेलू श्रमिक हैं. महज 22 प्रतिशत महिलाएं ही उत्पादन (विनिर्माण) क्षेत्र में शामिल हैं.</p>
<p>• महिलाओं को कमाई, पुरुषों की कमाई के 35 से 85 प्रतिशत के बीच होती है, जो काम के प्रकार और उनकी शिक्षा के स्तर पर निर्भर करती है. संगठित निर्माण क्षेत्र में, महिलाओं और पुरुषों की कमाई में साल 2000 के 35 प्रतिशत से साल 2013 में 45 प्रतिशत तक का अंतर कम हो गया है. कमाई की यह असमानता स्वयं-पोषित महिला श्रमिकों में सबसे अधिक है और उच्च शिक्षित और नियमित महिला श्रमिकों में सबसे कम है.</p>
<p>• कई अन्य विकासशील देशों की तुलना में भारत में काम करने वाली महिलाओं का प्रतिशत, जो या तो कार्यरत हैं या काम की तलाश में हैं, का प्रतिशत कम है. उत्तर प्रदेश में प्रत्येक 100 पुरुषों पर केवल 20 महिलाएँ ही किसी भी प्रकार के रोजगार में हैं. यह आंकड़ा तमिलनाडु में 50 और उत्तर-पूर्व में 70 है.</p>
<p>• श्रम बल की भागीदारी दर में पुरुषों के मुकाबले महिलाओं का अनुपात, उत्तर प्रदेश और पंजाब में 0.2 से लेकर तमिलनाडु और आंध्राप्रदेश में 0.5 और उत्तर-पूर्व में मिजोरम और नागालैंड में 0.7 तक काफी अलग-अलग है. क्षेत्रीय अध्ययनों से पता चलता है कि सामाजिक प्रतिबंधों के बजाय उपलब्ध कार्यों की कमी के कारण महिलाएं काम नहीं कर पाती हैं.</p>
<p>• अनुसूचित जाति (एससी) के साथ-साथ अनुसूचित जनजाति (एसटी) समूहों को कम भुगतान वाले व्यवसायों में अधिक कार्य दिया जाता है और उच्च भुगतान वाले व्यवसायों में बहुत कम काम मिलता है, जो स्पष्ट रूप से भारत में जाति-आधारित अलगाव की स्थायी शक्ति को दर्शाता है.</p>
<p>• अनुसूचित जाति (एससी) समुदाय के श्रमिक तथाकथित सवर्ण जाति की आय का केवल 56 प्रतिशत ही अर्जित करते हैं. यह आंकड़ा अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए 55 प्रतिशत और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए 72 प्रतिशत है.</p>
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<p><span style="font-family:�"><em>लेबर ब्यूरो की पांचवी सालाना एम्पलॉयमेंट-अनएम्पलॉयमेंट सर्वे(2015-16), खंड-1 साल 2015 के अप्रैल से दिसंबर के बीच हुए सर्वेक्षण पर आधारित है. सर्वेक्षण के लिए नमूने के रुप में 1,56,563 घरों का चयन ग्रामीण इलाके से तथा 67,780 घरों का चयन शहरी इलाके से हुआ. </em></span></p>
<p><span style="font-family:�"><em>सर्वेक्षण में 7,81,793 व्यक्तियों का साक्षात्कार लिया गया जिसमें 4,48,254 व्यक्ति ग्रामीण घरों से तथा 3,33,539 व्यक्ति शहरी घरों से थे.</em></span></p>
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<p><span style="font-family:�"><strong>[inside]लेबर ब्यूरो(चंडीगढ़) के पांचवें सालाना एम्पलॉयमेंट-अनएम्पलॉयमेंट सर्वे(2015-16) के खंड-1( सितंबर 2016 में जारी) के मुख्य तथ्य[/inside]</strong> :<em> </em></span><a href="tinymce/uploaded/Report%20on%205th%20Annual%20Employment%20Unemployment%20Survey%202015-16.pdf" target="_blank">Click here</a></p>
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<p><span style="font-family:�"><em>• अगर यूपीएस(यूजअल प्रिन्सपल स्टेटस्) को आधार बनायें तो राष्ट्रीय स्तर पर बेरोजगारी की दर 5.0 प्रतिशत है. ग्रामीण इलाकों के लिए बेरोजगारी दर 5.1 प्रतिशत है जबकि शहरी इलाकों के लिए 4.9 प्रतिशत.</em></span></p>
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<p><span style="font-family:�"><em>• राष्ट्रीय स्तर पर महिला कामगारों में बेरोजगारी की दर 8.7 प्रतिशत है जबकि पुरुषों के लिए यह आंकड़ा 4.0 प्रतिशत का है.</em></span></p>
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<p><span style="font-family:�"><em>• राष्ट्रीय स्तर पर श्रमबल प्रतिभागिता दर (लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट-एलएफपीआर) 50.3 प्रतिशत है. </em></span></p>
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<p><span style="font-family:�"><em>•ग्रामीण इलाकों में एलएफपीआर 53 प्रतिशत है जबकि शहरी इलाकों के लिए यह आंकड़ा 43.5 प्रतिशत का है.</em></span></p>
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<p><span style="font-family:�"><em>• भारत में महिला कामगारों के लिए एलएफपीआर राष्ट्रीय स्तर पर 23.7 प्रतिशत है जबकि पुरुष कामगारों के लिए 48 प्रतिशत जबकि ट्रांसजेंडर के लिए 48 प्रतिशत.</em></span></p>
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<p><span style="font-family:�"><em>• यूपीएस पद्धति को आधार बनाते बनायें तो राष्ट्रीय स्तर पर वर्कर्स पॉपुलेशन रेशियो(डब्ल्यूपीआर) के 47.8 प्रतिशत होने के अनुमान हैं. </em></span></p>
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<p><span style="font-family:�"><em>• ग्रामीण इलाकों में डब्ल्यूपीआर के 50.4 प्रतिशत होने के अनुमान हैं जबकि शहरी इलाकों के लिए यह आंकड़ा 41.4 प्रतिशत का है.</em></span></p>
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<p><span style="font-family:�"><em>• महिला कामगारों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर डब्ल्यूपीआर 21.7 प्रतिशत है जबकि पुरुष कामगारों के लिए 72.1 प्रतिशत तथा ट्रांसजेंडर के लिए 45.9 प्रतिशत.</em></span></p>
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<p><span style="font-family:�"><em>• चाहे यूपीएस पद्धति को आधार बनायें या फिर यूपीपीएस(यूजअल प्रिन्सिपल एंड सब्सिडरी स्टेटस्) को रोजगार-प्राप्त लोगों में सर्वाधिक संख्या स्वरोजगार की श्रेणी में लगे कामगारों की है. </em></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-family:�"><em>• भारत में 46.6 प्रतिशत कामगार जीविका के लिए स्वरोजगार की श्रेणी में लगे हैं, अनियत कालिक रोजगार में लगे कामगारों की तादाद 32.8 प्रतिशत है जबकि 17 फीसद कामगार नियमित वेतन वाले रोजगार की श्रेणी में लगे हैं. शेष 3.7 प्रतिशत कामगार अनुबंध आधारित कामगार की श्रेणी में हैं.</em></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-family:�"><em>• राष्ट्रीय स्तर पर देखें तो 46.1 प्रतिशत कामगार कृषि, वानिकी तथा मत्स्यपालन के क्षेत्र में कार्यरत हैं. यह अर्थव्यवस्था का प्राथमिक क्षेत्र कहलाता है. द्वितीयक( विनिर्माण) क्षेत्र में 21.8 प्रतिशत तथा तृतीयक क्षेत्र(सेवा) में 32 प्रतिशत कामगारों को रोजगार हासिल है. </em></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-family:�"><em>• भारत में स्वरोजगार में लगे 67.5 प्रतिशत कामगारों की औसत मासिक आमदनी 7500 रुपये से ज्यादा नहीं है. स्वरोजगार में लगे केवल 0.1 प्रतिशत कामगारों की आमदनी 1 लाख रुपये से ज्यादा है.</em></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-family:�"><em>• इसी तरह नियमित वेतन/पारिश्रमिक पाने वाले 57.2 प्रतिशत कामगारों की औसत मासिक आमदनी 10 हजार रुपये से ज्यादा नहीं है. राष्ट्रीय स्तर पर देखें तो 38.5 प्रतिशत अनुबंधित श्रेणी के कामगार तथा 59.3 प्रतिशत अनियतकालिक कामगारों की औसत मासिक आमदनी मात्र 5000 रुपये तक सीमित है.</em></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-family:�"><em>• भारत में ज्यादातर बेरोजगार व्यक्ति जीविका पाने के लिए एक से ज्यादा तरीके अपनाते हैं, जैसे दोस्तों और रिश्तेदारों से संपर्क साधना(24.1 प्रतिशत) तथा नौकरी के विज्ञापन के बरक्स आवेदन करना(23.7 प्रतिशत) और एम्पलॉयमेंट एक्सचेंज का सहारा लेना(4.3 प्रतिशत).</em></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-family:�"><em>• देशस्तर पर देखें तो बीए स्तर की शिक्षा प्राप्त 58.3 प्रतिशत तथा एमए स्तर तक की शिक्षा प्राप्त 62.4 प्रतिशत बेरोजगारों का कहना है उनकी शिक्षा या अनुभव के स्तर के लायक काम मौजूद नहीं है और यही उनकी बेरोजगारी का प्रधान कारण है. बीए स्तर की शिक्षा प्राप्त 22.8 प्रतिशत तथा एमए स्तर की शिक्षा प्राप्त 21.5 प्रतिशत बेरोजगारों का कहना था कि पारिश्रमिक कम होना उनकी बेरोजगारी का प्रधान कारण है.</em></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-family:�"><em>• भारत में नियमित वेतन वाले 64.9 प्रतिशत कामगार तथा 95.3 प्रतिशत अनियतकालिक कामगार बिना किसी लिखित करार के जीविकोपार्जन में लगे हैं. नियमित वेतन वाले तकरीबन 27 प्रतिशत कामगार तथा अनुबंधित श्रेणी में आने वाले तकरीबन 11.5 प्रतिशत कामगार तीन साल या इससे अधिक अवधि के लिखित करार पर जीविकापार्जन में लगे हैं. </em></span></p>
<p><span style="font-size:undefined"><em>**page**</em></span></p>
<p><strong>राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के 68 वें दौर के आकलन पर आधारित [inside]एम्पलॉयमेंट एंड अनएम्पलॉमेंट सिचुएशन अमांग सोशल ग्रुप्स इन इंडिया(प्रकाशित जनवरी 2015)[/inside] नामक दस्तावेज के अनुसार-</strong></p>
<p> </p>
<p><span style="font-size:undefined">- भारत में करीब 68.8 प्रतिशत परिवार ग्रामीण क्षेत्रों से थे जो कुल जनसंख्या का करीब 71.2 प्रतिशत है।</span></p>
<p><br />
<br />
<span style="font-size:undefined">-- देश में करीब 8.8 प्रतिशत परिवार अनुसूचित जनजाति के थे। अनुसूचित जाति के परिवारों की संख्या करीब 18.7 प्रतिशत और अन्य पिछड़ी जातियों के परिवारों की संख्या 43.1 प्रतिशत है।</span><br />
</p>
<p><span style="font-size:undefined">-- ग्रामीण भारत में वैसा परिवार जिसके आय का प्रमुख स्रोत स्वरोजगार था, यह अन्य वर्ग में सबसे अधिक(58.4 प्रतिशत) था। इसके बाद अति पिछड़ा वर्ग(52.9 प्रतिशत), अनुसूचित जनजाति(49.5 प्रतिशत) तथा अनुसूचित जाति(33.7 प्रतिशत) परिवारों का स्थान है।</span><br />
</p>
<p><span style="font-size:undefined">--ग्रामीण भारत में, उन परिवारों का अनुपात जिनकी आमदनी का प्रमुख स्रोत आकस्मिक श्रम(दिहाड़ी) है, सबसे ज्यादा अनुसूचित जाति(52.6प्रतिशत) है। अनुसूचित जनजाति के बीच ऐसे परिवारों का अनुपात 38.3 प्रतिशत है जबकि अतिपिछड़ा वर्ग में 32.1 प्रतिशत। अन्य श्रेणी में शामिल 21 प्रतिशत परिवार आय अर्जन के प्रमुख स्रोत के रुप में आकस्मिक श्रम पर आश्रित हैं।</span><br />
</p>
<p><span style="font-size:undefined">-- अन्य की श्रेणी में शामिल देश के केवल 13.3 प्रतिशत ग्रामीण परिवार ही आय-अर्जन के प्रमुख स्रोत के रुप में नियमित वेतन पर आश्रित हैं। अनुसूचित जनजाति के ऐसे परिवारों की संख्या ग्रामीण इलाकों में 6.3 प्रतिशत तथा अनुसूचित जाति के ऐसे परिवारों की संख्या 8.5 प्रतिशत है। आमदनी के प्रमुख स्रोत के रुप में नियमित वेतन पर आश्रित अति पिछड़ा वर्ग के ग्रामीण परिवारों की संख्या 37.6 प्रतिशत है।</span><br />
</p>
<p><span style="font-size:undefined">-- देश के ग्रामीण अंचल में अति पिछड़ा वर्ग के 3.2 प्रतिशत परिवारों के पास धारित भूमि का आकार 4.01 हैक्टेयर या उससे अधिक है। अनुसूचित जनजाति के करीब 1.8 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों के पास कुल धारित भूमि 4.01 हैक्टेयर या उससे अधिक है जबकि अनुसूचित जाति के ऐसे परिवारों की संख्या केवल 0.8 प्रतिशत है।</span><br />
</p>
<p><span style="font-size:undefined">-- देश के ग्रामीण अंचलों में अनुसूचित जनजाति के 57.2 प्रतिशत तथा अनुसूचित जाति के 50 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों के पास मनरेगा जॉबकार्ड हैं। </span><br />
</p>
<p><span style="font-size:undefined">-- मनरेगा जॉबकार्ड वाले ग्रामीण ओबीसी परिवारों की संख्या 34.2 प्रतिशत है जबकि अन्य की श्रेणी में शामिल मनरेगा जॉबकार्ड वाले परिवारों की संख्या एसटी-एससी समुदायों की तुलना में तकरीबन दोगुनी से कम(27.1 प्रतिशत) है।</span></p>
<p> </p>
<p>**page**</p>
<p> </p>
<p>नेशनल सैंपल सर्वे के 66 वें दौर की गणना पर आधारित [inside]स्टेटस ऑव एजुकेशन एंड वोकेशनल ट्रेनिंग इन इंडिया-एनएसएसओ[/inside] नामक दस्तावेज के कुछ तथ्य-<br />
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<p><a href="%5C%22http://mospi.nic.in/Mospi_New/upload/nss_report_551.pdf%5C%22">http://mospi.nic.in/Mospi_New/upload/nss_report_551.pdf</a></p>
<p><br />
यह रिपोर्ट जुलाई 2009 से जून 2010 के दौरान संचालित एनएसएस के 66 वें दौर में रोजगार में बेरोजगारी की स्थिति पर किए गए आठवें पंचवार्षिक सर्वेक्षण पर आधारित है। सर्वेक्षण के अंतर्गत 7402 गांवों और 5252 नगरीय प्रखंडों के 100957 परिवारों( ग्रामीण क्षेत्र के 59129 और नगरीय क्षेत्र के 41828)का अवलोकन करके आंकड़े एकत्र किए गए। रिपोर्ट की कुछ मुख्य बातें निम्नलिखित हैं-<br />
<br />
- तकरीबन 70 फीसदी परिवार ग्रामीण इलाके में बसते हैं यानि देश की जनसंख्या का 73 फीसदी हिस्सा ग्रामीण इलाके में है।<br />
<br />
- ग्रामीण इलाके में परिवार का औसत आकार 4.6 व्यक्तियों का है जबकि शहरी इलाके में 4.1 व्यक्तियों का। साल 2009-10 के दौरान भारतीय परिवारों में लिंग अनुपात औसतन 936 का था। प्रतिहजार पुरुषों पर ग्रामीण इलाके में महिलाओं की संख्या 947 थी जबकि शहरों में 909।<br />
<br />
- साल 2009-10 के दौरान तकरीबन 52 फीसदी ग्रामीण परिवार स्वरोजगार में लगे थे जबकि 39 फीसदी ग्रामीण परिवार आमदनी के लिए मजदूरी पर निर्भर थे। शहरी इलाके में केवल 39 फीसदी परिवार ऐसे थे जिन्हें नियमित रोजगार के तौर पर आमदनी का स्थायी जरिया हासिल था, जबकि 41 फीसदी परिवार आमदनी के लिए स्वरोजगार पर निर्भर थे।<br />
<br />
- ग्रामीण क्षेत्रों के करीब 20 प्रतिशत और नगरीय क्षेत्र के करीब 6 प्रतिशत परिवारों में 15 वर्ष एवं उससे अधिक आयु वाला कोई भी सदस्य ऐसा नहीं था जो समझदारी के साथ एक साधारण संदेश को लिख या पढ़ सके।<br />
<br />
- 15 वर्ष और उससे अधिक उम्र की महिलाओं के मामले में देखा गया कि ग्रामीण परिवारों के करीब 40 प्रतिशत और नगरीय परिवारों की करीब 15 प्रतिशत महिलायें साक्षर नहीं थीं।<br />
<br />
- वैसे ग्रामीण परिवार जिनमें 15 वर्ष या इससे अधिक उम्र का कोई भी व्यक्ति साक्षर नहीं था, सबसे कम तादाद में केरल(1 फ्रतिशत) में पाये गए जबकि झारखंड में ऐसे परिवारों की तादाद 35 फीसदी थी। नगरीय क्षेत्रों में एक बार फिर से ऐसे परिवारों की सबसे कम तादाद केरल(0.4 फ्रतिशत) में थी जबकि बिहार के नगरीय क्षेत्रों में ऐसे परिवारों की संख्या 15 प्रतिशत पायी गई।<br />
<br />
- भारत में साल 2009-10 के दौरान ग्रामीण इलाकों में साक्षरता केरल में सबसे अधिक(87फीसदी) थी जबकि बिहार के ग्रामीण इलाकों में सबसे कम(53 फीसदी)। दूसरी तरफ प्रमुख राज्यों के नगरीय क्षेत्रों में यह साक्षरता जिन राज्यों में सर्वाधिक थी उनके नाम हैं- करेल, असम और हिमाचल( प्रत्येक में 88 प्रतिशत) उत्तरप्रदेश के नगरीय इलाकों में यह साक्षरता सबसे कम यानि 70 प्रतिशत पायी गई।<br />
<br />
- 15 वर्ष और उससे अधिक आयु वाले व्यक्तियों में केवल 2 फीसदी के पास तकनीकी डिग्री, डिप्लोमा या सर्टिफिकेट थे। यह अनुपात ग्रामीण क्षेत्रों में केवल 1 प्रतिशत एवं नगरीय क्षेत्रों में 5 प्रतिशत था।<br />
<br />
- 5 से 29 वर्ष की आयु-वर्ग के व्यक्तियों में शैक्षिक संस्था में वर्तमान उपस्थिति करीब 54 प्रतिशत था। पुरुषों में यह आंकड़ा 58 प्रतिशत है जबकि महिलाओं में 50 फीसदी।<br />
<br />
- ग्रामीण पुरुषों में(5-29 वर्ष) जो वर्तमान में उपस्थिति नहीं दे रहे थे लेकिन कभी किसी शैक्षिक संस्था में उपस्थित हुए थे,करीब 62 फीसदी ने बताया कि शैक्षिक संस्था में उनकी मौजूदा अनुपस्थिति का कारण परिवार के लिए अनुपूरक आमदनी जुटाना है। इस मामले में नगरीय क्षेत्र में ऐसा कहने वाले पुरुषों की संख्या 66 फीसदी थी।<br />
<br />
- जहां तक ग्रामीण महिलाओं का सवाल है,46 फीसदी महिलाओं ने कहा कि घरेलू कार्य की बाध्यता के कारण अब उनका शैक्षिक संस्था में जाना संभव नहीं होता, लेकिन वे पहले जरुर किसी ना किसी शैक्षिक संस्था मे गई थीं। नगरीय क्षेत्र में ऐसा कहने वाली महिलाएं 47 प्रतिशत थीं।<br />
<br />
- 15-29 वर्ष के व्यक्तियों में करीब 2 प्रतिशत ने औपचारिक व्यावसायिक प्रशिक्षण प्राप्त करने की रिपोर्ट दरज की जबकि अन्य 5 प्रतिशत ने गैर-औपचारिक व्यावसायिक प्रशिक्षण प्राप्त करने की रिपोर्ट दर्ज करवायी।<br />
<br />
- 15-29 आयु वर्ग में उन व्यक्तियों का अनुपात जिन्होंने औपचारिक व्यावसायिक प्रशिक्षण प्राप्त किया , बेरोजगारों में सर्वाधिक था। नौकरी पाने वालों में ऐसे व्यक्तियों का अनुपात 2 फीसदी पाया गया जबकि बेरोजगारों में 12 प्रतिशत।<br />
<br />
- 15-29 वर्ष के आयुवर्ग के व्यक्तियों में जिन्होंने औपचारिक व्यावसायिक प्रशिक्षण प्राप्त किया था सबसे अधिक मांग वाला प्रशिक्षण का क्षेत्र कंप्यूटर ट्रेडस् था और 26 फीसदी ने ऐसा प्रशिक्षण प्राप्त किया था।<br />
<br />
- ग्रामीण पुरुषों में प्रशिक्षण की सर्वाधिक मांग ड्राइविंग और मोटर मैकेनिक के क्षेत्र(18 फीसदी) रही। ग्रामीण इलाके में इसके बाद प्रशिक्षण की सर्वाधिक मांग कंप्यूटर ट्रेडस्(17) फीसदी रही। शहरी क्षेत्र में प्रशिक्षण की सर्वाधिक मांग वाला क्षेत्र कंप्यूटर ट्रेडस् (30 फीसदी) रहा जबकि इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रानिक इंजीनियरिंग में प्रशिक्षण का क्षेत्र मांग के मामले में दूसरे नंबर(19 फीसदी) पर रहा।<br />
<br />
• ग्रामीण इलाके की महिलाओं में प्रशिक्षण की सर्वाधिक मांग का क्षेत्र टैक्सटाईल(26 फीसदी) से संबंधित रहा। कंप्यूटर ट्रेडस की मांग 18 फीसदी रही जबकि स्वास्थ्य और इससे जुड़े देखभाल के कामों में प्रशिक्षण से संबंधित मांग का स्थान तीसरा(14 फीसदी) रहा। इसकी तुलना में शहरी क्षेत्र में महिलाओं के बीच प्रशिक्षण के मामले में सर्वाधिक मांग कंप्यूटर ट्रेडस्(32 प्रतिशत) की रही।</p>
<p> </p>
<p> </p>
<p> **page**</p>
<p>अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन(आईएलओ) द्वारा जारी [inside] ग्लोबल एम्पलॉयमेंट ट्रेन्डस्- रिकवरिंग फ्राम सेकेंड जॉब डिप [/inside] नामक दस्तावेज के अनुसार</p>
<p><a href="%5C%22http://www.ilo.org/wcmsp5/groups/public/---dgreports/---dcomm/---publ/documents/publication/wcms_202326.pdf%5C%22">http://www.ilo.org/wcmsp5/groups/public/---dgreports/---dcomm/---publ/documents/publication/wcms_202326.pdf</a></p>
<p> </p>
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<![endif]-->• वैश्विक वित्तीय संकट के पांचवें साल में, विश्वस्तर पर अर्थव्यवस्था की वृद्धि-दर में कमी आई है और एक बार फिर से बेरोजगारी बढ़ रही है। साल 2012 में विश्वस्तर पर 19 करोड़ 70 लाख लोग बेरोजगार थे। इसके अतिरिक्त इसी साल तकरीबन 3 करोड़ 90 लाख लोग श्रम-बाजार से बाहर हुए क्योंकि पहले की तुलना में नौकरियां कम हो गईं।</p>
<p>• अनुमान है कि बेरोजगारी की दर अगले दो सालों में बढ़ेगी, साल 2013 में बेरोजगारों की संख्या में वैश्विक स्तर पर 51 लाख का इजाफा होगा और इस संख्या में 2014 में 30 लाख बेरोजागार और जुड़ जायेंगे।</p>
<p>• साल 2012 में बेरोजगारों की संख्या में हुई वृद्धि का एक चौथाई विकसित अर्थव्यवस्थाओं में केंद्रित रहा जबकि तीन चौथाई विश्व के अन्य क्षेत्रों में। पूर्वी एशिया, दक्षिण एशिया और उप-सहारीय अफ्रीका सबसे ज्यादा बेरोजगारी प्रभावित इलाके रहे।.</p>
<p>• भारत की विकास दर 4.9 फीसदी पर पहुंच गई जो पिछले एक दशक में सबसे कम विकास दर है( यह आईएलओ का आकलन है, भारत सरकार का आकलन 2012 के लिए 5.9 फीसदी की विकासदर का है)। पूरे दक्षिण एशियाई क्षेत्र में जीडीपी की वृद्धि-दर में 1.6 फीसदी की गिरावट आई है।</p>
<p>• भारत में, निवेश में हुई वृद्धि का योगदान साल 2012 में जीडीपी की वृद्धि में 1.5 फीसदी रहा जो साल 2012 की तुलना में 1.8 फीसदी कम है। इसी तरह साल 2012 में जीडीपी की वृद्धि में उपभोग का योगदान 2.8 फीसदी रहा जबकि साल 2011 में यह 3.2 फीसदी था।</p>
<p>• विश्व की चुनिन्दा बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में भारत ही एकमात्र देश है जहां साल 2012 में मुद्रास्फीति बढ़ी है, जबकि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में 10 फीसदी की बढोतरी हुई है। साल 2011 में यह बढोत्तरी 9 फीसदी की थी।</p>
<p>• जैसा कि ग्लोबल एम्पलॉयमेंट ट्रेन्डस् 2012 रिपोर्ट में कहा गया है, साल 2000 के दशक में दक्षिण एशिया में तेज आर्थिक वृद्धि हुई है लेकिन यह वृद्धि श्रम की उत्पादकता में बढोत्तरी का परिणाम है ना कि नौकरियों की संख्या में हुई वृद्धि का। इस परिघटना को जॉबलेस ग्रोथ यानि बिना नौकरी के विकास की संज्ञा दी जाती है और परिघटना सबसे ज्यादा भारत में दीखती है।</p>
<p>• युवाओं के बीच सर्वाधिक बेरोजगारी मालदीव में पायी गई है। साल 2006 में इसकी दर मालदीव में 22.2 फीसदी थी जबकि भारत में यही आंकड़ा साल 2010 के लिए 10 फीसदी से ज्यादा का है।</p>
<p>• भारत में साल 2004-05 से 2009-10 के बीच कुल रोजगार की संख्या में महज 27 लाख की बढ़त हुई जबकि इसके पीछे के पाँच सालों(1999-2000 से 2004-05 के बीच) रोजगार की संख्या में इजाफा 6 करोड़ का हुआ था।</p>
<p>• विश्व के अनेक क्षेत्रों के समान आर्थिक-वृद्धि दक्षिण एशिया में भी अर्थव्यवस्था के संगठित क्षेत्र में बेहतर नौकरियां सृजित कर पाने में नाकाम रही है। यह बात सबसे ज्यादा भारत में दीखती है। साल 1999-2000 में भारत में संगठित क्षेत्र का योगदान नौकरियों में 9 फीसदी का था जो साल 2009-10 में घटकर 7 फीसदी हो गया, जबकि ये साल सर्वाधिक तेज आर्थिक-वृद्धि के साल माने जाते हैं।</p>
<p>• उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार भारत में असंगठित क्षेत्र (कृषि-एतर) में कामगारों की 83.6 फीसदी तादाद है(साल 2009-10) जबकि पाकिस्तान में यह तादाद इसी अवधि के लिए 78.4 फीसदी तथा श्रीलंका में 62.1 फीसदी है।</p>
<p>• दक्षिण एशिया में संरचनागत बदलाव की प्रक्रिया चल पड़ी है लेकिन इसका दायरा और दिशा अभी दोनों अनिश्चित हैं। खात तौर पर यह बात अभी अनिश्चित है कि क्या विनिर्माण का क्षेत्र(मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर) भारत जैसे देशों में उस तादाद को खपा सकेगा जो फिलहाल नौकरी की तलाश में हैं।मिसाल के लिए भारत में साल 2009-10 में कामगारों की तादाद महज 11 फीसदी थी और एक दशक पहले की स्थिति से तुलना करने पर इसे ऊँचा नहीं माना जा सकता।</p>
<p>• भारत में अब भी रोजगार देने के मामले में खेती का योगदान बहुत बड़ा है। साल 2010 में देश के कामगारों का 51.1 फीसदी को खेती से रोजगार हासिल था। नेपाल में साल 2001 के लिए यही आंकड़ा 65.7 फीसदी का था। इसके विपरीत मालदीव में रोजगार में सेवाक्षेत्र का योगदान साल 2006 में सर्वाधिक(60 फीसदी) था जबकि श्रीलंका में साल 2010 में सेवाक्षेत्र का योगदान रोजगार देने के मामले में 40.4 फीसदी का रहा।</p>
<p>• भारत जैसे देश में रोजगार-वृद्धि की दर कम रहने का एक बड़ा कारण महिला कार्यशक्ति की प्रतिभागिता दर का कम होना है। भारत में महिला कार्यशक्ति की प्रतिभागिता साल साल 2004-05 में 37.3 फीसदी थी जो साल 2009-10 में घटकर 29.0 फीसदी पर आ गई।</p>
<p>• भारत में उच्चकौशल के कामगारों के बीच बेरोजगारी ज्यादा है। डिप्लोमाधारी भारतीय पुरुषों के बीच साल 2009-10 में बेरोजगारी 18.9 फीसदी थी तो ऐसी महिलाओं के बीच 34.5 फीसदी। बहरहाल जिन लोगों ने प्रौद्योगिकी-उन्मुख शिक्षा हासिल की है उनके बीच बेरोजगारी की दर इससे कम है।</p>
<p>• इसके अतिरिक्त भारत में बेरोजगारी का एक पक्ष यह भी है कि काम की प्रकृति से रोजागार तलाश करने वाले लोगों के कौशल का मेल नहीं हो पा रहा और इस कारण नियोक्ताओं को खाली पदों पर नियुक्ति करने में कठिनाई हो रही है। साल 2011 में प्रकाशित मैनपॉवर टैलेंट शार्टेज सर्वे के अनुसार तकरीबन 67 फीसदी नियोक्ताओं का कहना था कि उन्हें खाली पदों को भरने के लिए योग्य लोग नहीं मिल रहे।</p>
<p>• युवाओं के बीच सर्वाधिक बेरोजगारी मालदीव में पायी गई है। साल 2006 में इसकी दर मालदीव में 22.2 फीसदी थी जबकि भारत में यही आंकड़ा साल 2010 के लिए 10 फीसदी से ज्यादा का है।</p>
<p> </p>
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<p> </p>
<p>नेशनल सैम्पल सर्वे द्वारा जारी(24 जून,2011) [inside]की इंडीकेटर्स् ऑव एम्पलॉयमेंट एंड अन-इम्पलॉयमेंट इन इंडिया-2009-10[/inside] नामक दस्तावेज से संबंधित (प्रेस विज्ञप्ति) के अनुसार-</p>
<p><a href="%5C%22http://mospi.nic.in/Mospi_New/upload/Press_Note_KI_E&UE_66th_English.pdf%5C%22" target="\">http://mospi.nic.in/Mospi_New/upload/Press_Note_KI_E&UE_66th_English.pdf</a>:</p>
<p> </p>
<p>सर्वे के 66 वें दौर से प्राप्त भारत में रोजगार और बेरोजगारी की सूरते हाल से संबंधित ये आंकड़े कुल 1,00,957 परिवारों के आकलन पर आधारित हैं। इनमें से 59,129 परिवार ग्रामीण क्षेत्र के हैं और 41,828 परिवार शहरी क्षेत्र के। गांवों(कुल 7,402 ) और शहरी प्रखंडों (कुल 5,252) का चयन देश के सभी प्रदेशों और केद्रशासित क्षेत्रों को मिलाकर किया गया। इस आकलन में जिन क्षेत्रों को छोड़ा गया है उसका ब्यौरा है-(i) बस-रुट से पाँच किलोमीटर दूर पड़ने वाले नगालैंड के गांव (ii) वर्षभर यातायात के लिहाज से सुगम ना रहने वाले अंडमान निकोबार के कुछ गांव (iii) लेह, करगिल और जम्मू-कश्मीर का पूंछ जिला।</p>
<p> </p>
<p> </p>
<p>• राष्ट्रीय स्तर पर, कामगारों की सकल संख्या में 51 फीसदी तादाद स्वरोजगार में लगे लोगों की है। तकरीबन 33.5 फीसदी तादाद दिहाड़ी मजदूरी करने वालों की और 15.6 फीसदी तादाद नियमित मजदूरी या वेतन पाने वालों की है।</p>
<p> </p>
<p>• ग्रामीण क्षेत्र के कामगारों में 54.2 फीसदी तादाद स्वरोजगार में लगे लोगों की है। तकरीबन 38.6 फीसदी लोग दिहाड़ी मजदूर की श्रेणी में हैं और 7.3 कामगार नियमित मजदूरी या वेतन पाने वाले हैं।.</p>
<p> </p>
<p>• शहरी क्षेत्र के कामगारो में 41.1 फीसदी तादाद स्वरोजगार में लगे लोगों की है, 17.5 फीसदी दिहाड़ी मजदूर हैं और नियमित मजदूरी या वेतन पाने वाले कामगारों की संख्या 41.4 फीसदी है।</p>
<p> </p>
<p>2. उद्योगवार कामगारों की तादाद</p>
<p> </p>
<p>• ग्रामीण क्षेत्रों में तकरीबन 63 फीसदी पुरुष कामगार कृषिक्षेत्र में कार्यरत हैं जबकि अर्थव्यवस्था के द्वितीयत और तृतीयक क्षेत्र में लगे कामगारों की तादाद क्रमश 19 फीसदी और 18 फीसदी है। महिला कामगारों की भारी संख्या कृषि-क्षेत्र में कार्यरत है। कृषिक्षेत्र में कार्यरत महिला कामगारों की संख्या 79 फीसदी है जबकि अर्थव्यवस्था के द्वतीयत और तृतीयक क्षेत्र में कार्यरत महिला कामगारों की संख्या क्रमश 13 फीसदी और 8 फीसदी है।</p>
<p> </p>
<p>• शहरी क्षेत्रों में यह तस्वीर एकदम अलग है। अर्थव्यवस्था के तृतीयक क्षेत्र में तकरीबन 59 फीसदी स्त्री-पुरुष कामगार कार्यरत हैं जबकि द्वितीयक क्षेत्र में कार्यरत पुरुषों की तादाद 35 फीसदी और महिलाओं की 33 फीसदी है। शहरी श्रमशक्ति की कृषिक्षेत्र में हिस्सेदारी पुरुषों के मामले में 6 फीसदी और स्त्रियों के मामले में 14 फीसदी है।</p>
<p> </p>
<p>3.दिहाड़ी मजदूरों और नियमित पारिश्रमिक वाले कामगारों की पारिश्रमिक-दर(वेजरेट)</p>
<p> </p>
<p>• नियमित पारिश्रमिक या वेतन पाने वाले कामगारों के संबंध में- शहरी क्षेत्र में औसत पारिश्रमिक दर. 365 रुपये प्रतिदिन और ग्रामीण क्षेत्रों में. 232 रुपये प्रतिदिन है। ग्रामीण क्षेत्र में इस श्रेणी के पुरुष कामगारों के लिए प्रतिदिन औसत पारिश्रमिक. 249 रुपये और महिलाओं के लिए 156 रुपये पायी गई।इस तरह स्त्री-पुरुष कामगारों के पारिश्रमिक दर में अन्तर 0.63 अंकों का है।. शहरी क्षेत्र में इस श्रेणी के पुरुष कामगारों के लिए प्रतिदिन औसत पारिश्रमिक. 377 रुपये और महिलाओं के लिए 309 रुपये पायी गई।इस तरह स्त्री-पुरुष कामगारों के पारिश्रमिक दर में अन्तर 0.82 अंको का है।</p>
<p> </p>
<p>• दिहाड़ी मजदूरों के संबंध में- ग्रामीण क्षेत्र में इस श्रेणी के कामगारों के लिए प्रतिदिन पारिश्रमिक की दर ( सरकारी काम को छोड़कर) 93 रुपये पायी गई जबकि शहरी क्षेत्र में 122 रुपये। ग्रामीण क्षेत्रों में दिहाड़ी मजदूरी के काम में लगे पुरुष मजदूर को प्रतिदिन औसतन 102 रुपये के हिसाब से काम मिला जबकि महिला श्रमिक को. 69 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से।शहरी क्षेत्र में पुरुष श्रमिक को दिहाड़ी. 132 रुपये प्रतिदिन और महिला को. 77 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से हासिल हुई।.</p>
<p> </p>
<p>• ग्रामीण क्षेत्र में दिहाड़ी मजदूरी करने वाले पुरुष श्रमिक को सरकारी काम में मजदूरी (मनरेगा के अन्तर्गत मिलने वाले काम छोड़कर) औसतन. 98 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से मिली जबकि महिला को 86 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से। मनरेगा के अन्तर्गत मिलने वाले काम में मजदूरी का भुगतान पुरुष श्रमिक के लिए 91 रुपये प्रतिदिन और महिला श्रमिक के लिए 87 रुपये प्रतिदिन की पायी गई।</p>
<p> </p>
<!--
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<p><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण यानी [inside]नेशनल सैंपल सर्वे की भारत में रोजगार और बेरोजगारी की स्थिति पर केंद्रित ६२ वें दौर की गणना[/inside] के अनुसार</span></span><span style="font-size:undefined">-</span></p>
<ul>
<li><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">साल १९९३</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">९४ से तुलना करें तो एक दशक बाद यानी २००५</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">०६ में बेरोजगारी की दर में प्रतिशत पैमाने पर एक अंक की बढो़त्तरी हुई।शहरी इलाके में रोजगारयाफ्ता महिलाओं के मामले में स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया।</span></span></li>
<li><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">ग्रामीण इलाके में साल २००४</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">०५ और २००५</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">०६ के बीच वर्क पार्टिसिपेशन रेट</span></span><span style="font-size:undefined">,</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">पुरूषों के मामले में ५५ फीसदी पर स्थिर रहा जबकि महिलाओं के मामले में इसमें प्रतिशत पैमाने पर २ अंको की कमी आयी।एक साल के अंदर महिलाओं के मामले में वर्क पार्टिसिपेशन रेट ३३ फीसदी से घटकर ३१ फीसदी पर आ गया।</span></span></li>
<li><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">ग्रामीण इलाके में</span></span><span style="font-size:undefined">, </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">स्वरोजगार में लगे पुरूषों का अनुपात साल १९८३ में ६१ फीसदी था जबकि दो दशक बाद साल २००५</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">०६ में यह अनुपात घटकर ५७ फीसदी रह गया। स्वरोजगार में लगी महिलाओं के मामले में स्थिरता रही।साल १९८३ में स्वरोजगार में लगी महिलाओं का अनुपात ६२ फीसदी था और २००५</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">०६ में यही अनुपात कायम रहा। </span></span></li>
<li><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">असंगठित क्षेत्र को आधार माने तो ग्रामीण इलाके में ३५ फीसदी और शहरी इलाके में १८ फीसदी कार्य</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">दिवसों को महिलाओं को रोजगार नहीं मिला।ग्रामीण इलाके में ११ फीसदी और शहरी इलाके में ५ फीसदी कार्य</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">दिवसों में पुरूषों को रोजगार नहीं मिला।</span></span></li>
<li><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">ग्रामीण इलाके में अर्थव्यवस्था के द्वितीयक क्षेत्र </span></span><span style="font-size:undefined">(</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">खनन और खादान की खुली कटाई समेत</span></span><span style="font-size:undefined">) </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">में काम करने वाले पुरूषों के अनुपात में बढोत्तरी हुई है।१९८३ में अर्थव्यवस्था के द्वितीयक क्षेत्र </span></span><span style="font-size:undefined">(</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">खनन और खादान की खुली कटाई समेत</span></span><span style="font-size:undefined">) </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">में काम करने वाले पुरूषों का अनुपात १० फीसदी था जो साल २००५</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">०६ में बढ़कर १७ फीसदी हो गया।महिलाओं के मामले में यह आंकड़ा इस अवधि में ७ फीसदी से बढ़कर १२ फीसदी पर पहुंच गया। </span></span></li>
<li><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">ग्रामीण इलाके में १५ साल और उससे ऊपर की उम्र के केवल ५ फीसदी लोगों को लोक</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">निर्माण के हलके में काम हासिल है।इस आयु वर्ग के ७ फीसदी लोग काम की तलाश में हैं लेकिन उन्हें काम नहीं मिलता जबकि ८८ फीसदी लोक</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">निर्माण के कार्यो में रोजगार की तलाश भी नहीं करते।अगर लोक</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">निर्माण के कार्यों में ग्रामीण इलाके के पुरूषों को हासिल रोजगार के लिहाज से इस आंकड़े को देखें तो केवल ६ फीसदी पुरूषों को रोजगार हासिल है</span></span><span style="font-size:undefined">,</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">८ फीसदी लोक</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">निर्माण के कार्यों में रोजगार खोजते हैं लेकिन उन्हें हासिल नहीं होता जबकि ८५ फीसदी लोक</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">निर्माण के कार्यों में रोजगार की तलाश तक नहीं करते।महिलाओं के मामले में यही आंकड़ा क्रमशः ३</span></span><span style="font-size:undefined">,</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">६</span></span><span style="font-size:undefined">, </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">और ९१ फीसदी का है। </span></span></li>
<li><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">लोक</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">निर्माण के अंतर्गत आने वाले कामों में रोजगार पाने वाले व्यक्तियों का अनुपात प्रति व्यक्ति मासिक व्यय </span></span><span style="font-size:undefined">(</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">एमपीसीई</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">मंथली पर कैपिटा एक्पेंडिचर</span></span><span style="font-size:undefined">) </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">की बढ़ोत्तरी के साथ घटा है।यह बात स्त्री और पुरूष दोनों के मामले में देखी जा सकती है।प्रति व्यक्ति मासिक व्यय यानी एमपीसीई के सबसे ऊंचले दर्जे </span></span><span style="font-size:undefined">(</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">६९० रूपये और उससे ज्यादा</span></span><span style="font-size:undefined">) </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">में आने महज २ फीसदी पुरूषों को लोक</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">निर्माण के कार्यों में रोजगार हासिल था जबकि एमपीसीई के सबसे निचले दर्जे</span></span><span style="font-size:undefined">(</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">३२० रूपये और उससे कम</span></span><span style="font-size:undefined">) </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">के ९ फीसदी पुरूषों को</span></span><span style="font-size:undefined">, </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">यानी एमपीसीई के ऊपरले दर्जे की तुलना में एमपीसीई के निचले दर्जे के लगभग ५ गुना ज्यादा पुरूषों को लोक</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">निर्माण के कामों में रोजगार हासिल था।महिलाओं के मामले में यही आंकड़ा एमपीसीई के ऊपरले दर्जे में १ फीसदी और एमपीसीई के निचले दर्जे में ४ फीसदी का है</span></span><span style="font-size:undefined">,</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">यानी दोनों के बीच का अंतर ४ गुना है। </span></span></li>
<li><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">लोक</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">निर्माण के कार्यों में पिछले ३६५ दिनों </span></span><span style="font-size:undefined">(</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">साल २००५</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">०६</span></span><span style="font-size:undefined">) </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">स्त्री और पुरूषों को लोक</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">निर्माँण के काम औसतन क्रमशः १८ और १७ कार्यदिवसों को रोजगार हासिल हुआ।पिछले ३६५ दिनों </span></span><span style="font-size:undefined">(</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">साल २००५</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">०६</span></span><span style="font-size:undefined">) </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">में एमपीसीई के ऊपरले दर्जे </span></span><span style="font-size:undefined">(</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">६९० रूपये और उससे ज्यादा</span></span><span style="font-size:undefined">) </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">में आने वाले पुरूषों को सबसे ज्यादा कार्यदिवसों </span></span><span style="font-size:undefined">(</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">२४ दिन</span></span><span style="font-size:undefined">) </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">को रोजगार हासिल हुआ जबकि इसी अवधि में एमपीसीई के बिचले दर्जे </span></span><span style="font-size:undefined">(</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">५१०</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">६९० रूपये</span></span><span style="font-size:undefined">) </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">की महिलाओं को लोक</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">निर्माण के कार्यों में सबसे ज्यादा कार्यदिवसों </span></span><span style="font-size:undefined">(</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">२३ दिन</span></span><span style="font-size:undefined">) </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">को रोजगार हासिल हुआ। </span></span></li>
