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पीएलएफएस रिपोर्ट: देश में घट रही है बेरोजगारी !

इस लेख में राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय की ओर से जारी की जाने वाली आवधिक श्रमबल सर्वेक्षण रिपोर्ट (2022–23) का विश्लेषण किया है। यह रिपोर्ट देश में रोजगार और श्रम बाजार की वस्तुस्थिति का आधिकारिक दस्तावेज है। रिपोर्ट का कहना है कि रोजगार की सूरत–ए–हाल में सुधार आ रहा है। क्या वाकई बेरोजगारी घट रही है ? 

गौरतलब है कि इस सर्वेक्षण में मुख्यतः तीन तरह के आँकड़ों को दर्ज किया जाता है। पहला, जनसंख्या का ऐसा अनुपात जो ‘काम’ करना चाहता है (जिसे श्रम भागीदारी दर से जाना जाता है)। दूसरा, जनसंख्या का ऐसा अनुपात जो किसी-न-किसी काम में संलग्न है(कामगार जनसंख्या अनुपात) । और तीसरा, काम करने के इच्छुक लोगों में से किसी भी काम में संलग्न लोगों को हटा दें, तब जो अनुपात प्राप्त होता है उसे बेरोजगारी दर कहते हैं।

श्रमबल भागीदारी दर

अर्थव्यवस्था में श्रमबल भागीदारी दर का बढ़ना अच्छा संकेत माना जाता है। 2022–23 की रिपोर्ट में श्रमबल भागीदारी दर में बढ़ोतरी दर्ज की गई है। वर्ष 2017–18 में 15 वर्ष और उससे अधिक उम्र के व्यक्तियों के लिए यह दर 49.8 प्रतिशत थी (यूजुअल स्टेट्स में)। जो कि वर्ष 2022–23 में बढ़कर 57.9 प्रतिशत हो जाती है।

 

स्रोत- आवधिक श्रमबल सर्वेक्षण रिपोर्ट- 2022–23

इसी के साथ ही कामगार जनसंख्या अनुपात में भी बढ़ोतरी दर्ज की गई है। वर्ष 2017–18 में यह अनुपात 46.8 प्रतिशत था जो कि वर्ष 2022–23 तक बढ़कर 56 प्रतिशत हो जाता है। कामगार जनसंख्या अनुपात में बढ़ोतरी का एक अर्थ यह भी है कि बेरोजगारी दर में कमी आएगी।

बेरोजगारी दर

ऊपर दिए गए ग्राफ में आपने देखा कि पिछले 6 वर्षों से लगातार बेरोजगारी दर में कमी आ रही है। 15 वर्ष और उससे अधिक उम्र के व्यक्तियों के लिए — वर्ष 2017–18 में बेरोजगारी दर 6.0 प्रतिशत थी जो कि 2022–23 में घटकर 3.2 प्रतिशत हो जाती है।

                  
लैंगिक आधार पर बेरोजगारी

सबसे कम बेरोजगारी दर ग्रामीण महिलाओं में है।

सबसे अधिक बेरोजगारी दर शहरी महिलाओं में है। शहरी पुरुषों की तुलना में शहरी महिलाओं में बेरोजगारी दर अधिक है। हालांकि, सभी वर्गों में पिछले छह वर्षों से बेरोजगारी दर में गिरावट आ रही है।


स्रोत- आवधिक श्रमबल सर्वेक्षण रिपोर्ट- 2022–23

वर्ष 2017–18 में ग्रामीण महिलाओं में बेरोजगारी दर 3.8 प्रतिशत थी जो कि वर्ष 2022–23 में घटकर 1.8 प्रतिशत हो जाती है। शहरी महिलाओं में वर्ष 2017–18 में बेरोजगारी दर 10.8 प्रतिशत थी जो कि घटकर वर्ष 2022–23 में 7.5 प्रतिशत हो जाती है। वर्ष 2022–23 में शहरी पुरुषों में बेरोजगारी दर 4.7 प्रतिशत थी।

तीनों आँकड़ों का मोटा-मोटा सार यह है कि श्रम बाजार में सुधार आ रहा है। काम करने की चाहत रखने वालों का अनुपात बढ़ रहा है; काम करने वाले लोगों का अनुपात बढ़ रहा है। नतीजन बेरोजगारी दर में गिरावट आ रही है। लेकिन, अब सवाल यह उठता है कि क्या वाकई बेरोजगारी में कमी आ रही है ? इसके लिए हमें यह देखना होगा कि रोजगार के कैसे अवसरों में वृद्धि हो रही है।

 

स्वनियोजित रोजगार के अवसरों में वृद्धि


वर्ष 2017-18 में 52.2 प्रतिशत रोजगार स्वनियोजित प्रकार के थे। यह आँकड़ा पिछले 6 वर्षों से लगातार बढ़ रहा है। बढ़ते हुए वर्ष 2021-22 में 55.8 % हो जाता है और वर्ष 2022-23 में 57.3 प्रतिशत। स्वनियोजित रोजगार में भी अवैतनिक रोजगार के अवसरों में वृद्धि हो रही है। जो कि शुभ संकेत नहीं है। 

