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कर्नाटक- आर्थिक वृद्धि के बीच कुपोषण से मरते बच्चे

कर्नाटक को भारत के आईटी सेक्टर में सफलता का सबसे ऊंचा झंडा गाड़ने वाला राज्य माना जाता है और विदे्शी निवेश के लिहाज से भी यह सबसे चहते राज्यों में शुमार है। कर्नाटक प्रति व्यक्ति आय के लिहाज देश के शीर्ष राज्यों में गिना जाता है। लेकिन आर्थिक विकास के निर्देशांकों के हिसाब से ऊंचे पायदान पर दिखने वाले इसी राज्य कर्नाटक में हजारों बच्चे कुपोषण के कारण मौत की भेंट चढ़ रहे हैं। एक नई रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि सकल घरेलू उत्पाद के मामले में ऊंचे से ऊंचा चढते जाने वाला यह राज्य भुखमरी के सूचकांक और बाल कुपोषण के मामले में किसी गरीब राज्य से बेहतर नहीं है।

न्यूज चैनल(टीवी-9) की हाल की एक रिपोर्ट में गंभीर कुपोषण से पीड़ित  5 साल के एक बच्चे अंजनैया को दिखाया गया। रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि इस बच्चे की कुपोषण के कारण मृत्यु हो चुकी है। इस न्यूज रिपोर्ट के बाद अधिकारियों का ध्यान रायचूर जिले समेत सम्पूर्ण राज्य़ में व्याप्त भयावह कुपोषण की स्थिति पर गया है।

उपरोक्त घटना की चर्चा क्लीफ्टन डी रोजारियो की एक रिपोर्ट में की गई है। रोजारियो पीयूसीएल बनाम भारत संघ तथा अन्य(W.P. No. 196 of 2001) नामक केस में सप्रीम कोर्ट के आयुक्तों के सलाहकार हैं। इस केस को बोलचाल की भाषा में भोजन का अधिकार केस कहा जाता है।  (रिपोर्ट की लिंक)

रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2009 के अप्रैल महीने से साल 2011 के अगस्त महीने तक अकेल रायचूर जिले में कुपोषण के कारण  2689 बच्चों की मौत हुई है जबकि  4531 बच्चे इस जिले में कुपोषण से गंभीर रुप से पीड़ित हैं। मुख्यमंत्री सदानंद गौड़ा सहित राज्य के अन्य अधिकारियों ने इस बात की पुष्टि की है। इस घटना को राज्य सरकार द्वारा दिखायी जा रही उपेक्षा का नतीजा बताते हुए सलाहकार का कहना है कि उन्होंने बार-बार राज्य सरकार और संबंधित अधिकारियों का ध्यान रायचूर जिले की स्थिति पर खींचने कोशिश की।

सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार कुपोषण के कारण मृत्यु के शिकार हुए बिच्चों का ब्यौरा निम्नलिखित है-

ग्रेड            लड़कों की संख्या              लड़कियों की संख्या                                 कुल l
(कुपोषण)

थोड़ा             10,50,006         10,50,812         21,00,818

मध्यम             5,61,224           5,68,723         11,29,947

गंभीर             33,039                  38,566         71,605


यह इंगित करते हुए कि बाल-कुपोषण की स्थिति का जारी रहना संवैधानिक दायित्वों के निर्वाह के अतिरिक्त अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर किए गए मानवाधिकार निभाने के कई वायदों के खिलाफ है, सलाहकार का कहना है कि कर्नाटक सरकार द्वारा उठाये गए कदम अपर्याप्त हैं तथा उन कदमों को देख के ऐसा नहीं लगता कि सरकार अपने संवैधानिक दायित्वों के निर्वाह को लेकर गंभीर है। रिपोर्ट में कहा गया है कि “ कागज पर बच्चों को कुपोषण से बचाने के लिए योजनायें मौजूद हैं लेकिन ये योजनायें पर्याप्त नहीं कही जा सकती और इन पर कारगर ढंग से अमल भी नहीं हो रहा।

रिपोर्ट में उन प्रमुख समस्याओं की चर्चा की गई है जिनके कारण बाल-कुपोषण को खत्म करने की कोशिशें कामयाब नहीं हो पातीं। रिपोर्ट में इन कारणों के अन्तर्गत घटिया भोजन को सबसे ऊपर रखा गया है।रिपोर्ट में कहा गया है कि- “ बच्चों, अभिभावकों तथा आंगनबाड़ी सेविकाओं के बीच आमफहम मान्यता है कि दिया जा रहा भोजन ठीक नहीं है और उसे पोषक नहीं माना जा सकता।”

एक बड़ी चुनौती कुपोषण से पीड़ित बच्चे को पहचानने की है। यह काम आंगनबाड़ी सेविकाओं को सौंपा गया है जिन्हें इसके बारे में एक सूची आगे की कारर्वाई के लिए सुपरवाईजर को भेजनी होती है।सलाहकार की रिपोर्ट में हर स्तर पर व्याप्त समस्या का जिक्र किया गया है। ना तो हर आंगनबाड़ी केंद्र में बजन नापने की मशीन है और ना ही वजन नापने का काम हर महीने हर बच्चे के लिए किया जाता है।इससे संबंधित जानकारियों की रिपोर्ट ठीक तरीके से तैयार नहीं की जाती और सुपरवाईजर इन रिपोर्टों पर आगे की कारर्वाई समुचित रीति से नहीं करते। कुपोषण के कुछेक मामलों में ही समुचित देखभाल, दवाई और पोषाहार देने के प्रावधानों का पालन हो पाता है।