</ul>
<p>**page**<br />
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<p>श्रम और रोजगार मंत्रालय के [inside]लेबर ब्यूरो द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट ऑन एम्पलॉयमेंट एंड अनएम्पलॉयमेंट सर्वे (2009-10)[/inside] के अनुसार</p>
<p><a href="%5C%22http://labourbureau.nic.in/Final_Report_Emp_Unemp_2009_10.pdf%5C%22">http://labourbureau.nic.in/Final_Report_Emp_Unemp_2009_10.pdf</a>:</p>
<p> </p>
<p>• लेबर ब्यूरो द्वारा तैयार हालिया एम्पलॉयमेंट-अनएम्पलॉयमेंट सर्वे 28 राज्यों-केंद्रशासित प्रदेशों का है जहां देश की कुल 99 फीसदी आबादी रहती है। </p>
<p> </p>
<p>• इस सर्वे में कुल 45,859 परिवारों के 2,33,410 लोगों के साक्षात्कार लिए गए।</p>
<p> </p>
<p>• इस सर्वे में 1.4.2009 से 31.3.2010 की अवधि तक की सूचनाएं जुटायी गई हैं।</p>
<p> </p>
<p>• सर्वे के अनुसार रोजगार में लगे कुल लोगों में 45.5 फीसदी किसानी,मत्स्य-पालन और वनोपज एकत्र करने के कामों में लगे हैं। रोजगार में लगे केवल 8.9 फीसदी लोग ही मैन्युफैक्चरिंग में हैं जबकि 7.5 फीसदी कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री में।</p>
<p> </p>
<p>• ग्रामीण इलाकों में कामगार आबादी का 57.6 फीसदी हिस्सा खेती-किसानी के काम में लगा है, 7.2 फीसदी हिस्सा कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री में और 6.7 फीसदी हिस्सा मैन्युफैक्चरिंग(विनिर्माण) में।</p>
<p> </p>
<p>• शहरी इलाके में 9.9 फीसदी कामगार आबादी खेती-किसानी में लगी है,. 8.6 फीसदी कामगार आबादी कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री में जबकि 15.4 फीसदी मैन्युफैक्चरिंग के काम में। कामगार आबादी का तकरीबन 17.3 फीसदी हिस्सा होलसेल, रिटेल आदि के कामों में लगा है।</p>
<p> </p>
<p>• सर्वे रिपोर्ट में कहा गया है कि खेती-किसानी का क्षेत्र ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना में कोई अतिरिक्त रोजगार का सृजन नहीं करने वाला।बहरहाल विनिर्माण-क्षेत्र में रोजगार के 4 फीसदी की दर से बढ़ने की संभावना जतायी गई है जबकि सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना में परिवहरन और संचार(ट्रान्सपोर्ट एंड क्म्युनिकेशन) के क्षेत्र में रोजगार की बढ़ोत्तरी क्रमश 8.2 और 7.6 फीसदी की दर से हो सकती है। ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना में कुल श्रमशक्ति में साढ़े चार करोड़ का इजाफा होने की संभावना है। इसके बरक्स योजना में, 5 करोड़ 80 लाख की तादाद में रोजगार सृजन का लक्ष्य रखा गया है। उम्मीद की गई है कि इससे बरोजगारी की दर 5 फीसदी पर रहेगी। बहरहाल, मौजूदा सर्वे के परिणामों से जाहिर होता है कि अखिल भारतीय स्तर पर श्रमशक्ति का 9.4 फीसदी हिस्सा बेरोजगार है। राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को एक साथ मिलाकर भारत में बेरोजगारों की तादाद 4 करोड़ बैठती है।</p>
<p> </p>
<p>• अखिल भारतीय स्तर पर देखें तो बरोजगारों में सर्वाधिक(80 फीसदी) ग्रामीण क्षेत्र से हैं।</p>
<p> </p>
<p>• ग्रामीण भारत में बेराजगारी की दर 10.1 फीसदी है जबकि शहरी भारत में 7.3 फीसदी। पुरुषों में बेरोजगारी दर 8.0 फीसदी की है जबकि महिलाओं में 14.6 फीसदी की।</p>
<p> </p>
<p>• लेबर ब्यूरो सर्वे (2009-10) और एनएसएसओ द्वारा किए गए एम्पलॉयमेंट-अनएम्पलॉयमेंट सर्वे(2007-08) के आंकड़ों की आपसी तुलना से जाहिर होता है कि लेबर ब्यूरो के सर्वे में बेरोजगारी की दर ज्यादा बतायी गई है। कुल बेरोजगारी में कृषि क्षेत्र का हिस्सा एनएसएसओ की तुलना में 10 फीसदी ज्यादा मानने के कारण ऐसा हो सकता है।</p>
<p> </p>
<p>• सर्वे के नतीजों से पता चलता है कि 1000 लोगों में 351 आदमी रोगारशुदा हैं, 36 लोग बेरोजगार हैं जबकि 613 लोग ऐसे हैं जिनकी श्रमशक्ति के भीतर गिनती नहीं की जाती। रोजगारशुदा कुल 351 लोगों में 154 लोग स्वरोजगार की श्रेणी में हैं, 59 लोग नियमित वेतनभोगी की श्रेणी में जबकि 138 लोग ऐसे हैं जिन्हें दिहाड़ी मजदूर कहा जा सकता है। ग्रामीण इलाके में 1000 लोगों की तादाद में 356 लोग रोजगारशुदा की श्रेणी में हैं, 40 लोग बेरोजगार की कोटि में जबकि 604 लोग ऐसे हैं जिनकी गणना श्रमशक्ति में नहीं की जाती। शहरी इलाके में प्रति 1000 व्यक्तियों में रोजगारप्राप्त व्यक्तियों की तादाद 335 है, बेरोजगारी की संख्या 27 और 638 जने ऐसे हैं जिनकी गिनती श्रमशक्ति में नहीं की जाती।</p>
<p> </p>
<p>• शहरी क्षेत्र में 86 फीसदी और ग्रामीण इलाके में 81 फीसदी महिलायें ऐसी हैं जिनकी गिनती श्रमशक्ति में नहीं की जाती।</p>
<p> </p>
<p>• सर्वे के अनुसार स्वरोजगार में लगे लोगों में ज्यादातर खेती-किसानी के काम से जुड़े हैं(प्रति 1000 में 572) जबकि थोक और खुदरा व्यापार करने वालों की तादाद स्वरोजगार करने वाली कोटि के भीतर प्रति हजार व्यक्ति में 135 है।</p>
<p> </p>
<p>• नियनित वेतनभोगियों की श्रेणी में देखें तो पता चलता है कि ज्यादातर कम्युनिटी सर्विसेज से जुड़े( प्रति 1000 में 227) लोग हैं जबकि विनिर्माण क्षेत्र से जुड़े लोगों की तादाद प्रति हजार नियमित वेतनभोगियों में 153 है।</p>
<p> </p>
<p>• दिहाड़ी मजदूरी करने वालों में सर्वाधिक तादाद खेतिहर मजदूर, मछली मारने या वनोपज से जीविका चलाने वालों की (दिहाड़ी कमाने वाले प्रति हजार व्यक्ति में से 467 व्यक्ति) है जबकि कंस्ट्रक्सन के काम में लगे ऐसे व्यक्तियों की तादाद प्रति हजार में 148 है।</p>
<p> </p>
<p>• सर्वे के अनुसार रोजगार-प्राप्त लोगों में ज्यादातर वैसे उद्यमों में काम करते हैं जिन्हें प्रोपराइटी टाईप कहा जाता है। ऐसे उद्यमों में रोजगार-प्राप्त लोगों की प्रति हजार संख्या में 494 वयक्ति ऐसे उद्यमों में काम करते हैं जबकि सार्वजनिक या फिर निजी क्षेत्र की लिमिटेड कंपनियों में काम करने वालों की तादाद ऐसे लोगों में प्रतिहजार पर 200 है।</p>
<p> </p>
<p>• सर्वे के आंकड़ों से पता चलता है कि रोजगार प्राप्त प्रतिहजार व्यक्तियों में केवल 157 लोगों को ही पेड़-लीव की सुविधा मिलती है। कम्युनिटी सर्विसेज ग्रुप में प्रति हजार व्यक्तियों में 443 लोगों को पेड़-लीव की सुविधा है जबकि खेती-किसानी,वानिकी या फिर मत्स्य पालन जैसे क्षेत्रों में रोजगार प्राप्त लोगों में 1000 में 54 व्यक्तियों को ही यह सुविधा हासिल हो पाती है।</p>
<p> </p>
<p>• जहां तक प्राविडेन्ट फंड, ग्रेच्युटी, स्वास्थ्य सुविधा और मेटरनिटी बेनेफिट जैसी सुविधाओं का सवाल है विभिन्न उद्यमों में काम करने वाले प्रति हजार व्यक्तियों में से मात्र 163 ने कहा कि उन्हें इनमें से कुछ ना कुछ सुविधा मिलती है। कम्युनिटी सर्विसेज ग्रुप के सर्वाधिक लोगों(प्रति हजार में 400) ने कहा कि हमें ऐसी सुविधा मिलती है जबकि खेती-किसानी में रोजगार प्राप्त लोगों में से मात्र 82 लोगों(प्रति 1000 में) ने कहा कि उन्हें इनमें से कुछ ना कुछ सुविधा हासिल होती है।</p>
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<p>असंगठित क्षेत्र में रोजगार की स्थिति से संबंधित राष्ट्रीय आयोग यानी नेशनल कमीशन फॉर द इन्टरप्राइजेज इन द अन-आर्गनाइज्ड सेक्टर(एनसीईयूएस) के दस्तावेज-[inside]रिपोर्ट ऑन द कंडीशन ऑव वर्क एंड प्रोमोशन ऑव लाइवलीहुड इन द अन-आर्गनाइज्ड सेक्टर[/inside] के अनुसार,</p>
<p><span style="color:\; font-size:undefined"><u><a href="%5C%22http://nceus.gov.in/Condition_of_workers_sep_2007.pdf%5C%22"><strong>http://nceus.gov.in/Condition_of_workers_sep_2007.pdf</strong></a></u></span><span style="font-size:undefined"><strong> </strong></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-size:undefined">· </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">खेत</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">मजदूरों की संख्या साल २००४</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">०५ में ८ करोड़ ७० लाख थी यानी किसानों और खेत</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">मजदूरों की कुल संख्या</span></span><span style="font-size:undefined">(</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">२५ करोड़ ३० लाख</span></span><span style="font-size:undefined">) </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">में खेत</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">मजदूरों की तादाद ३४ फीसदी थी। </span></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-size:undefined">· </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">दैनिक रोजगार के आधार पर देखें तो खेत</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">मजदूरों में बेरोजगारी की स्थिति भयावह है।१६ फीसदी पुरूष खेत</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">मजदूर और १७ फीसदी महिला खेत</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">मजदूर बेरोजगार हैं।</span></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-size:undefined">· </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">साल १९९३</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">९४ और २००४</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">०५ के बीच खेत</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">मजदूरों के बीच छुपी हुई बेरोजगारी</span></span><span style="font-size:undefined">(</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">अंडरएंप्लॉयमेंट</span></span><span style="font-size:undefined">) </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">बढ़ी है।साल २००५</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">०६ में खेत</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">मजदूरों के बीच बेरोजगारी १६ फीसदी थी। </span></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-size:undefined">· </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">खेत</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">मजदूरों को मिलने वाली न्यूनतम मजदूरी कितनी हो</span></span><span style="font-size:undefined">--</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">इसके बारे में बस एक ही कानूनी प्रावधान है।यह प्रावधान मिनिमम वेजज एक्ट</span></span><span style="font-size:undefined">,</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">१९४८</span></span><span style="font-size:undefined">(</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">न्यूनतम मजदूरी अधिनियम</span></span><span style="font-size:undefined">,</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">१९४८</span></span><span style="font-size:undefined">) </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">के नाम से जाना जाता है।साल २००४</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">०५ में खेत</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">मजदूरों ने जितने दिन काम किया उसमें लगभग ९१ फीसदी कार्यदिवसों को उन्हें राष्ट्रीय स्तर की न्यूनतम मजदूरी से कहीं कम मेहनताना हासिल हुआ जबकि ग्रामीण क्षेत्रों के लिए एनसीआरएल </span></span><span style="font-size:undefined">(</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">एनसीयूएस के दस्तावेज में एनसीआरएल के बारे में जानकारी देते हुए कहा गया है कि</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">१९९१ में हनुमंत राव की अध्यक्षता में एक आयोग नेशनल कमीशन ऑन रूरल लेबर नाम से बना था।इस आयोग ने ग्रामीण इलाके के लिए एक राष्ट्रीय स्तर पर लागू होने वाली एक आभासी न्यूनतम मजदूरी की अनुशंसा की थी।आयोग ने यह भी कहा था कि ग्रामीण क्षेत्र के मजदूरों को सरकार सामाजिक सुरक्षा के फायदों के तौर पर वृद्धावस्था पेंशन</span></span><span style="font-size:undefined">,</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">जीवन बीमा</span></span><span style="font-size:undefined">,</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">मेटरनिटी बेनेफिट और काम के दौरान दुर्घटना की स्थिति में मुआवजा फराहम करे।</span></span><span style="font-size:undefined">) </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">द्वारा निर्धारित न्यूनतम मजदूरी के मानक को आधार मानें तो साल २००४</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">०५ में खेत</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">मजदूरों ने जितने दिन काम किया उसमें लगभग ६४ फीसदी कार्यदिवसों को उन्हें कम मेहनताना हासिल हुआ।</span></span><span style="font-size:undefined">.</span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-size:undefined">· </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">खेतिहर कामगारों</span></span><span style="font-size:undefined">(</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">खेतिहर मजदूर और किसान</span></span><span style="font-size:undefined">) </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">की संख्या साल २००४</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">०५ में २५ करोड़ ९० लाख थी।देश की कुल श्रमशक्ति में खेतिहर कामगारों की तादाद ५७ फीसदी है।इनमें २४ करोड़ ९० लाख ग्रामीण इलाकों में रहते हैं।इस तरह यह संख्या कुल ग्रामीण श्रमशक्ति </span></span><span style="font-size:undefined">(</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">३४ करोड़ ३० लाख</span></span><span style="font-size:undefined">) </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">के ७३ फीसदी के बराबर बैठती है।ग्रामीण इलाके की अर्थव्यवस्था के असंगठित क्षेत्र के रोजगार में इनकी हिस्सेदारी ९६ फीसदी की और असंगठित कृषि</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">क्षेत्र के रोजगार में इनकी हिस्सेदारी ९८ फीसदी की है। </span></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-size:undefined">· </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">लगभग दो तिहाई</span></span><span style="font-size:undefined">(</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">६४ फीसदी</span></span><span style="font-size:undefined">) </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">खेतिहर कामगार स्वरोजगार में लगे हैं</span></span><span style="font-size:undefined">,</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">या कहें फिर कह लें कि ग्रामीण श्रमशक्ति जो हिस्सा स्वरोजगार में लगा है वह मूलतः किसान है और बाकि एक तिहाई यानी ३६ फीसदी जीविका के लिए मजदूरी पर निर्भर है और जीविका के लिए मजदूरी पर निर्भर कामगारों में ९८ फीसदी अनियमित मजदूर हैं।</span></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-size:undefined">· </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">देश के कुल कामगारों में खेतिहर कामगारों की तादाद साल २००४</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">०५ में ५६</span></span><span style="font-size:undefined">.</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">६ फीसदी थी जबकि साल १९८३ में कुल कामगारों में इनकी तादाद ६८</span></span><span style="font-size:undefined">.</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">६ फीसदी थी।इस तरह पिछले २० सालों कुल कामगारों में खेतिहर कामगारों की तादाद में कमी आयी है।ग्रामीण इलाकों में खेतिहर कामगारों की तादाद ८१</span></span><span style="font-size:undefined">.</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">६ फीसदी थी।यह संख्या २००४</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">०५ में घटकर ७२</span></span><span style="font-size:undefined">.</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">६ फीसदी रह गई। </span></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-size:undefined">·</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">खेतिहर श्रमशक्ति में किसानों की संख्या ज्यादा है</span></span><span style="font-size:undefined">,</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">हालांकि प्रतिशत पैमाने पर धीरे</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">धीरे इनकी संख्या में कमी आयी है।साल १८८३ में खेतिहर श्रमशक्ति में किसानों की संख्या ६३</span></span><span style="font-size:undefined">.</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">५ फीसदी थी जबकि साल १९९९</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">२००० में घटकर ५७</span></span><span style="font-size:undefined">.</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">८ फीसदी हो गई। </span></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-size:undefined">· </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">साल १९८३</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">१९८४ और साल १९९३</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">९४ के बीच की अवधि यानी एक दशक पर नजर रखकर रोजगार की बढ़ोत्तरी की दर की तुलना करें तो पता चलेगा कि खेतिहर रोजगार में पिछले एक दशक में कमी आयी है।जहां साल १९८३</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">१९८४ में खेतिहर रोजगार में बढ़ोत्तरी की दर १</span></span><span style="font-size:undefined">.</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">४ फीसद थी वहीं एक दशक बाद यह दर घटकर ०</span></span><span style="font-size:undefined">.</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">८ फीसदी रह गई। हालांकि सकल रोजगार में भी इस अवधि में २</span></span><span style="font-size:undefined">.</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">१ फीसदी के मुकाबले १</span></span><span style="font-size:undefined">.</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">९ फीसदी की गिरावट आयी लेकिन सकल रोजगार में गिरावट की तुलना में खेतिहर रोजगार में गिरावट की रफ्तार कहीं ज्यादा रही। </span></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-size:undefined">· </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">साल १९९३</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">९४ में भूमिहीन परिवारों की संख्या १३ फीसदी थी जबकि साल २००४</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">०५ में भूमिहीन परिवारों की संख्या बढ़कर १४</span></span><span style="font-size:undefined">.</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">५ फीसदी हो गई।साल २००४</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">०५ में खेतिहर मजदूरों में १९</span></span><span style="font-size:undefined">.</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">७ फीसदी मजदूर भूमिहीन थे जबकि ६० फीसदी से ज्यादा खेतिहर मजदूरों के पास ०</span></span><span style="font-size:undefined">.</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">४ हेक्टेयर से भी कम जमीन थी और इनकी संख्या में इस पूरी अवधि में खास बदलाव नहीं आया। ज्यादातर</span></span><span style="font-size:undefined">,</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">भूमिहीनता या फिर जमीन के बड़े छोटे टुकड़े पर स्वामित्व होने के कारण ग्रामीण इलाकों में लोग अपने भरण</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">पोषण के लिए मजदूरी करने को बाध्य होते हैं।</span></span></p>
<p><span style="font-size:undefined">**page**</span></p>
<p>[inside]टाटा इंस्टीट्यूट ऑव सोशल साइंसेज और एडको इंस्टीट्यूट,लंदन द्वारा तैयार द इंडिया लेबर मार्केट रिपोर्ट(२००८)[/inside] में भारत में मौजूद बेरोजगारी और छुपी हुई बेरोजगारी की स्थिति के बारे में कहा गया है कि <span style="color:\; font-size:undefined"><u><a href="%5C%22http://www.macroscan.org/anl/may09/pdf/Indian_Labour.pdf%5C%22"><strong>http://www.macroscan.org/anl/may09/pdf/Indian_Labour.pdf</strong></a></u></span><span style="font-size:undefined"><strong> </strong></span></p>
<p> </p>
<p> </p>
<p><span style="font-size:undefined">· </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">भारत में ग्रामीण इलाके के व्यक्ति की तुलना में शहरी इलाके के व्यक्ति के लिए बेरोजगारी की दर कहीं ज्यादा है।शहरी महिलाओं में बेरोजगारी की दर ९</span></span><span style="font-size:undefined">.</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">२२ फीसदी है जबकि ग्रामीण महिलाओं में यह दर ७</span></span><span style="font-size:undefined">.</span><span style="font-family:\"><span style="font-size:undefined">३१ फीसदी है।</span> </span></p>
<p> </p>
<p> </p>
<p><span style="font-size:undefined">· </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">बेरोजगारी की प्रकृति का आकलन राज्यवार करें तो पता चलेगा कि गोवा और केरला जैसे तुलनात्मक रूप से विकसित राज्यों में बेरोजगारी की दर कहीं ज्यादा है।गोवा में बेरोजगारी की दर ११</span></span><span style="font-size:undefined">.</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">३९ फीसदी और केरल में ९</span></span><span style="font-size:undefined">.</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">१३ फीसदी है।बेरोजगारी की न्यूनतम दर अपेक्षाकृत कम विकसित राज्यों मसलन उत्तरांचल</span></span><span style="font-size:undefined">(</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">०</span></span><span style="font-size:undefined">.</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">४८ फीसदी</span></span><span style="font-size:undefined">) </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">और छत्तीसगढ़</span></span><span style="font-size:undefined">(</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">०</span></span><span style="font-size:undefined">.</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">७७ फीसदी</span></span><span style="font-size:undefined">) </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">में है।</span></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-size:undefined">· </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">दस से चौबीस साल के आयुवर्ग में सबसे ज्यादा लोग बेरोजगार हैं।इससे यह धारणा बलवती होती है कि भारत में युवाओं में बेरोजगारी बढ़ रही है। </span></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-size:undefined">· </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">रिपोर्ट का आकलन है कि बेरोजगारी की दर और व्यक्ति के शिक्षा</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">स्तर में संबंध है।अगर व्यक्ति का शिक्षा</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">स्तर ज्यादा है तो बेरोजगारी की दर भी उसके लिए ज्यादा है।जिन व्यक्तियों ने माध्यमिक स्तर से ज्यादा ऊंची शिक्षा हासिल की है उनके बीच बेरोजगारी की दर इससे कम दर्जे शिक्षा हासिल करने वालों की तुलना में कहीं ज्यादा है।ग्रामीण और शहरी दोनों ही इलाकों में शिक्षित महिलाओं के बीच बेरोजगारी की दर सबसे ज्यादा है।</span></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-size:undefined">· </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">छुपी हुई बेरोजगारी की स्थिति के बारे में रिपोर्ट में कहा गया है कि महिलाओं के बीच छुपी हुई बेरोजगारी की स्थिति कहीं ज्यादा है और खासतौर पर यह बात ग्रामीण इलाके की महिलाओं पर लागू होती है।</span></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-size:undefined">· </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">स्वरोजगार और दिहाड़ी मजदूरी में लगे लोगों के बीच छुपी हुई बेरोजगारी की स्थिति कहीं ज्यादा सघन है।इसकी तुलना में वेतनभोगी कर्मचारियों अथवा नियमित मजदूरी पर लगे लोगों के बीच छुपी हुई बेरोजगारी ना के बराबर है।</span></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\"><strong>स्वरोजगार</strong></span></span></p>
<p><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">स्वरोजगार में लगे लोगों की तादाद राज्यवार ३० फीसदी से लेकर ७० फीसदी तक है।आकलन से पता चलता है कि अपेक्षाकृत कम विकसित राज्य मसलन बिहार</span></span><span style="font-size:undefined">(</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">६१ फीसदी</span></span><span style="font-size:undefined">),</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">उत्तरप्रदेश</span></span><span style="font-size:undefined">(</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">६९ फीसदी</span></span><span style="font-size:undefined">)</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">राजस्थान</span></span><span style="font-size:undefined">(</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">७० फीसदी</span></span><span style="font-size:undefined">)</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">में स्वरोजगार में लगे लोगों की संख्या ज्यादा है।अपेक्षाकृत ज्यादा विकसित राज्यों मसलन केरल </span></span><span style="font-size:undefined">(</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">४२ फीसदी</span></span><span style="font-size:undefined">),</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">दिल्ली</span></span><span style="font-size:undefined">(</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">३८ फीसदी</span></span><span style="font-size:undefined">) </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">और गोवा में </span></span><span style="font-size:undefined">(</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">३४ फीसदी</span></span><span style="font-size:undefined">) </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">कम संख्या में लोग स्वरोजगार में लगे हैं। </span></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">स्वरोजगार में लगे लोगों में शहरी लोगों की संख्या कम और ग्रामीण लोगों की संख्या ज्यादा है।</span></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">स्वरोजगार में लगे लोगों में कम शिक्षा</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">स्तर वाली महिलाओं का अनुपात पुरूषों की अपेक्षा ज्यादा है।कुल मिलाकर देखें तो स्वरोजगार में लगे लोगों में अधिकांस कम शिक्षा</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">स्तर वाले हैं।</span></span></p>
<p> </p>
<p> </p>
<p><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">अगर स्वरोजगार में लगे लोगों की संख्या को अर्थव्यवस्था के क्षेत्रवार देखें तो मजर आएगा कि खेती में सबसे ज्यादा लोगों को स्वरोजगार हासिल है।इसका बाद नंबर आता है व्यापार का।खेती और व्यापार में कुल मिलाकर कुल तीन</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">चौथाई लोग स्वरोजगार में लगे हैं। </span></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\"><strong>अनियमित यानी दिहाड़ी मजदूरी का बाजार</strong></span></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के ६२ वें दौर की गणना को आधार मानकर ऊपर्युक्त रिपोर्ट में कहा गया है कि ३१ फीसदी रोजगार दिहाड़ी श्रम बाजार में हासिल है और इस श्रम बाजार में महिलाओं की प्रतिभागिता पुरूषों की तुलना में ज्यादा है। </span></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">दिहाड़ी श्रम बाजार में रोजगार हासिल करने वाले ग्रामीण स्त्री और पुरूष के आयु वर्ग में ज्यादा फर्क नहीं है जबकि दिहाड़ी पर खटने वाले शहरी इलाके के पुरूषों के मामले में बाल श्रमिकों </span></span><span style="font-size:undefined">(</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">आयुवर्ग ५ से ९</span></span><span style="font-size:undefined">) </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">की संख्या ज्यादा है। </span></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">दिहाड़ी श्रम बाजार में ३४ साल तक की उम्र के मजदूरों को रोजगार के कहीं ज्यादा अवसर उपलब्ध हैं।इस आयु के बाद दिहाड़ी श्रम बाजार में उनको हासिल रोजगार के अवसरों में कमी देखी गई है। </span></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">दिहाड़ी मजदूरी के बाजार में शिक्षा के बढ़ते स्तर के साथ प्रतिभागिता में कमी देखी जा सकती है।दिहाड़ी मजदूरों का अधिकतर हिस्सा या तो अशिक्षित है या फिर उसे प्राथमिक स्तर की शिक्षा हासिल हुई है।</span></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">खेती में दिहाड़ी मजदूरों की तादाद के ७० फीसदी हिस्से को रोजगार हासिल है।इसके बाद सबसे ज्यादा तादाद में दिहाड़ी मजदूर उद्योग और सेवा</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">क्षेत्र में लगे हैं।अपेक्षाकृत विकसित राज्यों मसलन महाराष्ट्र</span></span><span style="font-size:undefined">, </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">कर्नाटक</span></span><span style="font-size:undefined">,</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">तमिलनाडु और पंजाब में खेती में दिहाड़ी मजदूरों की तादाद कहीं ज्यादा है जबकि अपेक्षाकृत कम विकसित राज्यों मसलन राजस्थान</span></span><span style="font-size:undefined">,</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">झारखंड</span></span><span style="font-size:undefined">,</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">उत्तरप्रदेश और उत्तरांचल में उद्योग</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">क्षेत्र में दिहाड़ी मजदूरों की संख्या खेती में लगे दिहाड़ी मजदूरों की संख्या से ज्यादा है।</span></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">कम विकसित राज्यों में उद्योग क्षेत्र के अंदर विनिर्माण </span></span><span style="font-size:undefined">(</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">मैन्युफैक्चरिंग</span></span><span style="font-size:undefined">) </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">दिहाड़ी मजदूरों की संख्या ज्यादा है।कंस्ट्रक्शन के अंतर्गत रोजगार पाने वाले दिहाड़ी मजदूरों की संख्या भी कम विकसित राज्यों में अपेक्षाकृत ज्यादा है। </span></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\"><strong>आबादी जो श्रमबाजार में प्रतिभागी नहीं है</strong></span></span><span style="font-size:undefined"><strong>-</strong></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">जो आबादी श्रमशक्ति में प्रतिभागी नहीं है उसमें महिलाओं की संख्या पुरूषों की तुलना में बहुत ज्यादा है। </span></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">ग्रामीण इलाके की महिलाओं की तुलना में शहरी इलाके की महिलाएं कहीं ज्यादा तादाद में श्रमबाजार से बाहर हैं।जहां अधिकांश राज्यों के ग्रामीण इलाके में ६० से ७० फीसदी महिलाएं श्रमबाजार से बाहरह हैं वहीं शहरी इलाकों की महिलाओं के बीच यह आंकड़ा ८० फीसदी का है। </span></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">२५ से ५९ साल के आयुवर्ग की महिलाओं का एक बड़ा हिस्सा </span></span><span style="font-size:undefined">(</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">४७ से ५७ फीसदी तक</span></span><span style="font-size:undefined">) </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">श्रमबाजार से बाहर है जबकि इस आयुवर्ग के पुरूषों के बीच यह आंकड़ा तुलनात्मक रूप से ना के बराबर</span></span><span style="font-size:undefined">(</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">१ से ९ फीसदी</span></span><span style="font-size:undefined">) </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">बैठता है।इसके अतिरिक्त श्रमबाजार से बाहर रहने वाली महिलाओं का एक बड़ा हिस्सा उच्च शिक्षा प्राप्त महिलाओं का है।स्नातक स्तर की शिक्षा प्राप्त लगभग ६८ फीसदी महिलाएं श्रमबाजार से बाहर हैं जबकि इसी शिक्षास्तर के १३ फीसदी पुरूष श्रमबाजार से बाहर हैं।स्नातकोत्तर स्तर की शिक्षा हासिल कर चुकी ५३ फीसदी महिलाएं श्रमबाजार से बाहर हैं जबकि इसी शिक्षास्तर के १० फीसदी पुरूष श्रमबाजार से बाहर हैं।</span></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">महिलाओं की एक बड़ी तादाद घरेलू कामकाज के कारण श्रमबाजार से बाहर है।२५ से २९ साल के कामकाजी आयुवर्ग में भी श्रमबाजार से बाहर रह जाने वाली महिलाओं की तादाद ६० फीसदी है।ये आंकड़े ग्रामीण और शहरी दोनों ही क्षेत्रों की महिलाओं पर लागू होते हैं।</span></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">श्रमबाजार से बाहर रह जाने वाली महिलाओं की संख्या दिल्ली में सबसे ज्यादा</span></span><span style="font-size:undefined">(</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">९२</span></span><span style="font-size:undefined">.</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">१० फीसदी</span></span><span style="font-size:undefined">) </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">है।इस मामले में छत्तीसगढ़ दूसरे पादान पर है जहां ८९</span></span><span style="font-size:undefined">.</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">५० फीसदी महिलाएं श्रमबाजार से बाहर हैं।इस मामले में सबसे अच्छी स्थिति हिमाचल प्रदेश की है।वहां सिर्फ ५१</span></span><span style="font-size:undefined">.</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">७० फीसदी महिलाएं श्रमबाजार से बाहर हैं। </span></span></p>
<p> </p>
<p> </p>
<p><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">शारीरिक रूप से विकलांग माने जाने वाले व्यक्तियों में ज्यादा तादाद </span></span><span style="font-size:undefined">(</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">४० फीसदी</span></span><span style="font-size:undefined">) </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">२५ से ४० साल के आयुवर्ग में आने वाले पुरूषों की है और ग्रामीण इलाके में यह आंकड़ा इससे भी ज्यादा का है।इस कोटि में आने वाले अधिकांश लोग अशिक्षित हैं।</span></span></p>
<p> </p>
<p> </p>
<p> </p>
<ul>
<li><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">जहां तक भीख मांगने वाले और यौनकर्मियों का सवाल है</span></span><span style="font-size:undefined">,</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">उनकी १९ फीसदी आबादी ५ से ९ साल के आयुवर्ग की है जबकि इस कोटि में आने वाले ३५ फीसदी व्यक्ति ६० साल या उससे ज्यादा उम्र के हैं।इनमें अधिकतर अशिक्षित हैं। </span></span></li>
</ul>
<p> </p>
<p> </p>
<p> </p>
