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झारखंड: नरेगा मजदूरों की गुहार, हमें बचाइए सरकार!

मनरेगा के दस साल पूरे होने पर उसकी कामयाबियों को केंद्र की भाजपा नीत एनडीए सरकार ने राष्ट्रीय गर्व का विषय बताया था लेकिन भाजपा के राज वाले झारखंड में उल्टा होता दिख रहा है.

 

मामला झारखंड के लातेहर जिले के मणिका प्रखंड में सक्रिय मनरेगा मजदूरों के संगठन ग्राम स्वराज मजदूर संघ(जीएसएमएस) के सदस्यों के उत्पीड़न का है.

 

इन्क्लूसिव मीडिया फॉर चेंज को हासिल एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि माओवादी तत्वों पर नकेल कसने के नाम पर सक्रिय पुलिस समर्थित झारखंड जन मुक्ति परिषद(जेजेएमपी) के हथियारबंद दस्ते जीएसएमएस के सदस्यों के साथ मारपीट कर रहे हैं और ग्रामीणों को डरा-धमकाकर नरेगा की राशि लूटना चाहते हैं.(प्रेस विज्ञप्ति के लिए यहां क्लिक करें)

 

प्रसिद्ध अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज, सामाजिक कार्यकर्ता बेला भाटिया और कविता श्रीवास्तव सहित अन्य अग्रणी शोधकर्ता और लेखकों द्वारा जारी इस प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार बीते फरवरी महीने में जीएसएमएस ने इलाके में जन-वितरण प्रणाली पर एक जन-सुनवाई का आयोजन किया और भ्रष्टाचार के मामले को उजागर कर कई भ्रष्ट डीलरों को हटा दिया.

 

इस घटना के बाद से ही जीएसएमएस के सदस्य जेजेएमपी के हथियारबंद दस्तों के निशाने पर हैं और कइयों के साथ मार-पीट की गई है.

 

गौरतलब है कि हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस के अवसर पर ग्राम स्वराज मजदूर संघ की अगुवाई में मनिका प्रखंड के सैकड़ों मनरेगा मजदूरों ने इस साल मनरेगा की मजदूरी में की गई नगण्य बढोत्तरी( 162 रुपये प्रतिदिन से बढ़ाकर 167 रुपये प्रतिदिन) के विरोध में प्रधानमंत्री को एक चिट्ठी के साथ पांच रुपये का नोट भेजा था.

 

प्रधानमंत्री को भेजी गई इस चिट्ठी में व्यंग्य के लहजे में कहा गया था कि "प्रिय प्रधानमंत्रीजी, इस साल आपकी सरकार ने झारखंड के नरेगा मजदूरों की मजदूरी में पांच रुपये की बढोत्तरी की है. हम मनरेगा के मजदूर अपने को बहुत भाग्यशाली मान रहे हैं क्योंकि सत्रह राज्यों में बढ़ोत्तरी इससे भी कम है..जरुर ही सरकार के पास रुपयों की कमी रही होगी जो उसने नरेगा की मजदूरी को न्यूनतम मजदूरी से भी कम रखा है, वह भी तब जबकि एक तिहाई ग्रामीण आबादी सूखे की मार झेल रही है.."(चिट्ठी के लिए यहां क्लिक करें)

 

गौरतलब है कि ओड़ीशा में नरेगा के लिए इस साल मजदूरी में एक पाई की भी बढोत्तरी नहीं की गई है वहीं झारखंड में न्यूनतम मजदूरी 212 रुपये प्रतिदिन है.(विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 2015-16 तथा 2016-17 में अकुशल श्रमिकों के लिए तय न्यूनतम मजदूरी की जानकारी के लिए कृपया इस लिंकपर मौजूद आरेख देखें).

 

इस कथा के विस्तार के लिए कुछ महत्वपूर्ण तथ्य-

 

---- अर्थास्त्री एस महेन्द्र देव की अध्यक्षता वाली एक उच्च स्तरीय समिति ने 2014 में सिफारिश की थी कि मनरेगा के अंतर्गत अकुशल श्रमिकों की मजदूरी की दर संबंधित राज्य में जारी न्यूनतम मजदूरी से कम नहीं होनी चाहिए या फिर यह मजदूरी खेतिहर मजदूरों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित पारिश्रमिक के बराबर होनी चाहिए. सिफारिश के अनुसार न्यूनतम मजदूरी या फिर खेतिहर मजदूरों के लिए तय उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मजदूरी में से जो ज्यादा हो वही मजदूरी नरेगा के मजदूरों को संबंधित राज्य में दी जानी चाहिए.

 

--- इस उच्च स्तरीय समिति ने मनरेगा के मजदूरों को मुद्रास्फीति के असर से बचाने के लिए उनकी मजदूरी को उपभोक्ता मूल्य सूचकांक-ग्रामीण(सीपीआई-आर) से जोड़कर तय करने की बात भी कही थी लेकिन केंद्र सरकार ने 2016-17 के लिए विभिन्न प्रांतों में नरेगा की मजदूरी में बढोत्तरी सीपीआऱ-आर के अनुसार नहीं की बल्कि खेतिहर मजदूरों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित पारिश्रमिक को नरेगा की मजदूरी बढ़ाने का आधार बनाया.

 

 


---- इस साल(2016-17) सूखे की स्थिति में अपेक्षा की जा रही है कि नरेगा के अंतर्गत ज्यादा से ज्यादा रोजगार का सृजन किया जायेगा लेकिन सरकार ने इतनी रकम नहीं दी है कि पिछले वित्तवर्ष(2015-16) में हुए रोजगार-सृजन के स्तर को भी पार किया जा सके. पिछले वित्तवर्ष में 253.3 करोड़ रोजगार दिवसों का सृजन मनरेगा के अंतर्गत हुआ था.

 

 

 


---- सरकार ने पिछले वित्तवर्ष(2015-16) 239.1 करोड़ व्यक्ति-दिवसों के लिए लेबर बजट मंजूर किया था जो इस वित्तवर्ष में घटकर 217 करोड़ व्यक्ति-दिवस का हो गया है. 
 
(पोस्ट में इस्तेमाल की गई तस्वीर साभार-- ज्यां द्रेज)