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अगर आप समाचारों के ऑनलाइन पाठक हैं तो ये न्यूज एलर्ट जरुर पढ़ें!

भारत में समाचारों के आस्वाद की दुनिया तेजी से बदली है : लोगों का समाचारों पर से विश्वास घटा है और समाचार के पाठकों की दुनिया की एक बड़ी तादाद को आशंका सताती है कि सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर अपने राजनीतिक विचारों का इजहार किया तो उन्हें अधिकारी-वर्ग से परेशानी उठानी पड़ेगी.

 

अंग्रेजी भाषी पाठकों के बीच किये गये एक सर्वेक्षण के मुताबिक टेलिविजन, अखबार या फिर रेडियो नहीं बल्कि समाचार हासिल करने का प्रमुख माध्यम अब स्मार्टफोन हो गये हैं. ज्यादातर पाठक अब न्यूज फ्लेटफार्म जैसे कि गूगल सर्च और सोशल मीडिया के सहारे समाचारों पढ़, देख और सुन रहे हैं- समाचारों के प्रकाशित-प्रसारित होने की मूल जगहों से कम.

 

रॉयटर इंस्टीट्यूट द्वारा भारत के अंग्रेजी-भाषी पाठकों के बीच करवाये गये सर्वेक्षण के निष्कर्ष इंडिया डिजिटल न्यूज रिपोर्ट 2019 में दर्ज हैं. सर्वेक्षण में शामिल 68 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि वे समाचार के लिए स्मार्टफोन का इस्तेमाल करते हैं. कुल 18 प्रतिशत उत्तरदाताओं का कहना था कि वे समाचार के लिए अखबार, टेलीविजन, रेडियो जैसे संचार-माध्यमों का इस्तेमाल करते हैं जबकि सर्च इंजन के इस्तेमाल के जरिए समाचार पढ़ने-देखने वाले उत्तरदाताओं की तादाद सर्वेक्षण में 32 प्रतिशत थी और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर समाचार का आस्वाद लेने वाले उत्तरदाताओं की संख्या 24 प्रतिशत.

 

गौरतलब है कि सर्वेक्षण में लगभग 55 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि ऑनलाइन अपने राजनीतिक विचार सार्वजनिक करने में उन्हें भय लगता है कि ऐसा करने पर वे अधिकारी-वर्ग का कोपभाजन बनेंगे. लोकसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान के महज दो हफ्ते पहले प्रकाशित रॉयटर की इस रिपोर्ट के मुताबिक सर्वेक्षण में शामिल 49 प्रतिशत उत्तरदाताओं का कहना था कि ऑनलाइन अपने राजनीतिक विचारों को सार्वजनिक करने पर परिवार-जन अथवा दोस्तों से उनके रिश्ते प्रभावित होंगे जबकि लगभग 50 प्रतिशत उत्तरदाताओं का मानना था कि विचारों को ऑनलाइन सार्वजनिक करने पर सहकर्मियों तथा परिचितों से संबंध प्रभावित हो सकते हैं.

 

इंटरनेट-एक्सेस करने वाले अंग्रेजी भाषी पाठकों के बीच समाचारों की विश्वसनीयता भी कम है.रिपोर्ट के मुताबिक भारत में इंटरनेट एक्सेस करने वाले अंग्रेजी-भाषी पाठक समुदाय के बीच समाचारों की विश्वसनीयता(36%) ब्राजील या तुर्की सरीखे देशों की तुलना में कम है. सर्वेक्षण में आधे से ज्यादा (57%) उत्तरदाताओं ने भ्रामक सूचनाओं के प्रति अपनी चिन्ता जतायी और 51 प्रति उत्तरदाता समाचारों के पक्षपाती रुझान तथा गुणवत्ता की कमी को लेकर चिन्तित थे.

