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अंत्योदय अन्न योजना को खत्म करने का नायाब बहाना!

क्या सरकार तकनीकी नुक्तों की आड़ में खाद्य सुरक्षा कानून से जुड़ी अपनी जिम्मेदारियों से बचना चाहती है ? इस कानून के क्रियान्वयन के लिए संघर्ष करने वाले नागरिक संगठनों ने ऐसी ही आशंका जतायी है।

 

नागरिक संगठनों को आशंका है कि समाज के सबसे गरीब तबकों को खाद्य-सुरक्षा प्रदान करने के लिए जारी अंत्योदय अन्न योजना को सरकार ने पीडीएस कंट्रोल आर्डर के जरिए निशाना बनाया है।

 

पीडीएस कंट्रोल आर्डर में कहा गया है कि मौत या फिर पलायन की स्थिति में अंत्योदय अन्न योजना के लाभार्थी परिवार के लिए नये कार्ड जारी नहीं किए जायेंगे और उनका पुराना कार्ड निरस्त कर दिया जाएगा।

 

उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय द्वारा बीते 20 मार्च को जारी पीडीएस कंट्रोल आर्डर अंत्योदय योजना के लाभार्थी परिवारों की संख्या कम करने के लक्ष्य से जारी किया गया है और नागरिक संगठनों को आशंका है कि यह अंत्योदय अन्न योजना को चरणबद्ध ढंग से खत्म करने की तरकीब है।

 

आर्डर में स्पष्ट शब्दों में कहा गया है कि अंत्योदय योजना का लाभार्थी कोई परिवार राज्य से बाहर प्रवास के कारण, सामाजिक आर्थिक प्रास्थिति में सुधार, मृत्यु आदि के कारण अपात्रहो जाता है तो उस राज्य में किसी नई अंत्योदय गृहस्थी की पहचान नहीं की जायेगी और उस सीमा तक कुल अंत्योदय गृहस्थियां कम हो जायेंगी।

 

गौरतलब है कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम की धारा 3(1) में अंत्योदय अन्न योजना को सर्वाधिक गरीब परिवारों के लिए एक हकदारी के रुप में मंजूर किया गया है। साथ ही अधिनियम की धारा 30 में कहा गया है कि केंद्र और राज्य सरकार अधिनियम के प्रावधान और विशेष हकदारियों को पूरा करने के लिए चलायी जा रही योजनाओं के क्रियान्वयन में सबसे कमजोर तबकों की खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए उनकी विशेष जरुरतों का ध्यान रखेंगे।

 

सन् 2000 यानी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के समय अमल में आई अंत्योदय अन्न योजना के तहत समाज के सबसे गरीब परिवारों को पीडीएस के जरिए प्रतिमाह 35 किलोग्राम अनाज दिया जाता है जबकि खाद्य-सुरक्षा अधिनियम में प्रति व्यक्ति प्रतिमाह पाँच किलो अनाज देने का प्रावधान है। अंत्योदय अन्न योजना के दायरे से निकल जाने पर अगर किसी गरीब परिवार में सदस्यों की संख्या सात से कम होगी तो उन्हें खाद्य सुरक्षा कानून के तहत पहले की तुलना में कम अनाज हासिल होगा।

 

भोजन का अधिकार कानून के क्रियान्वयन के लिए संघर्षरत नागरिक संगठनों ने ध्यान दिलाया है कि पीडीएस कंट्रोल आर्डर सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के विपरीत है। सुप्रीम कोर्ट ने पीयूसीएल की एक याचिका पर 2 मई 2003 को केंद्र सरकार को निर्देश दिया था कि वह बेसहारा लोगों को अंत्योदय अन्न योजना के दायरे में लाये।

 

अनियमित आमदनी वाले बुजुर्ग, विधवा, एकल महिला के साथ-साथ बेसहारा लोगों के दायरे में कोर्ट ने उन परिवारों को भी शामिल किया जहां जिसका कोई बालिग सदस्य घर के बाहर किसी किस्म के फायदेमंद रोजगार में ना लगा हो। कोर्ट ने बाद में 20 अप्रैल 2004 तथा 17 नवंबर 2004 के अपने निर्देशों में अंत्योदय अन्न योजना की पहचान समाज के सर्वाधिक गरीब तबके के लिए खाद्य-सुरक्षा की योजना के रुप में की।

 

गौरतलब है कि संयुक्त राष्ट्र संघ की हाल की एक रिपोर्ट में कहा गया कि भारत में भोजन के अभाव से जूझ रहे लोगों की संख्या (19 करोड़ से ज्यादा) विश्व में सबसे ज्यादा है। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण की एक हालिया रिपोर्ट में भी कहा गया है कि देश के चौदह बड़े राज्यों के गंवई इलाकों में लोगों को रोजाना 2400 किलो कैलोरी से कम ऊर्जा का भोजन मिलता है और उनके रोजाना के कैलोरी उपभोग में सबसे ज्यादा हिस्सा अनाज से हासिल कैलोरी का है।

 

(तस्वीर साभार- http://southasia.oneworld.net/news/re-inventing-targeted-public-distribution-system-in-gujarat#.VZE2ZBuqqko)