<p><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\"><strong>अर्थव्यवस्था के उभरते हुए हलको में रोजगार और बेरोजगारी की स्थिति</strong></span></span><span style="font-size:undefined"><strong>-</strong></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-size:undefined">· </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">अर्थव्यवस्था के उभरते हुए क्षेत्रों पर नजर डालें तो एक बड़ी तादाद लेबर मार्केट के रीटेल सेक्टर</span></span><span style="font-size:undefined">(</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">लेबर मार्केट में इसका हिस्सा लगभग साढे़ ७ फीसदी है</span></span><span style="font-size:undefined">) </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">में रोजगारयाफ्ता दीखेगी।अर्थव्यवस्था के इस सेक्टर में लेबर मार्केट का संगठित क्षेत्र भी शामिल है और असंगठित क्षेत्र भी। </span></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-size:undefined">·</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">भू</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">निर्माण यानी कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री लेबर मार्केट का दूसरा बड़ा हिस्सा</span></span><span style="font-size:undefined">(</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">५</span></span><span style="font-size:undefined">.</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">९ फीसदी</span></span><span style="font-size:undefined">) </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">है।इस सेक्टर में सबसे ज्यादा रोजगार पुरूषों को हासिल है और इसका विस्तार शहरों में ज्यादा है।लगभग ८</span></span><span style="font-size:undefined">.</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">७ फीसदी शहरी और ५ फीसदी ग्रामीण मजदूरों को इस सेक्टर में रोजगार हासिल है। </span></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-size:undefined">· </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">परिवहन यानी ट्रान्सपोर्ट सेक्टर में पुरूष मजदूरो की तादाद ७</span></span><span style="font-size:undefined">.</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">५ फीसदी है जबकि महिलाओं की ०</span></span><span style="font-size:undefined">.</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">१ फीसदी।भारत के ग्रामीण और शहरी दोनों इलाकों में ये बात देखी जा सकती है। </span></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-size:undefined">· </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">ग्रामीण इलाके में सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में रोजगार ना के बराबर हासिल है।अर्थव्यवस्था का यह क्षेत्र अपनी प्रकृति में शहरी है और इसमें पढ़े</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">लिखे तथा उच्चे कौशल वाले लोगों की जरूरत है।आईटी यानी सूचना प्रौद्योगिकी और सॉप्टवेयर के समान मीडिया और फार्मास्यूटिकल्स में भी रोजगार की स्थिति शहरी वर्चस्व की सूचना देती है। </span></span></p>
<p><span style="font-size:undefined">· </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">स्वास्थ्य सुविधाओं और हॉस्पिटेलिटी के सेक्टर में महिलाओं को बाकी की अपेक्षा कहीं ज्यादा रोजगार हासिल है।</span></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-size:undefined">· </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">साल २००८ के अक्तूबर से दिसबंर के बीच खनन</span></span><span style="font-size:undefined">,</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">सूती वस्त्र</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">उद्योग</span></span><span style="font-size:undefined">,</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">धातुकर्म</span></span><span style="font-size:undefined">,</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">रत्न और आभूषण उद्योग</span></span><span style="font-size:undefined">,</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">ऑटोमोबाइल तथा बीपीओ</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">आईटी जैसे क्षेत्रों में हासिल रोजगार में १</span></span><span style="font-size:undefined">.</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">०१ फीसदी की कमी आयी।नवंबर के महीने में इन क्षेत्रों में रोजगार सृजन की दर सबसे नीचे</span></span><span style="font-size:undefined">(</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">०</span></span><span style="font-size:undefined">.</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">७४ फीसदी थी लेकिन साल २००९ के जनवरी में इन क्षेत्रों में रोजगार में १</span></span><span style="font-size:undefined">.</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">०७ फीसदी का इजाफा हुआ।</span></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-size:undefined">· </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">आईटी और बीपीओ को छोड़कर बाकी सभी सेक्टर में साल २००८ के अक्तूबर से दिसंबर के बीच रोजगार की दर में कमी आयी।सबसे ज्यादा गिरावट रत्न और आभूषण के सेक्टर में रही जबकि आईटी और बीपीओ में हासिल रोजगार की दर में इजाफा हुआ।</span></span></p>
<p><span style="font-size:undefined">· </span></p>
<p><span style="font-size:undefined">· </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">कुल मिलाकर देखें तो साल २००८ के अक्तूबर से दिसंबर के बीच ठेके पर शारीरिक श्रम से रोजगार हासिल करने वाले मजदूरों को बेरोजगारी का कहीं ज्यादा सामना पड़ा जबकि नियमित आधार पर बहाल और मानसिक श्रम वाले कामों में लगे कामगारों को रोजगार के कहीं ज्यादा अवसर हासिल हुए।</span></span></p>
<p> </p>
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<p> </p>
<p> </p>
<p><span style="font-family:\; font-size:undefined"><em><span style="font-family:\">एक नजर</span></em></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर लगातार ऊंची बनी होने के बावजूद भारत अपनी ग्रामीण जनता की जरुरत के हिसाब से मुठ्ठी भर भी नये रोजगार का सृजन नहीं कर पाया है। नये रोजगारों का सृजन हो रहा है लेकिन यह अर्थव्यवस्था के ऊंचली पादान के सेवा</span></span><span style="font-family:\; font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">क्षेत्र मसलन वित्त</span></span><span style="font-family:\; font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">जगत</span></span><span style="font-family:\; font-size:undefined">, </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">बीमा</span></span><span style="font-family:\; font-size:undefined">, </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">सूचना</span></span><span style="font-family:\; font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">प्रौद्योगिकी और सूचना प्रौद्योगिकी के दम पर चलने वाले हलकों में हो रहा है ना कि विनिर्माण और आधारभूत ढांचे के क्षेत्र में जहां ग्रामीण इलाकों से पलायन करके पहुंचे कम कौशल वाले लोगों को रोजगार हासिल करने की उम्मीद हो सकती है। किसी तरह घिसट</span></span><span style="font-family:\; font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">खिसट करके चलने वाली ग्रामीण अर्थव्यवस्था</span></span><span style="font-family:\; font-size:undefined">, </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">ग्रामीण इलाकों के कुटीर और शिल्प उद्योगों का ठप्प पड़ना</span></span><span style="font-family:\; font-size:undefined">, </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">घटती खेतिहर आमदनी और मानव</span></span><span style="font-family:\; font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">विकास के सूचकांकों से मिलती खस्ताहाली की सूचना</span></span><span style="font-family:\; font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">ये सारी बातें एकसाथ मिलकर जो माहौल बना रही हैं उसमें ग्रामीण इलाकों में बेरोजगारी को बढ़ना तो है ही</span></span><span style="font-family:\; font-size:undefined">, </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">शहरों की तरफ ग्रामीण जनता का पलायन भी होना है। </span></span></p>
<p><br />
<span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">अर्थव्यवस्था के मंदी की चपेट में आने से पहले भी नये रोजगार का सृजन नकारात्मक वृद्धि के रुझान दिखा रहा था।नेशनल कमीशन फॉर इंटरप्राइजेज इन द अनऑर्गनाइज्ड सेक्टर</span></span><span style="font-family:\; font-size:undefined">(</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">एनसीईयूस</span></span><span style="font-family:\; font-size:undefined">) </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">के मुताबिक खरबों डॉलर की हमारी इस अर्थव्यवस्था में हर </span></span><span style="font-family:\; font-size:undefined">10 </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">में </span></span><span style="font-family:\; font-size:undefined">9 </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">व्यक्ति असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं और कुल भारतीयों का तीन चौथाई हिस्सा रोजाना </span></span><span style="font-family:\; font-size:undefined">20 </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">रुपये में गुजारा करता है। बहुत से अर्थशास्त्री तर्क देते हैं कि गांवों से शहरों की तरफ पलायन अर्तव्यवस्था की तरक्की के लिहाज से एक जरुरी शर्त है। बहरहाल</span></span><span style="font-family:\; font-size:undefined">, </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">वैश्विक अर्थव्यवस्था के भीतर भारत कम लागत के तर्क से अपनी हिस्सेदारी बढ़ा रहा है और इससे आमदनी में कम बढ़ोतरी का होना लाजिमी है। ऐसे में चूंकि क्रयशक्ति मनमाफिक नहीं बढ़ रही इसलिए घरेलू मांग में बढोतरी ना होने के कारण नये रोजगारों का सृजन भी खास गति से नहीं हो रहा।</span></span></p>
<p><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">आंकड़ों से जाहिर होता है कि वांछित लक्ष्य तक पहुंचने की जगह रोजगार के मामले में हमारी गाड़ी उलटे रास्ते पर लुढ़कने लगी है।मिसाल के तौर पर साल साल </span></span><span style="font-family:\; font-size:undefined">1994 </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">से </span></span><span style="font-family:\; font-size:undefined">2005 </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">के बीच के दशक में बेरोजगारी में प्रतिशत पैमाने पर </span></span><span style="font-family:\; font-size:undefined">1 </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">अंक की बढ़ोतरी हुई है। अस्सी के दशक के शुरुआती सालों से लेकर </span></span><span style="font-family:\; font-size:undefined">2005 </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">के बीच ग्रामीण पुरुषों में स्वरोजगार प्राप्त लोगों की तादाद </span></span><span style="font-family:\; font-size:undefined">4 </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">फीसदी कम हुई है।आंकड़ों से जाहिर है कि घटती हुई आमदनी के बीच कार्यप्रतिभागिता के मामले में ग्रामीण गरीब एक दुष्चक्र में फंस चुके हैं। </span></span></p>
<p><span style="font-family:\; font-size:undefined"><em><span style="font-family:\">आंकड़ों से यह भी जाहिर होता है कि अस्सी के दशक के शुरुआती सालों से ग्रामीण इलाकों की महिलाओं के लिए रोजगार की सूरते हाल या तो ज्यों की त्यों ठहरी हुई है या फिर और बिगड़ी दशा को पहुंची है। एक तो किसानों की आमदनी खुद ही कम है उसपर गजब यह कि इस आमदनी का </span></em></span><span style="font-size:undefined"><em><span style="font-family:\">45 </span></em></span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><em><span style="font-family:\">फीसदी हिस्सा</span><span style="font-family:\"> </span><span style="font-family:\">कृषि</span></em></span><span style="font-size:undefined"><em><span style="font-family:\">-</span></em></span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><em><span style="font-family:\">इतर कामों से हासिल होता है और कृषि</span></em></span><span style="font-size:undefined"><em><span style="font-family:\">-</span></em></span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><em><span style="font-family:\">इतर काम कहने से बात थोड़ी छुपती है मगर सीधे सीधे कहें तो यह दिहाड़ी मजदूरी का ही दूसरा नाम है। मजदूरी भी कम मिलती है क्योंकि गांव के दरम्याने में जो भी काम करने को मिल जाय</span><span style="font-family:\"> </span><span style="font-family:\">किसानों को उसी से संतोष करना पड़ता है। फिलहाल केवल </span></em></span><span style="font-size:undefined"><em><span style="font-family:\">57 </span></em></span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><em><span style="font-family:\">फीसदी किसान स्वरोजगार में लगे हैं और </span></em></span><span style="font-size:undefined"><em><span style="font-family:\">36 </span></em></span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><em><span style="font-family:\">फीसदी से ज्यादा मजदूरी करते हैं। इस </span></em></span><span style="font-size:undefined"><em><span style="font-family:\">36 </span></em></span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><em><span style="font-family:\">फीसदी की तादाद का </span></em></span><span style="font-size:undefined"><em><span style="font-family:\">98 </span></em></span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><em><span style="font-family:\">फीसदी दिहाड़ी मजदूरी के भरोसे है यानी आज काम मिला तो ठीक वरना आसरा कल मिलने वाले काम पर टिका है।</span></em></span></p>
<p style="text-align:justify">**page**<br />
[inside]स्वास्थ्य अधिकारों को लेकर "कॉमनवेल्थ" की पहल (CHRI) ने घरेलु मजदूरों पर एक <a href="/upload/files/Domestic%20Work%20is%20Work%20CHRI%202021%282%29.pdf">रिपोर्ट</a> जारी की है. <a href="/upload/files/Domestic%20Work%20is%20Work%20CHRI%202021%281%29.pdf">रिपोर्ट</a> का नाम रखा है-डोमेस्टिक वर्क इज वर्क[/inside]</p>
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<p style="text-align:justify"><br />
कॉमनवेल्थ, हिन्दी में कहें तो राष्ट्रमंडल, ऐसे देशों का समूह जो पहले ब्रितानी हुकूमत के उपनिवेश थे अब एक संप्रभु राष्ट्र राज्य हैं. कुल नौ देश इसके सदस्य हैं. जिसमें भारत भी एक सदस्य है.</p>
</blockquote>
<p style="text-align:justify">आज से कुछ वर्षों पहले मानव अधिकारों और मजदूरों के अधिकारों से सम्बंधित संगठनों ने <span style="color:#e74c3c"><span style="font-size:14px">घरेलू</span></span><span style="font-size:14px"><span style="color:#e74c3c"> मजदूरों </span></span>के अधिकारों के लिए मांग उठाई थी. मांग के अनुरूप अंतरराष्ट्रीय मजदूर संगठन के भागीदार देशों ने सन् 2011 में एक सम्मेलन बुलाया. सम्मेलन ने घरेलु मजदूरों के मुद्दों पर एक <span style="color:#9b59b6">अभिसमय</span> तैयार किया. नाम रखा जाता है-<strong>C189</strong>. जिसे कुल 35 देशों ने सत्यापित किया. 35 में से 9 देश कॉमनवेल्थ के सदस्य हैं.</p>
<p style="text-align:justify">सम्मेलन के 10 साल बाद, CHRI की इस रिपोर्ट का मकसद घरेलू मजदूरों से सम्बंधित किये गए वादों की कॉमनवेल्थ देशों में हुई प्रगति को जांचना है. <br />
CHRI की इस रिपोर्ट ने दो ऐसे देशों को भी शामिल किया है जिन्होंने अभिसमय पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं. हालांकि यह देश घरेलू मजदूरों के अधिकारों को स्वीकार करते है- दक्षिण अफ्रीका, जमैका. <br />
क्या है इस रिपोर्ट की अनुशंसाएं-</p>
<ul>
<li style="text-align:justify">घरेलू मजदूरों के अभिसमय को बचे हुए देश स्वीकार करें और अर्थव्यवस्था में घरेलु मजदूरों की भूमिका को भी स्वीकार करें.</li>
<li style="text-align:justify">घरेलू मजदूर मिलकर मजदूर संगठनों का गठन करें ताकि उनकी आवाज में वजन आ सके.</li>
<li style="text-align:justify">अभिसमय के घोषणा वाली तारीख को एक महत्वपूर्ण दिवस के रूप में मनाया जाए.</li>
<li style="text-align:justify">लोगों के बीच में C189 के बारे में जानकारी बढ़ाई जाए. या यूँ कहें लोगों की स्वीकार्यता भी ली जाए. </li>
<li style="text-align:justify">घरेलू मजदूरों पर अधिक से अधिक आंकड़े जुटाए जाये ताकि नीति निर्माण में आसानी हो.</li>
<li style="text-align:justify">घरेलू मजदूरों के मुद्दों पर क्षेत्रीय, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय गठबन्धनों को बढ़ावा दिया जाए.</li>
<li style="text-align:justify">घरेलू मजदूरों के लिए एक फंड का गठन किया जाए.</li>
</ul>
<p>**page**<br />
दुनियाभर में "सेवानिवृत्ति के बाद आय" के लिए कई प्रणालियाँ उपलब्ध है. <a href="https://www.uk.mercer.com/our-thinking/global-pension-index-2021.html">मर्सर और सीएफए </a>नाम की दो संस्थाओं ने 43 देशों की प्रणालियों का अध्ययन किया है. अध्ययन में प्रणाली की मजबूती और कमजोरी को जांचा है.और उसे <a href="/upload/files/Mercer%281%29.pdf">सूचकांक</a> का रूप दिया है. इस [inside]सूचकांक का नाम ग्लोबल पेंशन इंडेक्स है जिसमें शामिल कुल 43 देशों में भारत ने 40 वा स्थान हासिल किया है.[/inside] </p>
<ul>
<li>इस सूचकांक के अनुसार डेनमार्क और आइसलैंड का सेवानिवृत्ति के बाद आय तंत्र सबसे बेहतर है.</li>
<li>दुनिया में अधिकतर देशों की अर्थव्यवस्था बीमार है. महामारी के दौर में इंसान के स्वास्थ्य पर भी खतरे के बादल मंडराते रहते हैं. इसलिए जरूरी है उन प्रणालियों का आलोचनात्मक विश्लेषण करना.</li>
<li>भारत में "सेवानिवृत्ति के बाद आय" के लिए कमाई पर आधारित तंत्र है. जिसे कर्मचारी भविष्य निधि (EPFO) कहते हैं. जिसमें सरकार, स्वयं और रोजगार देने वाली संस्था योगदान करते हैं. </li>
<li>भारत में सामाजिक सुरक्षा देने का दायित्व राज्य पर है. इसलिए भारत सरकार ने असंगठित क्षेत्र के लिए भी एक योजना निकाली है. साथ ही राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली भी प्रसिद्धी हासिल कर रही है.</li>
<li>भारत की इस प्रणाली में सुधार जरूरी है अन्यथा इसकी क्षमता और वहनीयता संदेह के घेरे में आ जाएगी.</li>
<li>भारत की बात करे तो सूचकांक मान में गिरावट आई है. 2020 में सूचकांक मान 45.7 था जो कम होकर 2021 में 43.3% हो गया. जिसके पीछे का कारण शुद्ध प्रतिस्थापन दर में कमी आना है.</li>
<li>अंतरराष्ट्रीय संगठन <a href="https://data.oecd.org/pension/net-pension-replacement-rates.htm">OECD</a> के अनुसार शुद्ध प्रतिस्थापन दर का अर्थ है शुद्ध पेंशन प्राप्ति में सेवानिवृति पूर्व आय का भाग.</li>
<li>इस सूचकांक में कई उप-सूचकांक में.भारत के संदर्भ में इन उप-सूचकांकों की दर इस प्रकार है.</li>
</ul>
<blockquote>
<p>पर्याप्तता- 35.5 (100 में से)<br />
वहनीयता-41.8<br />
अखंडता-61.0</p>
</blockquote>
<p><br />
सूचकांक में भारत को 'C+' श्रेणी वाला देश माना गया है. भारत को सूचकांक में अपना मान बढ़ाने के लिए कुछ उपाय करने चाहिय-</p>
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<p>गरीब वृहद्जनों को न्यूनतम आर्थिक गारंटी.<br />
पेंशन सेवा का विस्तार किया जाए.<br />
पेंशन के लिए न्यूनतम आयु निर्धारित की जाए.<br />
निजी पेंशन प्रणालियों पर बेहतर निगरानी की जाए.</p>
</blockquote>
<p>**page**<br />
पुरे देश में गिग इकॉनोमी की चर्चा है लेकिन वो सिर्फ आंकड़ो के मायाजाल तक. इससे इतर काम करने वाले कर्मचारियों की बात भी जरूरी है. बात करने का जिम्मा उठाया है बेंगलुरु की नेशनल लो <a href="https://www.nls.ac.in/">स्कूल ऑफ़ इंडिया</a> युनिवर्सिटी ने. नाम रखा है- [inside]"इज प्लेटफ़ॉर्म वर्क डिसेंट वर्क? अ केस ऑफ़ फ़ूड डिलीवरी वर्कर्स इन कर्नाटका."(जारी 8 सितम्बर,2021)[/inside]</p>
<p>किए गए <a href="/upload/files/OCCASIONAL-PAPER-SERIES-10-final%281%29.pdf">अध्ययन</a> में प्लेटफ़ॉर्म वर्कर्स के अनुभवों को एकत्रित किया गया है.<br />
<a href="/upload/files/OCCASIONAL-PAPER-SERIES-10-final%282%29.pdf">अध्ययन</a> बताता है कि कर्मचारियों को ना तो न्यूनतम मेहनताना मिलता है और ना ही काम करने का निश्चित समय.</p>
<p>**page**</p>
<p style="text-align:justify"><span style="font-size:12pt"><span style="background-color:white"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) से संबंधित वार्षिक रिपोर्ट उपरोक्त सभी संकेतकों पर डेटा प्रदान करती है. राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) द्वारा तैयार की गई तीसरी पीएलएफएस वार्षिक रिपोर्ट (जुलाई</span></span> 2019-<span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">जून</span></span> 2020) <span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">जुलाई</span></span> 2021 <span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">में जारी की गई है</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">. <span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">यह रिपोर्ट</span></span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333"> <span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">श्रम अर्थशास्त्रियों द्वारा</span></span> 2020 <span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">के राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन की अवधि के दौरान बेरोजगारी की स्थिति और देश में आजीविका की असुरक्षा पर उपयोगी अंतर्दृष्टि प्रदान करने के संबंध में महत्वपूर्ण है. ऐसा इसलिए है क्योंकि पीएलएफएस पर हाल ही में जारी</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333"> <a href="https://im4change.org/upload/files/Annual_Report_PLFS_2019_20.pdf" style="outline:none; transition:all 0.2s ease-in-out 0s; background-color:rgba(108, 172, 228, 0.2); color:blue; text-decoration:underline" title="https://im4change.org/upload/files/Annual_Report_PLFS_2019_20.pdf"><span style="color:#035588">वार्षिक रिपोर्ट</span></a> </span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">में जुलाई</span></span> 2019 <span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">से जून</span></span> 2020 <span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">तक की अवधि से संबंधित तस्वीर पेश करती है. यह</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333"> <a href="https://im4change.org/upload/files/Annual_Report_PLFS_2019_20.pdf" style="outline:none; transition:all 0.2s ease-in-out 0s; background-color:rgba(108, 172, 228, 0.2); color:blue; text-decoration:underline" title="https://im4change.org/upload/files/Annual_Report_PLFS_2019_20.pdf"><span style="color:#035588">रिपोर्ट</span></a>, </span></span> <span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">देशव्यापी लॉकडाउन (लगभग</span></span> 69 <span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">दिनों की) की अवधि के दौरान रोजगार-बेरोजगारी संकट की स्थिति पर प्रकाश डालती है.</span></span></span></span></span></span></p>
<p><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">पीएलएफएस</span></span></span> <span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">2019-20 </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">की वार्षिक रिपोर्ट से पता चलता है कि सीडब्ल्यूएस में कामगारों (ग्रामीण</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">, </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">शहरी और ग्रामीण+शहरी) को रोजगार में उनकी स्थिति के अनुसार तीन व्यापक श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है. ये व्यापक श्रेणियां हैं: (</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">i) </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">स्वरोजगार</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">; (ii) </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">नियमित वेतन/वेतनभोगी कर्मचारी</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">; </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">और (</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">iii) </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">आकस्मिक श्रम. </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">'</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">सभी स्वरोजगार</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">' </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">की श्रेणी के अंतर्गत</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">, </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">दो उप-श्रेणियाँ बनाई हैं अर्थात </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">'</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">स्वपोषित श्रमिक और सभी नियोक्ता</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">' - </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">एक साथ संयुक्त</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">, </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">और </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">'</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">घरेलू कामकाज में अवैतनिक सहायक</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">'. <span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">चार्ट-</span></span></span></span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">1 </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">में रोजगार में स्थिति के आधार पर सीडब्ल्यूएस में श्रमिकों का वितरण प्रस्तुत किया गया है. स्व-नियोजित व्यक्ति</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">, </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">जो बीमारी के कारण या अन्य कारणों से काम नहीं करते थे</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">, </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">हालांकि उनके पास स्व-रोजगार का काम था</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">, </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">उन्हें </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">'</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">सभी स्वरोजगार (पुरुष/महिला/ग्रामीण/शहरी/ग्रामीण+शहरी क्षेत्रों में व्यक्ति) श्रेणी के तहत शामिल किया गया है.</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">' <span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">इस प्रकार</span></span></span></span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">, '</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">सभी स्व-नियोजित (पुरुष/महिला/ग्रामीण/शहरी/ग्रामीण+शहरी क्षेत्रों में व्यक्ति)</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">' </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">श्रेणी के तहत दिए गए अनुमान </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">'</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">स्वपोषित श्रमिकों</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">, </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">सभी नियोक्ता</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">' </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">और </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">'</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">घरेलू उद्यम में अवैतनिक सहायक</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">' <span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">श्रेणियों के तहत अनुमानों के योग से अधिक होंगे. हमने स्व-नियोजित श्रमिकों के प्रतिशत हिस्से की गणना की है</span></span></span></span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">, </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">जिनके पास घरेलू उद्यम में काम था</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">, </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">लेकिन बीमारी या अन्य कारणों से काम नहीं किया.</span></span></span></span></span></p>
<p><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">राष्ट्रीय स्तर पर</span></span></span> <span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">'</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">स्व-नियोजित श्रमिक (अर्थात ग्रामीण + शहरी व्यक्तियों) जो घरेलू उद्यम में काम करते थे</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">, </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">लेकिन बीमारी या अन्य कारणों से काम नहीं कर पाए</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">' <span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">का प्रतिशत हिस्सा </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">1.4 </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">प्रतिशत से गिरकर </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">2017-18 </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">और </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">2018-19 </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">के बीच </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">1.2 </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">प्रतिशत हो गया. हालांकि</span></span></span></span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">, 2019-20 <span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">में यह आंकड़ा बढ़कर </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">3.4 </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">प्रतिशत हो गया</span></span></span></span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">, </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">जो <span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">2017-18 </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">के स्तर से अधिक था.</span></span></span> </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">'</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">ग्रामीण महिला</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">', '</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">ग्रामीण व्यक्ति</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">', '</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">शहरी पुरुष</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">', '</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">ग्रामीण महिला</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">', '</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">ग्रामीण व्यक्ति</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">', '</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">शहरी पुरुष</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">', </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">शहरी महिला</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">', '</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">शहरी व्यक्ति</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">', '</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">ग्रामीण+शहरी पुरुष</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">' </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">और </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">'</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">ग्रामीण+शहरी महिला</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">' '</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">स्व-नियोजित श्रमिकों</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">, </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">जो घरेलू उद्यम में काम करते थे</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">, </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">लेकिन बीमारी या अन्य कारणों से काम नहीं किया</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">' </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">के प्रतिशत हिस्से से संबंधित एक समान प्रवृत्ति देखी गई है</span></span></span></span></span></p>
<ol>
<li>
<p>अपेक्षाकृत अधिक नियमित समय अंतराल पर श्रम बल के आंकड़ों की उपलब्धता की अहमियत को ध्‍यान में रखते हुए राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) ने अप्रैल 2017 में आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) का शुभारंभ किया. पीएलएफएस के मुख्‍यत: दो उद्देश्य हैं:<br />
वर्तमान साप्ताहिक स्थिति (सीडब्‍ल्‍यूएस) में केवल शहरी क्षेत्रों के लिए तीन माह के अल्‍पकालिक अंतराल पर प्रमुख रोजगार और बेरोजगारी संकेतकों (अर्थात श्रमिक-जनसंख्या अनुपात, श्रम बल भागीदारी दर, बेरोजगारी दर) का अनुमान लगाना.</p>
<p>प्रति वर्ष ग्रामीण और शहरी दोनों ही क्षेत्रों में सामान्य स्थिति (पीएस + एसएस) और सीडब्‍ल्‍यूएस दोनों में रोजगार और बेरोजगारी संकेतकों का अनुमान लगाना.</p>
<p>प्रथम वार्षिक रिपोर्ट (जुलाई 2017-जून 2018) दरअसल मई 2019 में जारी की गई थी जिसमें ग्रामीण एवं शहरी दोनों ही क्षेत्रों को कवर किया गया और जिसमें सामान्य स्थिति (पीएस + एसएस) तथा वर्तमान साप्ताहिक स्थिति (सीडब्‍ल्‍यूएस) दोनों में रोजगार व बेरोजगारी के सभी महत्वपूर्ण मापदंडों के अनुमान दिए गए. यह दूसरी वार्षिक रिपोर्ट है जिसे एनएसओ द्वारा जुलाई 2019 -जून 2020के दौरान किए गए आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण के आधार पर जारी किया जा रहा है.<br />
बी. पीएलएफएस के तहत नमूने की संरचना</p>
<p>1- अर्थात शहरी क्षेत्रों में एक रोटेशनल पैनल नमूना संरचनाहै. इस रोटेशनल पैनल स्‍कीम में शहरी क्षेत्रों के प्रत्‍येक चयनित परिवार के यहां चार बार आगमन होता है. प्रथम आगमन के तय कार्यक्रम के अनुसार इसकी शुरुआत की जाती है और बाद में ‘पुनर्आगमन’ कार्यक्रम के अनुसार समय-समय पर तीन बार आगमन सुनिश्चित किया जाता है. शहरी क्षेत्र में प्रत्‍येक स्‍तर के भीतर एक पैनल के लिए नमूने दरअसल दो स्‍वतंत्र उप-नमूनों के रूप में लिए गए. रोटेशन योजना के तहत यह सुनिश्चित किया जाता है कि प्रथम चरण वाली नमूना इकाइयों (एफएसयू)[1] के 75 प्रतिशत का मिलान दो निरंतर आगमन के बीच अवश्‍य हो जाए. ग्रामीण नमूनों में कोई पुनर्आगमन नहीं हुआ. ग्रामीण क्षेत्रों के लिए, एक स्‍तर/उप-स्‍तर के लिए नमूने बेतरतीब ढंग से दो स्वतंत्र उप-नमूनों के रूप में लिए गए. ग्रामीण क्षेत्रों के लिए, सर्वेक्षण अवधि की प्रत्येक तिमाही में वार्षिक आवंटन के 25% एफएसयू को कवर किया गया.</p>
<p>सी. नमूना लेने की विधि</p>
<p>वार्षिक रिपोर्ट के लिए ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में जुलाई 2019- जून 2020के दौरान प्रथम दौरे या आगमन के लिए नमूने का आकार: जुलाई 2019- जून 2020 के दौरान अखिल भारतीय स्‍तर पर सर्वेक्षण के लिए आवंटित कुल 12800 एफएसयू (7024 गांव और 5776 शहरी फ्रेम सर्वे या यूएफएस ब्‍लॉक) में से कुल 12,569 एफएसयू (6,913 गांव और 5,656 शहरी ब्‍लॉक) का सर्वेक्षण पीएलएफएस कार्यक्रम के प्रचार के लिए किया जा सका. सर्वेक्षण में शामिल परिवारों की संख्‍या 1,00,480 (ग्रामीण क्षेत्रों में 55,291और शहरी क्षेत्रों में 45,189) थी. इसी तरह सर्वेक्षण में शामिल लोगों की संख्‍या 4,18,297(ग्रामीण क्षेत्रों में 2,40,231और शहरी क्षेत्रों में 1,78,066) थी.</p>
<p>महत्‍वपूर्ण रोजगार एवं बेरोजगारी संकेतकों की अवधारणात्‍मक रूपरेखा : आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) में महत्‍वपूर्ण रोजगार एवं बेरोजगारी संकेतकों जैसे कि श्रम बल भागीदारी दरों (एलएफपीआर) कामगार-जनसंख्‍या अनुपात ( डब्‍ल्‍यूपीआर), बेरोजगारी दर (यूआर), इत्‍यादि के अनुमान दिए जाते हैं. इन संकेतकों को नीचे परिभाषित किया गया है:</p>
<p>ए. श्रम बल भागीदारी दर (एलएफपीआर): एलएफपीआर को कुल आबादी में श्रम बल के अंतर्गत आने वाले व्‍यक्तियों (अर्थात कहीं कार्यरत या काम की तलाश में या काम के लिए उपलब्‍ध) के प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया जाता है.</p>
<p>बी. कामगार-जनसंख्‍या अनुपात (डब्‍ल्‍यूपीआर): डब्‍ल्‍यूपीआर को कुल आबादी में रोजगार प्राप्‍त व्‍यक्तियों के प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया जाता है.</p>
<p>सी. बेरोजगारी दर (यूआर) : इसे श्रम बल में शामिल कुल लोगों में बेरोजगार व्‍यक्तियों के प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया जाता है.</p>
<p>डी. कार्यकलाप की स्थिति- सामान्‍य स्थिति : किसी भी व्‍यक्ति के कार्यकलाप की स्थिति का निर्धारण निर्दिष्‍ट संदर्भ अवधि के दौरान उस व्‍यक्ति द्वारा किए गए कार्यों के आधार पर किया जाता है. जब सर्वेक्षण की तारीख से ठीक पहले के 365 दिनों की संदर्भ अवधि के आधार पर कार्यकलाप की स्थिति का निर्धारण किया जाता है तो इसे उस व्‍यक्ति के सामान्‍य कार्यकलाप की स्थिति के तौर पर जाना जाता है.</p>
<p>ई. कार्यकलाप की स्थिति – वर्तमान साप्‍ताहिक स्थिति (सीडब्‍ल्‍यूएस) : जब सर्वेक्षण की तारीख से ठीक पहले के सात दिनों की संदर्भ अवधि के आधार पर कार्यकलाप की स्थिति का निर्धारण किया जाता है तो इसे उस व्‍यक्ति की वर्तमान साप्‍ताहिक स्थिति (सीडब्‍ल्‍यूएस) के रूप में जाना जाता है.</p>
</li>
</ol>
