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एनडीए के राज में कितना कम हुआ भ्रष्टाचार, पढ़िए इस रिपोर्ट में..

‘ना खाऊंगा, ना खाने दूंगा-' क्या आप बता सकते हैं कि तीन साल पहले चुनाव-प्रचार के दौरान कही गई इस बात पर कितने लोग विश्वास करते हैं ?
 

इस सवाल का जवाब जानने में आपकी मदद सेंटर ऑफ मीडिया स्टडीज(सीएमएस) का एक अध्ययन कर सकता है.

 

विकास के मुद्दों पर शोध और मीडिया एडवोकेसी की इस संस्था के हालिया अध्ययन सीएमएस-इंडिया करप्शन स्टडीज के मुताबिक लगभग 40 फीसद लोगों का विश्वास है कि मोदी सरकार सार्वजनिक सेवाओं में कायम भ्रष्टाचार कम करने में जी जान से जुटी हुई है जबकि इतने(40 फीसद) ही लोगों का कहना है कि केंद्र सरकार ने भ्रष्टाचार कम करने की कोशिश की तो है लेकिन एक सीमा तक ही.

 

लेकिन भ्रष्टाचार कम करने को लेकर लोगों के मन में जैसी धारणा केंद्र सरकार के बारे में है वैसी ही भाजपा शासित सूबों की सरकारों के बारे में नहीं.

 

 

सीएमएस के शोध-अध्ययन के मुताबिक जिन राज्यों में एक तिहाई(33 प्रतिशत) से ज्यादा लोग मानते हैं कि सूबे की सरकार सार्वजनिक सेवाओं में भ्रष्टाचार कम करने को लेकर जरा भी प्रतिबद्ध नहीं उनमें राजस्थान, हरियाणा और जम्मू-कश्मीर शामिल है.
 
 
गौरतलब है कि राजस्थान और हरियाणा में भाजपा की बहुमत की सरकार है जबकि जम्मू-कश्मीर की पीडीपी(जम्मू एंड कश्मीर पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी) सरकार में बीजेपी गठबंधन के साथी के रुप में शामिल है.
 

 

अध्ययन का एक दिलचस्प तथ्य यह भी है कि भ्रष्टाचार विरोधी अन्ना आंदोलन के लहर पर सवार होकर दिल्ली विधानसभा में प्रचंड बहुमत हासिल करने वाली आम आदमी पार्टी की सरकार के बारे में एक तिहाई से ज्यादा लोगों का कहना है कि वह भ्रष्टाचार पर लगाम कसने को लेकर गंभीर नहीं जान पड़ती.

 

डेवलपमेंट रिसर्च और मीडिया एडवोकेसी के मकसद से काम करने वाली संस्था सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज का यह अध्ययन देश के 20 राज्यों के ग्रामीण और शहरी घरों के सर्वेक्षण पर आधारित है. इसमें चिकित्सा-सेवा, बिजली-आपूर्ति, पीडीएस, न्यायिक और बैंकिंग सेवाओं में व्याप्त भ्रष्टाचार के बारे में लोगों की राय जानी गई है.

 

बीते अक्तूबर-नवंबर(2016) में सर्वेक्षण में शामिल प्रत्येक राज्य के 2 जिलों के 150 घरों के सर्वेक्षण पर आधारित इस अध्ययन के मुताबिक 43 फीसद लोगों का कहना है कि बीते एक साल में सार्वजनिक सेवाओं की सुपुर्दगी में भ्रष्टाचार बढ़ा है और कुल 6350 करोड़ रुपये की रकम लोगों ने सार्वजनिक सेवा हासिल करने में घूस के रुप में चुकाये हैं. सरकारी स्कूल में दाखिला देने, पीडीएस का राशन कार्ड बनाने या फिर कोर्ट में मुकदमे की तारीख जल्दी तय करने के नाम पर लोगों से न्यूनतम 20 रुपये और अधिकतम 50 हजार रुपये तक की राशि घूस के रुप में मांगी गई.

 

CMS-India Corruption Study 2017 के मुख्य तथ्य--

• तुलनात्मक रुप से देखें तो साल 2005 से 2017 के बीच की अवधि में सार्वजनिक सेवाओं को हासिल करने के बारे लोगों में धारणा बनी है कि उनमें भ्रष्टाचार पहले की तुलना में कम हुआ है और उन्हें भ्रष्टाचार के अनुभव भी तुलनात्मक रुप से कम हुए हैं.

