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.....ताकि चुनाव-चर्चा के बीच आप भुखमरी से हो रही मौतों को ना भूल जायें !

झारखंड में बीते 30 दिनों में कम से कम दो जन भुखमरी के कारण मौत की चपेट में आये हैं.  भोजन का अधिकार अभियान ने यह जानकारी एक तथ्यान्वेषी दल की रिपोर्ट के आधार पर दी है.

 

रिपोर्ट में राज्य के दुमका जिले में जामा प्रखंड के महुआटांड गांव के कलेश्वर सोरेन और देवघर जिले में  मार्गोमंडा प्रखंड के मोती यादव की मौत के पीछे भुखमरी को एक कारण के रुप में चिह्नित किया गया है. भोजन का अधिकार अभियान की प्रेस विज्ञप्ति नीचे पाठकों की सुविधा के लिए पेस्ट की जा रही है.(तत्यान्वेषी दल की रिपोर्ट को डाऊनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें)

 

गौरतलब है कि देश के अलग-अलग इलाकों में पिछले एक साल से भुखमरी से होने वाली मौतों का सिलसिला जारी है. इन्क्लूसिव मीडिया फॉर चेंज ने अपने जून माह के न्यूज एलर्ट में पाठकों का ध्यान इस तथ्य को ओर खींचा था कि बीते एक साल में 20 लोग  भुखमरी से मौत की चपेट में आये हैं और ये सभी जन वंचित तबके के हैं. मामले में झारखंड की स्थिति कहीं ज्यादा नाजुक है. भोजन का अधिकार अभियान ने ध्यान दिलाया है कि मौत के शिकार हो रहे ज्यादातर लोगों के राशन-कार्ड आधार से लिंक ना होने के कारण रद्द हो गये हैं और उन्हें पीडीएस से अपने हिस्से का राशन नहीं मिल पा रहा है.


हाल में आयी ग्लोबल मल्टीडायमेंशनल पावर्टी इंडेक्स रिपोर्ट के मुताबिक झारखंड में सबसे ज्यादा लोग बहुआयामी गरीबी के चंगुल से बाहर निकलने में कामयाब हुए हैं लेकिन इसके बावजूद झारखंड और बिहार गरीबों की सबसे ज्यादा तादाद वाले राज्य हैं. साल 2015/16 में बिहार, झारखंड, उत्तरप्रदेश तथा मध्यप्रदेश में 19 करोड़ 60 लाख लोग बहुआयामी गरीबी के शिकार थे. दूसरे शब्दों में कहें तो भारत में मौजूद बहुआयामी गरीबी के शिकार लोगों की कुल संख्या (36 करोड़ 40 लाख) का लगभग 50 फीसद हिस्सा इन्हीं चार राज्यों में मौजूद है. हाल की एक अंतर्राष्ट्रीय रिपोर्ट में भारत में भुखमरी की स्थिति संगीन मानी गई है. साल 2018 में ग्लोबल हंगर इंडेक्स पर भारत का स्थान 119 देशों के बीच 103 वां हैं. पड़ोसी देश चीन (जीएचआई मान: 7.6; स्थान: 25), नेपाल (जीएचआई: 21.2; स्थान: 72), म्यांमार (जीएचआई मान: 20.1; स्थान: 68), श्रीलंका (जीएचआईमान: 17.9; स्थान: 67) तथा बांग्लादेश (जीएचआई मान: 26.1; स्थान: 86) भारत (जीएचआई मान: 31.1; स्थान: 103) से बेहतर स्थिति में हैं.

 

                                                        भोजन का अधिकार अभियान की प्रेस विज्ञप्ति

 

झारखंड में पिछले 25 दिनों में कम-से-कम दो और लोगों की भूख से मौत हुई है. सितम्बर 2017 से अब तक 17 लोग भूख के शिकार हुए हैं. हाल में ही, दुमका ज़िला के जामा प्रखंड के महुआटार गाँव के 45-वर्षीय कलेश्वर सोरेन की भूख से मौत हो गयी. भोजन का अधिकार अभियान, झारखंड के एक तथ्यान्वेषण दल ने पाया कि आधार से न जुड़े होने के कारण कलेश्वर के परिवार का राशन कार्ड रद्द कर दिया गया था.