स्रोत- आवधिक श्रमबल सर्वेक्षण रिपोर्ट- 2022–23

ऊपर दिये गए ग्राफ के अनुसार घरेलू उद्यमों में सहायक के तौर पर काम करने वालों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। वर्ष 2017-18 में कुल श्रमिकों में से 13.6 प्रतिशत श्रमिक ऐसे थे जिन्हें सहायक की श्रेणी में रखा गया था। आप कहोगे ये सहायक श्रेणी क्या है ? "घरेलू उद्यमों में सहायक" ऐसे मजदूरों को कहा जाता है जिन्हें काम के बदले में वेतन नहीं मिलता है। यानी अवैतनिक मजदूर। काम करते हैं बदले में पैसा एक नहीं मिलता। ऊपर से सरकार इन्हें  ‘सेल्फ इंप्लॉयड’कहती है। अवैतनिक मजदूरों का बढ़ता अनुपात ही रोजगार के आँकड़ों को गुलाबी रंग दे रहा है।
घरेलू उद्यमों में सहायक के रूप में काम करने वाले अवैतनिक श्रमिकों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। इन मजदूरों की संख्या वर्ष 2017-18 में से 13.6 प्रतिशत थी जो कि वर्ष 2022-23 में बढ़कर 18.3 प्रतिशत हो गई है। महिलाओं के संदर्भ में यह आँकड़ा और भी निराशाजनक है ; जिसका जिक्र लेख में आगे किया है। 
 

गौर करने वाली बात यह है कि कुल श्रमबल में नियमित वेतन पाने वाले मजदूरों का अनुपात घट रहा है। वर्ष 2020-21 में 21.1 प्रतिशत श्रमिक नियमित वेतन पर काम कर रहे थे वहीं 2022-23 में यह आँकड़ा घटकर 20.9 प्रतिशत हो जाता है।

 

अवैतनिक महिला श्रमिकों की संख्या बढ़ रही है
महिलाओं में स्वनियोजित प्रकार के रोजगार के अवसरों के अनुपात में वृद्धि हो रही है। नीचे दी गई टेबल को देखें; इसमें ग्रामीण और शहरी क्षेत्र के आँकड़े दिये गए हैं। वर्ष 2017-18 में ग्रामीण क्षेत्र में 19 प्रतिशत महिला श्रमिक स्वनियोजित थीं। यह संख्या बढ़कर वर्ष 2022-23 में 27.9 प्रतिशत हो जाती है। इसी तरह का रुझान शहरी श्रम बाजार में दिख रहा है। 
सबसे चिंताजनक यह है कि अवैतनिक महिला श्रमिकों की संख्या लगातार बढ़ रही है। और बढ़ने की दर पुरुषों की तुलना में अधिक है। गौर करने वाली बात यह है कि ग्रामीण क्षेत्र में अवैतनिक महिला श्रमिकों की संख्या अधिक है।  वर्ष 2017-18  में, श्रम बाजार में शामिल 38.7 प्रतिशत महिलाएँ अवैतनिक मजदूर के रूप में काम कर रही थी। वहीं यह संख्या बढ़कर वर्ष 2022-23 में 43.1 प्रतिशत हो जाती है।
नियमित वेतन प्राप्त करने वाले कर्मचारियों की संख्या में भी कमी आ रही है जो कि चिंताजनक। 

Table-1. Percentage distribution of female workers in usual status (ps+ss) by status in employment during various PLFS

सन्दर्भ यहाँ से-

Periodic Labour Force Survey (PLFS), July 2022-June 2023, released in June 2022, National Statistical Office (NSO), Ministry of Statistics and Programme Implementation (MoSPI), please click here to access 

Periodic Labour Force Survey (PLFS), July 2020-June 2021, released in June 2022, National Statistical Office (NSO), Ministry of Statistics and Programme Implementation (MoSPI), please click here to access 

Periodic Labour Force Survey Annual Report (July 2019-June 2020), released in July 2021, NSO, MoSPI, please click here to access  

Periodic Labour Force Survey (PLFS) – Annual Report [July, 2020 – June, 2021], released on 14 June, 2022, Press Information Bureau, Ministry of Statistics & Programme Implementation (MoSPI), please click here to access 

News alert: केवल रोजगार के आंकड़े काफी नहीं, रोजगार में गुणवत्ता जरूरी please click here and here to access  

News alert: महामारी के काल में 'महिला कर्मी' और उनका 'मेहनताना' please click here and here to access

News alert: Latest available PLFS data sheds light on unpaid helpers in self-employment & underemployment among various types of workers, Inclusive Media for Change, Published on Sep 2, 2021, please click here to access