Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 73
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 74
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
Notice (8): Undefined variable: urlPrefix [APP/Template/Layout/printlayout.ctp, line 8]news-alerts-57/किसानों-की-आमदनी-में-सालाना-बढ़वार-सिर्फ-5-6-फीसद-नाबार्ड-की-नई-रिपोर्ट-12889.html"/> चर्चा में.... | किसानों की आमदनी में सालाना बढ़वार सिर्फ 5.6 फीसद- नाबार्ड की नई रिपोर्ट | Im4change.org
Resource centre on India's rural distress
 
 

किसानों की आमदनी में सालाना बढ़वार सिर्फ 5.6 फीसद- नाबार्ड की नई रिपोर्ट

हाल के सालों में खेतिहर परिवारों की आमदनी में किस रफ्तार से बढ़ोत्तरी हुई है ? अगर इस सवाल का जवाब एकदम नये तथ्यों के सहारे जानने चाहते हों तो राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक(नाबार्ड) की एक हालिया रिपोर्ट आपके काम की साबित हो सकती है.

 

इस रिपोर्ट का नाम है नाबार्ड ऑल इंडिया रुरल फायनेन्शियल इन्क्लूजन सर्वे 2016-17 यानि संक्षेप में कहें तो एनएएफआईएस 2016-17 और इस रिपोर्ट का आकलन है कि साल 2012-13 से 2015-16 के बीच खेतिहर परिवारों की औसत मासिक आमदनी तकरीबन 39 प्रतिशत बढ़ी है.

 

लेकिन नहीं, किसी फैसले तक पहुंचने से पहले थोड़ा ठहरिए और खेतिहर परिवारों की औसत मासिक आमदनी के तीन सालों में 39 फीसद बढ़ने के तथ्य को कुछ जरुरी रिपोर्टों के साथ मिलान करके पढ़िए ताकि बात ज्यादा साफ हो!

 

आपको शायद याद हो कि नेशनल सैंपल सर्वे ने कुछ सालों पहले की इंडीकेटर्स ऑफ सिचुएशन असेसमेंट सर्वे ऑफ एग्रीकल्चरल हाऊसहोल्ड इन इंडिया नाम की रिपोर्ट प्रकाशित की थी. इस रिपोर्ट का एक निष्कर्ष था कि राष्ट्रीय फलक पर फसली वर्ष जुलाई 2012-जून 2013 में खेतिहर परिवारों की औसत मासिक आमदनी 6426 रुपये थी. इस तथ्य से एनएएफआईएस 2016-17 की बातों को मिलाकर पढ़िए !

 

एनएएफआईएस 2016-17 के मुताबिक राष्ट्रीय स्तर पर फसली वर्ष 2015-16 में खेतिहर परिवारों की औसत मासिक आमदनी बढ़कर 8931 रुपये हो गई है. तो क्या यह माना जाय कि तीन सालों के भीतर खेतिहर परिवारों की औसत मासिक आमदनी में 2505 रुपये(8931 रुपये- 6426 रुपये) की बढ़ोत्तरी हुई है ?

 

ना, इस निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले हमें कुछ जरुरी बातों का ध्यान रखना होगा, जैसे कि महंगाई. ध्यान रखना होगा कि जुलाई 2012-जून 2013 के बीच ग्रामीण क्षेत्रों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक(आधार वर्ष 2012= 100) 104.96 था जबकि जुलाई 2015-जून 2016 में 128.08 यानि तीन सालों में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में 22.03 प्रतिशत की वृद्धि हुई.

 

अगर ग्रामीण क्षेत्रों के उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में हुई बढोत्तरी यानि महंगाई के मेल में करते हुए किसान परिवारों की आमदनी के आंकड़ों को पढ़ें तो जवाब आयेगा कि खेतिहर परिवारों की औसत मासिक आमदनी में साल 2012-13 से 2014-15 के बीच तकरीबन 17 फीसद का इजाफा हुआ है.

 

अब इस आंकड़े के आधार पर हम चाहें तो यों भी कह सकते हैं कि तीन सालों में किसान-परिवारों की औसत मासिक आमदनी सालाना 5.7 फीसद बढ़ी है. इस बढ़वार की तुलना अगर नियमित वेतनवाले नौकरीपेशा लोगों से करना चाहें तो इस साल की शुरुआत के वक्त आये उन समाचारों को याद कर लें जिनमें कहा गया था कि इस साल दस प्रतिशत बढ़ेगी आपकी सैलरी ! या फिर यह सोचें कि बीते तीन सालों में धान और गेहूं जैसे प्रमुख फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ो
्तरी
 4-5 प्रतिशत की हुई है यानि मुद्रास्फीति की बढ़वार की दर से भी कम !


अगर किसानों की औसत मासिक आमदनी सालाना 5.7 फीसद की दर से बढ़ रही है तो आप किसानों की आमदनी 2022 तक दोगुनी करने का सरकार का वादा याद कीजिए और खुद ही अनुमान लगाइए कि इस रफ्तार से किसानों की आमदनी के दोगुना होने में कितने साल लगेंगे ? वैसे एक अनुमान यह भी है कि किसानों की आमदनी के दोगुना होने में कम से कम 25 साल लग सकते हैंं.