<p>सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) के तहत राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) द्वारा तैयार [inside]आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण 2019-20 (23 जुलाई, 2021 को जारी)[/inside] की वार्षिक रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष इस प्रकार हैं (कृपया एक्सेस करने के लिए <a href="https://im4change.org/upload/files/Annual_Report_PLFS_2019_20.pdf">यहां</a> और <a href="https://im4change.org/upload/files/Press_note_AR_PLFS_2019_20.pdf">यहां क्लिक करें</a>):</p>
<p style="text-align:justify"><span style="font-size:11pt"><span style="background-color:white"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">विवरण</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333"> 1: </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">सभी उम्र के व्यक्तियों के लिए पीएलएफएस</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">, 2019-20 </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">और पीएलएफएस</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">, 2017-18 </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">के दौरान सामान्य स्थिति (पीएस+एसएस)* में एलएफपीआर</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">, </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">डब्‍ल्‍यूपीआर और यूआर (प्रतिशत में)</span></span></span> </span></span></span></p>
<p><span style="font-size:11pt"><span style="background-color:white"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"> </span></span></span></p>
<table cellspacing="0" class="Table" style="background:white; border-collapse:collapse; border:none; width:1104px">
<tbody>
<tr>
<td colspan="10" style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:1px inset; border-right:1px solid #dddddd; border-top:1px solid #dddddd; vertical-align:top; width:670px">
<p style="margin-left:8px; margin-right:11px; text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.0pt"><span style="color:#333333">अखिल भारतीय</span></span></strong></span></span></p>
</td>
</tr>
<tr>
<td rowspan="2" style="background-color:#ddd9c3; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:1px inset; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:94px">
<p><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.0pt"><span style="color:#333333">दरें</span></span></strong></span></span></p>
</td>
<td colspan="3" style="background-color:#ddd9c3; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:191px">
<p style="margin-left:8px; margin-right:11px; text-align:center"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.0pt"><span style="color:#333333">ग्रामीण</span></span></strong></span></span></p>
</td>
<td colspan="3" style="background-color:#ddd9c3; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:191px">
<p style="margin-left:8px; margin-right:11px; text-align:center"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.0pt"><span style="color:#333333">शहरी</span></span></strong></span></span></p>
</td>
<td colspan="3" style="background-color:#ddd9c3; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:193px">
<p style="margin-left:8px; margin-right:11px; text-align:center"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.0pt"><span style="color:#333333">ग्रामीण + शहरी</span></span></strong></span></span></p>
</td>
</tr>
<tr>
<td style="background-color:#ddd9c3; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:55px">
<p style="text-align:justify"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.0pt"><span style="color:#333333">पुरुष</span></span></strong></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:#ddd9c3; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:72px">
<p style="margin-left:13px; text-align:justify"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.0pt"><span style="color:#333333">महिला</span></span></strong></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:#ddd9c3; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:64px">
<p style="text-align:justify"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.0pt"><span style="color:#333333">व्यक्ति</span></span></strong></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:#ddd9c3; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:55px">
<p style="text-align:justify"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.0pt"><span style="color:#333333">पुरुष</span></span></strong></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:#ddd9c3; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:69px">
<p style="margin-left:13px; text-align:justify"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.0pt"><span style="color:#333333">महिला</span></span></strong></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:#ddd9c3; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:67px">
<p style="text-align:justify"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.0pt"><span style="color:#333333">व्यक्ति</span></span></strong></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:#ddd9c3; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:55px">
<p style="text-align:justify"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.0pt"><span style="color:#333333">पुरुष</span></span></strong></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:#ddd9c3; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:72px">
<p style="margin-left:13px; text-align:justify"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.0pt"><span style="color:#333333">महिला</span></span></strong></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:#ddd9c3; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:66px">
<p style="text-align:justify"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.0pt"><span style="color:#333333">व्यक्ति</span></span></strong></span></span></p>
</td>
</tr>
<tr>
<td style="background-color:#ddd9c3; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:1px inset; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:94px">
<p style="text-align:center"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">(1)</span></span></strong></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:#ddd9c3; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:55px">
<p style="text-align:center"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">(2)</span></span></strong></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:#ddd9c3; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:72px">
<p style="text-align:center"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">(3)</span></span></strong></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:#ddd9c3; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:64px">
<p style="text-align:center"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">(4)</span></span></strong></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:#ddd9c3; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:55px">
<p style="text-align:center"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">(5)</span></span></strong></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:#ddd9c3; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:69px">
<p style="text-align:center"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">(6)</span></span></strong></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:#ddd9c3; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:67px">
<p style="text-align:center"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">(7)</span></span></strong></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:#ddd9c3; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:55px">
<p style="text-align:center"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">(8)</span></span></strong></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:#ddd9c3; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:72px">
<p style="text-align:center"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">(9)</span></span></strong></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:#ddd9c3; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:66px">
<p style="text-align:center"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">(10)</span></span></strong></span></span></p>
</td>
</tr>
<tr>
<td colspan="10" style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:1px inset; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:670px">
<p style="margin-left:8px; margin-right:11px; text-align:center"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.0pt"><span style="color:#333333">पीएलएफएस</span></span></strong><strong> </strong><strong><span style="color:#333333">2019-20</span></strong></span></span></p>
</td>
</tr>
<tr>
<td style="background-color:#ddd9c3; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:1px inset; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:94px">
<p><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.0pt"><span style="color:#333333">एलएफपीआर</span></span></strong></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:55px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">56.3</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:72px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">24.7</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:64px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">40.8</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:55px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">57.8</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:69px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">18.5</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:67px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">38.6</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:55px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">56.8</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:72px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">22.8</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:66px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">40.1</span></span></span></span></p>
</td>
</tr>
<tr>
<td style="background-color:#ddd9c3; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:1px inset; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:94px">
<p><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.0pt"><span style="color:#333333">डब्‍ल्‍यूपीआर</span></span></strong></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:55px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">53.8</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:72px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">24.0</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:64px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">39.2</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:55px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">54.1</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:69px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">16.8</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:67px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">35.9</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:55px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">53.9</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:72px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">21.8</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:66px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">38.2</span></span></span></span></p>
</td>
</tr>
<tr>
<td style="background-color:#ddd9c3; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:1px inset; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:94px">
<p><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.0pt"><span style="color:#333333">यूआर</span></span></strong></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:55px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">4.5</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:72px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">2.6</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:64px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">4.0</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:55px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">6.4</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:69px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">8.9</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:67px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">7.0</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:55px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">5.1</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:72px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">4.2</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:66px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">4.8</span></span></span></span></p>
</td>
</tr>
<tr>
<td colspan="10" style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:1px inset; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:670px">
<p style="margin-left:8px; margin-right:11px; text-align:center"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.0pt"><span style="color:#333333">पीएलएफएस</span></span></strong><strong> </strong><strong><span style="color:#333333">2018-19</span></strong></span></span></p>
</td>
</tr>
<tr>
<td style="background-color:#ddd9c3; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:1px inset; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:94px">
<p><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.0pt"><span style="color:#333333">एलएफपीआर</span></span></strong></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:55px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">55.1</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:72px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">19.7</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:64px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">37.7</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:55px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">56.7</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:69px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">16.1</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:67px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">36.9</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:55px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">55.6</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:72px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">18.6</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:66px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">37.5</span></span></span></span></p>
</td>
</tr>
<tr>
<td style="background-color:#ddd9c3; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:1px inset; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:94px">
<p><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.0pt"><span style="color:#333333">डब्‍ल्‍यूपीआर</span></span></strong></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:55px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">52.1</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:72px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">19.0</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:64px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">35.8</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:55px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">52.7</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:69px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">14.5</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:67px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">34.1</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:55px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">52.3</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:72px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">17.6</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:66px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">35.3</span></span></span></span></p>
</td>
</tr>
<tr>
<td style="background-color:#ddd9c3; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:1px inset; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:94px">
<p><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.0pt"><span style="color:#333333">यूआर</span></span></strong></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:55px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">5.6</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:72px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">3.5</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:64px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">5.0</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:55px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">7.1</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:69px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">9.9</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:67px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">7.7</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:55px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">6.0</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:72px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">5.2</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:66px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">5.8</span></span></span></span></p>
</td>
</tr>
<tr>
<td colspan="10" style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:1px inset; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:670px">
<p style="margin-left:8px; margin-right:11px; text-align:center"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.0pt"><span style="color:#333333">पीएलएफएस</span></span></strong><strong><span style="color:#333333"> 2017-18</span></strong></span></span></p>
</td>
</tr>
<tr>
<td style="background-color:#ddd9c3; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:1px inset; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:94px">
<p><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.0pt"><span style="color:#333333">एलएफपीआर</span></span></strong></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:55px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">54.9</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:72px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">18.2</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:64px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">37.0</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:55px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">57.0</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:69px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">15.9</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:67px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">36.8</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:55px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">55.5</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:72px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">17.5</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:66px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">36.9</span></span></span></span></p>
</td>
</tr>
<tr>
<td style="background-color:#ddd9c3; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:1px inset; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:94px">
<p><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.0pt"><span style="color:#333333">डब्‍ल्‍यूपीआर</span></span></strong></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:55px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">51.7</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:72px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">17.5</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:64px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">35.0</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:55px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">53.0</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:69px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">14.2</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:67px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">33.9</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:55px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">52.1</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:72px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">16.5</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:66px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">34.7</span></span></span></span></p>
</td>
</tr>
<tr>
<td style="background-color:#ddd9c3; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:1px inset; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:94px">
<p><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.0pt"><span style="color:#333333">यूआर</span></span></strong></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:55px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">5.8</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:72px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">3.8</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:64px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">5.3</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:55px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">7.1</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:69px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">10.8</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:67px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">7.8</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:55px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">6.2</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:72px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">5.7</span></span></span></span></p>
</td>
<td style="background-color:white; border-bottom:1px solid #dddddd; border-left:none; border-right:1px solid #dddddd; border-top:none; vertical-align:top; width:66px">
<p style="text-align:right"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:black">6.1</span></span></span></span></p>
</td>
</tr>
</tbody>
</table>
<p style="margin-left:8px; margin-right:11px; text-align:justify"><span style="font-size:11pt"><span style="background-color:white"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><em><span style="font-size:10.0pt"><span style="color:#333333">नोट</span></span></em></strong><strong><em><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">: *(</span></span></em></strong><strong><em><span style="font-size:10.0pt"><span style="color:#333333">पीएस</span></span></em></strong><strong><em><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333"> + </span></span></em></strong><strong><em><span style="font-size:10.0pt"><span style="color:#333333">एसएस</span></span></em></strong><strong><em><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">) = (</span></span></em></strong><strong><em><span style="font-size:10.0pt"><span style="color:#333333">प्रमुख कार्यकलाप की स्थिति</span></span></em></strong><strong><em><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333"> + </span></span></em></strong><strong><em><span style="font-size:10.0pt"><span style="color:#333333">सहायक आर्थिक कार्यकलाप की स्थिति</span></span></em></strong><strong><em><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">)</span></span></em></strong></span></span></span></p>
<p style="text-align:justify"><span style="font-size:11pt"><span style="background-color:white"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.0pt"><span style="color:#333333">प्रमुख कार्यकलाप की स्थिति</span></span></strong><strong><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333"> –</span></span></strong><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">ऐसे कार्यकलाप की स्थिति जिस पर किसी व्‍यक्ति ने सर्वेक्षण की तिथि से ठीक पहले</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333"> 365 </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">दिनों के दौरान अपेक्षाकृत लंबा समय (अवधि संबंधी प्रमुख पैमाना) व्‍यतीत किया था</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">, </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">उसे उस व्‍यक्ति के सामान्‍य प्रमुख कार्यकलाप की स्थिति माना गया.</span></span></span></span></span></span></p>
<p style="text-align:justify"><span style="font-size:11pt"><span style="background-color:white"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:10.0pt"><span style="color:#333333">सहायक आर्थिक कार्यकलाप की स्थिति</span></span></strong><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">– </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">ऐसे कार्यकलाप की स्थिति जिसमें किसी व्‍यक्ति ने अपने सामान्‍य प्रमुख कार्यकलाप के अलावा सर्वेक्षण की तिथि से ठीक पहले</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333"> 365 </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">दिनों की संदर्भ अवधि के दौरान</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333"> 30 </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">दिन या उससे अधिक समय तक कुछ आर्थिक गतिविधि की थी</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">, </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">उसे उस व्‍यक्ति के सहायक आर्थिक कार्यकलाप की स्थिति माना गया.</span></span></span></span></span></span></p>
<p style="text-align:justify"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:black">बेरोज़गारी दर:</span></span></strong></span></span></p>
<ul style="list-style-type:square">
<li style="text-align:justify"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">वित्तीय वर्ष </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">2019-20 </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">में बेरोज़गारी दर गिरकर </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">4.8% </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">तक पहुँच गई है</span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">, </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">जबकि वर्ष </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">2018-19 </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">में यह </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">5.8% </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">और वर्ष </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">2017-18 </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">में </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">6.1% </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">पर थी.</span></span></span></span></li>
</ul>
<p style="text-align:justify"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:black">कामगार जनसंख्या दर:</span></span></strong></span></span></p>
<ul style="list-style-type:square">
<li style="text-align:justify"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">इसमें वर्ष </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">2018-19 </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">में </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">35.3% </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">और वर्ष </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">2017-18 </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">में </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">34.7% </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">की तुलना में वर्ष </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">2019-20 </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">में सुधार हुआ है तथा यह </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">38.2% </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">पर पहुँच गई है.</span></span></span></span></li>
</ul>
<p style="text-align:justify"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:black">श्रम बल भागीदारी अनुपात:</span></span></strong></span></span></p>
<ul style="list-style-type:square">
<li style="text-align:justify"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">वर्ष </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">2019-20 </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">में यह पिछले दो वर्षों में क्रमशः </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">37.5% </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">और </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">36.9% </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">की तुलना में बढ़कर </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">40.1% </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">हो गया है. अर्थव्यवस्था में </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">‘</span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">श्रम बल भागीदारी अनुपात</span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">’ </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">जितना अधिक होता है यह अर्थव्यवस्था के लिये उतना ही बेहतर होता है.</span></span> </span></span></li>
</ul>
<p style="text-align:justify"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><strong><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:black">लिंग आधारित बेरोज़गारी दर:</span></span></strong></span></span></p>
<ul style="list-style-type:square">
<li style="text-align:justify"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">आँकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि वर्ष </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">2019-20 </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">में पुरुष और महिला दोनों के लिये बेरोज़गारी दर गिरकर क्रमशः </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">5.1% </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">और </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">4.2% </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">पर पहुँच गई है</span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">, </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">जो कि वर्ष </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">2018-19 </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">में क्रमशः </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">6% </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">और </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">5.2% </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">पर थी.</span></span></span></span>
<ul style="list-style-type:circle">
<li style="text-align:justify"><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">वर्ष के दौरान </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">‘</span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">कामगार जनसंख्या दर</span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">’ </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">और </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">‘</span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">श्रम बल भागीदारी अनुपात</span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">’ </span></span><span style="font-size:12.0pt"><span style="color:#474747">में भी तुलनात्मक रूप से सुधार हुआ है.</span></span></span></span></li>
</ul>
</li>
</ul>
<p style="text-align:justify"> </p>
<p>**page**</p>
