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खेती-किसानी पर हुए खर्च से ज्यादा है कारपोरेट जगत को मिली करों में छूट

अनुमान लगाइए कि कारपोरेट जगत को सरकार ने 2017-18 में करों पर कितनी छूट दी है ? शायद आपको यकीन ना आये लेकिन कारपोरेट सेक्टर को टैक्स के मामले में जो छूट मिली वह कृषि मंत्रालय और ग्रामीण विकास मंत्रालय के कुल खर्चे का 50 फीसदी से ज्यादा है.

 

कारपोरेट जगत को मिलने वाली छूट को तकनीकी भाषा में हम स्पेशल टैक्स रेट, एक्जेम्पशन, डिडक्शन, रिबेट, डेफरल्स जैसे कई नामों से जानते हैं और व्यापक तौर पर इसे टैक्स एक्सपेंडिचर्स(अप्रत्यक्ष सब्सिडी) कहा जाता है. कारपोरेट जगत के करदाताओं में अप्रत्यक्ष सब्सिडी के तौर पर 2017-18 में जो छूट मिली वह कृषि तथा ग्रामीण विकास से जुड़े दो बड़े मंत्रालयों के खर्चे के आधे से भी अधिक है.

 

लेकिन यह चलन सिर्फ एक साल का नहीं है. कारपोरेट जगत के करदाताओं को साल 2012-13 में जो छूट मिली वह कृषि मंत्रालय तथा ग्रामीण विकास मंत्रालय के कुल खर्चे का 88.7 फीसद थी. साल 2015-16 में यह आंकड़ा 76.1 प्रतिशत का था तो साल 2016-17 में 67.1 प्रतिशत का.

 

इसका एक मतलब यह हुआ कि वित्तवर्ष 2012-13, 2015-16 तथा 2016-17 में कारपोरेट जगत के करदाताओं को जो छूट हासिल हुई उससे कृषि-मंत्रालय और ग्रामीण विकास मंत्रालय के कुल खर्चे का दो तिहाई से भी ज्यादा( क्रमशः 88.7 प्रतिशत, 76.1 प्रतिशत और 67.7 फीसद) खर्चा वहन किया जा सकता था. (तालिका में अकमान देखने के लिए कृपया यहां क्लिक करें)

 

कारपोरेट जगत के करदाताओं को प्रोत्साहन के नाम पर करों में जो छूट मिली उसे अगर कुल रकम के रुप में दर्ज करें तो जाहिर होगा कि बीतते वक्त के साथ छूट की राशि बढ़ती गई है. मिसाल के लिए, साल 2012-13 में कारपोरेट जगत को करों में 68,720.0 करोड़ रुपये की छूट मिली जबकि साल 2015-16 में 76,857.7 करोड़ रुपये की. साल 2016-17 में कारपोरेट जगत को करों में 86,144.82 करोड़ रुपये की छूट हासिल हुई और वित्तवर्ष 2017-18 में 85,026.11 करोड़ रुपये की.

 

गौरतलब है कि अगर कारपोरेट जगत के करदाताओं और फर्मस्, एसोसिएशन, अविभाजित हिन्दू परिवार तथा बॉडी ऑफ इंडिविजुअल्स् जैसे नामों से पहचाने जाने वाले गैर-कारपोरेट करदाताओं को हासिल अलग-अलग किस्म के छूट को एकसाथ जोड़ें तो एकीकृत राशि कृषि मंत्रालय तथा ग्रामीण विकास मंत्रालय के कुल खर्चे से भी ज्यादा हो जाती है.

 

मिसाल के लिए साल 2017-18 में कृषि-मंत्रालय तथा ग्रामीण विकास मंत्रालय का कुल खर्च 1,46,388.08 करोड़ रुपये था लेकिन इस साल प्रोत्साहन के तौर पर कारपोरेट तथा गैर-कारपोरेट इकाइयों को करों में 2,03,983.74 करोड़ रुपये की छूट हासिल हुई. (अंकमान को तालिका में देखने के लिए कृपया इन्क्लूसिव मीडिया फॉर चेंज के अंग्रेजी न्यूज एलर्ट की तालिका संख्या-2 देखें)

 

नये बजट(2018-19) में कारपोरेट जगत के करदाताओं को हासिल छूट से संबंधित कुछ अहम तथ्य:

 

• साल 2018-19 में उर्वरकों पर सब्सिडी 70,080 करोड़ रुपये कर दी गई है जबकि साल 2017-18 में यह 64,974 करोड़ रुपये थी. साल 2017-18 में उर्वरकों पर दी गई सब्सिडी कारपोरेट जगत के दरदाताओं को मिली छूट की तुलना में कम रही.

 

• नये बजट(2018-19) में खाद्य सब्सिडी बढ़ाकर 1,69,323 करोड़ रुपये कर दी गई है जबकि साल 2017-18 में खाद्य-सब्सिडी के मद में 1,40,282 करोड़ रुपये की राशि स्वीकृत हुई थी. इसका एक अर्थ हुआ कि साल 2017-18 में खाद्य सब्सिडी के मद में जो राशि दी गई वह कारपोरेट जगत को करों में हासिल छूट का 1.65 गुना है.

 

• नये बजट में खेती और खेती से जुड़ी गतिवधियों के मद में 63,836 करोड़ रुपये की राशि मंजूर की गई है. पिछले(2017-18) में यह राशि 56,589 करोड़ रुपये थी. साल 2017-18 में खेती तथा खेती से संबंधित गतिविधियों पर हुआ खर्च कारपोरेट जगत को करों में दी गई छूट की कुल राशि का 66.6 प्रतिशत है. इसका एक अर्थ हुआ कि खेती और खेती से जुड़ी गतिविधियों के लिए बजट में आबंटित कुल राशि की भरपायी कारपोरेट जगत को मिली छूट की रकम से हो जाती.

 

• नये बजट में ग्रामीण विकास के मद में 1,38,097 करोड़ रुपये का आबंटन हुआ है. पिछले बजट(2017-18) इस मद में 1,35,604 करोड़ की राशि मंजूर हुई थी. दूसरे शब्दों में कहें तो साल 2017-18 में ग्रामीण विकास के मद में खर्च की राशि कारपोरेट जगत को करों में हासिल छूट की राशि के 1.6 गुना रही.

(उपर्युक्त जानकारी के मूल स्रोत इन्क्लूसिव मीडिया फॉर चेंज की इस लिंक पर देखे जा सकते हैं)