कलेश्वर एक जीर्ण कच्चे घर में अत्यंत दारिद्र्य में रहते थे. घर में उनके पास एक खटिया छोड़कर कुछ नहीं था. अपर्याप्त भोजन और पोषण पर जीना उनके परिवार के लिए सामान्य बात थी. कलेश्वर किसी तरह अपने पड़ोसियों द्वारा दिए गए खाने पर जीते थे. वे पिछले दो वर्षों से कमज़ोर हो गए थे और इसलिए मज़दूरी करना छोड़ दिए थे. उत्तरजीविता के लिए उन्होंने अपने परिवार की कृषि योग्य ज़मीन को बंधक रख दिया था एवं घर के एक जोड़े बैलों को भी बेच दिया था. घर में भोजन और कमाई के साधन की कमी के कारण, उनके पांचो बच्चों को कम उम्र से ही रोज़गार की तलाश में घर व पढाई छोड़नी पड़ी. उनके दो बड़े बेटों को, जो राजस्थान में मज़दूरी करते हैं, ठेकेदार ने पिछले दो वर्षों में एक बार भी वापस अपने गाँव जाने नहीं दिया. वे पिता की मृत्यु के बाद भी नहीं आ पाएं.



आधार से न जुड़े होने के कारण परिवार का पुर्विक्ताप्राप्त (गुलाबी) राशन कार्ड 2016 में रद्द कर दिया गया था. तब से, परिवार को जन वितरण प्रणाली अंतर्गत सस्ता अनाज नहीं मिल रहा है. क्षेत्र के राशन डीलर के अनुसार, परिवार का कार्ड रद्द होने के बाद, कलेश्वर को आधार जमा करने बोला गया था ताकि राशन सूचि में फिर से परिवार को जोड़ा जा सके. लेकिन आधार खो जाने के कारण वे जमा नहीं कर पाएं. उनके किसी भी बच्चे के पास आधार नहीं है. ग्राम पंचायत मुखिया दावा करते हैं कि उन्होंने कलेश्वर को खाद्यान कोष (वंचित परिवारों को सहयोग करने के लिए प्रत्येक पंचायत को 10,000 रु दिए जाने हैं) से कुछ अनाज दिया था. हालाँकि तथ्यान्वेषण दल इस दावे का सत्यापन नहीं कर पाई, लेकिन इससे यह स्पष्ट होता है कि भुखमरी समाप्त करने का सरकार का यह “उपाय” विफ़ल है.


कलेश्वर के अलावा, उनके गाँव के अन्य 27 परिवारों के राशन कार्ड भी 2016 में रद्द कर दिए गए थे. इसके एक साल बाद उनमें से 26 परिवारों का नाम फिर से राशन सूचि में जोड़ा गया जब उन्होंने अपने आधार और बैंक खाते की प्रतियाँ जमा किया. गाँव के जियन किस्कू के परिवार को, जिसका राशन कार्ड भी 2016 में रद्द हो गया था, अभी तक राशन सूचि  में फिर से जोड़ा नहीं गया है क्योंकि न उनके या उनकी पत्नी के पास आधार है.


कलेश्वर की मौत के कुछ दिनों पहले ही 1 नवम्बर को मार्गोमुंडा प्रखंड (देवघर) के मोती यादव की मृत्यु हो गयी थी और 25 अक्टूबर को बसिया प्रखंड (गुमला) की सीता देवी की. नेत्रहीन मोती यादव की मौत दारिद्र्य के कारण हुई. हालाँकि उन्होंने विकलांगता पेंशन के लिए आवेदन दिया था, लेकिन वे इससे वंचित थे. 75 वर्षीय एकल महिला सीता देवी की भूख से मौत हो गयी क्योंकि उनके पास मरने से पहले न खाना था और न ही पैसा. हालाँकि उनके पास राशन कार्ड था, वे अक्टूबर में राशन नहीं ले पायीं क्योंकि वे बीमारी के कारण राशन दुकान तक सत्यापन करने नहीं जा पायीं. वे वृद्धा पेंशन से भी वंचित थीं क्योंकि उनका बैंक खाता आधार से जुड़ा नहीं था.