<p style="text-align:justify"><span style="font-size:12pt"><span style="background-color:white">[inside] ग्रामीण विकास पर स्थायी समिति की रिपोर्ट: अनुदान की मांग (2021-22), तेरहवीं रिपोर्ट, [/inside] 9 मार्च, 2021 को लोकसभा में प्रस्तुत की गई और 9 मार्च, 2021 को राज्य सभा में रखी गई,<span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333"> </span><span style="color:#333333">सत्रहवीं लोकसभा</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">, </span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">लोकसभा सचिवालय</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">, </span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">ग्रामीण विकास मंत्रालय की इस रिपोर्ट देखने के लिए कृपया <a href="https://www.im4change.org/upload/files/13th%20report%20Standing%20Committee%20on%20Rural%20Development%202020-2021%2017th%20Lok%20Sabha%20MoRD.pdf">यहां क्लिक करें</a>. ग्रामीण विकास विभाग (ग्रामीण विकास मंत्रालय के तहत) की अनुदान मांगों (</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">2021-22) </span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">को लोकसभा में मांग संख्या </span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">86</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333"> के तहत पेश किया गया था</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">, </span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">जिसमें सरकार द्वारा डीओआरडी को </span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">131,519.08</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333"> करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे. ग्रामीण विकास पर स्थायी समिति ने उपरोक्त अनुदानों की मांग की जांच की और </span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">2020-21</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333"> के दौरान योजनाओं के प्रदर्शन की समीक्षा की. समिति की टिप्पणियों/सिफारिशों को रिपोर्ट में दिया गया है. रिपोर्ट में शामिल योजनाएं हैं: महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा)</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">; </span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण (पीएमएवाई-जी)</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">; </span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">प्रधान मंत्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाई)</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">; </span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन डीएवाई-एनआरएलएम</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">; </span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (एनएसएपी)</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">; </span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">श्यामा प्रसाद मुखर्जी ग्रामीण-शहरी मिशन (एसपीएमआरएम)</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">; </span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">और सांसद आदर्श ग्राम योजना (एसएजीवाई).</span></span></span></span></p>
<p style="text-align:justify"><span style="font-size:12pt"><span style="background-color:white"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">---</span></span></span></span></p>
<p style="text-align:justify"><span style="font-size:12pt"><span style="background-color:white">[inside] श्रम पर स्थायी समिति की रिपोर्ट: अंतर-राज्यीय प्रवासी श्रमिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा और कल्याण उपाय (2020-21), सोलहवीं रिपोर्ट [/inside], 11 फरवरी, 2021 को लोकसभा में प्रस्तुत की गई और 11 फरवरी, 2021 को राज्यसभा में रखी गई, सत्रहवीं लोकसभा, लोकसभा सचिवालय, श्रम और रोजगार मंत्रालय द्वारा जारी इस रिपोर्ट को देखने के लिए <a href="https://www.im4change.org/upload/files/Standing%20Committee%20Report%20on%20Labour%20Social%20Security%20and%20Welfare%20Measures%20for%20Inter%20State%20Migrant%20Workers%202020-21%20Sixteenth%20Report.pdf">यहां क्लिक करें</a>. <span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">वर्तमान महामारी ने सरकार को प्रवासी कामगारों की दुर्दशा पर गंभीरता से विचार करने के लिए मजबूर किया है</span><span style="color:#333333">, </span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">यह देखते हुए कि संकट के दौरान उनमें से लाखों लोगों ने खुद को अभूतपूर्व संकट में पाया है. तदनुसार</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">, </span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">भारत सरकार ने अपने विभिन्न अंगों के माध्यम से कुछ नई योजनाएं तैयार कीं और कुछ अन्य योजनाएं पहले से ही अस्तित्व में हैं ताकि महामारी और इसके परिणामस्वरूप लगाए गए लॉकडाउन के कारण प्रवासी श्रमिकों की कठिनाइयों को कम किया जा सके. इस तरह की योजनाओं में अन्य बातों के साथ-साथ प्रधानमंत्री गरीब कल्याण रोजगार अभियान</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">, </span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">, </span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">आत्मानिर्भर भारत योजना</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">, </span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">किफायती रेंटल हाउसिंग कॉम्प्लेक्स</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">, </span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">आयुष्मान भारत-प्रधान मंत्री जन आरोग्य योजना आदि शामिल हैं.</span></span></span></span></p>
<p style="text-align:justify"><span style="font-size:12pt"><span style="background-color:white"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">संकट के दौरान प्रवासी मजदूरों की दयनीय दुर्दशा को देखते हुए और ऐसे श्रमिकों की स्थिति को कम करने के लिए शुरू की गई विभिन्न योजनाओं की प्रभावशीलता का आकलन करने के लिए समिति ने इस विषय को जांच और रिपोर्ट में इसको दर्ज किया. इस प्रक्रिया में</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">, </span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">समिति ने श्रम और रोजगार मंत्रालय</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">, </span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">उपभोक्ता मामले</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">, </span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">खाद्य और सार्वजनिक वितरण (उपभोक्ता मामले और खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग)</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">, </span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">स्वास्थ्य और परिवार कल्याण</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">, </span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">आवास और शहरी मामले</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">, </span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">ग्रामीण विकास</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">, </span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">कौशल विकास और उद्यमिता और इन मंत्रालयों/विभागों से पृष्ठभूमि की जानकारी और लिखित स्पष्टीकरण प्राप्त करने के अलावा इन मौखिक और लिखित बयानों के आधार पर</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">, </span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">समिति ने इस विषय पर विस्तृत विवरण दिया है जैसा कि बाद के अध्यायों में बताया गया है.</span></span></span></span></p>
<p style="text-align:justify"><span style="font-size:12pt"><span style="background-color:white"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">संसदीय स्थायी समिति की रिपोर्ट के अनुसार</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">, </span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">अंतर्राज्यीय प्रवासी मजदूरों सहित अकुशल श्रमिकों को स्थायी आजीविका प्रदान करने के लिए मनरेगा से बेहतर कोई योजना नहीं है. वास्तव में</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">, </span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">2005 में मनरेगा कानून को लागू करके</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">, </span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">भारतीय संसद ने एक ऐसी प्रक्रिया को गति प्रदान की थी जो नागरिकता के विचार से मिलकर एक विशिष्ट और महत्वपूर्ण कल्याणकारी प्रावधान प्रदान करती है. चूंकि सामाजिक-आर्थिक अधिकार</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">, </span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">काम करने के अधिकार सहित</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">, </span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">लंबे समय से राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों का हिस्सा रहे हैं</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">, </span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">समिति का मानना है कि मंत्रालय ने 262 में अकुशल श्रमिकों</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">, </span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">विशेष रूप से प्रवासी श्रमिकों के लिए मनरेगा के तहत स्वीकृत कार्य मजदूरी रोजगार के लिए पर्याप्त अवसर प्रदान किया होगा. समिति की रिपोर्ट में यह सलाह दी गई है कि मंत्रालय को अकुशल/प्रवासी श्रमिकों को न केवल महामारी के दौरान</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">, </span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">बल्कि हर समय</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">, </span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">किसी भी आकस्मिकता को पूरा करने और गरीब वर्गों की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए मजदूरी रोजगार के प्रावधान में अपने प्रयास को जारी रखना चाहिए.</span></span></span></span></p>
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<p>[inside]लेशन्स् फॉर सोशल प्रोटेक्शन फ्रॉम द कोविड-19 रिपोर्ट 1 & 2: स्टेट रिलीफ (फरवरी, 2021 में जारी)[/inside] नामक रिपोर्ट (देखने के लिए <a href="https://www.im4change.org/upload/files/IIHS.pdf">यहां क्लिक करें</a>) COVID -19 और भारत में लगे लॉकडाउन का उपयोग सामाजिक सुरक्षा के सुरक्षात्मक पहलू का आकलन करने के लिए एक महत्वपूर्ण समय के तौर पर देखता है, इस संबध में एक दूसरे से जुड़े तीन प्रश्ननों के जरिये इसे समझने का प्रयास किया गया है।</p>
<p>सबसे पहला प्रश्न है कि COVID -19 के प्रभाव से निपटने के लिए तत्काल राहत के उपाय क्या हैं और साथ ही लॉकडाउन में हमारी सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों की वर्तमान स्थिति कैसी है? दूसरा, इन उपायों से लॉकडाउन जैसी जटिल और विवश स्थितियों में प्रभावी रूप से राहत कैसे पहुंचाई जाए ? तीसरा, तात्कालिक राहत के लिये उठाए गए ये कदम न केवल मध्यम अवधि के लिए बल्कि दूरगामी सामाजिक सुरक्षा प्रणाली बनाने और उसमे सुधार करने के लिए कैसे कारगर साबित होंगे?</p>
<p>लेखक गौतम भान, अंतारा राय चौधरी, नेहा मर्गोसा, किंजल संपत और निधि सोहने ने भारत सरकार द्वारा कोविड-19 माहामारी के दौरान लगाए गए चार चरणबद्ध लॉकडाउन और 20 मार्च से 31 मई, 2020 के बीच 181 घोषणाओं का विश्लेषण किया है। शोधकर्ताओं ने अपने विश्लेषण में मुख्य रूप से सामाजिक सुरक्षा से निकटता से संबंधित तीन प्रकार की राहत पर ध्यान केंद्रित किया है जिसमें भोजन, नकदी हस्तांतरण और श्रम सुरक्षा शामिल है। यह रिपोर्ट इन तीन प्रकार की राहत से जुड़ी घोषणाओं, परिपत्रों, सूचनाओं और आदेशों पर केंद्रित है।</p>
<p>इसके अलावा, शोधकर्ताओं ने रिपोर्ट की संरचना करने वाले तीन प्रमुख विश्लेषणात्मक फ्रेम नियोजित किये हैं जिसमें आईडेंटिटी यानी पहचान, अधिकार की परिभाषा और वितरण तंत्र शामिल हैं। ये तीनों किसी भी सामाजिक सुरक्षा को समझने की मौजूदा प्रणाली के मुख्य घटक माने गए हैं। शोध का पहला हिस्सा पहचान पर केंद्रित है, जिसमें राहत स्कीम से जुड़ने के लिये जरूरी योग्यता, प्रत्यक्ष राहत के लिए डेटाबेस का उपयोग और जरूरी सत्यापन प्रक्रिया शामिल है।</p>
<p>शोध का दूसरा भाग अधिकार को परिभाषित करने पर जोर देता है, जिसमें आकलन किया गया है कि लॉकडाउन के दौरान राहत के रूप में क्या दिया गया, साथ ही उन कारकों पर विचार किया गया जिन्होनें इस पूरी प्रक्रिया का नेतृत्व किया है। वहीं शोध के तीसरे हिस्से में डिलीवरी तंत्र को देखा गया है, जो संचार के माध्यम, प्रक्रिया और एक उचित समय सीमा के भीतर सही व्यक्ति तक राहत पहुँचाने पर केंद्रित रहा।</p>
<p>लॉकडाउन के दौरान लागू किए गए राहत उपायों का एक बड़ा संग्रह हैं, जिसका आलोचनात्मक आकलन करना जरूरी है। इस दौरान पहले से जारी और नये उपायों के साथ मौजूदा वितरण तंत्र आगे बढ़ा है। साथ ही बीच-बीच में किए गए अस्थायी उपायों से भी राहत प्राप्त करने वालों की नई श्रेणियां, अधिकार के नए रूप और वितरण के नए तंत्र विकसित हुए हैं। हमारे लिये यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि हम इस समय लागू किए गए सामाजिक सुरक्षा उपायों की निरंतरता और नवाचार से सीखें ताकि कोविड-19 माहामारी के बाद भी इन सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों को सुधारने की ओर काम किया जा सके।</p>
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<p>एशियन डेवल्पमेंट बैंक (ADB) और अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) द्वारा जारी [inside]टैक्लिंग द कोविड-19 यूथ एम्पलॉएमेंट इन एशिया एंड द पेसिफिक (18 अगस्त, 2020 को जारी)[/inside] नामक रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष इस प्रकार हैं (उपयोग करने के लिए कृपया <a href="https://www.im4change.org/upload/files/adb-ilo-covid-19-youth-employment-crisis-asia-pacific.pdf">यहाँ क्लिक करें</a>)</p>
<p>• भारत में 3 महीने के नियंत्रण परिदृश्य (लघु नियंत्रण) की वजह से, लगभग <a href="https://www.im4change.org/upload/files/ADB%20ILO%20report%20table.jpg">41 लाख</a> के आसपास युवा नौकरियों से हाथ धो सकते है, इसके बाद पाकिस्तान 15 लाख युवाओं की नौकरियां जा सकती हैं.</p>
<p>• भारत में 6 महीने के नियमन परिदृश्य (लंबे समय तक रहने) की वजह से, 61 लाख के आसपास युवा नौकरियों से हाथ धो सकते है, इसके बाद पाकिस्तान 23 लाख युवाओं की नौकरियां जा सकती हैं.</p>
<p>• फिजी (29.8 प्रतिशत), भारत (29.5 प्रतिशत) और मंगोलिया (28.5 प्रतिशत) में, युवा बेरोजगारी की दर 30 प्रतिशत के करीब बढ़ सकती है, और संक्षिप्त नियंत्रण (3 महीने) की वजह से श्रीलंका युवा बेरोजगारी की दर में उस स्तर (32.5 प्रतिशत) से अधिक हो सकती है.</p>
<p>• लंबे नियंत्रण (6 महीने) की वजह से, भारत में युवा बेरोजगारी दर बढ़कर 32.5 प्रतिशत हो सकती है.</p>
<p>• भारत में सात क्षेत्रों में युवाओं की नौकरियों के नुकसान का सबसे अधिक अनुपात कृषि (28.8 प्रतिशत) में महसूस किया जाएगा, इसके बाद निर्माण (24.6 प्रतिशत), खुदरा व्यापार (9.0 प्रतिशत), अंतर्देशीय परिवहन (5.7 प्रतिशत), कपड़ा और वस्त्र उत्पाद (4.2 प्रतिशत), अन्य सेवाएँ (3.1 प्रतिशत) और होटल और रेस्तरां (1.9 प्रतिशत) शामिल हैं. अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों में 22.7 प्रतिशत युवाओं को नौकरियों का नुकसान उठाना पड़ेगा.</p>
<p>• युवाओं की नौकरियां खत्म होने का खेल पूरे साल 2020 तक जारी रहेगी और इसके परिणामस्वरूप युवा बेरोजगारी दर दोगुनी हो सकती है. 2020 में एशिया और प्रशांत के 13 देशों में 1 से 1.5 करोड़ युवा रोजगार (पूर्णकालिक समकक्ष) खो सकते हैं. ये अनुमान आउटपुट में अपेक्षित गिरावट और परिणामस्वरूप COVID-19 परिदृश्य से पहले के दौर की सापेक्ष श्रम मांग में कमी पर आधारित हैं. अनुमानों में भारत और इंडोनेशिया जैसे बड़े देशों के साथ-साथ फिजी और नेपाल जैसे छोटे भी शामिल हैं.</p>
<p>• प्रशिक्षुता और इंटर्नशिप के प्रावधान पर प्रभाव के साथ काम-आधारित शिक्षा के व्यवधान भी महत्वपूर्ण हैं. कोविड-19 पर कर्मचारियों के विकास और प्रशिक्षण के साथ सार्वजनिक और निजी उद्यमों और अन्य संगठनों पर एक सर्वेक्षण से संकेत मिलता है कि, भारत में, दो-तिहाई फर्म-स्तरीय प्रशिक्षुता और तीन चौथाई इंटर्नशिप पूरी तरह से बाधित थे. इसके बावजूद, भारत में दस में से छह कंपनियां प्रशिक्षुओं और प्रशिक्षुओं को वेतन या वजीफा प्रदान करती रहीं.</p>
<p>• प्रशिक्षुता और इंटर्नशिप जारी रखने से रोकने वाली कंपनियों के रूप में सबसे बड़ी चुनौतियां (1) हाथ से प्रशिक्षण देने में कठिनाइयाँ थीं, (2) बुनियादी ढाँचे के मुद्दे (दोनों देश), (3) उपयोगकर्ताओं की सीमित डिजिटल साक्षरता (भारत में), और (4) लागत (फिलीपींस में) थी.</p>
<p>• सार्वजनिक और निजी उद्यमों और अन्य संगठनों के लिए COVID-19 महामारी के संदर्भ में कर्मचारियों के विकास और प्रशिक्षण पर वैश्विक सर्वेक्षण ADB और ILO सहित दस अंतर्राष्ट्रीय और क्षेत्रीय विकास भागीदारों द्वारा शुरू किया गया था. इस रिपोर्ट में उल्लिखित प्रतिक्रियाएँ भारत में कार्यरत 71 फर्मों और फिलीपींस में कार्यरत 183 फर्मों के एक नमूने पर आधारित हैं. यह गौरतलब है कि प्रत्येक प्रश्न का उत्तर देने वालों की एक अलग संख्या है. यह रिपोर्ट लिखते समय, सर्वेक्षण के परिणाम अभी तक प्रकाशित नहीं हुए थे.</p>
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<p> यह वार्षिक रिपोर्ट, राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) द्वारा जुलाई 2018 से जून 2019 तक किए गए आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) पर आधारित है. इस सर्वे के लिए 12,720 प्रथम चरण इकाइयों - FSUs (6,983 गाँवों और 53737 शहरी ब्लॉकों) में 1,01,579 घरों (ग्रामीण क्षेत्रों में 55,812 और शहरी क्षेत्रों में 45,767) और 4,20,757 व्यक्तियों (ग्रामीण क्षेत्रों में 2,39,817 व्यक्ति और शहरी क्षेत्रों में 1,80,940) की गणना की गई है. सर्वे में सामान्य स्थिति (पीएस + एसएस) तथा वर्तमान साप्ताहिक स्थिति (सीडब्यूएस) दोनों में रोजगार व बेरोजगारी के सभी महत्वपूर्ण मापदंडों के अनुमान प्रस्तुत किए गए हैं. सामान्य स्थिति (ps + ss) दृष्टिकोण के लिए संदर्भ अवधि 1 वर्ष है और वर्तमान साप्ताहिक स्थिति दृष्टिकोण के लिए अवधि 1 सप्ताह है. शहरी क्षेत्रों में एक रोटेशनल पैनल नमूना डिजाइन का उपयोग किया गया था। इस रोटेशनल पैनल योजना में शहरी क्षेत्रों में प्रत्येक चयनित घर का चार बार दौरा किया जाता है - शुरुआत में पहले दौरे में अनुसूची के साथ और तीन बार समय-समय पर पुनरीक्षण कार्यक्रम के साथ. ग्रामीण नमूनों में कोई पुनरावृत्ति नहीं हुई. यहां प्रस्तुत घरेलू और जनसंख्या, श्रम बल, कार्यबल और बेरोजगारी के अनुमान ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में पहले दौरे के अनुसूचियों में एकत्र किए गए आंकड़ों पर आधारित हैं.</p>
<p>राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) द्वारा की गई [inside]आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण की वार्षिक रिपोर्ट (जुलाई 2018 से जून 2019 तक)[/inside] के प्रमुख निष्कर्ष इस प्रकार हैं, (देखने के लिए <a href="https://im4change.org/docs/annual-report-on-periodic-labour-force-survey-july-2018-june-2019.pdf">यहां क्लिक करें.</a>)</p>
<p><strong>सामान्य स्थिति में श्रम बल (ps+ss)</strong></p>
<p>• लगभग 55.1 प्रतिशत ग्रामीण पुरुष, 19.7 प्रतिशत ग्रामीण महिलाएँ, 56.7 प्रतिशत शहरी पुरुष और 16.1 प्रतिशत शहरी महिलाएँ श्रमिक थीं.</p>
<p>• 15-29 वर्ष की आयु वर्ग में भारत में श्रम बल भागीदारी दर (LFPR-Labor Force Participation Rate) 38.1 प्रतिशत थी: जोकि ग्रामीण क्षेत्रों में 37.8 प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों में 38.7 प्रतिशत थी.</p>
<p>• 15 वर्ष और उससे अधिक आयु वर्ग में भारत में श्रम बल भागीदारी दर 50.2 प्रतिशत थी: जोकि ग्रामीण क्षेत्रों में 51.5 प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों में 47.5 प्रतिशत थी.</p>
<p><strong> श्रमिक जनसंख्या अनुपात (WPR) सामान्य स्थिति में (ps+ss)</strong></p>
<p>• अखिल भारतीय स्तर पर श्रमिक-जनसंख्यान अनुपात (डब्ल्यूपीआर) लगभग 35.3 प्रतिशत था. यह ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग 35.8 प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों में 34.1 प्रतिशत था.</p>
<p>• अखिल भारतीय स्तर पर श्रमिक-जनसंख्याह अनुपात (डब्ल्यूपीआर) ग्रामीण पुरुषों के लिए 52.1 प्रतिशत, ग्रामीण महिलाओं के लिए 19.0 प्रतिशत, शहरी पुरुषों के लिए 52.7 प्रतिशत और शहरी महिलाओं के लिए 14.5 प्रतिशत था.</p>
<p>• 15-29 वर्ष की आयु के व्यक्तियों में, भारत में श्रमिक-जनसंख्याि अनुपात (डब्ल्यूपीआर) 31.5 प्रतिशत था: इस आयु वर्ग में यह ग्रामीण क्षेत्रों में 31.7 प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों में 30.9 प्रतिशत था.</p>
<p>• 15 वर्ष और उससे अधिक आयु वर्ग के लिए भारत में श्रमिक-जनसंख्याक अनुपात (डब्ल्यूपीआर) 47.3 प्रतिशत था: यह ग्रामीण क्षेत्रों में 48.9 प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों में 43.9 प्रतिशत था.<br />
सामान्य स्थिति में श्रमिकों के रोजगार की स्थिति (ps+ss)</p>
<p>• भारत में स्वपोषित श्रमिकों की संख्या, ग्रामीण पुरुषों में 57.4 प्रतिशत, ग्रामीण महिलाओं में 59.6 प्रतिशत, शहरी पुरुषों में 38.7 प्रतिशत और शहरी महिलाओं में 34.5 प्रतिशत थी.</p>
<p>• श्रमिकों में, ग्रामीण पुरुषों में लगभग 14.2 प्रतिशत, ग्रामीण महिलाओं में 11.0 प्रतिशत, शहरी पुरुषों में 47.2 प्रतिशत और शहरी महिलाओं में 54.7 प्रतिशत नियमित वेतन/वेतनभोगी कर्मचारी थे.</p>
<p>• भारत में दिहाड़ी-मजदूरी करने वाले श्रमिकों का अनुपात ग्रामीण पुरुषों में लगभग 28.3 प्रतिशत, ग्रामीण महिलाओं में 29.3 प्रतिशत, शहरी पुरुषों में 14.2 प्रतिशत और शहरी महिलाओं में 10.3 प्रतिशत था.<br />
<br />
<strong>सामान्य स्थिति में श्रमिकों के काम का उद्योग (पीएस+एसएस)</strong></p>
<p>• 2018-19 के दौरान, ग्रामीण क्षेत्रों में, लगभग 53.2 प्रतिशत पुरुष श्रमिक और 71.1 प्रतिशत महिला श्रमिक कृषि क्षेत्र में कार्यरत थे. ग्रामीण क्षेत्रों में निर्माण क्षेत्र में काम कर रहे पुरुष और महिला श्रमिकों का अनुपात क्रमशः 15.4 प्रतिशत और 6.0 प्रतिशत था. ग्रामीण क्षेत्रों में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टक में काम कर रहे पुरुष और महिला श्रमिकों का अनुपात क्रमशः 7.3 प्रतिशत और 9.0 प्रतिशत था.</p>
<p>• 2018-19 के दौरान, शहरी भारत में लगभग 25.2 प्रतिशत पुरुष उद्योग, व्यापार, होटल और रेस्तरां क्षेत्रों में काम कर रहे थे, जबकि मैन्युफैक्चरिंग और 'अन्य सेवा’ क्षेत्रों में क्रमशः 21.9 प्रतिशत और 22.3 प्रतिशत शहरी पुरुष काम कर रहे थे.</p>
<p>• शहरी क्षेत्रों में महिला श्रमिक 'अन्य सेवा' क्षेत्र यानी सर्विस सेक्टर ('व्यापार, होटल और रेस्तरां' और 'परिवहन, भंडारण और संचार के अलावा') में सबसे अधिक अनुपात (45.6 प्रतिशत) में काम कर रही थीं, उसके बाद मैन्युफैक्चरिंग (24.5) प्रतिशत) और 'व्यापार, होटल और रेस्तरां' (13.8 प्रतिशत) में कार्यरत थीं.<br />
</p>
<p><strong>अनौपचारिक क्षेत्र और सामान्य स्थिति में श्रमिकों के रोजगार की शर्तें (ps+ss)</strong></p>
<p>• भारत में, गैर-कृषि क्षेत्र में 68.4 प्रतिशत श्रमिक अनौपचारिक क्षेत्र में काम कर रहे थे. पुरुष श्रमिकों के बीच अनौपचारिक क्षेत्र की हिस्सेदारी 71.5 प्रतिशत थी और गैर-कृषि में महिला श्रमिकों की संख्या लगभग 54.1 प्रतिशत थी.</p>
<p>• गैर-कृषि क्षेत्र में नियमित वेतन/वेतनभोगी कर्मचारियों में, 69.5 प्रतिशत के पास कोई लिखित नौकरी अनुबंध नहीं था: 70.3 प्रतिशत पुरुषों के पास और 66.5 प्रतिशत महिलाओं के पास कोई लिखित नौकरी अनुबंध नहीं था.</p>
<p>• गैर-कृषि क्षेत्र में नियमित वेतन/वेतनभोगी कर्मचारियों में, 53.8 प्रतिशत श्रमिक भुगतान छुट्टी (paid leave) के लिए पात्र नहीं थे: 54.7 प्रतिशत पुरुष और 50.6 प्रतिशत महिला श्रमिक भुगतान छुट्टी (paid leave) के लिए पात्र नहीं थी.</p>
<p>• गैर-कृषि क्षेत्र में नियमित वेतन/वेतनभोगी कर्मचारियों के बीच, 51.9 प्रतिशत श्रमिक किसी भी सामाजिक सुरक्षा लाभ के लिए पात्र नहीं थे: 51.2 प्रतिशत पुरुष और 54.4 प्रतिशत महिला श्रमिक किसी भी सामाजिक सुरक्षा लाभ के लिए पात्र नहीं थीं.<br />
<br />
<strong>सामान्य स्थिति में बेरोजगारी दर (ps+ss) </strong></p>
<p>• देश में बेरोजगारी दर 5.8 प्रतिशत थी. ग्रामीण क्षेत्रों में, बेरोजगारी दर पुरुषों में 5.6 प्रतिशत और महिलाओं में 3.5 प्रतिशत थी, जबकि शहरी क्षेत्रों में, पुरुषों में यह दर 7.1 प्रतिशत और महिलाओं में 9.9 प्रतिशत थी.</p>
<p>• 15 वर्ष या उससे अधिक आयु के शिक्षित (माध्यमिक और उससे ऊपर के उच्चतम स्तर के) व्यक्तियों में, बेरोजगारी दर 11.0 प्रतिशत: ग्रामीण क्षेत्रों में 11.2 प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों में 10.8 प्रतिशत थी.</p>
<p>• ग्रामीण पुरुष युवाओं (15-29 वर्ष की आयु के व्यक्तियों) के बीच बेरोजगारी दर 16.6 प्रतिशत थी जबकि 2018-19 के दौरान ग्रामीण महिला युवातियों में बेरोजगारी दर 13.8 प्रतिशत थी. शहरी पुरुष युवाओं में बेरोजगारी की दर 18.7 प्रतिशत थी जबकि शहरी महिला युवतियों में बेरोजगारी दर इस अवधि में 25.7 प्रतिशत थी.</p>
<p><strong>कृपया ध्यान दें</strong></p>
<p><em>श्रम बल भागीदारी दर (एलएफपीआर): एलएफपीआर को कुल आबादी में श्रम बल के अंतर्गत आने वाले व्यमक्तियों (अर्थात कहीं कार्यरत या काम की तलाश में या काम के लिए उपलब्धब) के प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया जाता है.</em></p>
<p><em>कामगार-जनसंख्या अनुपात (डब्यू तल पीआर): डब्यू ने पीआर को कुल आबादी में रोजगार प्राप्तम व्य क्तियों के प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया जाता है.</em></p>
<p><em>बेरोजगारी दर (यूआर) : इसे श्रम बल में शामिल कुल लोगों में बेरोजगार व्यबक्तियों के प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया जाता है.</em></p>
<p><em>कार्यकलाप की स्थिति- सामान्य स्थिति : किसी भी व्यरक्ति के कार्यकलाप की स्थिति का निर्धारण निर्दिष्टर संदर्भ अवधि के दौरान उस व्यैक्ति द्वारा किए गए कार्यों के आधार पर किया जाता है. जब सर्वेक्षण की तारीख से ठीक पहले के 365 दिनों की संदर्भ अवधि के आधार पर कार्यकलाप की स्थिति का निर्धारण किया जाता है तो इसे उस व्येक्ति के सामान्यद कार्यकलाप की स्थिति के तौर पर जाना जाता है.</em></p>
<p><em>कार्यकलाप की स्थिति – वर्तमान साप्ताभहिक स्थिति (सीडब्यूि एस) : जब सर्वेक्षण की तारीख से ठीक पहले के सात दिनों की संदर्भ अवधि के आधार पर कार्यकलाप की स्थिति का निर्धारण किया जाता है तो इसे उस व्याक्ति की वर्तमान साप्ता्हिक स्थिति (सीडब्यूथ एस) के रूप में जाना जाता है.</em><br />
</p>
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<p>डॉमेस्टिक वर्कर्स सेक्टर स्किल काउंसिल (DWSSC) - कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय के दायरे में काम करने वाली एक <a href="http://dwsscindia.in/about-us-2/">गैर-लाभकारी कंपनी</a>, ने भारत में COVID-19 लॉकडाउन के दौरान एक सर्वे किया. इस सर्वे में डीडब्ल्यूएससी ने आठ राज्यों-दिल्ली, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, असम, पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड और तमिलनाडु में फैले 200 श्रमिकों के बीच एक रैंडम सैम्पल सर्वे किया. डीडब्ल्यूएससी के अनुसार, अगर सैंपल साइज बड़ा होता तो परिणाम भिन्न हो सकते थे. सर्वे के परिणाम लॉकडाउन के दौरान डॉमेस्टिक वर्कर्स को हो रही समस्याओं की तरफ इशारा करते हैं.</p>
<p>डॉमेस्टिक वर्कर्स सेक्टर स्किल काउंसिल द्वारा जारी [inside]डॉमेस्टिक वर्कर्स पर लॉकडाउन के प्रभाव (जून 2020 में जारी)[/inside] नामक इस सर्वे के मुख्य निष्कर्ष इस प्रकार हैं (एक्सेस करने के लिए कृपया <a href="https://im4change.org/upload/files/DWSSC_Survey_Report.pdf">यहां क्लिक करें.</a>):</p>
<p>• लगभग 96 प्रतिशत डॉमेस्टिक वर्कर्स ने लॉकडाउन के दौरान काम करना बंद कर दिया, जबकि केवल 4 प्रतिशत ने काम करना जारी रखा.</p>
<p>• लॉकडाउन के दौरान, जब नागरिकों की आवाजाही प्रतिबंधित की गई तो डॉमेस्टिक वर्कर भी प्रभावित हुए. उन्हें इस लॉकडाउन के दौरान काम करने के लिए मना किया गया और सरकार ने लॉकडाउन अवधि के दौरान नियोक्ताओं को उन्हें भुगतान करने की सलाह दी. लगभग 85 प्रतिशत डॉमेस्टिक वर्कर्स को लॉकडाउन अवधि के दौरान उनके नियोक्ताओं द्वारा कोई भुगतान नहीं किया गया, जबकि इसी दौरान केवल 15 प्रतिशत डॉमेस्टिक वर्कर्स को तनख्वाह मिल रही थी. बड़े शहरों में रहने वाले अधिकांश डॉमेस्टिक वर्कर्स को उनके नियोक्ताओं द्वारा भुगतान किया जा रहा था.</p>
<p>• DWSSC के इस सर्वे से पता चलता है कि लगभग 30 प्रतिशत डॉमेस्टिक वर्कर्स के पास जरूरतों के लिए पर्याप्त पैसा / नकदी नहीं बची है. यह उनकी सबसे बड़ी चुनौती थी क्योंकि उन्हें नहीं पता था कि वे कब तक उनके पास बची थोड़ी सी धनराशि के साथ गुजारा कर पाएंगे. अधिकांश डॉमेस्टिक वर्कर्स को उनके नियोक्ताओं ने लॉकडाउन अवधि के दौरान वेतन नहीं दिया थी.</p>
<p>• लगभग 38 प्रतिशत डॉमेस्टिक वर्कर्स को भोजन की व्यवस्था करने में समस्याओं का सामना करना पड़ा क्योंकि पास की दुकानों में उपलब्ध स्टॉक सीमित थे. हालांकि सभी नहीं, लेकिन कुछ डॉमेस्टिक वर्कर्स को भी पीडीएस दुकानों से राशन प्राप्त करने में समस्याओं का सामना करना पड़ा.</p>
<p>• मोटे तौर पर एक-चौथाई डॉमेस्टिक वर्कर्स को भोजन से संबंधित किसी भी समस्या का सामना नहीं करना पड़ा और उनमें से ज्यादातर या तो ऐसे थे जो वापस अपने मूल स्थान पर लौट गए थे या फिर ऐसे श्रमिक जिनके नियोक्ता उन्हें लॉकडाउन अवधि के दौरान मजदूरी / वेतन का भुगतान कर रहे थे.</p>
<p>• लगभग 23.5 प्रतिशत डॉमेस्टिक वर्कर्स अपने मूल स्थानों पर वापस चले गए क्योंकि उनके पति / अभिभावक (पिता) दिहाड़ी मजदूर जैसे पेंटर, राजमिस्त्री, आदि थे. अधिकांश डॉमेस्टिक वर्कर्स मुख्य रूप से बड़े शहरों से अपने गांव वापस लौटे थे. लगभग 76.5 प्रतिशत डॉमेस्टिक वर्कर्स उन शहरों / कस्बों में वापस आ गए हैं जहाँ वे अपने परिवारों के साथ रह रहे थे.</p>
<p>• सरकार द्वारा लॉकडाउन अवधि के दौरान दी जा रही सुविधाओं का लाभ उठाने के लिए केवल 41.5 प्रतिशत डॉमेस्टिक वर्कर्स सरकारी हेल्पलाइन के बारे में जानते थे.</p>
<p>• डॉमेस्टिक वर्कर्स की अधिकांश आबादी (लगभग 98.5 प्रतिशत) कोविड -19 से संक्रमित होने से बचने के लिए बरती जाने वाली सावधानियों के बारे में जानते थे.</p>
<p>• DWSSC की <a href="http://dwsscindia.in/about-us-2/">वेबसाइट</a> के अनुसार, डॉमेस्टिक वर्कर्स या डॉमेस्टिक हेल्प सेक्टर से लगभग 2 करोड़ श्रमिक अपनी रोजी-रोटी चलाते हैं, जिनमें अधिकतर महिलाएं हैं, जिनकी सेवाओं पर कभी किसी का ध्यान नहीं जाता. ये लाखों डॉमेस्टिक वर्कर्स गाँवों में निम्न मध्यम वर्गीय परिवारों से लेकर महानगरों में सबसे संपन्न लोगों तक पाए जा सकते हैं. एक हिसाब से डॉमेस्टिक वर्कर्स घरों मंा 'जीवन रेखा' के रूप में कार्य करते हुए पूर्णकालिक और अंशकालिक, लिव-इन और लिव-आउट के रूप में कई प्रकार की सेवाएं प्रदान करते हैं, और इसलिए उन्हें 'डॉमेस्टिक वर्कर्स' कहा जाता है. इस पेशे से जुड़ी प्रथाएं अनिच्छुक और पूरी तरह से अस्वीकार्य हैं, इसी वजह से ही डॉमेस्टिक वर्क को अभी तक सम्मानित पेशे या व्यापार की तरह नहीं देखा जाता है.</p>
<p>• एक डॉमेस्टिक वर्कर किसी व्यक्ति या परिवार के लिए विभिन्न प्रकार की सेवाएं दे सकता है, जो कुशल और अकुशल श्रमिक के रूप में कार्य करते हुए बच्चों, बुजुर्गों, बीमार, विकलांगों के अलावा घरेलू रखरखाव, खाना पकाने, कपड़े धोने, खरीदारी आदि की देखभाल करता है. डीडब्ल्यूएसएससी की <a href="http://dwsscindia.in/about-us-2/">वेबसाइट</a> के मुताबिक, डॉमेस्टिक वर्क असंगठित क्षेत्र के सबसे बड़े क्षेत्रों में से एक हैं और इनकी संख्या 47 लाख से लेकर 2 करोड़ 50 लाख के बीच है. ज्यादातर डॉमेस्टिक वर्कर्स, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदायों के हैं.<br />
</p>
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<p>[inside]श्रमबल सर्वेक्षण(2017-18) के नये आंकड़ों के विश्लेषण पर आधारित शोध आलेख सर्जिकल स्ट्राइक ऑन एम्पलॉयमेंट: द रिकार्ड ऑफ द फर्स्ट मोदी गवर्नमेंट[/inside] के अनुसार:</p>
<p> </p>
<p>--- साल 2017-18 में ग्रामीण क्षेत्रों के कार्य-योग्य आयु के 25 फीसद पुरुष और 75 फीसद महिलाओं को रोजगार हासिल नहीं था.</p>
<p> </p>
<p>--- साल 2011-12 में रोजगार की दशा पर केंद्रित एनएसएसओ का पिछला सर्वेक्षण हुआ था और साल 2017-18 में हालिया पीरियॉडिक लेबर फोर्स सर्वे. इस अवधि के बीच बेरोजगारी की दशा में नाटकीय बदलाव आये हैं.</p>
<p> </p>
<p>--- अखिल भारतीय स्तर पर देखें तो उक्त अवधि में ग्रामीण क्षेत्रों की कार्य-योग्य आयु वाली आबादी में रोजगार-प्राप्त पुरुषों की संख्या में 6.8 प्रतिशत की कमी आयी है जबकि कार्य-योग्य उम्र की ग्रामीण महिला आबादी में रोजगार प्राप्त महिलाओं की संख्या 11.7 प्रतिशत घटी है.</p>
<p> </p>
<p>--- शहरी क्षेत्रों में कार्य योग्य आबादी में रोजगार प्राप्त पुरुषों की संख्या उक्त अवधि(2011-12 से 2017-18 के बीच) में 4.2 प्रतिशत घटी है जबकि महिलाओं में 1.2 प्रतिशत.</p>
<p> </p>
<p>--- कार्य प्रतिभागिता दर में गिरावट का रुझान नये आंकड़ों में तकरीबन सभी बड़े राज्यों में नजर आ रहा है और यह रुझान ग्रामीण तथा शहरी एवं स्त्री तथा पुरुष कामगारों पर समान रुप से लागू होता है.</p>
<p> </p>
<p>---- देश की सर्वाधिक आबादी वाले 22 राज्यों में कोई भी राज्य ऐसा नहीं जहां कार्य-प्रतिभागिता दर में कमी नहीं आयी हो.</p>
<p> </p>
<p>--- कार्य-योग्य आयु की ग्रामीण महिला आबादी में बेरोजगारों की तादाद में इजाफा विशेष रुप से उल्लेखनीय है. अखिल भारतीय स्तर पर देखें तो साल 2017-18 में कार्य-योग्य उम्र की मात्र एक चौथाई महिलाओं को रोजगार हासिल था.</p>
<p> </p>
<p>---- राज्य स्तर पर यह आंकड़ा और भी ज्यादा खराब स्थिति के संकेत करता है. मिसाल के लिए, साल 2017-18 में बिहार में मात्र 4 फीसद ग्रामीण महिलाओं को रोजगार हासिल हुआ. उत्तरप्रदेश और पंजाब में 15 प्रतिशत से भी कम ग्रामीण महिलाओं(कार्य-योग्य आयु की) को रोजगार हासिल हुआ.</p>
<p> </p>
<p>--- देश की सर्वाधिक आबादी वाले 22 राज्यों में केवल तीन राज्य--- आंध्रप्रदेश, छत्तीसगढ़ तथा हिमाचल प्रदेश ही ऐसे हैं जहां साल 2017-18 में कार्य-योग्य आयु की 50 फीसद से ज्यादा ग्रामीण महिलाओं को रोजगार हासिल हुआ. साल 2011-12 में 22 राज्यों में से 7 राज्यों में 50 प्रतिशत से ज्यादा ग्रामीण महिलाओं को रोजगार हासिल हुआ था.</p>
<p> </p>
<p>---- साल 2011-12 से 2017-18 के बीच कृषि-क्षेत्र में रोजगार पाने वाले पुरुषों की तादाद में 4 प्रतिशत तथा इस क्षेत्र में रोजगार पाने वाली महिलाओं की तादाद में 6 प्रतिशत की कमी आयी है. साल 2017-18 में कृषि-क्षेत्र में 28 प्रतिशत ग्रामीण पुरुषों तथा 13 प्रतिशत ग्रामीण महिलाओं को कृषि-क्षेत्र में रोजगार हासिल हुआ.</p>
<p> </p>
<p>--- उक्त अवधि में निर्माण-कार्य(कंस्ट्रक्शन) के क्षेत्र में रोजगार की स्थिति में भारी तब्दीली आयी है. साल 2004-05 से 2011-12 के बीच निर्माण-कार्य का क्षेत्र रोजगार के विस्तार के लिहाज से प्रमुख क्षेत्र बनकर उभरा. साल 2004-05 से 2011-12 के बीच निर्माण-कार्य के क्षेत्र में रोजगार-प्राप्त लोगों में ग्रामीण पुरुषों की तादाद 3.4 प्रतिशत तथा ग्रामीण महिलाओं की तादाद 1.1 प्रतिशत बढ़ी.</p>
<p> </p>
<p>--- निर्माण-कार्य के क्षेत्र में रोजगार-प्राप्त ग्रामीण आबादी के बढ़ने की प्रमुख वजह रही रोजगार की तलाश में पलायन कर निकले लोगों का किसी अन्य क्षेत्र में रोजगार हासिल ना होना और अंतिम विकल्प के रुप में निर्माण-कार्य के क्षेत्र में गहन परिश्रम और सामाजिक सुरक्षा विहीन काम चुनना.</p>
<p> </p>
<p>--- साल 2011-12 के बाद निर्माण-कार्य के क्षेत्र में उपलब्ध रोजगार में कमी आयी है. साल 2011-12 से 2017-18 के बीच निर्माण-कार्य के क्षेत्र में रोजगार प्राप्त लोगों की तादाद में ग्रामीण पुरुषों की संख्या 0.4 प्रतिशत बढ़ी है जबकि ग्रामीण महिलाओं की तादाद में 0.7 प्रतिशत की कमी आयी है.</p>
<p> </p>
<p>--- दिहाड़ी कामगारों के एतबार से देखें तो ग्रामीण और शहरी तथा स्त्री और पुरुष सरीखे तमाम कामगार-वर्गों के लिए रोजगार के अवसर कम हुए हैं. रोजगार के अवसरों में कुल 3 प्रतिशत की कमी आयी है.</p>
<p> </p>
<p>---- स्वरोजगार प्राप्त लोगों की संख्या में भी कमी के रुझान हैं. साल 2011-12 में स्वरोजगार प्राप्त लोगों की तादाद 20.2 प्रतिशत थी जो साल 2017-18 में घटकर 18.1 प्रतिशत हो गई. </p>
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<p>[inside]स्टेट ऑफ़ वर्किंग इंडिया 2019[/inside] रिपोर्ट (देखने के लिए कृपया <a href="https://im4change.org/docs/431State_of_Working_India_2019_Centre_for_Sustainable_Employment_Azim_Premji_University.pdf">यहाँ क्लिक करें</a>), जिसे सेंटर फॉर सस्टेनेबल एम्प्लॉयमेंट, अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी द्वारा तैयार किया गया है.</p>
<p>• इस रिपोर्ट को 2016 और 2018 के बीच की अवधि में नौकरियों की स्थिति और रोजगार सृजन के लिए कुछ विचारों के साथ प्रस्तुत किया गया है.</p>
<p>• भारत में साल 2019 के शुरुआती कुछ महीने श्रम अर्थशास्त्रियों और सांख्यिकीविदों के लिए असामान्य रूप से घटनाओं से भरपूर रहे हैं. नए साल की शुरुआत में ही रोजगार सृजन को लेकर चल रहे विवाद ने तब एक नया मोड़ ले लिया जब सोमेश झा ने बिजनेस स्टैंडर्ड अखबार में रोजगार पर एक नए राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) की रिपोर्ट का खुलासा कर दिया. सोमेश झा ने नये आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) को लीक कर इसके ’निष्कर्षों की सूचना दी, जिससे पता चला कि 2017-2018 में बेरोजगारी दर 6.1 प्रतिशत तक बढ़ी है, जोकि अबतक सबसे ज्यादा है.</p>
<p>• भारत की श्रम सांख्यिकी प्रणाली में बदलाव किए जा रहे है. राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएस-ईयूएस) द्वारा आयोजित पाँच-वर्षीय रोजगार-बेरोजगारी सर्वेक्षण, जिसे साल 2011-12 में आखरी बार जारी किया गया था, को बंद कर दिया गया है. लेबर ब्यूरो (LB-EUS) द्वारा किए जाने वाले वार्षिक सर्वेक्षण भी बंद कर दिए गए हैं. इस श्रृंखला में अंतिम उपलब्ध सर्वेक्षण 2015 में जारी किया गया है.</p>