 

एनएएफआईएस 2016-17 के तथ्य ये भी संकेत करते हैं कि खेतिहर परिवारों की औसत मासिक आमदनी (8931 रुपये) ग्रामीण इलाके के गैर-खेतिहर परिवारों की औसत मासिक आमदनी ( 7269 रुपये) से ज्यादा है. इसी तरह खेतिहर परिवारों का औसत मासिक उपभोग-खर्च( 7152 रुपये) गैर-खेतिहर ग्रामीण परिवारों के औसत मासिक उपभोग-खर्च( 6187 रुपये) से ज्यादा है.

 

की इंडिकेटर्स ऑफ सिचुएशन असेसमेंट सर्वे ऑफ एग्रीकल्चरल हाऊसहोल्डस् इन इंडिया शीर्षक रिपोर्ट में कहा गया था कि 2012-13 में औसत मासिक आमदनी के लिहाज से देश में शीर्ष के पांच राज्य हैं पंजाब ( 18,059/ रुपये-), हरियाणा (14,434/ रुपये-), जम्मू-कश्मीर ( 12,683/- रुपये), केरल ( 11,888/-रुपये) तथा मेघालय ( 11,792/-रुपये).

 

ऊपर की यह तस्वीर एनएएफआईएस 2016-17 में थोड़ी सी बदली है और खेतिहर परिवारों की औसत मासिक आमदनी के लिहाज से शीर्ष के पांच राज्यों में अब पंजाब( 23,133/-रुपये),हरियाणा ( 18,496/-रुपये), केरल ( 16,927/ रुपये), गुजरात ( 11,899/ रुपये) तथा हिमाचल प्रदेश ( 11,828/- रुपये) का नाम शुमार है.

 

साल 2012-13 से 2015-16 के बीच खेतिहर परिवारों की औसत मासिक आमदनी में सबसे तेज बढ़वार वाले शीर्ष के पांच राज्यों के नाम हैं : उत्तराखंड (130.9 प्रतिशत), बिहार (101.7 प्रतिशत), पश्चिम बंगाल (94.9 प्रतिशत), छत्तीसगढ़ (65.7 प्रतिशत) और ओड़िशा (55.4 प्रतिशत).

 

कर्ज और किसान

नेशनल सैंपल सर्वे के 70 वें दौर की गणना के आधार पर कहा गया था कि सर्वेक्षण की अवधि में 52 फीसद खेतिहर परिवारों पर कर्ज था. ऐसे परिवारों पर औसतन 47 हजार रुपये की देनदारी शेष थी.

 

एनएएफआईएस 2016-17 के तथ्य बताते हैं कि सर्वेक्षण की अवधि में 52.5 प्रतिशत खेतिहर परिवार तथा 42.8 प्रतिशत गैर खेतिहर परिवार ग्रामीण इलाकों में कर्जदार हैं. सर्वक्षण की तारीख को प्रत्येक कर्जदार खेतिहर परिवार पर औसतन 104602 रुपये की देनदारी शेष थी.

 

दूसरे शब्दों में कहें तो तीन सालों की अवधि में कर्जदार खेतिहर परिवारों की देनदारी लगभग दोगुनी हो गई है. नाबार्ड की रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि ग्रामीण इलाकों में गैर-खेतिहर परिवारों पर कर्ज की देनदारी(76,731 रुपये) खेतिहर परिवारों की तुलना में कम है.

 

गौरतलब : एनएएफआईएस 2016-17 में खेतिहर परिवारों की श्रेणी में वैसे परिवारों को शामिल किया गया है जिन्होंने बीते सर्वेक्षण की तारीख से पहले के 365 दिनों में खेती-बाड़ी( फसल उगाना, वानिकी, पशुपालन, मधुमक्खी पालन , मुर्गीपालन, सुअरपालन, मत्स्य-पालन आदि) से कम से कम 5000 रुपये तक के मोल का उत्पाद हासिल किया हो साथ ही परिवार का कम से कम एक सदस्य किन्हीं रुपों में (प्रिन्सपल स्टेटस या सब्सिडियरी स्टेटस) खेती-बाड़ी के काम(स्वरोजगार) में लगा हो. नेशनल सैम्पल सर्वे के सिचुएशन असेसमेंट सर्वे में खेतिहर परिवारों की श्रेणी में वैसे परिवारों की गणना की गई जिन्होंने सर्वेक्षण की तारीख से पहले के 365 दिनों में खेती-बाड़ी के काम(फसल उगाना, पशुपालन, वानिकी, मधुमक्खी पालन आदि) से कुछ मोल का उत्पाद हासिल किया हो. बहरहाल, जो परिवार पूर्ण रुप से खेतिहर मजदूरी पर निर्भर थे उन्हें नेशनल सैम्पल सर्वे के सिचुएशन असेसमेंट सर्वे में खेतिहर परिवारों के अंतर्गत शामिल नहीं किया गया.

 

परिभाषा से संबंधित इस तफ्सील पर गौर करना जरुरी है क्योंकि नाबार्ड की रिपोर्ट में ऐसी ही तफ्सील के आधार पर एक जगह कहा गया है कि धारणाओं, परिभाषाओं तथा सैम्पल की डिजाइनिंग की खासियत के कारण इस रिपोर्ट के निष्कर्षों की तुलना किसी अन्य रिपोर्ट से नहीं की जा सकती जबकि रिपोर्ट के आमुख मेंखुद ही एनएएफआईएस के निष्कर्षों की तुलना नेशनल सैंपल सर्वे के सिचुएशन असेसमेंट सर्वे से की गई है