सलाहकार के अनुसार- “ कुपोषण से पीड़ित ज्यादातर बच्चे अनुसूचित जाति के हैं, खासकर मदीगा समुदाय के।.. “ हालात का जायजा लेने के लिए किए गए दौरे से यह भी जाहिर होता है कि कुपोषित बच्चों में ज्यादातर तादाद बच्चियों की है। ”

जहां तक स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं का सवाल है, सलाहकार का कहना है कि  “ राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन(एनएचआरएम) का क्रियान्वयन आधे-अधूरे मन से किया गया है और क्रियान्वयन के कई पहलुओं में भ्रष्टाचार व्याप्त है। नर्स और डाक्टर ना तो रोजाना अस्पताल आते हैं और ना ही अपने काम में ज्यादा रुचि लेते हैं। ”

सलाहकार ने व्यवस्था की कमियों को दूर करने के लिए कई उपाय सुझाये हैं। वे इस सुझाव के पक्ष में हैं कि जिन गांवों में गंभीर कुपोषण के शिकार बच्चे हैं वहां सामुदाय आधारित पोषाहार केंद्र चलाया जाय और इसे आंगनबाड़ी केंद्र में भी चलाया जा सकता है। इसके लिए सरकार को पोषाहार पुनर्वास केंद्र स्थापित करने के बारे में सोचना चाहिए। पोषाहार पुनर्वास केंद्र का संबंध सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र और जिला अस्पताल से जोड़ा जा सकता है। सलाहकार का एक सुझाव यह है कि सामुदायिक पोषाहार केंद्र में किसी भी बच्चे के प्रवेश को प्रतिवारित ना जाय।


रिपोर्ट में नेशनल फैमिली हैल्थ सर्वे-3 ( राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे) के आंकड़ों को उद्धृत किया गया है। इन आंकड़ों से पता चलता है कि बच्चों के स्वास्थ्य और पोषण के मामले में कर्नाटक बहुत पिछड़ा हुआ है।

• कर्नाटक में प्रति हजार जीवित शिशु के जन्म पर एक साल के भीतर मृत्यु को प्राप्त होने वाले बच्चों की संख्या 43 है। पाँच साल से कम उम्र के बच्चों के मामले में यह आंकड़ा 55 बच्चों का है।
 
• ग्रामीण क्षेत्रों में बाल-मृत्यु दर (47) शहरी क्षेत्रों(37) की अपेक्षा 10 फीसदी ज्यादा है।
 
• भारत सरकार द्वारा जारी निर्देशों के अनुसार तीन साल तक की उम्र के बच्चों को हर छह माह पर विटामिन ए की खुराक दी जाय और इस जन्म के नौंवें महीने से शुरु किया जाना चाहिए। कर्नाटक में 12-35 माह के केवल 23 फीसदी बच्चे ऐसे हैं जिन्हें गुजरे छह माह में एक दफे विटामिन ए की खुराक दी गई है और 6-35 माह के केवल 53 फीसदी बच्चों को ही दिन या फिर रात में विटामिन ए युक्त आहार नसीब होता है।

शारीरिक विकास के आधार पर कर्नाटक में बच्चों के पोषण की स्थिति-
 
• पाँच साल से कम उम्र के 44% बच्चे औसत से कम लंबाई के हैं।

• 18% बच्चे अपनी लंबाई के हिसाब से बहुत ज्यादा पतले हैं।

• 38% बच्चे औसत से कम वज़न के हैं।

• ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों के कुपोषण ग्रस्त होने की आशंका ज्यादा रहती है लेकिन कर्नाटक में शहरी क्षेत्रों में भी पाँच साल से कम उम्र के एक तिहाई बच्चे लगातार कुपोषणग्रस्त रहते हैं।

• 6 से 59 माह के 70 फीसदी बच्चे आयरन की कमी के शिकार हैं।

• कर्नाटक में 52 फीसद महिलायें आयरन की कमी की शिकार हैं। यहां 63 फीसद गर्भवती महिलाओं में आयरन की कमी पायी गई है।
 
• 6 से 34 माह के बच्चों में आयरन की कमी नेशनल फैमिली हैल्थ सर्वे-2 की अपेक्षा नैशनल फैमिली हैल्थ सर्वे-3 में कहीं ज्यादा पायी गई।

इस विषय पर विस्तृत जानकारी के लिए निम्नलिखित लिंक चटकायें-

Child Malnutrition in Karnataka by Adv. Clifton D’ Rozario (2011),

http://www.altlawforum.org/legal-advocacy/malnutrition-in-
karnataka/Malnutrition%20Report.pdf/at_download/file

Child Malnutrition in Karnataka- A Report by Lawrence Liang, 24 October, 2011,

http://kafila.org/2011/10/24/child-malnutrition-in-karnata
ka-a-report/

Child malnutrition: Myths and solutions- A.K. Shiva Kumar

http://www.littlemag.com/hunger/shiv.html

The Child Malnutrition Myth-Why does nobody question the absurdly high numbers cited for India?- Arvind Panagariya, The Times of India, 1 October, 2011,

http://articles.timesofindia.indiatimes.com/2011-10-01/edi
t-page/30230007_1_underweight-children-maternal-mortality-
mortality-rate

Karnataka HDR 2005, http://www.im4change.org/state-report/karnataka/12

Malnourishment: children of SC, ST families worst-hit, The Hindu, 24 November, 2011, http://www.thehindu.com/todays-paper/tp-national/article26
54794.ece