<p>• वर्तमान एनडीए सरकार ने पिछले लेबर ब्यूरो सर्वेक्षण (2016-17) के परिणाम और एनएसएसओ द्वारा किए जाने वाले नए आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) के परिणाम जारी नहीं किए हैं. इसी वजह से हमारे पास 2015-16 के बाद राष्ट्रीय प्रतिनिधि घरेलू सर्वेक्षण के आधार पर आधिकारिक रोजगार संख्या उपलब्ध नहीं है.</p>
<p>• आधिकारिक सर्वेक्षण के आंकड़ों की अनुपस्थिति में, इस रिपोर्ट को तैयार करने के लिए 2016 और 2018 के बीच रोजगार की स्थिति को समझने के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था की निगरानी के लिए केंद्र के उपभोक्ता पिरामिड सर्वेक्षण (CMIE-CPDX) से डेटा का उपयोग किया है.</p>
<p>• सीएमआईई-सीपीडीएक्स (CMIE-CPDX) एक राष्ट्रीय प्रतिनिधि सर्वेक्षण है जो लगभग 160,000 घरों और 522,000 व्यक्तियों को शामिल करता है और इसे तीन खंडों में किया जाता है, प्रत्येक में चार महीने होते हैं, जोकि हर साल जनवरी से शुरू होता है. 2016 में इस सर्वेक्षण में एक रोजगार-बेरोजगारी मॉड्यूल जोड़ा गया था.</p>
<p>• सीएमआईई-सीपीडीएक्स (CMIE-CPDX) के विश्लेषण से पता चलता है कि 2016 और 2018 के बीच 50 लाख लोगों की नौकरियां चली गईं. इस सिलसिले की शुरुआत नवंबर 2016 में हुई नोटबंदी से जुड़ी नौकरियों में गिरावट से हुई, हालांकि इन प्रवृत्तियों के आधार पर कोई भी प्रत्यक्ष कारण संबंध स्थापित नहीं किया जा सकता है.</p>
<p>• विश्लेषण से यह भी पता चलता है कि सामान्य रूप से, बेरोजगारी 2011 में तेजी से बढ़ी है. PLFS और CMIE-CPDX दोनों की कुल बेरोजगारी दर 2018 में लगभग 6 प्रतिशत है, जो कि 2000 से 2011 के दशक में दोगुनी थी.</p>
<p>• भारत के बेरोजगार ज्यादातर उच्च शिक्षित और युवा हैं. शहरी महिलाओं में, स्नातक तक पढ़ी कामकाजी उम्र की महिलाएं आबादी का 10 प्रतिशत हैं, लेकिन उनमें से 34 प्रतिशत बेरोजगार हैं. 20-24 वर्ष आयु वर्ग के युवा सबसे अधिक बेरोजगार हैं. उदाहरण के लिए, शहरी पुरुषों में, इस आयु वर्ग के युवा कामकाजी उम्र की आबादी का 13.5 प्रतिशत हैं, लेकिन उनमें से 60 प्रतिशत बेरोजगार हैं.</p>
<p>• उच्च शिक्षितों के बीच बढ़ती बेरोजगारी के अलावा, साल 2016 के बाद कम शिक्षित (और संभावित, अनौपचारिक) श्रमिकों को भी नौकरियों से हाथ धोना पड़ा है और उनके लिए भी से नौकरी के अवसरों में कमी आई है.</p>
<p>• आमतौर पर, पुरुषों की तुलना में महिलाएं बहुत अधिक प्रभावित होती हैं. पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में बेरोजगारी दर ज्यादा है और साथ ही श्रम बल भागीदारी दर भी पुरुषों से कम है.</p>
<p>• 2016 और 2018 के बीच लेबर फोर्स के साथ-साथ वर्क फोर्स के आकार में गिरावट आई है और बेरोजगारी की दर में वृद्धि हुई है, जोकि चिंता का विषय है.</p>
<p>• नीचे दी गई तालिका से, यह देखा जा सकता है कि: <br />
1) हालाँकि WPR, LFPR और UR के स्तर सर्वेक्षणों के बीच काफी भिन्न हैं, फिर भी रुझान समान हैं; <br />
2) सर्वेक्षणों में महिलाओं की तुलना में पुरुषों के स्तर बहुत बेहतर हैं. <br />
3) और एलएफपीआर और डब्ल्यूपीआर मोटे तौर पर सर्वेक्षण में समान हैं, जबकि सर्वेक्षणों में यूआर में अधिक भिन्नता है.</p>
<p><img alt="Table" src="/siteadmin/tinymce/uploaded/Table_7.jpg" /></p>
<p><em><strong>Note:</strong> Labour Force Participation Rate (LFPR, percentage of working age people working or looking for work); Workforce Participation Rate (WPR, percentage of working age people working); and Unemployment Rate (UR, percentage of those in the labour force who are looking for work)</em></p>
<p> **page**</p>
<p>सेंटर फॉर सस्टेनेबल एम्प्लॉयमेंट, अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी द्वारा जारी की गई [inside] स्टेट ऑफ़ वर्किंग इंडिया 2018 [/inside] नामक रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष इस प्रकार हैं (देखने के लिए कृपया <a href="https://im4change.org/docs/577State_of_Working_India_2018.pdf">यहां क्लिक करें</a>):</p>
<p>• 1970 और 1980 के दशक में, जब जीडीपी की वृद्धि दर लगभग 3-4 प्रतिशत थी, तो रोजगार की वृद्धि लगभग 2 प्रतिशत प्रति वर्ष थी. 1990 के दशक से और विशेष रूप से 2000 के दशक में, जीडीपी की वृद्धि 7 प्रतिशत तक बढ़ गई लेकिन रोजगार वृद्धि 1 प्रतिशत या उससे भी कम हो गई है. सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि के मुकाबले रोजगार वृद्धि का अनुपात अब 0.1 प्रतिशत से कम है.</p>
<p>• 2013 और 2015 के दौरान कुल सत्तर लाख रोजगार कम हुए हैं. प्राइवेट स्रोतों से प्राप्त हुए हाल-फिलहाल के आंकड़ों से पता चलता है कि 2015 के बाद भी रोजगारों में गिरावट लगातार जारी है.</p>
<p>• बेरोजगारी की दर कुल मिलाकर 5 प्रतिशत से अधिक है, और युवाओं और उच्च शिक्षितों के लिए 16 प्रतिशत से अधिक है.</p>
<p>• बढ़ती मजदूरी के बावजूद भी श्रमिक, सातवें केंद्रीय वेतन आयोग द्वारा निर्धारित न्यूनतम भत्तों से काफी कम में काम कर रहे हैं. </p>
<p>• जब मुद्रास्फीति के लिए समायोजित किया जाता है, तो अधिकांश क्षेत्रों में मजदूरी की दर 3 प्रतिशत प्रति वर्ष या उससे अधिक हो गई है.</p>
<p>• 2010 और 2015 के बीच, मुद्रास्फीति के लिए समायोजित होने पर मजदूरी में संगठित निर्माण में 2 प्रतिशत प्रति वर्ष, असंगठित विनिर्माण में 4 प्रतिशत, असंगठित सेवाओं में 5 प्रतिशत, और कृषि में 7 प्रतिशत की वृद्धि (आखिरी में 2015 के बाद से बृद्धि बंद हो गई है) हुई है. साल 2000 के बाद से, अपवाद के तौर पर कृषि क्षेत्र को छोड़ दें तो, अधिकांश क्षेत्रों में लगभग 3-4 प्रतिशत की दर से मजदूरी में बढ़ोतरी हुई है. इस दर के हिसाब से असल मजदूरी हर दो दशकों में दोगुनी हो जाती है.</p>
<p>• 82 प्रतिशत पुरुष और 92 प्रतिशत महिला कर्मचारी 10,000 रुपये प्रति महीने से कम कमाते हैं. साल 2015 में, राष्ट्रीय स्तर पर, 67 प्रतिशत परिवारों की मासिक आय 10,000 रुपये थी. जबकि इसके मुकाबले सातवें केंद्रीय वेतन आयोग (सीपीसी) द्वारा अनुशंसित न्यूनतम वेतन 18,000 रुपये प्रति माह है. यहां तक कि संगठित विनिर्माण क्षेत्र में भी 90 प्रतिशत उद्योग न्यूनतम सीपीसी से नीचे मजदूरी का भुगतान करते हैं.</p>
<p>• 1980 के दशक की शुरुआत में, एक करोड़ रुपये की वास्तविक फिक्स्ड कैपिटल (2015 की कीमतों में) से संगठित विनिर्माण क्षेत्र में 90 नौकरियां चलती थीं. 2010 तक, यह आंकड़ा गिरकर 10 रह गया है.</p>
<p>• संगठित निर्माण क्षेत्र में सभी श्रमिकों में 30 प्रतिशत श्रमिक, कॉन्ट्रेक्ट यानी अनुबंधित श्रमिक हैं. 2000 के दशक की शुरुआत से ही कॉन्ट्रेक्ट और मजदूरी के अन्य अनिश्चित तरीकों में बढ़ोतरी देखने को मिली है.</p>
<p>• श्रमिक उत्पादकता, साल 1982 से छह गुना से अधिक हो गई है, लेकिन उत्पादन करने वाले श्रमिकों की वास्तविक मजदूरी में केवल 1.5 गुना बढ़ोतरी हुई है.</p>
<p>• आईटी और आधुनिक रिटेल सहित नए सेवा क्षेत्र में रोजगार 2011 में 11.5 प्रतिशत से बढ़कर 2015 में 15 प्रतिशत हो गया. हालांकि, 50% से अधिक सेवा क्षेत्र का रोजगार अभी भी छोटे कारोबारियों, घरेलू सेवाओं और अन्य प्रकार के छोटे अनौपचारिक क्षेत्र पर टिका है.</p>
<p>• सभी प्रकार के सेवा क्षेत्र में महिला श्रमिकों का 16 प्रतिशत हिस्सा ही कार्यरत है, जबकि 60 प्रतिशत महिलाएं घरेलू श्रमिक हैं. महज 22 प्रतिशत महिलाएं ही उत्पादन (विनिर्माण) क्षेत्र में शामिल हैं.</p>
<p>• महिलाओं को कमाई, पुरुषों की कमाई के 35 से 85 प्रतिशत के बीच होती है, जो काम के प्रकार और उनकी शिक्षा के स्तर पर निर्भर करती है. संगठित निर्माण क्षेत्र में, महिलाओं और पुरुषों की कमाई में साल 2000 के 35 प्रतिशत से साल 2013 में 45 प्रतिशत तक का अंतर कम हो गया है. कमाई की यह असमानता स्वयं-पोषित महिला श्रमिकों में सबसे अधिक है और उच्च शिक्षित और नियमित महिला श्रमिकों में सबसे कम है.</p>
<p>• कई अन्य विकासशील देशों की तुलना में भारत में काम करने वाली महिलाओं का प्रतिशत, जो या तो कार्यरत हैं या काम की तलाश में हैं, का प्रतिशत कम है. उत्तर प्रदेश में प्रत्येक 100 पुरुषों पर केवल 20 महिलाएँ ही किसी भी प्रकार के रोजगार में हैं. यह आंकड़ा तमिलनाडु में 50 और उत्तर-पूर्व में 70 है.</p>
<p>• श्रम बल की भागीदारी दर में पुरुषों के मुकाबले महिलाओं का अनुपात, उत्तर प्रदेश और पंजाब में 0.2 से लेकर तमिलनाडु और आंध्राप्रदेश में 0.5 और उत्तर-पूर्व में मिजोरम और नागालैंड में 0.7 तक काफी अलग-अलग है. क्षेत्रीय अध्ययनों से पता चलता है कि सामाजिक प्रतिबंधों के बजाय उपलब्ध कार्यों की कमी के कारण महिलाएं काम नहीं कर पाती हैं.</p>
<p>• अनुसूचित जाति (एससी) के साथ-साथ अनुसूचित जनजाति (एसटी) समूहों को कम भुगतान वाले व्यवसायों में अधिक कार्य दिया जाता है और उच्च भुगतान वाले व्यवसायों में बहुत कम काम मिलता है, जो स्पष्ट रूप से भारत में जाति-आधारित अलगाव की स्थायी शक्ति को दर्शाता है.</p>
<p>• अनुसूचित जाति (एससी) समुदाय के श्रमिक तथाकथित सवर्ण जाति की आय का केवल 56 प्रतिशत ही अर्जित करते हैं. यह आंकड़ा अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए 55 प्रतिशत और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए 72 प्रतिशत है.</p>
<p> **page**</p>
<p><span style="font-family:�"><em>लेबर ब्यूरो की पांचवी सालाना एम्पलॉयमेंट-अनएम्पलॉयमेंट सर्वे(2015-16), खंड-1 साल 2015 के अप्रैल से दिसंबर के बीच हुए सर्वेक्षण पर आधारित है. सर्वेक्षण के लिए नमूने के रुप में 1,56,563 घरों का चयन ग्रामीण इलाके से तथा 67,780 घरों का चयन शहरी इलाके से हुआ. </em></span></p>
<p><span style="font-family:�"><em>सर्वेक्षण में 7,81,793 व्यक्तियों का साक्षात्कार लिया गया जिसमें 4,48,254 व्यक्ति ग्रामीण घरों से तथा 3,33,539 व्यक्ति शहरी घरों से थे.</em></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-family:�"><strong>[inside]लेबर ब्यूरो(चंडीगढ़) के पांचवें सालाना एम्पलॉयमेंट-अनएम्पलॉयमेंट सर्वे(2015-16) के खंड-1( सितंबर 2016 में जारी) के मुख्य तथ्य[/inside]</strong> :<em> </em></span><a href="tinymce/uploaded/Report%20on%205th%20Annual%20Employment%20Unemployment%20Survey%202015-16.pdf" target="_blank">Click here</a></p>
<p> </p>
<p><span style="font-family:�"><em>• अगर यूपीएस(यूजअल प्रिन्सपल स्टेटस्) को आधार बनायें तो राष्ट्रीय स्तर पर बेरोजगारी की दर 5.0 प्रतिशत है. ग्रामीण इलाकों के लिए बेरोजगारी दर 5.1 प्रतिशत है जबकि शहरी इलाकों के लिए 4.9 प्रतिशत.</em></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-family:�"><em>• राष्ट्रीय स्तर पर महिला कामगारों में बेरोजगारी की दर 8.7 प्रतिशत है जबकि पुरुषों के लिए यह आंकड़ा 4.0 प्रतिशत का है.</em></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-family:�"><em>• राष्ट्रीय स्तर पर श्रमबल प्रतिभागिता दर (लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट-एलएफपीआर) 50.3 प्रतिशत है. </em></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-family:�"><em>•ग्रामीण इलाकों में एलएफपीआर 53 प्रतिशत है जबकि शहरी इलाकों के लिए यह आंकड़ा 43.5 प्रतिशत का है.</em></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-family:�"><em>• भारत में महिला कामगारों के लिए एलएफपीआर राष्ट्रीय स्तर पर 23.7 प्रतिशत है जबकि पुरुष कामगारों के लिए 48 प्रतिशत जबकि ट्रांसजेंडर के लिए 48 प्रतिशत.</em></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-family:�"><em>• यूपीएस पद्धति को आधार बनाते बनायें तो राष्ट्रीय स्तर पर वर्कर्स पॉपुलेशन रेशियो(डब्ल्यूपीआर) के 47.8 प्रतिशत होने के अनुमान हैं. </em></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-family:�"><em>• ग्रामीण इलाकों में डब्ल्यूपीआर के 50.4 प्रतिशत होने के अनुमान हैं जबकि शहरी इलाकों के लिए यह आंकड़ा 41.4 प्रतिशत का है.</em></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-family:�"><em>• महिला कामगारों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर डब्ल्यूपीआर 21.7 प्रतिशत है जबकि पुरुष कामगारों के लिए 72.1 प्रतिशत तथा ट्रांसजेंडर के लिए 45.9 प्रतिशत.</em></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-family:�"><em>• चाहे यूपीएस पद्धति को आधार बनायें या फिर यूपीपीएस(यूजअल प्रिन्सिपल एंड सब्सिडरी स्टेटस्) को रोजगार-प्राप्त लोगों में सर्वाधिक संख्या स्वरोजगार की श्रेणी में लगे कामगारों की है. </em></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-family:�"><em>• भारत में 46.6 प्रतिशत कामगार जीविका के लिए स्वरोजगार की श्रेणी में लगे हैं, अनियत कालिक रोजगार में लगे कामगारों की तादाद 32.8 प्रतिशत है जबकि 17 फीसद कामगार नियमित वेतन वाले रोजगार की श्रेणी में लगे हैं. शेष 3.7 प्रतिशत कामगार अनुबंध आधारित कामगार की श्रेणी में हैं.</em></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-family:�"><em>• राष्ट्रीय स्तर पर देखें तो 46.1 प्रतिशत कामगार कृषि, वानिकी तथा मत्स्यपालन के क्षेत्र में कार्यरत हैं. यह अर्थव्यवस्था का प्राथमिक क्षेत्र कहलाता है. द्वितीयक( विनिर्माण) क्षेत्र में 21.8 प्रतिशत तथा तृतीयक क्षेत्र(सेवा) में 32 प्रतिशत कामगारों को रोजगार हासिल है. </em></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-family:�"><em>• भारत में स्वरोजगार में लगे 67.5 प्रतिशत कामगारों की औसत मासिक आमदनी 7500 रुपये से ज्यादा नहीं है. स्वरोजगार में लगे केवल 0.1 प्रतिशत कामगारों की आमदनी 1 लाख रुपये से ज्यादा है.</em></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-family:�"><em>• इसी तरह नियमित वेतन/पारिश्रमिक पाने वाले 57.2 प्रतिशत कामगारों की औसत मासिक आमदनी 10 हजार रुपये से ज्यादा नहीं है. राष्ट्रीय स्तर पर देखें तो 38.5 प्रतिशत अनुबंधित श्रेणी के कामगार तथा 59.3 प्रतिशत अनियतकालिक कामगारों की औसत मासिक आमदनी मात्र 5000 रुपये तक सीमित है.</em></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-family:�"><em>• भारत में ज्यादातर बेरोजगार व्यक्ति जीविका पाने के लिए एक से ज्यादा तरीके अपनाते हैं, जैसे दोस्तों और रिश्तेदारों से संपर्क साधना(24.1 प्रतिशत) तथा नौकरी के विज्ञापन के बरक्स आवेदन करना(23.7 प्रतिशत) और एम्पलॉयमेंट एक्सचेंज का सहारा लेना(4.3 प्रतिशत).</em></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-family:�"><em>• देशस्तर पर देखें तो बीए स्तर की शिक्षा प्राप्त 58.3 प्रतिशत तथा एमए स्तर तक की शिक्षा प्राप्त 62.4 प्रतिशत बेरोजगारों का कहना है उनकी शिक्षा या अनुभव के स्तर के लायक काम मौजूद नहीं है और यही उनकी बेरोजगारी का प्रधान कारण है. बीए स्तर की शिक्षा प्राप्त 22.8 प्रतिशत तथा एमए स्तर की शिक्षा प्राप्त 21.5 प्रतिशत बेरोजगारों का कहना था कि पारिश्रमिक कम होना उनकी बेरोजगारी का प्रधान कारण है.</em></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-family:�"><em>• भारत में नियमित वेतन वाले 64.9 प्रतिशत कामगार तथा 95.3 प्रतिशत अनियतकालिक कामगार बिना किसी लिखित करार के जीविकोपार्जन में लगे हैं. नियमित वेतन वाले तकरीबन 27 प्रतिशत कामगार तथा अनुबंधित श्रेणी में आने वाले तकरीबन 11.5 प्रतिशत कामगार तीन साल या इससे अधिक अवधि के लिखित करार पर जीविकापार्जन में लगे हैं. </em></span></p>
<p><span style="font-size:undefined"><em>**page**</em></span></p>
<p><strong>राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के 68 वें दौर के आकलन पर आधारित [inside]एम्पलॉयमेंट एंड अनएम्पलॉमेंट सिचुएशन अमांग सोशल ग्रुप्स इन इंडिया(प्रकाशित जनवरी 2015)[/inside] नामक दस्तावेज के अनुसार-</strong></p>
<p> </p>
<p><span style="font-size:undefined">- भारत में करीब 68.8 प्रतिशत परिवार ग्रामीण क्षेत्रों से थे जो कुल जनसंख्या का करीब 71.2 प्रतिशत है।</span></p>
<p><br />
<br />
<span style="font-size:undefined">-- देश में करीब 8.8 प्रतिशत परिवार अनुसूचित जनजाति के थे। अनुसूचित जाति के परिवारों की संख्या करीब 18.7 प्रतिशत और अन्य पिछड़ी जातियों के परिवारों की संख्या 43.1 प्रतिशत है।</span><br />
</p>
<p><span style="font-size:undefined">-- ग्रामीण भारत में वैसा परिवार जिसके आय का प्रमुख स्रोत स्वरोजगार था, यह अन्य वर्ग में सबसे अधिक(58.4 प्रतिशत) था। इसके बाद अति पिछड़ा वर्ग(52.9 प्रतिशत), अनुसूचित जनजाति(49.5 प्रतिशत) तथा अनुसूचित जाति(33.7 प्रतिशत) परिवारों का स्थान है।</span><br />
</p>
<p><span style="font-size:undefined">--ग्रामीण भारत में, उन परिवारों का अनुपात जिनकी आमदनी का प्रमुख स्रोत आकस्मिक श्रम(दिहाड़ी) है, सबसे ज्यादा अनुसूचित जाति(52.6प्रतिशत) है। अनुसूचित जनजाति के बीच ऐसे परिवारों का अनुपात 38.3 प्रतिशत है जबकि अतिपिछड़ा वर्ग में 32.1 प्रतिशत। अन्य श्रेणी में शामिल 21 प्रतिशत परिवार आय अर्जन के प्रमुख स्रोत के रुप में आकस्मिक श्रम पर आश्रित हैं।</span><br />
</p>
<p><span style="font-size:undefined">-- अन्य की श्रेणी में शामिल देश के केवल 13.3 प्रतिशत ग्रामीण परिवार ही आय-अर्जन के प्रमुख स्रोत के रुप में नियमित वेतन पर आश्रित हैं। अनुसूचित जनजाति के ऐसे परिवारों की संख्या ग्रामीण इलाकों में 6.3 प्रतिशत तथा अनुसूचित जाति के ऐसे परिवारों की संख्या 8.5 प्रतिशत है। आमदनी के प्रमुख स्रोत के रुप में नियमित वेतन पर आश्रित अति पिछड़ा वर्ग के ग्रामीण परिवारों की संख्या 37.6 प्रतिशत है।</span><br />
</p>
<p><span style="font-size:undefined">-- देश के ग्रामीण अंचल में अति पिछड़ा वर्ग के 3.2 प्रतिशत परिवारों के पास धारित भूमि का आकार 4.01 हैक्टेयर या उससे अधिक है। अनुसूचित जनजाति के करीब 1.8 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों के पास कुल धारित भूमि 4.01 हैक्टेयर या उससे अधिक है जबकि अनुसूचित जाति के ऐसे परिवारों की संख्या केवल 0.8 प्रतिशत है।</span><br />
</p>
<p><span style="font-size:undefined">-- देश के ग्रामीण अंचलों में अनुसूचित जनजाति के 57.2 प्रतिशत तथा अनुसूचित जाति के 50 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों के पास मनरेगा जॉबकार्ड हैं। </span><br />
</p>
<p><span style="font-size:undefined">-- मनरेगा जॉबकार्ड वाले ग्रामीण ओबीसी परिवारों की संख्या 34.2 प्रतिशत है जबकि अन्य की श्रेणी में शामिल मनरेगा जॉबकार्ड वाले परिवारों की संख्या एसटी-एससी समुदायों की तुलना में तकरीबन दोगुनी से कम(27.1 प्रतिशत) है।</span></p>
<p> </p>
<p>**page**</p>
<p> </p>
<p>नेशनल सैंपल सर्वे के 66 वें दौर की गणना पर आधारित [inside]स्टेटस ऑव एजुकेशन एंड वोकेशनल ट्रेनिंग इन इंडिया-एनएसएसओ[/inside] नामक दस्तावेज के कुछ तथ्य-<br />
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<p><a href="%5C%22http://mospi.nic.in/Mospi_New/upload/nss_report_551.pdf%5C%22">http://mospi.nic.in/Mospi_New/upload/nss_report_551.pdf</a></p>
<p><br />
यह रिपोर्ट जुलाई 2009 से जून 2010 के दौरान संचालित एनएसएस के 66 वें दौर में रोजगार में बेरोजगारी की स्थिति पर किए गए आठवें पंचवार्षिक सर्वेक्षण पर आधारित है। सर्वेक्षण के अंतर्गत 7402 गांवों और 5252 नगरीय प्रखंडों के 100957 परिवारों( ग्रामीण क्षेत्र के 59129 और नगरीय क्षेत्र के 41828)का अवलोकन करके आंकड़े एकत्र किए गए। रिपोर्ट की कुछ मुख्य बातें निम्नलिखित हैं-<br />
<br />
- तकरीबन 70 फीसदी परिवार ग्रामीण इलाके में बसते हैं यानि देश की जनसंख्या का 73 फीसदी हिस्सा ग्रामीण इलाके में है।<br />
<br />
- ग्रामीण इलाके में परिवार का औसत आकार 4.6 व्यक्तियों का है जबकि शहरी इलाके में 4.1 व्यक्तियों का। साल 2009-10 के दौरान भारतीय परिवारों में लिंग अनुपात औसतन 936 का था। प्रतिहजार पुरुषों पर ग्रामीण इलाके में महिलाओं की संख्या 947 थी जबकि शहरों में 909।<br />
<br />
- साल 2009-10 के दौरान तकरीबन 52 फीसदी ग्रामीण परिवार स्वरोजगार में लगे थे जबकि 39 फीसदी ग्रामीण परिवार आमदनी के लिए मजदूरी पर निर्भर थे। शहरी इलाके में केवल 39 फीसदी परिवार ऐसे थे जिन्हें नियमित रोजगार के तौर पर आमदनी का स्थायी जरिया हासिल था, जबकि 41 फीसदी परिवार आमदनी के लिए स्वरोजगार पर निर्भर थे।<br />
<br />
- ग्रामीण क्षेत्रों के करीब 20 प्रतिशत और नगरीय क्षेत्र के करीब 6 प्रतिशत परिवारों में 15 वर्ष एवं उससे अधिक आयु वाला कोई भी सदस्य ऐसा नहीं था जो समझदारी के साथ एक साधारण संदेश को लिख या पढ़ सके।<br />
<br />
- 15 वर्ष और उससे अधिक उम्र की महिलाओं के मामले में देखा गया कि ग्रामीण परिवारों के करीब 40 प्रतिशत और नगरीय परिवारों की करीब 15 प्रतिशत महिलायें साक्षर नहीं थीं।<br />
<br />
- वैसे ग्रामीण परिवार जिनमें 15 वर्ष या इससे अधिक उम्र का कोई भी व्यक्ति साक्षर नहीं था, सबसे कम तादाद में केरल(1 फ्रतिशत) में पाये गए जबकि झारखंड में ऐसे परिवारों की तादाद 35 फीसदी थी। नगरीय क्षेत्रों में एक बार फिर से ऐसे परिवारों की सबसे कम तादाद केरल(0.4 फ्रतिशत) में थी जबकि बिहार के नगरीय क्षेत्रों में ऐसे परिवारों की संख्या 15 प्रतिशत पायी गई।<br />
<br />
- भारत में साल 2009-10 के दौरान ग्रामीण इलाकों में साक्षरता केरल में सबसे अधिक(87फीसदी) थी जबकि बिहार के ग्रामीण इलाकों में सबसे कम(53 फीसदी)। दूसरी तरफ प्रमुख राज्यों के नगरीय क्षेत्रों में यह साक्षरता जिन राज्यों में सर्वाधिक थी उनके नाम हैं- करेल, असम और हिमाचल( प्रत्येक में 88 प्रतिशत) उत्तरप्रदेश के नगरीय इलाकों में यह साक्षरता सबसे कम यानि 70 प्रतिशत पायी गई।<br />
<br />
- 15 वर्ष और उससे अधिक आयु वाले व्यक्तियों में केवल 2 फीसदी के पास तकनीकी डिग्री, डिप्लोमा या सर्टिफिकेट थे। यह अनुपात ग्रामीण क्षेत्रों में केवल 1 प्रतिशत एवं नगरीय क्षेत्रों में 5 प्रतिशत था।<br />
<br />
- 5 से 29 वर्ष की आयु-वर्ग के व्यक्तियों में शैक्षिक संस्था में वर्तमान उपस्थिति करीब 54 प्रतिशत था। पुरुषों में यह आंकड़ा 58 प्रतिशत है जबकि महिलाओं में 50 फीसदी।<br />
<br />
- ग्रामीण पुरुषों में(5-29 वर्ष) जो वर्तमान में उपस्थिति नहीं दे रहे थे लेकिन कभी किसी शैक्षिक संस्था में उपस्थित हुए थे,करीब 62 फीसदी ने बताया कि शैक्षिक संस्था में उनकी मौजूदा अनुपस्थिति का कारण परिवार के लिए अनुपूरक आमदनी जुटाना है। इस मामले में नगरीय क्षेत्र में ऐसा कहने वाले पुरुषों की संख्या 66 फीसदी थी।<br />
<br />
- जहां तक ग्रामीण महिलाओं का सवाल है,46 फीसदी महिलाओं ने कहा कि घरेलू कार्य की बाध्यता के कारण अब उनका शैक्षिक संस्था में जाना संभव नहीं होता, लेकिन वे पहले जरुर किसी ना किसी शैक्षिक संस्था मे गई थीं। नगरीय क्षेत्र में ऐसा कहने वाली महिलाएं 47 प्रतिशत थीं।<br />
<br />
- 15-29 वर्ष के व्यक्तियों में करीब 2 प्रतिशत ने औपचारिक व्यावसायिक प्रशिक्षण प्राप्त करने की रिपोर्ट दरज की जबकि अन्य 5 प्रतिशत ने गैर-औपचारिक व्यावसायिक प्रशिक्षण प्राप्त करने की रिपोर्ट दर्ज करवायी।<br />
<br />
- 15-29 आयु वर्ग में उन व्यक्तियों का अनुपात जिन्होंने औपचारिक व्यावसायिक प्रशिक्षण प्राप्त किया , बेरोजगारों में सर्वाधिक था। नौकरी पाने वालों में ऐसे व्यक्तियों का अनुपात 2 फीसदी पाया गया जबकि बेरोजगारों में 12 प्रतिशत।<br />
<br />
- 15-29 वर्ष के आयुवर्ग के व्यक्तियों में जिन्होंने औपचारिक व्यावसायिक प्रशिक्षण प्राप्त किया था सबसे अधिक मांग वाला प्रशिक्षण का क्षेत्र कंप्यूटर ट्रेडस् था और 26 फीसदी ने ऐसा प्रशिक्षण प्राप्त किया था।<br />
<br />
- ग्रामीण पुरुषों में प्रशिक्षण की सर्वाधिक मांग ड्राइविंग और मोटर मैकेनिक के क्षेत्र(18 फीसदी) रही। ग्रामीण इलाके में इसके बाद प्रशिक्षण की सर्वाधिक मांग कंप्यूटर ट्रेडस्(17) फीसदी रही। शहरी क्षेत्र में प्रशिक्षण की सर्वाधिक मांग वाला क्षेत्र कंप्यूटर ट्रेडस् (30 फीसदी) रहा जबकि इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रानिक इंजीनियरिंग में प्रशिक्षण का क्षेत्र मांग के मामले में दूसरे नंबर(19 फीसदी) पर रहा।<br />
<br />
• ग्रामीण इलाके की महिलाओं में प्रशिक्षण की सर्वाधिक मांग का क्षेत्र टैक्सटाईल(26 फीसदी) से संबंधित रहा। कंप्यूटर ट्रेडस की मांग 18 फीसदी रही जबकि स्वास्थ्य और इससे जुड़े देखभाल के कामों में प्रशिक्षण से संबंधित मांग का स्थान तीसरा(14 फीसदी) रहा। इसकी तुलना में शहरी क्षेत्र में महिलाओं के बीच प्रशिक्षण के मामले में सर्वाधिक मांग कंप्यूटर ट्रेडस्(32 प्रतिशत) की रही।</p>
<p> </p>
<p> </p>
<p> **page**</p>
<p>अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन(आईएलओ) द्वारा जारी [inside] ग्लोबल एम्पलॉयमेंट ट्रेन्डस्- रिकवरिंग फ्राम सेकेंड जॉब डिप [/inside] नामक दस्तावेज के अनुसार</p>
<p><a href="%5C%22http://www.ilo.org/wcmsp5/groups/public/---dgreports/---dcomm/---publ/documents/publication/wcms_202326.pdf%5C%22">http://www.ilo.org/wcmsp5/groups/public/---dgreports/---dcomm/---publ/documents/publication/wcms_202326.pdf</a></p>
<p> </p>
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<![endif]-->• वैश्विक वित्तीय संकट के पांचवें साल में, विश्वस्तर पर अर्थव्यवस्था की वृद्धि-दर में कमी आई है और एक बार फिर से बेरोजगारी बढ़ रही है। साल 2012 में विश्वस्तर पर 19 करोड़ 70 लाख लोग बेरोजगार थे। इसके अतिरिक्त इसी साल तकरीबन 3 करोड़ 90 लाख लोग श्रम-बाजार से बाहर हुए क्योंकि पहले की तुलना में नौकरियां कम हो गईं।</p>
<p>• अनुमान है कि बेरोजगारी की दर अगले दो सालों में बढ़ेगी, साल 2013 में बेरोजगारों की संख्या में वैश्विक स्तर पर 51 लाख का इजाफा होगा और इस संख्या में 2014 में 30 लाख बेरोजागार और जुड़ जायेंगे।</p>
<p>• साल 2012 में बेरोजगारों की संख्या में हुई वृद्धि का एक चौथाई विकसित अर्थव्यवस्थाओं में केंद्रित रहा जबकि तीन चौथाई विश्व के अन्य क्षेत्रों में। पूर्वी एशिया, दक्षिण एशिया और उप-सहारीय अफ्रीका सबसे ज्यादा बेरोजगारी प्रभावित इलाके रहे।.</p>
<p>• भारत की विकास दर 4.9 फीसदी पर पहुंच गई जो पिछले एक दशक में सबसे कम विकास दर है( यह आईएलओ का आकलन है, भारत सरकार का आकलन 2012 के लिए 5.9 फीसदी की विकासदर का है)। पूरे दक्षिण एशियाई क्षेत्र में जीडीपी की वृद्धि-दर में 1.6 फीसदी की गिरावट आई है।</p>
<p>• भारत में, निवेश में हुई वृद्धि का योगदान साल 2012 में जीडीपी की वृद्धि में 1.5 फीसदी रहा जो साल 2012 की तुलना में 1.8 फीसदी कम है। इसी तरह साल 2012 में जीडीपी की वृद्धि में उपभोग का योगदान 2.8 फीसदी रहा जबकि साल 2011 में यह 3.2 फीसदी था।</p>
<p>• विश्व की चुनिन्दा बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में भारत ही एकमात्र देश है जहां साल 2012 में मुद्रास्फीति बढ़ी है, जबकि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में 10 फीसदी की बढोतरी हुई है। साल 2011 में यह बढोत्तरी 9 फीसदी की थी।</p>
<p>• जैसा कि ग्लोबल एम्पलॉयमेंट ट्रेन्डस् 2012 रिपोर्ट में कहा गया है, साल 2000 के दशक में दक्षिण एशिया में तेज आर्थिक वृद्धि हुई है लेकिन यह वृद्धि श्रम की उत्पादकता में बढोत्तरी का परिणाम है ना कि नौकरियों की संख्या में हुई वृद्धि का। इस परिघटना को जॉबलेस ग्रोथ यानि बिना नौकरी के विकास की संज्ञा दी जाती है और परिघटना सबसे ज्यादा भारत में दीखती है।</p>
<p>• युवाओं के बीच सर्वाधिक बेरोजगारी मालदीव में पायी गई है। साल 2006 में इसकी दर मालदीव में 22.2 फीसदी थी जबकि भारत में यही आंकड़ा साल 2010 के लिए 10 फीसदी से ज्यादा का है।</p>
<p>• भारत में साल 2004-05 से 2009-10 के बीच कुल रोजगार की संख्या में महज 27 लाख की बढ़त हुई जबकि इसके पीछे के पाँच सालों(1999-2000 से 2004-05 के बीच) रोजगार की संख्या में इजाफा 6 करोड़ का हुआ था।</p>
<p>• विश्व के अनेक क्षेत्रों के समान आर्थिक-वृद्धि दक्षिण एशिया में भी अर्थव्यवस्था के संगठित क्षेत्र में बेहतर नौकरियां सृजित कर पाने में नाकाम रही है। यह बात सबसे ज्यादा भारत में दीखती है। साल 1999-2000 में भारत में संगठित क्षेत्र का योगदान नौकरियों में 9 फीसदी का था जो साल 2009-10 में घटकर 7 फीसदी हो गया, जबकि ये साल सर्वाधिक तेज आर्थिक-वृद्धि के साल माने जाते हैं।</p>
<p>• उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार भारत में असंगठित क्षेत्र (कृषि-एतर) में कामगारों की 83.6 फीसदी तादाद है(साल 2009-10) जबकि पाकिस्तान में यह तादाद इसी अवधि के लिए 78.4 फीसदी तथा श्रीलंका में 62.1 फीसदी है।</p>
<p>• दक्षिण एशिया में संरचनागत बदलाव की प्रक्रिया चल पड़ी है लेकिन इसका दायरा और दिशा अभी दोनों अनिश्चित हैं। खात तौर पर यह बात अभी अनिश्चित है कि क्या विनिर्माण का क्षेत्र(मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर) भारत जैसे देशों में उस तादाद को खपा सकेगा जो फिलहाल नौकरी की तलाश में हैं।मिसाल के लिए भारत में साल 2009-10 में कामगारों की तादाद महज 11 फीसदी थी और एक दशक पहले की स्थिति से तुलना करने पर इसे ऊँचा नहीं माना जा सकता।</p>
<p>• भारत में अब भी रोजगार देने के मामले में खेती का योगदान बहुत बड़ा है। साल 2010 में देश के कामगारों का 51.1 फीसदी को खेती से रोजगार हासिल था। नेपाल में साल 2001 के लिए यही आंकड़ा 65.7 फीसदी का था। इसके विपरीत मालदीव में रोजगार में सेवाक्षेत्र का योगदान साल 2006 में सर्वाधिक(60 फीसदी) था जबकि श्रीलंका में साल 2010 में सेवाक्षेत्र का योगदान रोजगार देने के मामले में 40.4 फीसदी का रहा।</p>
<p>• भारत जैसे देश में रोजगार-वृद्धि की दर कम रहने का एक बड़ा कारण महिला कार्यशक्ति की प्रतिभागिता दर का कम होना है। भारत में महिला कार्यशक्ति की प्रतिभागिता साल साल 2004-05 में 37.3 फीसदी थी जो साल 2009-10 में घटकर 29.0 फीसदी पर आ गई।</p>
<p>• भारत में उच्चकौशल के कामगारों के बीच बेरोजगारी ज्यादा है। डिप्लोमाधारी भारतीय पुरुषों के बीच साल 2009-10 में बेरोजगारी 18.9 फीसदी थी तो ऐसी महिलाओं के बीच 34.5 फीसदी। बहरहाल जिन लोगों ने प्रौद्योगिकी-उन्मुख शिक्षा हासिल की है उनके बीच बेरोजगारी की दर इससे कम है।</p>
<p>• इसके अतिरिक्त भारत में बेरोजगारी का एक पक्ष यह भी है कि काम की प्रकृति से रोजागार तलाश करने वाले लोगों के कौशल का मेल नहीं हो पा रहा और इस कारण नियोक्ताओं को खाली पदों पर नियुक्ति करने में कठिनाई हो रही है। साल 2011 में प्रकाशित मैनपॉवर टैलेंट शार्टेज सर्वे के अनुसार तकरीबन 67 फीसदी नियोक्ताओं का कहना था कि उन्हें खाली पदों को भरने के लिए योग्य लोग नहीं मिल रहे।</p>
<p>• युवाओं के बीच सर्वाधिक बेरोजगारी मालदीव में पायी गई है। साल 2006 में इसकी दर मालदीव में 22.2 फीसदी थी जबकि भारत में यही आंकड़ा साल 2010 के लिए 10 फीसदी से ज्यादा का है।</p>
<p> </p>
<p> **page**</p>
<p> </p>
<p>नेशनल सैम्पल सर्वे द्वारा जारी(24 जून,2011) [inside]की इंडीकेटर्स् ऑव एम्पलॉयमेंट एंड अन-इम्पलॉयमेंट इन इंडिया-2009-10[/inside] नामक दस्तावेज से संबंधित (प्रेस विज्ञप्ति) के अनुसार-</p>
<p><a href="%5C%22http://mospi.nic.in/Mospi_New/upload/Press_Note_KI_E&UE_66th_English.pdf%5C%22" target="\">http://mospi.nic.in/Mospi_New/upload/Press_Note_KI_E&UE_66th_English.pdf</a>:</p>
<p> </p>
<p>सर्वे के 66 वें दौर से प्राप्त भारत में रोजगार और बेरोजगारी की सूरते हाल से संबंधित ये आंकड़े कुल 1,00,957 परिवारों के आकलन पर आधारित हैं। इनमें से 59,129 परिवार ग्रामीण क्षेत्र के हैं और 41,828 परिवार शहरी क्षेत्र के। गांवों(कुल 7,402 ) और शहरी प्रखंडों (कुल 5,252) का चयन देश के सभी प्रदेशों और केद्रशासित क्षेत्रों को मिलाकर किया गया। इस आकलन में जिन क्षेत्रों को छोड़ा गया है उसका ब्यौरा है-(i) बस-रुट से पाँच किलोमीटर दूर पड़ने वाले नगालैंड के गांव (ii) वर्षभर यातायात के लिहाज से सुगम ना रहने वाले अंडमान निकोबार के कुछ गांव (iii) लेह, करगिल और जम्मू-कश्मीर का पूंछ जिला।</p>
<p> </p>
<p> </p>
<p>• राष्ट्रीय स्तर पर, कामगारों की सकल संख्या में 51 फीसदी तादाद स्वरोजगार में लगे लोगों की है। तकरीबन 33.5 फीसदी तादाद दिहाड़ी मजदूरी करने वालों की और 15.6 फीसदी तादाद नियमित मजदूरी या वेतन पाने वालों की है।</p>
<p> </p>
<p>• ग्रामीण क्षेत्र के कामगारों में 54.2 फीसदी तादाद स्वरोजगार में लगे लोगों की है। तकरीबन 38.6 फीसदी लोग दिहाड़ी मजदूर की श्रेणी में हैं और 7.3 कामगार नियमित मजदूरी या वेतन पाने वाले हैं।.</p>
<p> </p>
<p>• शहरी क्षेत्र के कामगारो में 41.1 फीसदी तादाद स्वरोजगार में लगे लोगों की है, 17.5 फीसदी दिहाड़ी मजदूर हैं और नियमित मजदूरी या वेतन पाने वाले कामगारों की संख्या 41.4 फीसदी है।</p>
<p> </p>
<p>2. उद्योगवार कामगारों की तादाद</p>
<p> </p>
<p>• ग्रामीण क्षेत्रों में तकरीबन 63 फीसदी पुरुष कामगार कृषिक्षेत्र में कार्यरत हैं जबकि अर्थव्यवस्था के द्वितीयत और तृतीयक क्षेत्र में लगे कामगारों की तादाद क्रमश 19 फीसदी और 18 फीसदी है। महिला कामगारों की भारी संख्या कृषि-क्षेत्र में कार्यरत है। कृषिक्षेत्र में कार्यरत महिला कामगारों की संख्या 79 फीसदी है जबकि अर्थव्यवस्था के द्वतीयत और तृतीयक क्षेत्र में कार्यरत महिला कामगारों की संख्या क्रमश 13 फीसदी और 8 फीसदी है।</p>
<p> </p>
<p>• शहरी क्षेत्रों में यह तस्वीर एकदम अलग है। अर्थव्यवस्था के तृतीयक क्षेत्र में तकरीबन 59 फीसदी स्त्री-पुरुष कामगार कार्यरत हैं जबकि द्वितीयक क्षेत्र में कार्यरत पुरुषों की तादाद 35 फीसदी और महिलाओं की 33 फीसदी है। शहरी श्रमशक्ति की कृषिक्षेत्र में हिस्सेदारी पुरुषों के मामले में 6 फीसदी और स्त्रियों के मामले में 14 फीसदी है।</p>
<p> </p>
<p>3.दिहाड़ी मजदूरों और नियमित पारिश्रमिक वाले कामगारों की पारिश्रमिक-दर(वेजरेट)</p>
<p> </p>
<p>• नियमित पारिश्रमिक या वेतन पाने वाले कामगारों के संबंध में- शहरी क्षेत्र में औसत पारिश्रमिक दर. 365 रुपये प्रतिदिन और ग्रामीण क्षेत्रों में. 232 रुपये प्रतिदिन है। ग्रामीण क्षेत्र में इस श्रेणी के पुरुष कामगारों के लिए प्रतिदिन औसत पारिश्रमिक. 249 रुपये और महिलाओं के लिए 156 रुपये पायी गई।इस तरह स्त्री-पुरुष कामगारों के पारिश्रमिक दर में अन्तर 0.63 अंकों का है।. शहरी क्षेत्र में इस श्रेणी के पुरुष कामगारों के लिए प्रतिदिन औसत पारिश्रमिक. 377 रुपये और महिलाओं के लिए 309 रुपये पायी गई।इस तरह स्त्री-पुरुष कामगारों के पारिश्रमिक दर में अन्तर 0.82 अंको का है।</p>
<p> </p>
<p>• दिहाड़ी मजदूरों के संबंध में- ग्रामीण क्षेत्र में इस श्रेणी के कामगारों के लिए प्रतिदिन पारिश्रमिक की दर ( सरकारी काम को छोड़कर) 93 रुपये पायी गई जबकि शहरी क्षेत्र में 122 रुपये। ग्रामीण क्षेत्रों में दिहाड़ी मजदूरी के काम में लगे पुरुष मजदूर को प्रतिदिन औसतन 102 रुपये के हिसाब से काम मिला जबकि महिला श्रमिक को. 69 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से।शहरी क्षेत्र में पुरुष श्रमिक को दिहाड़ी. 132 रुपये प्रतिदिन और महिला को. 77 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से हासिल हुई।.</p>
<p> </p>
<p>• ग्रामीण क्षेत्र में दिहाड़ी मजदूरी करने वाले पुरुष श्रमिक को सरकारी काम में मजदूरी (मनरेगा के अन्तर्गत मिलने वाले काम छोड़कर) औसतन. 98 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से मिली जबकि महिला को 86 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से। मनरेगा के अन्तर्गत मिलने वाले काम में मजदूरी का भुगतान पुरुष श्रमिक के लिए 91 रुपये प्रतिदिन और महिला श्रमिक के लिए 87 रुपये प्रतिदिन की पायी गई।</p>
<p> </p>
<!--
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<p> **page**</p>
<p><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण यानी [inside]नेशनल सैंपल सर्वे की भारत में रोजगार और बेरोजगारी की स्थिति पर केंद्रित ६२ वें दौर की गणना[/inside] के अनुसार</span></span><span style="font-size:undefined">-</span></p>
<ul>
<li><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">साल १९९३</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">९४ से तुलना करें तो एक दशक बाद यानी २००५</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">०६ में बेरोजगारी की दर में प्रतिशत पैमाने पर एक अंक की बढो़त्तरी हुई।शहरी इलाके में रोजगारयाफ्ता महिलाओं के मामले में स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया।</span></span></li>
<li><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">ग्रामीण इलाके में साल २००४</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">०५ और २००५</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">०६ के बीच वर्क पार्टिसिपेशन रेट</span></span><span style="font-size:undefined">,</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">पुरूषों के मामले में ५५ फीसदी पर स्थिर रहा जबकि महिलाओं के मामले में इसमें प्रतिशत पैमाने पर २ अंको की कमी आयी।एक साल के अंदर महिलाओं के मामले में वर्क पार्टिसिपेशन रेट ३३ फीसदी से घटकर ३१ फीसदी पर आ गया।</span></span></li>
<li><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">ग्रामीण इलाके में</span></span><span style="font-size:undefined">, </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">स्वरोजगार में लगे पुरूषों का अनुपात साल १९८३ में ६१ फीसदी था जबकि दो दशक बाद साल २००५</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">०६ में यह अनुपात घटकर ५७ फीसदी रह गया। स्वरोजगार में लगी महिलाओं के मामले में स्थिरता रही।साल १९८३ में स्वरोजगार में लगी महिलाओं का अनुपात ६२ फीसदी था और २००५</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">०६ में यही अनुपात कायम रहा। </span></span></li>
