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आईडी के बिना यूआईडी नहीं का घनचक्कर

अगर आपके पास पहले से ही दो पहचान-पत्र नहीं है तो बहुत संभव है कि आपको अपना तीसरा पहचान पत्र यानी आधार-नंबर भी ना मिले।

 

आरटीआई की एक अर्जी के जवाब से खुलासा हुआ है कि बिना पहचान-पत्र वाले केवल 2 लाख 19 हजार लोगों को आधार नंबर दिया गया है जो जारी किए गए कुल आधार नंबर का केवल 0.03% है। (आरटीआई अर्जी के जवाब के लिए देखें नीचे दी गई लिंक)

 

बीते अप्रैल में उज्जयिनी शर्मा और तृष्णा सेनापति को यूनिक आईडेन्टिफिकेशन ऑथॉरिटी ऑफ इंडिया(यूआईडीएआई) ने आरटीआई अर्जी के जवाब में बताया कि अब तक 83 करोड़ 50 हजार लोगों को आधार-नंबर जारी किया गया है जिसमें बिना पहचान-पत्र वाले लोगों को जारी आधार-नंबर की संख्या केवल 2 लाख 19 हजार है।

 

इसका एक अर्थ यह हुआ कि 99.97 प्रतिशत आधार-नंबर उन लोगों को जारी हुए जिनके पास पहले से ही अपनी पहचान और आवास-स्थान को सत्यापित करने के लिए जरुरी कागजात थे!

 

गौरतलब है कि यूआईडीएआई ने 2010 के स्ट्रेटजी ओवरव्यू में कहा था कि "पहचान सत्यापित करने के लिए जरुरी कागजात ना होना गरीब जनता के लिए अनुदान तथा अन्य लाभ को हासिल कर पाने में बड़ी बाधा है।" आधार-नंबर जारी करने की पूरी परियोजना इसी समस्या के समाधान के लिए शुरु की गई थी लेकिन पाँच साल बीत जाने के बावजूद समस्या कमो-बेश बनी हुई है। 99.97 प्रतिशत आधार-नंबर उन लोगों को जारी हुए हैं जिनके पास पहले से ही अपनी पहचान साबित करने के लिए दो-दो वैध दस्तावेज हैं।

 

उल्लेखनीय है कि आधार-नंबर को हासिल करने के लिए पंजीकरण करवाना होता है। पंजीकरण के लिए आवेदक को अपने दो पहचान-पत्र देने होते हैं। दो पहचान-पत्र ना होने की स्थिति में आवेदक इंट्रोड्यूसर सिस्टम का सहारा ले सकता है। इंट्रोड्यूसर सिस्टम में आवेदक की पहचान और निवास-स्थान को वह व्यक्ति सत्यापित कर सकता है जिसे रजिस्ट्रार ने इसके लिए प्राधिकृत किया है।

 

देश में कितने व्यक्ति बिना पहचान-पत्र के हैं, इसका अनुमान लगाना मुश्किल है।आधार-नंबर के मुद्दे पर सक्रिय नागरिक संगठनों से जुड़े गणमान्य लोगों का कहना है कि अगर बिना पहचान-पत्र वाले लोगों की संख्या बहुत ज्यादा है तो फिर आधार-नंबर को जारी करने की मौजूदा प्रणाली से इस समस्या के समाधान में अभी कुछ खास नहीं कर पायी है। नागरिक संगठनों का एक सवाल यह भी है कि अगर बिना पहचान पत्र वाले लोगों की संख्या कम है तो फिर यह दावा किस आधार पर किया गया कि पहचान-पत्र का ना होना अनुदान और अन्य लाभ ले पाने के मामले में गरीबों के लिए बहुत बड़ी बाधा है? "

यूआईडीएआई स्ट्रेटजी ओवरव्यू(2010) के कुछ तथ्य

 

• पहचान सिद्ध ना कर पाना भारत में गरीबों के लिए अनुदान और लाभ उठा पाने के मामले में बहुत बड़ी बाधा है। पूरे देश में सरकारी और निजी एजेंसियां सेवा प्रदान करने से पहले लोगों से पहचान-पत्र मांगती हैं।

 

• अभी तक राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत और सत्यापित ऐसी की पहचान संख्या मौजूद नहीं है जिसका इस्तेमाल देशवासी और सेवा प्रदान करने वाली ऐजेंसियां विश्वासपूर्वक तथा आसानी के साथ कर पायें।

 