 

रिपोर्ट में भारत के इंटरनेट एक्सेस वाले अंग्रेजी-भाषी पाठक समुदाय के बीच समाचारों के आस्वाद से संबंधित कुछ प्रमुख रुझानों की पहचान की गई है. बीते कुछ सलों में भारत में इंटरनेट एक्सेस करने वाले लोगों की तादाद बड़ी तेजी से बढ़ी है और इसी के साथ डिजिटल मीडिया का उपभोग भी बढ़ा है. विशेषज्ञों के मुताबिक इससे समाचारों तथा मनोरंजन संबंधी सूचना-सामग्री के रचाव, उपभोग, वितरण तथा देश में चलने वाली सार्वजनिक चर्चाओं पर गहरा असर पड़ा है.

 

रिपोर्ट के प्रमुख तथ्य :


1. प्राथमिक समाचार स्रोत के रुप में ऑनलाइन समाचार (56 प्रतिशत), खासकर सोशल मीडिया के समाचारों ने प्रिन्ट मीडिया(16%) के समाचारों को पीछे छोड़ दिया है. यह बात 35 साल की उम्र तक के अंग्रेजी-भाषी पाठकों पर लागू होती है. जो अंग्रेजीभाषी पाठक 35 साल से ज्यादा उम्र के हैं वे ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों ही माध्यमों को प्राथमिक समाचार स्रोत के रुप में इस्तेमाल करते हैं.

 

2. ह्वाट्सएप्प भारत में सबसे बड़ा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म बनकर उभरा है- सर्वेक्षण के तथ्य बताते हैं कि इस प्रायवेट मैसेजिंग एप्प का 82 प्रतिशत उत्तरदाता इस्तेमाल कर रहे थे., 75 प्रतिशत उत्तरदाता फेसबुक का इस्तेमाल कर रहे थे. इनमें से तकरीबन 52 प्रतिशत ह्वाट्सएप्प तथा फेसबुक प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल समाचारों प्राप्ति के स्थल के रुप में भी करते हैं.

 

3.सर्वेक्षण के तथ्य बताते हैं कि भारत में अंग्रेजी भाषी पाठक समुदाय के बीच समाचारों के बारे में विश्वसनीयता कम हुई है. महज 36 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने समाचार को विश्वसनीय माना. यहां तक कि निजी तौर पर जिन समाचारों को इन पाठकों ने इस्तेमाल किया उन्हें भी विश्वसनीय मानने वालों की तादाद कम(39प्रतिशत) थी. ज्यादातर देशों की तुलना में यह संख्या कम है. बहरहाल, सर्च इंजिन के सहारे समाचार खोजकर पढ़ने वाले उत्तरदाताओं की एक बड़ी संख्या(45 प्रतिशत) समाचार को कहीं ज्यादा विश्वसनीय मानती है.

 

4. उत्तरदाताओं की एक बड़ी तादाद का कहना था कि मोबाइल पर समाचार अगर ज्यादा पर्सनाइल्ज्ड न्यूज एलर्ट के रुप में मिले तो अच्छा रहे. फिलहाल अंग्रेजीभाषी भारतीय पाठक वर्ग में तकरीबन 12 प्रतिशत उत्तरदाता ऑनलाइन न्यूज एलर्ट का इस्तेमाल कर रहे हैं. ये उत्तरदाता ज्यादा से ज्यादा समाचारों को वीडियो रुप में देखना चाहते हैं और किसी मीडिया संगठन को दान आदि के द्वारा सहायता करने के भी इच्छुक हैं. तकरीबन 31 प्रतिशत उत्तरदाता, जो अभी ऑनलाइन समाचारों के लिए भुगतान नहीं कर रहे, मानते हैं कि वे भविष्य में कभी ना कभी इसके लिए भुगतान करने को तैयार हैं जबकि ऐसे 9 प्रतिशत उत्तरदाताओं का कहना था कि वे निश्चित ही ऑनलाइन समाचारों के लिए भुगतान करेंगे.

पोस्ट में इस्तेमाल की गई तस्वीर प्रतीकात्मक है और साभार http://www.iroy.in से ली गई है