<li><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">असंगठित क्षेत्र को आधार माने तो ग्रामीण इलाके में ३५ फीसदी और शहरी इलाके में १८ फीसदी कार्य</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">दिवसों को महिलाओं को रोजगार नहीं मिला।ग्रामीण इलाके में ११ फीसदी और शहरी इलाके में ५ फीसदी कार्य</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">दिवसों में पुरूषों को रोजगार नहीं मिला।</span></span></li>
<li><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">ग्रामीण इलाके में अर्थव्यवस्था के द्वितीयक क्षेत्र </span></span><span style="font-size:undefined">(</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">खनन और खादान की खुली कटाई समेत</span></span><span style="font-size:undefined">) </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">में काम करने वाले पुरूषों के अनुपात में बढोत्तरी हुई है।१९८३ में अर्थव्यवस्था के द्वितीयक क्षेत्र </span></span><span style="font-size:undefined">(</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">खनन और खादान की खुली कटाई समेत</span></span><span style="font-size:undefined">) </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">में काम करने वाले पुरूषों का अनुपात १० फीसदी था जो साल २००५</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">०६ में बढ़कर १७ फीसदी हो गया।महिलाओं के मामले में यह आंकड़ा इस अवधि में ७ फीसदी से बढ़कर १२ फीसदी पर पहुंच गया। </span></span></li>
<li><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">ग्रामीण इलाके में १५ साल और उससे ऊपर की उम्र के केवल ५ फीसदी लोगों को लोक</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">निर्माण के हलके में काम हासिल है।इस आयु वर्ग के ७ फीसदी लोग काम की तलाश में हैं लेकिन उन्हें काम नहीं मिलता जबकि ८८ फीसदी लोक</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">निर्माण के कार्यो में रोजगार की तलाश भी नहीं करते।अगर लोक</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">निर्माण के कार्यों में ग्रामीण इलाके के पुरूषों को हासिल रोजगार के लिहाज से इस आंकड़े को देखें तो केवल ६ फीसदी पुरूषों को रोजगार हासिल है</span></span><span style="font-size:undefined">,</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">८ फीसदी लोक</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">निर्माण के कार्यों में रोजगार खोजते हैं लेकिन उन्हें हासिल नहीं होता जबकि ८५ फीसदी लोक</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">निर्माण के कार्यों में रोजगार की तलाश तक नहीं करते।महिलाओं के मामले में यही आंकड़ा क्रमशः ३</span></span><span style="font-size:undefined">,</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">६</span></span><span style="font-size:undefined">, </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">और ९१ फीसदी का है। </span></span></li>
<li><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">लोक</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">निर्माण के अंतर्गत आने वाले कामों में रोजगार पाने वाले व्यक्तियों का अनुपात प्रति व्यक्ति मासिक व्यय </span></span><span style="font-size:undefined">(</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">एमपीसीई</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">मंथली पर कैपिटा एक्पेंडिचर</span></span><span style="font-size:undefined">) </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">की बढ़ोत्तरी के साथ घटा है।यह बात स्त्री और पुरूष दोनों के मामले में देखी जा सकती है।प्रति व्यक्ति मासिक व्यय यानी एमपीसीई के सबसे ऊंचले दर्जे </span></span><span style="font-size:undefined">(</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">६९० रूपये और उससे ज्यादा</span></span><span style="font-size:undefined">) </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">में आने महज २ फीसदी पुरूषों को लोक</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">निर्माण के कार्यों में रोजगार हासिल था जबकि एमपीसीई के सबसे निचले दर्जे</span></span><span style="font-size:undefined">(</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">३२० रूपये और उससे कम</span></span><span style="font-size:undefined">) </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">के ९ फीसदी पुरूषों को</span></span><span style="font-size:undefined">, </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">यानी एमपीसीई के ऊपरले दर्जे की तुलना में एमपीसीई के निचले दर्जे के लगभग ५ गुना ज्यादा पुरूषों को लोक</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">निर्माण के कामों में रोजगार हासिल था।महिलाओं के मामले में यही आंकड़ा एमपीसीई के ऊपरले दर्जे में १ फीसदी और एमपीसीई के निचले दर्जे में ४ फीसदी का है</span></span><span style="font-size:undefined">,</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">यानी दोनों के बीच का अंतर ४ गुना है। </span></span></li>
<li><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">लोक</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">निर्माण के कार्यों में पिछले ३६५ दिनों </span></span><span style="font-size:undefined">(</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">साल २००५</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">०६</span></span><span style="font-size:undefined">) </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">स्त्री और पुरूषों को लोक</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">निर्माँण के काम औसतन क्रमशः १८ और १७ कार्यदिवसों को रोजगार हासिल हुआ।पिछले ३६५ दिनों </span></span><span style="font-size:undefined">(</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">साल २००५</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">०६</span></span><span style="font-size:undefined">) </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">में एमपीसीई के ऊपरले दर्जे </span></span><span style="font-size:undefined">(</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">६९० रूपये और उससे ज्यादा</span></span><span style="font-size:undefined">) </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">में आने वाले पुरूषों को सबसे ज्यादा कार्यदिवसों </span></span><span style="font-size:undefined">(</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">२४ दिन</span></span><span style="font-size:undefined">) </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">को रोजगार हासिल हुआ जबकि इसी अवधि में एमपीसीई के बिचले दर्जे </span></span><span style="font-size:undefined">(</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">५१०</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">६९० रूपये</span></span><span style="font-size:undefined">) </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">की महिलाओं को लोक</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">निर्माण के कार्यों में सबसे ज्यादा कार्यदिवसों </span></span><span style="font-size:undefined">(</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">२३ दिन</span></span><span style="font-size:undefined">) </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">को रोजगार हासिल हुआ। </span></span></li>
</ul>
<p>**page**<br />
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<p>श्रम और रोजगार मंत्रालय के [inside]लेबर ब्यूरो द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट ऑन एम्पलॉयमेंट एंड अनएम्पलॉयमेंट सर्वे (2009-10)[/inside] के अनुसार</p>
<p><a href="%5C%22http://labourbureau.nic.in/Final_Report_Emp_Unemp_2009_10.pdf%5C%22">http://labourbureau.nic.in/Final_Report_Emp_Unemp_2009_10.pdf</a>:</p>
<p> </p>
<p>• लेबर ब्यूरो द्वारा तैयार हालिया एम्पलॉयमेंट-अनएम्पलॉयमेंट सर्वे 28 राज्यों-केंद्रशासित प्रदेशों का है जहां देश की कुल 99 फीसदी आबादी रहती है। </p>
<p> </p>
<p>• इस सर्वे में कुल 45,859 परिवारों के 2,33,410 लोगों के साक्षात्कार लिए गए।</p>
<p> </p>
<p>• इस सर्वे में 1.4.2009 से 31.3.2010 की अवधि तक की सूचनाएं जुटायी गई हैं।</p>
<p> </p>
<p>• सर्वे के अनुसार रोजगार में लगे कुल लोगों में 45.5 फीसदी किसानी,मत्स्य-पालन और वनोपज एकत्र करने के कामों में लगे हैं। रोजगार में लगे केवल 8.9 फीसदी लोग ही मैन्युफैक्चरिंग में हैं जबकि 7.5 फीसदी कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री में।</p>
<p> </p>
<p>• ग्रामीण इलाकों में कामगार आबादी का 57.6 फीसदी हिस्सा खेती-किसानी के काम में लगा है, 7.2 फीसदी हिस्सा कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री में और 6.7 फीसदी हिस्सा मैन्युफैक्चरिंग(विनिर्माण) में।</p>
<p> </p>
<p>• शहरी इलाके में 9.9 फीसदी कामगार आबादी खेती-किसानी में लगी है,. 8.6 फीसदी कामगार आबादी कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री में जबकि 15.4 फीसदी मैन्युफैक्चरिंग के काम में। कामगार आबादी का तकरीबन 17.3 फीसदी हिस्सा होलसेल, रिटेल आदि के कामों में लगा है।</p>
<p> </p>
<p>• सर्वे रिपोर्ट में कहा गया है कि खेती-किसानी का क्षेत्र ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना में कोई अतिरिक्त रोजगार का सृजन नहीं करने वाला।बहरहाल विनिर्माण-क्षेत्र में रोजगार के 4 फीसदी की दर से बढ़ने की संभावना जतायी गई है जबकि सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना में परिवहरन और संचार(ट्रान्सपोर्ट एंड क्म्युनिकेशन) के क्षेत्र में रोजगार की बढ़ोत्तरी क्रमश 8.2 और 7.6 फीसदी की दर से हो सकती है। ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना में कुल श्रमशक्ति में साढ़े चार करोड़ का इजाफा होने की संभावना है। इसके बरक्स योजना में, 5 करोड़ 80 लाख की तादाद में रोजगार सृजन का लक्ष्य रखा गया है। उम्मीद की गई है कि इससे बरोजगारी की दर 5 फीसदी पर रहेगी। बहरहाल, मौजूदा सर्वे के परिणामों से जाहिर होता है कि अखिल भारतीय स्तर पर श्रमशक्ति का 9.4 फीसदी हिस्सा बेरोजगार है। राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को एक साथ मिलाकर भारत में बेरोजगारों की तादाद 4 करोड़ बैठती है।</p>
<p> </p>
<p>• अखिल भारतीय स्तर पर देखें तो बरोजगारों में सर्वाधिक(80 फीसदी) ग्रामीण क्षेत्र से हैं।</p>
<p> </p>
<p>• ग्रामीण भारत में बेराजगारी की दर 10.1 फीसदी है जबकि शहरी भारत में 7.3 फीसदी। पुरुषों में बेरोजगारी दर 8.0 फीसदी की है जबकि महिलाओं में 14.6 फीसदी की।</p>
<p> </p>
<p>• लेबर ब्यूरो सर्वे (2009-10) और एनएसएसओ द्वारा किए गए एम्पलॉयमेंट-अनएम्पलॉयमेंट सर्वे(2007-08) के आंकड़ों की आपसी तुलना से जाहिर होता है कि लेबर ब्यूरो के सर्वे में बेरोजगारी की दर ज्यादा बतायी गई है। कुल बेरोजगारी में कृषि क्षेत्र का हिस्सा एनएसएसओ की तुलना में 10 फीसदी ज्यादा मानने के कारण ऐसा हो सकता है।</p>
<p> </p>
<p>• सर्वे के नतीजों से पता चलता है कि 1000 लोगों में 351 आदमी रोगारशुदा हैं, 36 लोग बेरोजगार हैं जबकि 613 लोग ऐसे हैं जिनकी श्रमशक्ति के भीतर गिनती नहीं की जाती। रोजगारशुदा कुल 351 लोगों में 154 लोग स्वरोजगार की श्रेणी में हैं, 59 लोग नियमित वेतनभोगी की श्रेणी में जबकि 138 लोग ऐसे हैं जिन्हें दिहाड़ी मजदूर कहा जा सकता है। ग्रामीण इलाके में 1000 लोगों की तादाद में 356 लोग रोजगारशुदा की श्रेणी में हैं, 40 लोग बेरोजगार की कोटि में जबकि 604 लोग ऐसे हैं जिनकी गणना श्रमशक्ति में नहीं की जाती। शहरी इलाके में प्रति 1000 व्यक्तियों में रोजगारप्राप्त व्यक्तियों की तादाद 335 है, बेरोजगारी की संख्या 27 और 638 जने ऐसे हैं जिनकी गिनती श्रमशक्ति में नहीं की जाती।</p>
<p> </p>
<p>• शहरी क्षेत्र में 86 फीसदी और ग्रामीण इलाके में 81 फीसदी महिलायें ऐसी हैं जिनकी गिनती श्रमशक्ति में नहीं की जाती।</p>
<p> </p>
<p>• सर्वे के अनुसार स्वरोजगार में लगे लोगों में ज्यादातर खेती-किसानी के काम से जुड़े हैं(प्रति 1000 में 572) जबकि थोक और खुदरा व्यापार करने वालों की तादाद स्वरोजगार करने वाली कोटि के भीतर प्रति हजार व्यक्ति में 135 है।</p>
<p> </p>
<p>• नियनित वेतनभोगियों की श्रेणी में देखें तो पता चलता है कि ज्यादातर कम्युनिटी सर्विसेज से जुड़े( प्रति 1000 में 227) लोग हैं जबकि विनिर्माण क्षेत्र से जुड़े लोगों की तादाद प्रति हजार नियमित वेतनभोगियों में 153 है।</p>
<p> </p>
<p>• दिहाड़ी मजदूरी करने वालों में सर्वाधिक तादाद खेतिहर मजदूर, मछली मारने या वनोपज से जीविका चलाने वालों की (दिहाड़ी कमाने वाले प्रति हजार व्यक्ति में से 467 व्यक्ति) है जबकि कंस्ट्रक्सन के काम में लगे ऐसे व्यक्तियों की तादाद प्रति हजार में 148 है।</p>
<p> </p>
<p>• सर्वे के अनुसार रोजगार-प्राप्त लोगों में ज्यादातर वैसे उद्यमों में काम करते हैं जिन्हें प्रोपराइटी टाईप कहा जाता है। ऐसे उद्यमों में रोजगार-प्राप्त लोगों की प्रति हजार संख्या में 494 वयक्ति ऐसे उद्यमों में काम करते हैं जबकि सार्वजनिक या फिर निजी क्षेत्र की लिमिटेड कंपनियों में काम करने वालों की तादाद ऐसे लोगों में प्रतिहजार पर 200 है।</p>
<p> </p>
<p>• सर्वे के आंकड़ों से पता चलता है कि रोजगार प्राप्त प्रतिहजार व्यक्तियों में केवल 157 लोगों को ही पेड़-लीव की सुविधा मिलती है। कम्युनिटी सर्विसेज ग्रुप में प्रति हजार व्यक्तियों में 443 लोगों को पेड़-लीव की सुविधा है जबकि खेती-किसानी,वानिकी या फिर मत्स्य पालन जैसे क्षेत्रों में रोजगार प्राप्त लोगों में 1000 में 54 व्यक्तियों को ही यह सुविधा हासिल हो पाती है।</p>
<p> </p>
<p>• जहां तक प्राविडेन्ट फंड, ग्रेच्युटी, स्वास्थ्य सुविधा और मेटरनिटी बेनेफिट जैसी सुविधाओं का सवाल है विभिन्न उद्यमों में काम करने वाले प्रति हजार व्यक्तियों में से मात्र 163 ने कहा कि उन्हें इनमें से कुछ ना कुछ सुविधा मिलती है। कम्युनिटी सर्विसेज ग्रुप के सर्वाधिक लोगों(प्रति हजार में 400) ने कहा कि हमें ऐसी सुविधा मिलती है जबकि खेती-किसानी में रोजगार प्राप्त लोगों में से मात्र 82 लोगों(प्रति 1000 में) ने कहा कि उन्हें इनमें से कुछ ना कुछ सुविधा हासिल होती है।</p>
<p>**page**</p>
<p>असंगठित क्षेत्र में रोजगार की स्थिति से संबंधित राष्ट्रीय आयोग यानी नेशनल कमीशन फॉर द इन्टरप्राइजेज इन द अन-आर्गनाइज्ड सेक्टर(एनसीईयूएस) के दस्तावेज-[inside]रिपोर्ट ऑन द कंडीशन ऑव वर्क एंड प्रोमोशन ऑव लाइवलीहुड इन द अन-आर्गनाइज्ड सेक्टर[/inside] के अनुसार,</p>
<p><span style="color:\; font-size:undefined"><u><a href="%5C%22http://nceus.gov.in/Condition_of_workers_sep_2007.pdf%5C%22"><strong>http://nceus.gov.in/Condition_of_workers_sep_2007.pdf</strong></a></u></span><span style="font-size:undefined"><strong> </strong></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-size:undefined">· </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">खेत</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">मजदूरों की संख्या साल २००४</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">०५ में ८ करोड़ ७० लाख थी यानी किसानों और खेत</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">मजदूरों की कुल संख्या</span></span><span style="font-size:undefined">(</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">२५ करोड़ ३० लाख</span></span><span style="font-size:undefined">) </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">में खेत</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">मजदूरों की तादाद ३४ फीसदी थी। </span></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-size:undefined">· </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">दैनिक रोजगार के आधार पर देखें तो खेत</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">मजदूरों में बेरोजगारी की स्थिति भयावह है।१६ फीसदी पुरूष खेत</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">मजदूर और १७ फीसदी महिला खेत</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">मजदूर बेरोजगार हैं।</span></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-size:undefined">· </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">साल १९९३</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">९४ और २००४</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">०५ के बीच खेत</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">मजदूरों के बीच छुपी हुई बेरोजगारी</span></span><span style="font-size:undefined">(</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">अंडरएंप्लॉयमेंट</span></span><span style="font-size:undefined">) </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">बढ़ी है।साल २००५</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">०६ में खेत</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">मजदूरों के बीच बेरोजगारी १६ फीसदी थी। </span></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-size:undefined">· </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">खेत</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">मजदूरों को मिलने वाली न्यूनतम मजदूरी कितनी हो</span></span><span style="font-size:undefined">--</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">इसके बारे में बस एक ही कानूनी प्रावधान है।यह प्रावधान मिनिमम वेजज एक्ट</span></span><span style="font-size:undefined">,</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">१९४८</span></span><span style="font-size:undefined">(</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">न्यूनतम मजदूरी अधिनियम</span></span><span style="font-size:undefined">,</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">१९४८</span></span><span style="font-size:undefined">) </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">के नाम से जाना जाता है।साल २००४</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">०५ में खेत</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">मजदूरों ने जितने दिन काम किया उसमें लगभग ९१ फीसदी कार्यदिवसों को उन्हें राष्ट्रीय स्तर की न्यूनतम मजदूरी से कहीं कम मेहनताना हासिल हुआ जबकि ग्रामीण क्षेत्रों के लिए एनसीआरएल </span></span><span style="font-size:undefined">(</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">एनसीयूएस के दस्तावेज में एनसीआरएल के बारे में जानकारी देते हुए कहा गया है कि</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">१९९१ में हनुमंत राव की अध्यक्षता में एक आयोग नेशनल कमीशन ऑन रूरल लेबर नाम से बना था।इस आयोग ने ग्रामीण इलाके के लिए एक राष्ट्रीय स्तर पर लागू होने वाली एक आभासी न्यूनतम मजदूरी की अनुशंसा की थी।आयोग ने यह भी कहा था कि ग्रामीण क्षेत्र के मजदूरों को सरकार सामाजिक सुरक्षा के फायदों के तौर पर वृद्धावस्था पेंशन</span></span><span style="font-size:undefined">,</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">जीवन बीमा</span></span><span style="font-size:undefined">,</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">मेटरनिटी बेनेफिट और काम के दौरान दुर्घटना की स्थिति में मुआवजा फराहम करे।</span></span><span style="font-size:undefined">) </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">द्वारा निर्धारित न्यूनतम मजदूरी के मानक को आधार मानें तो साल २००४</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">०५ में खेत</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">मजदूरों ने जितने दिन काम किया उसमें लगभग ६४ फीसदी कार्यदिवसों को उन्हें कम मेहनताना हासिल हुआ।</span></span><span style="font-size:undefined">.</span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-size:undefined">· </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">खेतिहर कामगारों</span></span><span style="font-size:undefined">(</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">खेतिहर मजदूर और किसान</span></span><span style="font-size:undefined">) </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">की संख्या साल २००४</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">०५ में २५ करोड़ ९० लाख थी।देश की कुल श्रमशक्ति में खेतिहर कामगारों की तादाद ५७ फीसदी है।इनमें २४ करोड़ ९० लाख ग्रामीण इलाकों में रहते हैं।इस तरह यह संख्या कुल ग्रामीण श्रमशक्ति </span></span><span style="font-size:undefined">(</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">३४ करोड़ ३० लाख</span></span><span style="font-size:undefined">) </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">के ७३ फीसदी के बराबर बैठती है।ग्रामीण इलाके की अर्थव्यवस्था के असंगठित क्षेत्र के रोजगार में इनकी हिस्सेदारी ९६ फीसदी की और असंगठित कृषि</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">क्षेत्र के रोजगार में इनकी हिस्सेदारी ९८ फीसदी की है। </span></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-size:undefined">· </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">लगभग दो तिहाई</span></span><span style="font-size:undefined">(</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">६४ फीसदी</span></span><span style="font-size:undefined">) </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">खेतिहर कामगार स्वरोजगार में लगे हैं</span></span><span style="font-size:undefined">,</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">या कहें फिर कह लें कि ग्रामीण श्रमशक्ति जो हिस्सा स्वरोजगार में लगा है वह मूलतः किसान है और बाकि एक तिहाई यानी ३६ फीसदी जीविका के लिए मजदूरी पर निर्भर है और जीविका के लिए मजदूरी पर निर्भर कामगारों में ९८ फीसदी अनियमित मजदूर हैं।</span></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-size:undefined">· </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">देश के कुल कामगारों में खेतिहर कामगारों की तादाद साल २००४</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">०५ में ५६</span></span><span style="font-size:undefined">.</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">६ फीसदी थी जबकि साल १९८३ में कुल कामगारों में इनकी तादाद ६८</span></span><span style="font-size:undefined">.</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">६ फीसदी थी।इस तरह पिछले २० सालों कुल कामगारों में खेतिहर कामगारों की तादाद में कमी आयी है।ग्रामीण इलाकों में खेतिहर कामगारों की तादाद ८१</span></span><span style="font-size:undefined">.</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">६ फीसदी थी।यह संख्या २००४</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">०५ में घटकर ७२</span></span><span style="font-size:undefined">.</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">६ फीसदी रह गई। </span></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-size:undefined">·</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">खेतिहर श्रमशक्ति में किसानों की संख्या ज्यादा है</span></span><span style="font-size:undefined">,</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">हालांकि प्रतिशत पैमाने पर धीरे</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">धीरे इनकी संख्या में कमी आयी है।साल १८८३ में खेतिहर श्रमशक्ति में किसानों की संख्या ६३</span></span><span style="font-size:undefined">.</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">५ फीसदी थी जबकि साल १९९९</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">२००० में घटकर ५७</span></span><span style="font-size:undefined">.</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">८ फीसदी हो गई। </span></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-size:undefined">· </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">साल १९८३</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">१९८४ और साल १९९३</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">९४ के बीच की अवधि यानी एक दशक पर नजर रखकर रोजगार की बढ़ोत्तरी की दर की तुलना करें तो पता चलेगा कि खेतिहर रोजगार में पिछले एक दशक में कमी आयी है।जहां साल १९८३</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">१९८४ में खेतिहर रोजगार में बढ़ोत्तरी की दर १</span></span><span style="font-size:undefined">.</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">४ फीसद थी वहीं एक दशक बाद यह दर घटकर ०</span></span><span style="font-size:undefined">.</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">८ फीसदी रह गई। हालांकि सकल रोजगार में भी इस अवधि में २</span></span><span style="font-size:undefined">.</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">१ फीसदी के मुकाबले १</span></span><span style="font-size:undefined">.</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">९ फीसदी की गिरावट आयी लेकिन सकल रोजगार में गिरावट की तुलना में खेतिहर रोजगार में गिरावट की रफ्तार कहीं ज्यादा रही। </span></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-size:undefined">· </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">साल १९९३</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">९४ में भूमिहीन परिवारों की संख्या १३ फीसदी थी जबकि साल २००४</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">०५ में भूमिहीन परिवारों की संख्या बढ़कर १४</span></span><span style="font-size:undefined">.</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">५ फीसदी हो गई।साल २००४</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">०५ में खेतिहर मजदूरों में १९</span></span><span style="font-size:undefined">.</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">७ फीसदी मजदूर भूमिहीन थे जबकि ६० फीसदी से ज्यादा खेतिहर मजदूरों के पास ०</span></span><span style="font-size:undefined">.</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">४ हेक्टेयर से भी कम जमीन थी और इनकी संख्या में इस पूरी अवधि में खास बदलाव नहीं आया। ज्यादातर</span></span><span style="font-size:undefined">,</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">भूमिहीनता या फिर जमीन के बड़े छोटे टुकड़े पर स्वामित्व होने के कारण ग्रामीण इलाकों में लोग अपने भरण</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">पोषण के लिए मजदूरी करने को बाध्य होते हैं।</span></span></p>
<p><span style="font-size:undefined">**page**</span></p>
<p>[inside]टाटा इंस्टीट्यूट ऑव सोशल साइंसेज और एडको इंस्टीट्यूट,लंदन द्वारा तैयार द इंडिया लेबर मार्केट रिपोर्ट(२००८)[/inside] में भारत में मौजूद बेरोजगारी और छुपी हुई बेरोजगारी की स्थिति के बारे में कहा गया है कि <span style="color:\; font-size:undefined"><u><a href="%5C%22http://www.macroscan.org/anl/may09/pdf/Indian_Labour.pdf%5C%22"><strong>http://www.macroscan.org/anl/may09/pdf/Indian_Labour.pdf</strong></a></u></span><span style="font-size:undefined"><strong> </strong></span></p>
<p> </p>
<p> </p>
<p><span style="font-size:undefined">· </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">भारत में ग्रामीण इलाके के व्यक्ति की तुलना में शहरी इलाके के व्यक्ति के लिए बेरोजगारी की दर कहीं ज्यादा है।शहरी महिलाओं में बेरोजगारी की दर ९</span></span><span style="font-size:undefined">.</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">२२ फीसदी है जबकि ग्रामीण महिलाओं में यह दर ७</span></span><span style="font-size:undefined">.</span><span style="font-family:\"><span style="font-size:undefined">३१ फीसदी है।</span> </span></p>
<p> </p>
<p> </p>
<p><span style="font-size:undefined">· </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">बेरोजगारी की प्रकृति का आकलन राज्यवार करें तो पता चलेगा कि गोवा और केरला जैसे तुलनात्मक रूप से विकसित राज्यों में बेरोजगारी की दर कहीं ज्यादा है।गोवा में बेरोजगारी की दर ११</span></span><span style="font-size:undefined">.</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">३९ फीसदी और केरल में ९</span></span><span style="font-size:undefined">.</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">१३ फीसदी है।बेरोजगारी की न्यूनतम दर अपेक्षाकृत कम विकसित राज्यों मसलन उत्तरांचल</span></span><span style="font-size:undefined">(</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">०</span></span><span style="font-size:undefined">.</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">४८ फीसदी</span></span><span style="font-size:undefined">) </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">और छत्तीसगढ़</span></span><span style="font-size:undefined">(</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">०</span></span><span style="font-size:undefined">.</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">७७ फीसदी</span></span><span style="font-size:undefined">) </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">में है।</span></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-size:undefined">· </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">दस से चौबीस साल के आयुवर्ग में सबसे ज्यादा लोग बेरोजगार हैं।इससे यह धारणा बलवती होती है कि भारत में युवाओं में बेरोजगारी बढ़ रही है। </span></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-size:undefined">· </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">रिपोर्ट का आकलन है कि बेरोजगारी की दर और व्यक्ति के शिक्षा</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">स्तर में संबंध है।अगर व्यक्ति का शिक्षा</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">स्तर ज्यादा है तो बेरोजगारी की दर भी उसके लिए ज्यादा है।जिन व्यक्तियों ने माध्यमिक स्तर से ज्यादा ऊंची शिक्षा हासिल की है उनके बीच बेरोजगारी की दर इससे कम दर्जे शिक्षा हासिल करने वालों की तुलना में कहीं ज्यादा है।ग्रामीण और शहरी दोनों ही इलाकों में शिक्षित महिलाओं के बीच बेरोजगारी की दर सबसे ज्यादा है।</span></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-size:undefined">· </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">छुपी हुई बेरोजगारी की स्थिति के बारे में रिपोर्ट में कहा गया है कि महिलाओं के बीच छुपी हुई बेरोजगारी की स्थिति कहीं ज्यादा है और खासतौर पर यह बात ग्रामीण इलाके की महिलाओं पर लागू होती है।</span></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-size:undefined">· </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">स्वरोजगार और दिहाड़ी मजदूरी में लगे लोगों के बीच छुपी हुई बेरोजगारी की स्थिति कहीं ज्यादा सघन है।इसकी तुलना में वेतनभोगी कर्मचारियों अथवा नियमित मजदूरी पर लगे लोगों के बीच छुपी हुई बेरोजगारी ना के बराबर है।</span></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\"><strong>स्वरोजगार</strong></span></span></p>
<p><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">स्वरोजगार में लगे लोगों की तादाद राज्यवार ३० फीसदी से लेकर ७० फीसदी तक है।आकलन से पता चलता है कि अपेक्षाकृत कम विकसित राज्य मसलन बिहार</span></span><span style="font-size:undefined">(</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">६१ फीसदी</span></span><span style="font-size:undefined">),</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">उत्तरप्रदेश</span></span><span style="font-size:undefined">(</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">६९ फीसदी</span></span><span style="font-size:undefined">)</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">राजस्थान</span></span><span style="font-size:undefined">(</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">७० फीसदी</span></span><span style="font-size:undefined">)</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">में स्वरोजगार में लगे लोगों की संख्या ज्यादा है।अपेक्षाकृत ज्यादा विकसित राज्यों मसलन केरल </span></span><span style="font-size:undefined">(</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">४२ फीसदी</span></span><span style="font-size:undefined">),</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">दिल्ली</span></span><span style="font-size:undefined">(</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">३८ फीसदी</span></span><span style="font-size:undefined">) </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">और गोवा में </span></span><span style="font-size:undefined">(</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">३४ फीसदी</span></span><span style="font-size:undefined">) </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">कम संख्या में लोग स्वरोजगार में लगे हैं। </span></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">स्वरोजगार में लगे लोगों में शहरी लोगों की संख्या कम और ग्रामीण लोगों की संख्या ज्यादा है।</span></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">स्वरोजगार में लगे लोगों में कम शिक्षा</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">स्तर वाली महिलाओं का अनुपात पुरूषों की अपेक्षा ज्यादा है।कुल मिलाकर देखें तो स्वरोजगार में लगे लोगों में अधिकांस कम शिक्षा</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">स्तर वाले हैं।</span></span></p>
<p> </p>
<p> </p>
