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कुपोषण की चपेट में सहरिया जनजाति के नौनिहाल-एएचआरसी

परंत, राजवीर, रामकुमारी,सन्नी- ये नाम घनघोर कुपोषण में दम तोड़ने वाले बच्चों के हैं। 3 साल या फिर इससे भी कम उम्र के सभी बच्चे मध्यप्रदेश के शिवपुरी जिले गांवों में आबाद सहरिया जनजाति के हैं। आशिक, कुलदीप,पवन और मालती जैसे कुछ बच्चे और हैं, ये भी सहरिया जनजाति के ही हैं और कुपोषण की चपेट में इनका भी दम किसी क्षण टूट सकता है।(देखें लिंक संख्या-1)
मानवाधिकारों के मोर्चे पर सक्रिय एशियन ह्यूमन राइटस् कमीशन(एएचआरसी) के अनुसार इस साल(2010) महज दो महीनों(सितंबर-अक्तूबर) में शिवपुरी जिले के नाहरगढ़ गांव में सहरिया जनजाति के पाँच बच्चों ने कुपोषण के कारण दम तोड़ा। आयोग द्वारा जारी अपील में कहा गया है कि इसी गांव के दस बच्चे कुपोषण के कारण कभी भी दम तोड़ सकते हैं।
मध्यप्रदेश में सरकारी उपेक्षा के बीच कुपोषण और भुखमरी से जूझती सहरिया जनजाति की यह कहानी नई नहीं है। इसी जनजाति के कुल 29 बच्चों ने साल 2009 के दिसंबर से अप्रैल 2010 के बीच कुपोषण के कारण दम तोड़ा।(देखें- लिंक 2) मध्यप्रदेश में चल रहे भोजन के अधिकार अभियान की एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2004 के महज तीन महीनों(मार्च-मई) में मध्यप्रदेश में 50 बच्चों के कुपोषण की चपेट में दम टूटे।आयोग द्वारा जारी अपील में कहा गया है कि अकेले शिवपुरी जिले में ही  9450 बच्चे (20.7%) कुपोषण की भयंकर दशा में हैं और इनमें ज्यादातर का संबंध जनजातीय परिवारों से है।
आयोग द्वारा जारी अपील में आरोप लगाया गया है कि कुपोषण और बीमारी के कारण हो रही इन मौतों की वजह सरकारी मशीनरी की असफलता और जनजातीय के साथ बरता जा रहा भेदभाव है।आयोग के इस आरोप की कुछ अन्य तथ्यों से भी होती है।मिसाल के लिए 2009 की रिपोर्ट में कहा गया कि मध्यप्रदेश के रीवा जिले में 80 फीसदी बच्चे कुपोषण की चपेट में हैं और इनमें से ज्यादातर कोल जनजाति के हैं। ठीक इसी तरह एएचआरसी की ही एक रिपोर्ट में सतना जिले के एक गांव किराहीपुखरी का जिक्र करते हुए कहा गया है कि यहां मवासी जनजाति के पाँच बच्चे गंभीर रुप से कुपोषण का शिकार हैं और आशंका है कि सरकारी उपेक्षा के बीच उनकी मृत्यु हो। एएचआर सी के अनुसार इस गांव में साल 2008 में मवासी जनजाति के कुल 7 बच्चों की मृत्यु कुपोषण के कारण हुई थी।(देखें लिंक संख्या-3, 4,5,)
ग्रामीण स्तर पर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के रुप में काम करने वाले आंगनबाड़ी केंद्र हों या फिर बीपीएल श्रेणी के अन्तर्गत अति दरिद्र मानकर जारी किए जाने वाले अंत्योदय अन्न योजना के कार्ड अथवा जीविका के अधिकार के तहत मनरेगा के जॉब कार्ड- मध्यप्रदेश में कुपोषण और भुखमरी को दूर करने के तमाम सरकारी प्रयास कम से कम जनजातीय परिवारों के मामले में कारगर होते नहीं दिख रहे। शिवपुरी जिले में कुपोषण से दम तोड़ने वाले परंत की कहानी को ही लें। सहरिया जनजाति के इस बच्चे का कुल पजीकरण एक तो आंगनबाड़ी केंद्र में देर से हुआ दूसरे मृत्यु के दिन तक उसे कोई टीका नहीं लगा था। परंत के मां-बाप को बच्चे के उपचार के लिए कर्ज लेना पड़ा और इस कर्ज पर परिवार ने ३ फीसदी की दर से हर महीने सूद चुकाया साथ ही परिवार के मुखिया को कर्जदाता के खेतों में बिना पारिश्रमिक के काम भी करना पड़ा। मध्यप्रदेश में कुपोषण से पीडित ज्यादातर जनजातीय परिवारों के समान परंत का परिवार भूमिहीन नहीं है फिर भी  उनके पास मौजूद डेढ़ एकड़ से कम की जमीन में ज्यादातर सिंचाई की सुविधा से वंचित है।  अंत्योदय अन्न योजना के तहत इस परिवार को कार्ड जारी किया गया है लेकिन अनुदानित मूल्य पर पूरे ३५ किलो अनाज हासिल कर सकने की दशा में यह परिवार नहीं है। परंत के बड़े भाई के नाम से मनरेगा का जॉब कार्ड जारी हुआ है लेकिन यह कार्ड गांव के सरपंच के पास ही है और इस कार्ड के आधार पर उठाये जा रही मजदूरी की रकम भी(देखें- ऊपर की लिंक संख्या 1)।
ज्यादा दिन नहीं हुए जब मध्यप्रदेश विधानसभा ने पब्लिक सर्विस गारंटी एक्ट पास करके बुनियादी सेवाओं की आपूर्ति के लिहाज से एक एतिहासिक कदम उठाया और खूब प्रशंसा बटोरी।(देखें लिंक संख्या-6 ) लेकिन, इस सूबे के जनजातीय परिवारों के बच्चों की दशा तस्वीर का एक अलग रंग दिखा रही है।


विस्तार के लिए देखें नीचे दी गई लिंक

1 http://www.ahrchk.net/ua/mainfile.php/2010/3603/

2http://www.im4change.org/news-alert/ahrc-28-children-die-o
f-malnutrition-in-mp-1266.html

3 http://www.ahrchk.net/ua/mainfile.php/2010/3598/%29-

4. http://www.ahrchk.net/ua/mainfile.php/2010/3594/

5. http://www.ahrchk.net/ua/mainfile.php/2009/3320/

6http://www.igovernment.in/site/mp-makes-law-guarantee-publ
ic-services-38129