सितम्बर 2017 से हुई 17 भूख से मौतों में 8 आदिवासी, 4 दलित और 5 पिछड़े शामिल हैं. इन मौतों का कारण है मृतक एवं उनके परिवार के पास अनाज न होना क्योंकि उनका राशन कार्ड या तो बना ही नहीं था, बना भी था तो आधार से लिंक नहीं होने के कारण रद्द कर दिया गया था या फिर राशन कार्ड होने के बावजूद मशीन में आधार आधारित सत्यापन नहीं होने के कारण राशन नहीं मिल पाया. जन वितरण प्रणाली से अनाज न मिलने के साथ साथ सामाजिक सुरक्षा पेंशन और राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी कानून (नरेगा) में काम न मिलने से भी इन परिवारों में भूख की स्थिति जानलेवा हो गई. कुल 17 में से 7 भूख से मौत का शिकार हुए व्यक्ति सामाजिक सुरक्षा पेंशन के भी हकदार थे लेकिन  प्रशासनिक लापरवाही एवं आधार सम्बंधित समस्याओं के चलते उन्हे पेंशन नहीं मिली. यह भी सोचने की आवश्यकता है कि अपर्याप्त शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधा व रोज़गार के साधन के आभाव में इन परिवारों के बच्चों व युवाओं का भविष्य भी अनिश्चितता से पूर्ण है.


इन मौतों से राज्य में अन्त्योदय अन्न योजना के अपर्याप्त दायरे के बारे में भी पता चलता है. हालाँकि ये सभी परिवार अत्यंत गरीब थे, लेकिन अधिकांश के पास अन्त्योदय राशन कार्ड नहीं था. भुखमरी की समस्या के निराकरण के लिए भोजन का अधिकार अभियान लगातार निम्न मांगे करते रहा है – 1) जन वितरण प्रणाली का ग्रामीण क्षेत्र में सार्वभौमिकरण ताकि कोई भी वंचित परिवार न छूटे, 2) जन वितरण प्रणाली में सस्ता दाल व खाद्यान तेल शामिल किया जाए, 3) कल्याणकारी योजनाओं से आधार की अनिवार्यता समाप्त की जाए, 4) सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजनाओं का सार्वभौमिकरण, एवं 5) इन मौतों के लिए ज़िम्मेवार सरकारी पदाधिकारियों पर सख्त कार्यवाई की जाए. लेकिन राज्य सरकार लगातार इन मौतों को स्वाभाविक या बीमारी से मौत बता रही है और न कि भूख से. एवं राज्य में भुखमरी की आपातकालीन स्थिति के निराकरण के लिए अब तक कुछ नहीं किया है. यह गौर करने की बात है सरकार द्वारा खाद्यान कोष स्थापित करने के निर्णय के बाद भी कम-से-कम 5 व्यक्तियों की भूख से मौत हो चुकी है. ऐसे नाम-मात्र पहल सरकार में लोगों के भोजन के अधिकार के प्रति प्रतिबद्धता की कमी दर्शाती है एवं यह स्पष्ट है कि इससे लोगों को खाद्य सुरक्षा एक अधिकार के रूप में नहीं मिलेगा.



अधिक जानकारी के लिए अशर्फी नन्द प्रसाद (9334463332), सिराज (9939819763) या विवेक (8873341415)  से संपर्क करें या rtfcjharkhand@gmail.com. पर लिखें. सभी तथ्यान्वेषण रिपोर्ट व सम्बंधित दस्तावेज़ यहाँ से download कर सकते हैं – https://drive.google.com/open?id=1A7LpJQywTp3qNUx5qX35JbmCdZCZvB4u . कलेश्वर सोरेन के परिवार के सदस्यों यहाँ देख सकते हैं – https://youtu.be/fTNksR0SLEM एवं उनके गाँव के राशन डीलर का बयान यहाँ - https://youtu.be/H6SJCPM2P3Y .