<p><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">अगर स्वरोजगार में लगे लोगों की संख्या को अर्थव्यवस्था के क्षेत्रवार देखें तो मजर आएगा कि खेती में सबसे ज्यादा लोगों को स्वरोजगार हासिल है।इसका बाद नंबर आता है व्यापार का।खेती और व्यापार में कुल मिलाकर कुल तीन</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">चौथाई लोग स्वरोजगार में लगे हैं। </span></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\"><strong>अनियमित यानी दिहाड़ी मजदूरी का बाजार</strong></span></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के ६२ वें दौर की गणना को आधार मानकर ऊपर्युक्त रिपोर्ट में कहा गया है कि ३१ फीसदी रोजगार दिहाड़ी श्रम बाजार में हासिल है और इस श्रम बाजार में महिलाओं की प्रतिभागिता पुरूषों की तुलना में ज्यादा है। </span></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">दिहाड़ी श्रम बाजार में रोजगार हासिल करने वाले ग्रामीण स्त्री और पुरूष के आयु वर्ग में ज्यादा फर्क नहीं है जबकि दिहाड़ी पर खटने वाले शहरी इलाके के पुरूषों के मामले में बाल श्रमिकों </span></span><span style="font-size:undefined">(</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">आयुवर्ग ५ से ९</span></span><span style="font-size:undefined">) </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">की संख्या ज्यादा है। </span></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">दिहाड़ी श्रम बाजार में ३४ साल तक की उम्र के मजदूरों को रोजगार के कहीं ज्यादा अवसर उपलब्ध हैं।इस आयु के बाद दिहाड़ी श्रम बाजार में उनको हासिल रोजगार के अवसरों में कमी देखी गई है। </span></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">दिहाड़ी मजदूरी के बाजार में शिक्षा के बढ़ते स्तर के साथ प्रतिभागिता में कमी देखी जा सकती है।दिहाड़ी मजदूरों का अधिकतर हिस्सा या तो अशिक्षित है या फिर उसे प्राथमिक स्तर की शिक्षा हासिल हुई है।</span></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">खेती में दिहाड़ी मजदूरों की तादाद के ७० फीसदी हिस्से को रोजगार हासिल है।इसके बाद सबसे ज्यादा तादाद में दिहाड़ी मजदूर उद्योग और सेवा</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">क्षेत्र में लगे हैं।अपेक्षाकृत विकसित राज्यों मसलन महाराष्ट्र</span></span><span style="font-size:undefined">, </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">कर्नाटक</span></span><span style="font-size:undefined">,</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">तमिलनाडु और पंजाब में खेती में दिहाड़ी मजदूरों की तादाद कहीं ज्यादा है जबकि अपेक्षाकृत कम विकसित राज्यों मसलन राजस्थान</span></span><span style="font-size:undefined">,</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">झारखंड</span></span><span style="font-size:undefined">,</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">उत्तरप्रदेश और उत्तरांचल में उद्योग</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">क्षेत्र में दिहाड़ी मजदूरों की संख्या खेती में लगे दिहाड़ी मजदूरों की संख्या से ज्यादा है।</span></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">कम विकसित राज्यों में उद्योग क्षेत्र के अंदर विनिर्माण </span></span><span style="font-size:undefined">(</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">मैन्युफैक्चरिंग</span></span><span style="font-size:undefined">) </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">दिहाड़ी मजदूरों की संख्या ज्यादा है।कंस्ट्रक्शन के अंतर्गत रोजगार पाने वाले दिहाड़ी मजदूरों की संख्या भी कम विकसित राज्यों में अपेक्षाकृत ज्यादा है। </span></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\"><strong>आबादी जो श्रमबाजार में प्रतिभागी नहीं है</strong></span></span><span style="font-size:undefined"><strong>-</strong></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">जो आबादी श्रमशक्ति में प्रतिभागी नहीं है उसमें महिलाओं की संख्या पुरूषों की तुलना में बहुत ज्यादा है। </span></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">ग्रामीण इलाके की महिलाओं की तुलना में शहरी इलाके की महिलाएं कहीं ज्यादा तादाद में श्रमबाजार से बाहर हैं।जहां अधिकांश राज्यों के ग्रामीण इलाके में ६० से ७० फीसदी महिलाएं श्रमबाजार से बाहरह हैं वहीं शहरी इलाकों की महिलाओं के बीच यह आंकड़ा ८० फीसदी का है। </span></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">२५ से ५९ साल के आयुवर्ग की महिलाओं का एक बड़ा हिस्सा </span></span><span style="font-size:undefined">(</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">४७ से ५७ फीसदी तक</span></span><span style="font-size:undefined">) </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">श्रमबाजार से बाहर है जबकि इस आयुवर्ग के पुरूषों के बीच यह आंकड़ा तुलनात्मक रूप से ना के बराबर</span></span><span style="font-size:undefined">(</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">१ से ९ फीसदी</span></span><span style="font-size:undefined">) </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">बैठता है।इसके अतिरिक्त श्रमबाजार से बाहर रहने वाली महिलाओं का एक बड़ा हिस्सा उच्च शिक्षा प्राप्त महिलाओं का है।स्नातक स्तर की शिक्षा प्राप्त लगभग ६८ फीसदी महिलाएं श्रमबाजार से बाहर हैं जबकि इसी शिक्षास्तर के १३ फीसदी पुरूष श्रमबाजार से बाहर हैं।स्नातकोत्तर स्तर की शिक्षा हासिल कर चुकी ५३ फीसदी महिलाएं श्रमबाजार से बाहर हैं जबकि इसी शिक्षास्तर के १० फीसदी पुरूष श्रमबाजार से बाहर हैं।</span></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">महिलाओं की एक बड़ी तादाद घरेलू कामकाज के कारण श्रमबाजार से बाहर है।२५ से २९ साल के कामकाजी आयुवर्ग में भी श्रमबाजार से बाहर रह जाने वाली महिलाओं की तादाद ६० फीसदी है।ये आंकड़े ग्रामीण और शहरी दोनों ही क्षेत्रों की महिलाओं पर लागू होते हैं।</span></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">श्रमबाजार से बाहर रह जाने वाली महिलाओं की संख्या दिल्ली में सबसे ज्यादा</span></span><span style="font-size:undefined">(</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">९२</span></span><span style="font-size:undefined">.</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">१० फीसदी</span></span><span style="font-size:undefined">) </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">है।इस मामले में छत्तीसगढ़ दूसरे पादान पर है जहां ८९</span></span><span style="font-size:undefined">.</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">५० फीसदी महिलाएं श्रमबाजार से बाहर हैं।इस मामले में सबसे अच्छी स्थिति हिमाचल प्रदेश की है।वहां सिर्फ ५१</span></span><span style="font-size:undefined">.</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">७० फीसदी महिलाएं श्रमबाजार से बाहर हैं। </span></span></p>
<p> </p>
<p> </p>
<p><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">शारीरिक रूप से विकलांग माने जाने वाले व्यक्तियों में ज्यादा तादाद </span></span><span style="font-size:undefined">(</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">४० फीसदी</span></span><span style="font-size:undefined">) </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">२५ से ४० साल के आयुवर्ग में आने वाले पुरूषों की है और ग्रामीण इलाके में यह आंकड़ा इससे भी ज्यादा का है।इस कोटि में आने वाले अधिकांश लोग अशिक्षित हैं।</span></span></p>
<p> </p>
<p> </p>
<p> </p>
<ul>
<li><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">जहां तक भीख मांगने वाले और यौनकर्मियों का सवाल है</span></span><span style="font-size:undefined">,</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">उनकी १९ फीसदी आबादी ५ से ९ साल के आयुवर्ग की है जबकि इस कोटि में आने वाले ३५ फीसदी व्यक्ति ६० साल या उससे ज्यादा उम्र के हैं।इनमें अधिकतर अशिक्षित हैं। </span></span></li>
</ul>
<p> </p>
<p> </p>
<p> </p>
<p><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\"><strong>अर्थव्यवस्था के उभरते हुए हलको में रोजगार और बेरोजगारी की स्थिति</strong></span></span><span style="font-size:undefined"><strong>-</strong></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-size:undefined">· </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">अर्थव्यवस्था के उभरते हुए क्षेत्रों पर नजर डालें तो एक बड़ी तादाद लेबर मार्केट के रीटेल सेक्टर</span></span><span style="font-size:undefined">(</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">लेबर मार्केट में इसका हिस्सा लगभग साढे़ ७ फीसदी है</span></span><span style="font-size:undefined">) </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">में रोजगारयाफ्ता दीखेगी।अर्थव्यवस्था के इस सेक्टर में लेबर मार्केट का संगठित क्षेत्र भी शामिल है और असंगठित क्षेत्र भी। </span></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-size:undefined">·</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">भू</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">निर्माण यानी कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री लेबर मार्केट का दूसरा बड़ा हिस्सा</span></span><span style="font-size:undefined">(</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">५</span></span><span style="font-size:undefined">.</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">९ फीसदी</span></span><span style="font-size:undefined">) </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">है।इस सेक्टर में सबसे ज्यादा रोजगार पुरूषों को हासिल है और इसका विस्तार शहरों में ज्यादा है।लगभग ८</span></span><span style="font-size:undefined">.</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">७ फीसदी शहरी और ५ फीसदी ग्रामीण मजदूरों को इस सेक्टर में रोजगार हासिल है। </span></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-size:undefined">· </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">परिवहन यानी ट्रान्सपोर्ट सेक्टर में पुरूष मजदूरो की तादाद ७</span></span><span style="font-size:undefined">.</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">५ फीसदी है जबकि महिलाओं की ०</span></span><span style="font-size:undefined">.</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">१ फीसदी।भारत के ग्रामीण और शहरी दोनों इलाकों में ये बात देखी जा सकती है। </span></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-size:undefined">· </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">ग्रामीण इलाके में सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में रोजगार ना के बराबर हासिल है।अर्थव्यवस्था का यह क्षेत्र अपनी प्रकृति में शहरी है और इसमें पढ़े</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">लिखे तथा उच्चे कौशल वाले लोगों की जरूरत है।आईटी यानी सूचना प्रौद्योगिकी और सॉप्टवेयर के समान मीडिया और फार्मास्यूटिकल्स में भी रोजगार की स्थिति शहरी वर्चस्व की सूचना देती है। </span></span></p>
<p><span style="font-size:undefined">· </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">स्वास्थ्य सुविधाओं और हॉस्पिटेलिटी के सेक्टर में महिलाओं को बाकी की अपेक्षा कहीं ज्यादा रोजगार हासिल है।</span></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-size:undefined">· </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">साल २००८ के अक्तूबर से दिसबंर के बीच खनन</span></span><span style="font-size:undefined">,</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">सूती वस्त्र</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">उद्योग</span></span><span style="font-size:undefined">,</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">धातुकर्म</span></span><span style="font-size:undefined">,</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">रत्न और आभूषण उद्योग</span></span><span style="font-size:undefined">,</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">ऑटोमोबाइल तथा बीपीओ</span></span><span style="font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">आईटी जैसे क्षेत्रों में हासिल रोजगार में १</span></span><span style="font-size:undefined">.</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">०१ फीसदी की कमी आयी।नवंबर के महीने में इन क्षेत्रों में रोजगार सृजन की दर सबसे नीचे</span></span><span style="font-size:undefined">(</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">०</span></span><span style="font-size:undefined">.</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">७४ फीसदी थी लेकिन साल २००९ के जनवरी में इन क्षेत्रों में रोजगार में १</span></span><span style="font-size:undefined">.</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">०७ फीसदी का इजाफा हुआ।</span></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-size:undefined">· </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">आईटी और बीपीओ को छोड़कर बाकी सभी सेक्टर में साल २००८ के अक्तूबर से दिसंबर के बीच रोजगार की दर में कमी आयी।सबसे ज्यादा गिरावट रत्न और आभूषण के सेक्टर में रही जबकि आईटी और बीपीओ में हासिल रोजगार की दर में इजाफा हुआ।</span></span></p>
<p><span style="font-size:undefined">· </span></p>
<p><span style="font-size:undefined">· </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">कुल मिलाकर देखें तो साल २००८ के अक्तूबर से दिसंबर के बीच ठेके पर शारीरिक श्रम से रोजगार हासिल करने वाले मजदूरों को बेरोजगारी का कहीं ज्यादा सामना पड़ा जबकि नियमित आधार पर बहाल और मानसिक श्रम वाले कामों में लगे कामगारों को रोजगार के कहीं ज्यादा अवसर हासिल हुए।</span></span></p>
<p> </p>
'
$ContentexplodeAr = [
(int) 0 => '<p><!--
@page { margin: 0.79in }
P { margin-bottom: 0in; text-align: justify }
--></p>
<p> </p>
<p> </p>
<p><span style="font-family:\; font-size:undefined"><em><span style="font-family:\">एक नजर</span></em></span></p>
<p> </p>
<p><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर लगातार ऊंची बनी होने के बावजूद भारत अपनी ग्रामीण जनता की जरुरत के हिसाब से मुठ्ठी भर भी नये रोजगार का सृजन नहीं कर पाया है। नये रोजगारों का सृजन हो रहा है लेकिन यह अर्थव्यवस्था के ऊंचली पादान के सेवा</span></span><span style="font-family:\; font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">क्षेत्र मसलन वित्त</span></span><span style="font-family:\; font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">जगत</span></span><span style="font-family:\; font-size:undefined">, </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">बीमा</span></span><span style="font-family:\; font-size:undefined">, </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">सूचना</span></span><span style="font-family:\; font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">प्रौद्योगिकी और सूचना प्रौद्योगिकी के दम पर चलने वाले हलकों में हो रहा है ना कि विनिर्माण और आधारभूत ढांचे के क्षेत्र में जहां ग्रामीण इलाकों से पलायन करके पहुंचे कम कौशल वाले लोगों को रोजगार हासिल करने की उम्मीद हो सकती है। किसी तरह घिसट</span></span><span style="font-family:\; font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">खिसट करके चलने वाली ग्रामीण अर्थव्यवस्था</span></span><span style="font-family:\; font-size:undefined">, </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">ग्रामीण इलाकों के कुटीर और शिल्प उद्योगों का ठप्प पड़ना</span></span><span style="font-family:\; font-size:undefined">, </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">घटती खेतिहर आमदनी और मानव</span></span><span style="font-family:\; font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">विकास के सूचकांकों से मिलती खस्ताहाली की सूचना</span></span><span style="font-family:\; font-size:undefined">-</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">ये सारी बातें एकसाथ मिलकर जो माहौल बना रही हैं उसमें ग्रामीण इलाकों में बेरोजगारी को बढ़ना तो है ही</span></span><span style="font-family:\; font-size:undefined">, </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">शहरों की तरफ ग्रामीण जनता का पलायन भी होना है। </span></span></p>
<p><br />
<span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">अर्थव्यवस्था के मंदी की चपेट में आने से पहले भी नये रोजगार का सृजन नकारात्मक वृद्धि के रुझान दिखा रहा था।नेशनल कमीशन फॉर इंटरप्राइजेज इन द अनऑर्गनाइज्ड सेक्टर</span></span><span style="font-family:\; font-size:undefined">(</span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">एनसीईयूस</span></span><span style="font-family:\; font-size:undefined">) </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">के मुताबिक खरबों डॉलर की हमारी इस अर्थव्यवस्था में हर </span></span><span style="font-family:\; font-size:undefined">10 </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">में </span></span><span style="font-family:\; font-size:undefined">9 </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">व्यक्ति असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं और कुल भारतीयों का तीन चौथाई हिस्सा रोजाना </span></span><span style="font-family:\; font-size:undefined">20 </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">रुपये में गुजारा करता है। बहुत से अर्थशास्त्री तर्क देते हैं कि गांवों से शहरों की तरफ पलायन अर्तव्यवस्था की तरक्की के लिहाज से एक जरुरी शर्त है। बहरहाल</span></span><span style="font-family:\; font-size:undefined">, </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">वैश्विक अर्थव्यवस्था के भीतर भारत कम लागत के तर्क से अपनी हिस्सेदारी बढ़ा रहा है और इससे आमदनी में कम बढ़ोतरी का होना लाजिमी है। ऐसे में चूंकि क्रयशक्ति मनमाफिक नहीं बढ़ रही इसलिए घरेलू मांग में बढोतरी ना होने के कारण नये रोजगारों का सृजन भी खास गति से नहीं हो रहा।</span></span></p>
<p><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">आंकड़ों से जाहिर होता है कि वांछित लक्ष्य तक पहुंचने की जगह रोजगार के मामले में हमारी गाड़ी उलटे रास्ते पर लुढ़कने लगी है।मिसाल के तौर पर साल साल </span></span><span style="font-family:\; font-size:undefined">1994 </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">से </span></span><span style="font-family:\; font-size:undefined">2005 </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">के बीच के दशक में बेरोजगारी में प्रतिशत पैमाने पर </span></span><span style="font-family:\; font-size:undefined">1 </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">अंक की बढ़ोतरी हुई है। अस्सी के दशक के शुरुआती सालों से लेकर </span></span><span style="font-family:\; font-size:undefined">2005 </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">के बीच ग्रामीण पुरुषों में स्वरोजगार प्राप्त लोगों की तादाद </span></span><span style="font-family:\; font-size:undefined">4 </span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><span style="font-family:\">फीसदी कम हुई है।आंकड़ों से जाहिर है कि घटती हुई आमदनी के बीच कार्यप्रतिभागिता के मामले में ग्रामीण गरीब एक दुष्चक्र में फंस चुके हैं। </span></span></p>
<p><span style="font-family:\; font-size:undefined"><em><span style="font-family:\">आंकड़ों से यह भी जाहिर होता है कि अस्सी के दशक के शुरुआती सालों से ग्रामीण इलाकों की महिलाओं के लिए रोजगार की सूरते हाल या तो ज्यों की त्यों ठहरी हुई है या फिर और बिगड़ी दशा को पहुंची है। एक तो किसानों की आमदनी खुद ही कम है उसपर गजब यह कि इस आमदनी का </span></em></span><span style="font-size:undefined"><em><span style="font-family:\">45 </span></em></span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><em><span style="font-family:\">फीसदी हिस्सा</span><span style="font-family:\"> </span><span style="font-family:\">कृषि</span></em></span><span style="font-size:undefined"><em><span style="font-family:\">-</span></em></span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><em><span style="font-family:\">इतर कामों से हासिल होता है और कृषि</span></em></span><span style="font-size:undefined"><em><span style="font-family:\">-</span></em></span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><em><span style="font-family:\">इतर काम कहने से बात थोड़ी छुपती है मगर सीधे सीधे कहें तो यह दिहाड़ी मजदूरी का ही दूसरा नाम है। मजदूरी भी कम मिलती है क्योंकि गांव के दरम्याने में जो भी काम करने को मिल जाय</span><span style="font-family:\"> </span><span style="font-family:\">किसानों को उसी से संतोष करना पड़ता है। फिलहाल केवल </span></em></span><span style="font-size:undefined"><em><span style="font-family:\">57 </span></em></span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><em><span style="font-family:\">फीसदी किसान स्वरोजगार में लगे हैं और </span></em></span><span style="font-size:undefined"><em><span style="font-family:\">36 </span></em></span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><em><span style="font-family:\">फीसदी से ज्यादा मजदूरी करते हैं। इस </span></em></span><span style="font-size:undefined"><em><span style="font-family:\">36 </span></em></span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><em><span style="font-family:\">फीसदी की तादाद का </span></em></span><span style="font-size:undefined"><em><span style="font-family:\">98 </span></em></span><span style="font-family:\; font-size:undefined"><em><span style="font-family:\">फीसदी दिहाड़ी मजदूरी के भरोसे है यानी आज काम मिला तो ठीक वरना आसरा कल मिलने वाले काम पर टिका है।</span></em></span></p>
<p style="text-align:justify">',
(int) 1 => '<br />
[inside]स्वास्थ्य अधिकारों को लेकर "कॉमनवेल्थ" की पहल (CHRI) ने घरेलु मजदूरों पर एक <a href="/upload/files/Domestic%20Work%20is%20Work%20CHRI%202021%282%29.pdf">रिपोर्ट</a> जारी की है. <a href="/upload/files/Domestic%20Work%20is%20Work%20CHRI%202021%281%29.pdf">रिपोर्ट</a> का नाम रखा है-डोमेस्टिक वर्क इज वर्क[/inside]</p>
<blockquote>
<p style="text-align:justify"><br />
कॉमनवेल्थ, हिन्दी में कहें तो राष्ट्रमंडल, ऐसे देशों का समूह जो पहले ब्रितानी हुकूमत के उपनिवेश थे अब एक संप्रभु राष्ट्र राज्य हैं. कुल नौ देश इसके सदस्य हैं. जिसमें भारत भी एक सदस्य है.</p>
</blockquote>
<p style="text-align:justify">आज से कुछ वर्षों पहले मानव अधिकारों और मजदूरों के अधिकारों से सम्बंधित संगठनों ने <span style="color:#e74c3c"><span style="font-size:14px">घरेलू</span></span><span style="font-size:14px"><span style="color:#e74c3c"> मजदूरों </span></span>के अधिकारों के लिए मांग उठाई थी. मांग के अनुरूप अंतरराष्ट्रीय मजदूर संगठन के भागीदार देशों ने सन् 2011 में एक सम्मेलन बुलाया. सम्मेलन ने घरेलु मजदूरों के मुद्दों पर एक <span style="color:#9b59b6">अभिसमय</span> तैयार किया. नाम रखा जाता है-<strong>C189</strong>. जिसे कुल 35 देशों ने सत्यापित किया. 35 में से 9 देश कॉमनवेल्थ के सदस्य हैं.</p>
<p style="text-align:justify">सम्मेलन के 10 साल बाद, CHRI की इस रिपोर्ट का मकसद घरेलू मजदूरों से सम्बंधित किये गए वादों की कॉमनवेल्थ देशों में हुई प्रगति को जांचना है. <br />
CHRI की इस रिपोर्ट ने दो ऐसे देशों को भी शामिल किया है जिन्होंने अभिसमय पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं. हालांकि यह देश घरेलू मजदूरों के अधिकारों को स्वीकार करते है- दक्षिण अफ्रीका, जमैका. <br />
क्या है इस रिपोर्ट की अनुशंसाएं-</p>
<ul>
<li style="text-align:justify">घरेलू मजदूरों के अभिसमय को बचे हुए देश स्वीकार करें और अर्थव्यवस्था में घरेलु मजदूरों की भूमिका को भी स्वीकार करें.</li>
<li style="text-align:justify">घरेलू मजदूर मिलकर मजदूर संगठनों का गठन करें ताकि उनकी आवाज में वजन आ सके.</li>
<li style="text-align:justify">अभिसमय के घोषणा वाली तारीख को एक महत्वपूर्ण दिवस के रूप में मनाया जाए.</li>
<li style="text-align:justify">लोगों के बीच में C189 के बारे में जानकारी बढ़ाई जाए. या यूँ कहें लोगों की स्वीकार्यता भी ली जाए. </li>
<li style="text-align:justify">घरेलू मजदूरों पर अधिक से अधिक आंकड़े जुटाए जाये ताकि नीति निर्माण में आसानी हो.</li>
<li style="text-align:justify">घरेलू मजदूरों के मुद्दों पर क्षेत्रीय, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय गठबन्धनों को बढ़ावा दिया जाए.</li>
<li style="text-align:justify">घरेलू मजदूरों के लिए एक फंड का गठन किया जाए.</li>
</ul>
<p>',
(int) 2 => '<br />
दुनियाभर में "सेवानिवृत्ति के बाद आय" के लिए कई प्रणालियाँ उपलब्ध है. <a href="https://www.uk.mercer.com/our-thinking/global-pension-index-2021.html">मर्सर और सीएफए </a>नाम की दो संस्थाओं ने 43 देशों की प्रणालियों का अध्ययन किया है. अध्ययन में प्रणाली की मजबूती और कमजोरी को जांचा है.और उसे <a href="/upload/files/Mercer%281%29.pdf">सूचकांक</a> का रूप दिया है. इस [inside]सूचकांक का नाम ग्लोबल पेंशन इंडेक्स है जिसमें शामिल कुल 43 देशों में भारत ने 40 वा स्थान हासिल किया है.[/inside] </p>
<ul>
<li>इस सूचकांक के अनुसार डेनमार्क और आइसलैंड का सेवानिवृत्ति के बाद आय तंत्र सबसे बेहतर है.</li>
<li>दुनिया में अधिकतर देशों की अर्थव्यवस्था बीमार है. महामारी के दौर में इंसान के स्वास्थ्य पर भी खतरे के बादल मंडराते रहते हैं. इसलिए जरूरी है उन प्रणालियों का आलोचनात्मक विश्लेषण करना.</li>
<li>भारत में "सेवानिवृत्ति के बाद आय" के लिए कमाई पर आधारित तंत्र है. जिसे कर्मचारी भविष्य निधि (EPFO) कहते हैं. जिसमें सरकार, स्वयं और रोजगार देने वाली संस्था योगदान करते हैं. </li>
<li>भारत में सामाजिक सुरक्षा देने का दायित्व राज्य पर है. इसलिए भारत सरकार ने असंगठित क्षेत्र के लिए भी एक योजना निकाली है. साथ ही राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली भी प्रसिद्धी हासिल कर रही है.</li>
<li>भारत की इस प्रणाली में सुधार जरूरी है अन्यथा इसकी क्षमता और वहनीयता संदेह के घेरे में आ जाएगी.</li>
<li>भारत की बात करे तो सूचकांक मान में गिरावट आई है. 2020 में सूचकांक मान 45.7 था जो कम होकर 2021 में 43.3% हो गया. जिसके पीछे का कारण शुद्ध प्रतिस्थापन दर में कमी आना है.</li>
<li>अंतरराष्ट्रीय संगठन <a href="https://data.oecd.org/pension/net-pension-replacement-rates.htm">OECD</a> के अनुसार शुद्ध प्रतिस्थापन दर का अर्थ है शुद्ध पेंशन प्राप्ति में सेवानिवृति पूर्व आय का भाग.</li>
<li>इस सूचकांक में कई उप-सूचकांक में.भारत के संदर्भ में इन उप-सूचकांकों की दर इस प्रकार है.</li>
</ul>
<blockquote>
<p>पर्याप्तता- 35.5 (100 में से)<br />
वहनीयता-41.8<br />
अखंडता-61.0</p>
</blockquote>
<p><br />
सूचकांक में भारत को 'C+' श्रेणी वाला देश माना गया है. भारत को सूचकांक में अपना मान बढ़ाने के लिए कुछ उपाय करने चाहिय-</p>
<blockquote>
<p>गरीब वृहद्जनों को न्यूनतम आर्थिक गारंटी.<br />
पेंशन सेवा का विस्तार किया जाए.<br />
पेंशन के लिए न्यूनतम आयु निर्धारित की जाए.<br />
निजी पेंशन प्रणालियों पर बेहतर निगरानी की जाए.</p>
</blockquote>
<p>',
(int) 3 => '<br />
पुरे देश में गिग इकॉनोमी की चर्चा है लेकिन वो सिर्फ आंकड़ो के मायाजाल तक. इससे इतर काम करने वाले कर्मचारियों की बात भी जरूरी है. बात करने का जिम्मा उठाया है बेंगलुरु की नेशनल लो <a href="https://www.nls.ac.in/">स्कूल ऑफ़ इंडिया</a> युनिवर्सिटी ने. नाम रखा है- [inside]"इज प्लेटफ़ॉर्म वर्क डिसेंट वर्क? अ केस ऑफ़ फ़ूड डिलीवरी वर्कर्स इन कर्नाटका."(जारी 8 सितम्बर,2021)[/inside]</p>
<p>किए गए <a href="/upload/files/OCCASIONAL-PAPER-SERIES-10-final%281%29.pdf">अध्ययन</a> में प्लेटफ़ॉर्म वर्कर्स के अनुभवों को एकत्रित किया गया है.<br />
<a href="/upload/files/OCCASIONAL-PAPER-SERIES-10-final%282%29.pdf">अध्ययन</a> बताता है कि कर्मचारियों को ना तो न्यूनतम मेहनताना मिलता है और ना ही काम करने का निश्चित समय.</p>
<p>',
(int) 4 => '</p>
<p style="text-align:justify"><span style="font-size:12pt"><span style="background-color:white"><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) से संबंधित वार्षिक रिपोर्ट उपरोक्त सभी संकेतकों पर डेटा प्रदान करती है. राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) द्वारा तैयार की गई तीसरी पीएलएफएस वार्षिक रिपोर्ट (जुलाई</span></span> 2019-<span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">जून</span></span> 2020) <span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">जुलाई</span></span> 2021 <span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">में जारी की गई है</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">. <span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">यह रिपोर्ट</span></span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333"> <span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">श्रम अर्थशास्त्रियों द्वारा</span></span> 2020 <span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">के राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन की अवधि के दौरान बेरोजगारी की स्थिति और देश में आजीविका की असुरक्षा पर उपयोगी अंतर्दृष्टि प्रदान करने के संबंध में महत्वपूर्ण है. ऐसा इसलिए है क्योंकि पीएलएफएस पर हाल ही में जारी</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333"> <a href="https://im4change.org/upload/files/Annual_Report_PLFS_2019_20.pdf" style="outline:none; transition:all 0.2s ease-in-out 0s; background-color:rgba(108, 172, 228, 0.2); color:blue; text-decoration:underline" title="https://im4change.org/upload/files/Annual_Report_PLFS_2019_20.pdf"><span style="color:#035588">वार्षिक रिपोर्ट</span></a> </span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">में जुलाई</span></span> 2019 <span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">से जून</span></span> 2020 <span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">तक की अवधि से संबंधित तस्वीर पेश करती है. यह</span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333"> <a href="https://im4change.org/upload/files/Annual_Report_PLFS_2019_20.pdf" style="outline:none; transition:all 0.2s ease-in-out 0s; background-color:rgba(108, 172, 228, 0.2); color:blue; text-decoration:underline" title="https://im4change.org/upload/files/Annual_Report_PLFS_2019_20.pdf"><span style="color:#035588">रिपोर्ट</span></a>, </span></span> <span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">देशव्यापी लॉकडाउन (लगभग</span></span> 69 <span style="font-size:10.5pt"><span style="color:#333333">दिनों की) की अवधि के दौरान रोजगार-बेरोजगारी संकट की स्थिति पर प्रकाश डालती है.</span></span></span></span></span></span></p>
<p><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">पीएलएफएस</span></span></span> <span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">2019-20 </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">की वार्षिक रिपोर्ट से पता चलता है कि सीडब्ल्यूएस में कामगारों (ग्रामीण</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">, </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">शहरी और ग्रामीण+शहरी) को रोजगार में उनकी स्थिति के अनुसार तीन व्यापक श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है. ये व्यापक श्रेणियां हैं: (</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">i) </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">स्वरोजगार</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">; (ii) </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">नियमित वेतन/वेतनभोगी कर्मचारी</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">; </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">और (</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">iii) </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">आकस्मिक श्रम. </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">'</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">सभी स्वरोजगार</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">' </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">की श्रेणी के अंतर्गत</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">, </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">दो उप-श्रेणियाँ बनाई हैं अर्थात </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">'</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">स्वपोषित श्रमिक और सभी नियोक्ता</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">' - </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">एक साथ संयुक्त</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">, </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">और </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">'</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">घरेलू कामकाज में अवैतनिक सहायक</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">'. <span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">चार्ट-</span></span></span></span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">1 </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">में रोजगार में स्थिति के आधार पर सीडब्ल्यूएस में श्रमिकों का वितरण प्रस्तुत किया गया है. स्व-नियोजित व्यक्ति</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">, </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">जो बीमारी के कारण या अन्य कारणों से काम नहीं करते थे</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">, </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">हालांकि उनके पास स्व-रोजगार का काम था</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">, </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">उन्हें </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">'</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">सभी स्वरोजगार (पुरुष/महिला/ग्रामीण/शहरी/ग्रामीण+शहरी क्षेत्रों में व्यक्ति) श्रेणी के तहत शामिल किया गया है.</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">' <span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">इस प्रकार</span></span></span></span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">, '</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">सभी स्व-नियोजित (पुरुष/महिला/ग्रामीण/शहरी/ग्रामीण+शहरी क्षेत्रों में व्यक्ति)</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">' </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">श्रेणी के तहत दिए गए अनुमान </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">'</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">स्वपोषित श्रमिकों</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">, </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">सभी नियोक्ता</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">' </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">और </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">'</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">घरेलू उद्यम में अवैतनिक सहायक</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">' <span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">श्रेणियों के तहत अनुमानों के योग से अधिक होंगे. हमने स्व-नियोजित श्रमिकों के प्रतिशत हिस्से की गणना की है</span></span></span></span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">, </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">जिनके पास घरेलू उद्यम में काम था</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">, </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">लेकिन बीमारी या अन्य कारणों से काम नहीं किया.</span></span></span></span></span></p>
<p><span style="font-size:11pt"><span style="font-family:Calibri,sans-serif"><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">राष्ट्रीय स्तर पर</span></span></span> <span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">'</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">स्व-नियोजित श्रमिक (अर्थात ग्रामीण + शहरी व्यक्तियों) जो घरेलू उद्यम में काम करते थे</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">, </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">लेकिन बीमारी या अन्य कारणों से काम नहीं कर पाए</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">' <span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">का प्रतिशत हिस्सा </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">1.4 </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">प्रतिशत से गिरकर </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">2017-18 </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">और </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">2018-19 </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">के बीच </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">1.2 </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">प्रतिशत हो गया. हालांकि</span></span></span></span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">, 2019-20 <span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">में यह आंकड़ा बढ़कर </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">3.4 </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">प्रतिशत हो गया</span></span></span></span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">, </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">जो <span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">2017-18 </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">के स्तर से अधिक था.</span></span></span> </span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">'</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">ग्रामीण महिला</span></span></span><span style="font-size:10.5pt"><span style="background-color:white"><span style="color:#333333">', '</span>