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क्या राजकोषीय संघवाद की गाड़ी हिचकोले खा रही है ?

समाचार माध्यमों से लेकर राजनीतिक गलियारों तक ‘राजकोषीय संघवाद’ का मुद्दा चर्चा का विषय बना हुआ है। हाल ही में पेश किए गए केंद्रीय बजट 2024–25 ने इस चर्चा को और बढ़ावा दिया है। आँकड़े बता रहे हैं कि वितरण योग्य राशि (डिविजबल पूल) के आकार में कमी आ रही है। पिछले कई वर्षों से वित्त आयोगों की सिफारिशों को नज़रन्दाज किया जा रहा है। इस लेख में ‘राजकोषीय संघवाद’ के सामने आ रही चुनौतियों को समझने की कोशिश की है।


राजकोषीय संघवाद क्या है ?
जब वित्तीय शक्तियों का बंटवारा शासन के विभिन्न स्तरों के बीच में किया जाता है, तो उसे राजकोषीय संघवाद कहा जाता है। भारत में सन् 1993 से पहले शासन के दो स्तर थे; केंद्र सरकार और राज्य सरकार। 72वें और 73वें संविधान संशोधन के जरिए शासन के तीसरे स्तर— स्थानीय शासन— को संवैधानिक मान्यता दी । 
शासन के इन तीनों स्तरों को अपनी जिम्मेदारियाँ निभाने के लिए वित्त की आवश्यकता पड़ती है। सरकारें वित्त संसाधन जुटाने के लिए करारोपण (Taxation) करती हैं। चूंकि केंद्र सरकार के पास कई तरह के कर लगाने का क्षेत्राधिकार है, जिसके कारण केंद्र को अधिक कर राजस्व प्राप्त होता है। यह कर राजस्व (उपकार और अधिभार से मिलने वाली राशि को छोड़कर) डिविजबल पूल में जमा हो जाता है। 
केंद्र और राज्यों के बीच बनीं लम्बवत असमानता को ख़त्म करने के लिए, वित्त आयोग की सलाह पर वितरण योग्य राशि (डिविजबल पूल में से) को राज्यों के साथ साझा किया जाता है।

 

राज्यों को मिल रही है कम राशि!
लम्बवत असंतुलन को दूर करने के लिए 15वें वित्त आयोग ने यह अनुशंसा की थी कि डिविजबल पूल में जमा हुई राशि का 41 प्रतिशत हिस्सा राज्यों को दिया जाएँ। इसी तरह 14वें वित्त आयोग ने भी यह सिफारिश की थी कि डिविजबल पूल में जमा हुई राशि का 42 प्रतिशत हिस्सा राज्यों को दिया जाएँ । लेकिन, पिछले पाँच वर्षों में 41 प्रतिशत का आँकड़ा कभी वास्तविकता नहीं बन पाया। वित्तीय वर्ष 2017 और 2019 को छोड़ दें तो 14वें वित्त आयोग के कार्यकाल में भी 42 प्रतिशत का आँकड़ा नहीं छुआ जा सका है। विशेषज्ञ इसके पीछे कई कारणों को जिम्मेदार ठहराते हैं।
नीचे दी गई तस्वीर को देखिये।

 
 
इस तस्वीर को बजट में दिए गए आँकड़ों को आधार बनाकर तैयार किया है। अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक कीजिये। RE- संशोधित अनुमान, BE- बजट अनुमान

आज प्रत्यक्ष करों से मिलने वाले राजस्व का आकार जीडीपी के 6.7 प्रतिशत के बराबर है जो कि पिछले कई वर्षों में सर्वाधिक है। ऐसे समय में सवाल यह उठता है कि डिविजबल पूल से राज्यों को मिलने वाली राशि कम क्यों है ? 
इसके पीछे कई कारणों को जिम्मेदार माना जा रहा है। जिसमें से एक है कर राजस्व में उपकर (Cess) और अधिभार (Surcharge) की हिस्सेदारी में बढ़ोतरी।
गौरतलब है कि अधिभार और उपकर डिविजबल पूल का हिस्सा नहीं होते हैं। यानी कि  अधिभार और उपकर के माध्यम से हासिल किया गया राजस्व राज्यों के साथ साझा नहीं किया जाता है।
उदाहरण के लिए इस बार के बजट में पेश किये गए अनुमानों को देखते हैं। अंतरिम बजट 2024-25 में कुल कर राजस्व 38.3 लाख करोड़ रूपए संग्रहित होने का अनुमान है। इसमें अधिभार और उपकर की हिस्सेदारी करीब 10.2 प्रतिशत की है। अगर जीएसटी उपकर को जोड़ दिया जाएँ (जो कि राज्यों के साथ साझा किया जाता है) तो यह हिस्सेदारी और बढ़ जाती है (14.11 %)
नीचे दी गई तस्वीर में कुल कर राजस्व में उपकर और अधिभार की प्रतिशत हिस्सेदारी को दर्शाया है।
 

 
नोट- इसमें GST उपकर से प्राप्त होने कर राजस्व को शामिल नहीं किया है


15वें वित्त आयोग का यह आंकलन था कि अगले पाँच वर्षों (2021-2026) में सकल कर राजस्व 135.2 लाख करोड़ रूपए तक पहुँच जाएँगा। लेकिन, अनुमान की गई इस राशि को लगभग पहले ही हासिल किया जा चुका है। अंतरिम बजट 2024-25 तक कुल राजस्व 130.3 लाख करोड़ रूपए तक पहुँचने का अनुमान है।

गौरतलब है कि डिविजबल पूल से मिलने वाली राशि के साथ शर्तें जुड़ी हुई नहीं होती हैं। यानी राज्य सरकार जिस भी कार्य पर खर्च करना चाहे कर सकती हैं। वहीं केंद्र सरकर से राज्यों की सरकारों को मिलने वाले अन्य अनुदानों के साथ शर्तें जुड़ी होती हैं। इसीलिए राज्य सरकारें डिविजबल पूल से मिलने वाली राशि को प्राथमिकता देते हैं।


सन्दर्भ---

The severe erosion of fiscal federalism For The Hindu By- MUKUND P. UNNY, Please click here.
Rethink the emerging dynamics of India’s fiscal federalism For The Hindu By- M.A. OOMMEN, Please click here.
Budget 2023. Why tax devolution to States has been falling consistently? For Hindu businessline, Please click here.
For the Union Budget, Please click here.
Please click here for the 14th Finance Committee Report.
Please click here for the 15th Finance Committee Report.
India’s tax-to-GDP ratio to hit a record high of 11.7% of GDP in 2024-25: Revenue Secretary By Vikas Dhoot Please Click Here.
FY25 Union Budget: Fiscal Consolidation on Course, But Lower Devolution to States a Concern, For India Ratings and Research (Ind-Ra), Please Click here.