• नतीजतन कोई व्यक्ति दी जा रही सेवा या लाभ हासिल करना चाहता है तो उसे पहचान सत्यापित करने की पूरी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। अलग-अलग सेवा प्रदाता जरुरत के जो दस्तावेज मांगते हैं उनमें अलग-अलग प्रकृति की सूचनाएं मांगी जाती हैं।

 

• बार-बार पहचान सत्यापित करने और इस पूरी प्रक्रिया से गुजरने में व्यक्ति को बहुत ज्यादा कठिनाई होती है। यह पूरी प्रक्रिया देश के गरीबों और वंचितों के लिए अन्यायपूर्ण है क्योंकि गरीबों और वंचित तबके के लोगों के पास अकसर अपना पहचान-पत्र नहीं होता और पहचान-सत्यापित करने की प्रक्रिया में लगा खर्च वहन कर पाना उनके लिए मुश्किल होता है।

 

• कोई ऐसा तंत्र बने जिसके सहारे किसी व्यक्ति की पहचान तुंरत ही सत्यापित हो जाय तो इसके बड़े फायदे होंगे। एक बार पहचान सत्यापित करके हर बार पहचान सत्यापित कर पाने के झंझट से मुक्ति मिलेगी, बार-बार पहचान सत्यापित करने में लगे खर्च से बचना संभव होगा।

 

• पहचान सत्यापित करने वाली कोई सुनिश्चित संख्या निर्धारित हो तो सामाजिक कल्याण के कार्यक्रमों के अंतर्गत की जाने वाली सेवा और सामानों की सुपुर्दगी आसान होगी, कार्यक्रम में समावेशी हो पायेंगे और जो लोग पहचान-पत्र ना होने के कारण इन कार्यक्रमों से वंचित रह जाते थे वे ऐसे कार्यक्रमों से लाभान्वित हों पायेंगे।

 

• पहचान सत्यापित करने वाली सुनिश्चित संख्या होने पर सरकार के लिए अप्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण से प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण की ओर बढ़ना मुमकिन होगा और यह जान पाने में भी मदद मिलेगी कि वांछित व्यक्ति के हाथ में वास्तव में लाभस्वरुप दिया जाने वाला अनुदान या राशि पहुंची या नहीं

 

• एक सार्वभौम पहचान-संख्या होने पर फर्जीवाड़े तथा नकली पहचान पत्र की समस्या से निपटने में मदद मिलेगी क्योंकि इस संख्या के बाद किसी व्य़क्ति के लिए किसी अन्य व्यक्ति के रुप में प्रस्तुत हो पाना संभव ना रहेगा।

 

• भारत सरकार ने साल 1993 में नागरिकों को सुपष्ट पहचान प्रदान करने की दिशा में कदम उठाते हुए चुनाव आयोग द्वारा फोटो पहचान पत्र जारी करना शुरु किया। इसके बाद साल 2003 में बहुउद्देश्शी राष्ट्रीय पहचान पत्र(एमएनआईसी) जारी करने की बात को अनुमोदन मिला।

 

• यूनिक आईडेन्टिफिकेशन ऑथॉरिटी ऑफ इंडिया की स्थापना 2009 में हुई और इसे योजना आयोग से संबद्ध किया गया। स्थापना का उद्देश्य था हर भारतवासी को मौलिक पहचान संख्या प्रदान करना जो इतनी सक्षम और कारगर हो कि उसके जरिए पहचान के फर्जीवाड़े को खत्म किया जा सके तथा जिसका आसानी के साथ और कारगर तरीके से सत्यापन हो सके।

 

इस कथा के विस्तार के लिए अर्थशास्त्री रीतिका खेड़ा से संपर्क किया जा सकता है (9958801227, reetika.khera@gmail.com). कृपया नीचे दी गई लिंक भी देखें

 

Strategy Overview of the Unique Identification Authority of India (UIDAI), April, 2010 (please click here to access)

 

Aadhaar enrollment form

 

RTI reponse to Ujjainee Sharma from UIDAI on aadhaar, 28 April, 2015 (please click here to access)

Finance & Budgets of UIDAI: Annual Budget (please click here to access)

42nd report on the National Identification Authority of India Bill (2010), the Standing Committee on Finance (2011-12) under Ministry of Planning (headed by Yashwant Sinha), Please click here to access

 

And the Unique Identification Juggernaut Keeps Rolling On -Reetika Khera, 3 June, 2015, The Wire