 

• सीएमएस- इंडिया करप्शन स्टडी के ताजा ग्यारहवें दौर के सर्वेक्षण से पता चलता है कि 20 राज्यों के लगभग 43 प्रतिशत परिवार मानते हैं कि उनके राज्य में बीते एक साल के दौरान सार्वजनिक सेवाओं को हासिल करने में भ्रष्टाचार बढ़ा है. 12 साल पहले यानी 2005 में 73 प्रतिशत परिवारों का कहना था कि सार्वजनिक सेवाओं की सुपुर्दगी में भ्रष्टाचार व्याप्त है.

 

• सर्वेक्षण में शामिल आधे से ज्यादा(तकरीबन 56 प्रतिशत) लोगों का मानना है कि नोटबंदी के दौर(नवम्बर-दिसम्बर 2016) के दौरान सार्वजनिक सेवाओं की सुपुर्दगी में भ्रष्टाचार में कमी आयी.

 

• सीएमएस- इंडिया करप्शन स्टडी 2017 के मुताबिक 20 राज्यों के तकरीबन एक तिहाई परिवारों ने कहा कि बीते एक साल में उन्हें किसी ना किसी सार्वजनिक सेवा को हासिल करने में भ्रष्टाचार का सामना करना पड़ा. सीएमएस-इंडिया करप्शन स्टडी 2005 में 53 फीसदी लोगों ने कहा था कि उन्हें सार्वजनिक सेवाओं को हासिल करने में बीते एक साल में भ्रष्टाचार का सामना करना पड़ा है.

 

• साल 2017 के करप्शन स्टडी से पता चलता है कि राज्यों में फराहम की जा रही सार्वजनिक सेवाओं में व्याप्त भ्रष्टाचार के संयुक्त औसत(31 प्रतिशत) की तुलना में कुछ राज्यों में बहुत ज्यादा तादाद में लोग सार्वजनिक सेवाओं में भ्रष्टाचार की बात मानते हैं. ऐसे राज्य हैं कर्नाटक (77%), आंध्रप्रदेश (74%), तमिलनाडु (68%), महाराष्ट्र (57%), जम्मू और कश्मीर (44%), पंजाब (42%) और गुजरात (37%).

 

• जिन राज्य में दस प्रतिशत से भी कम लोगों ने कहा कि उन्हें बीते एक साल में सार्वजनिक सेवाओं को हासिल करने में भ्रष्टाचार का अनुभव हुआ, उनके नाम हैं हिमाचल प्रदेश(3 प्रतिशत) और केरल(4 प्रतिशत).

 

• सर्वेक्षण में शामिल सभी 20 राज्यों में तकरीबन सभी परिवारों ने कहा कि जब भी सार्वजनिक सेवा प्रदान करने वाले अधिकारियों ने उनसे कहा कि आपको घूस देना होगा, उनके पास घूस देने के अतिरिक्त और कोई विकल्प नहीं था.

 

 

• घूस ना देने पर सेवा ना प्रदान करने की सबसे ज्यादा घटना(3.5 प्रतिशत) भूमि संबंधी कागजात हासिल करने में हुई. इसके बाद सेवा प्रदान करने से इनकार की सबसे ज्यादा घटना पुलिस-सेवा(1.8 प्रतिशत) के मामले में देखने में आयी.
 
 
• सर्वक्षण में शामिल परिवारों का यह भी कहना था कि पीडीएस का राशन कार्ड बनवाने, बच्चे को सरकारी स्कूल में दाखिल देने या फिर अदालती मामले में सुनवाई की तारीख जल्दी देने के लिए उनसे न्यूनतम 20 रुपये से लेकर अधिकतम 50 हजार रुपये तक की घूस मांगी गई.
 
 

 

• सर्वेक्षण में शामिल सभी 20 राज्यों के लोगों द्वारा 10 सार्वजनिक सेवाओं को हासिल करने में चुकायी गई घूस की राशि को जोड़ दें तो रकम 6350 करोड़ रुपये की आती है. 2005 में यह आंकड़ा 20500 करोड़ रुपये का था.

 

• हालांकि 58 प्रतिशत आम नागरिक आरटीआई के बारे में जानते हैं लेकिन 1 प्रतिशत से भी कम लोग सूचना मांगने के लिए आरटीआई का इस्तेमाल करते हैं जबकि इस कानून को लागू हुए एक दशक का समय हो रहा है.