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डूबते को तिनके का सहारा..

कहते हैं डूबते को तिनके का सहारा होता है। यह कहावत “निजो गृह-निजो भूमि” कार्यक्रम के हितग्राही पश्चिम बंगाल के भूमिहीन परिवारों पर सटीक बैठती है।

इंटरनेशनल फूड एंड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट ने इंडिया स्टेट हंगर इंडेक्स(2008) में पश्चिम बंगाल में भुखमरी की दशा को खतरनाक करार दिया था। समस्या से निपटने के दूरगामी उपाय के रुप में पश्चिम बंगाल की सरकार ने राज्य के भूमिहीन परिवारों को आवास और खेती-बाड़ी के लिए 0.04 से 0.06 हेक्टेयर जमीन देने का कार्यक्रम निजो गृह- निजो भूमि चलायी। जेंडर, एग्रीकल्चर, एंड असेटस्: लर्निंग फ्रॉम ऐईट एग्रीकल्चरल डेवलपमेंट इन अफ्रीका एंड साऊथ एशिया शीर्षक शोध-अध्ययन में प्रकाशित निष्कर्षो के अनुसार कुपोषण रोकने और महिला-सशक्तीकरण के मामले में इस कार्यक्रम की सफलता भारत के गरीब राज्यों के लिए एक नजीर साबित हो सकती है।(देखें नीचे दी गई लिंक)


राज्य के कूचबिहार, बांकुड़ा और जलपाईगुड़ी जिले के कुल 1373 भूमिहीन परिवारों को तुलना के लिए दो हिस्से में बांटकर( ऐसे परिवार जिन्हें गृह- निजो भूमि कार्यक्रम के तहत जमीन मिली थी तथा ऐसे परिवार जो कार्यक्रम के हितग्राही हो सकते हैं लेकिन सर्वेक्षण के समय तक जमीन नहीं मिली थी) 2010 से 2012 के बीच दो दफे सर्वेक्षण किया गया।


सर्वेक्षण का निष्कर्ष है कि निजो गृह- निजो भूमि कार्यक्रम के हितग्राही परिवार भूमि की मिल्कियत के कारण कृषि-ऋण हासिल करने तथा खेती में निवेश करने में तुलनात्मक रुप से सफल रहे। साथ ही, इस कार्यक्रम के हितग्राही परिवारों में भोजन तथा खेती-बाड़ी से जुड़े फैसलों को लेने में महिलाओं की भागीदारी बढ़ गई। सर्वेक्षण के कुछ महत्वपूर्ण निष्कर्ष निम्नलिखित हैं-


- अन्य भूमिहीन परिवारों की तुलना में कार्यक्रम के हितग्राही परिवारों के बारे में बैंक से कर्ज लेने के की संभावना 12 फीसदी ज्यादा पायी गई। ऐसे परिवारों में कर्ज से प्राप्त रकम के खेती-बाड़ी में निवेश की संभावना 88 फीसदी ज्यादा देखी गई।


- खाद या फिर कीटनाशक के इस्तेमाल की संभावना कार्यक्रम के हितग्राही परिवारों के बीच अन्य भूमिहीन परिवारों की तुलना में 11 फीसदी ज्यादा पायी गई, यही आंकड़ा उन्नत बीजों और बिचड़ों के बारे में भी है, साथ ही ऐसे परिवारों में अन्य भूमिहीन परिवारों की तुलना में खेती के उपकरणों के इस्तेमाल की संभावना 7 फीसदी ज्यादा देखी गई।


- सर्वेक्षण के अनुसार कार्यक्रम के हितग्राही परिवार की महिलाओं ने अन्य भूमिहीन परिवार की महिलाओं की तुलना में स्व-सहायता समूहों से कर्ज लेने के मामले में 12 फीसदी ज्यादा हिस्सेदारी की और उत्पादक सामान मसलन खाद-बीज-कृषि उपकरण आदि की खरीद के फैसले लेने के मामले में ऐसी महिलाओं की भागीदारी भूमिहीन परिवार की महिलाओं की तुलना में 12 फीसदी ज्यादा देखी गई।साथ ही भूमि के उपयोग, ऊपज और उसके उसके इस्तेमाल के बारे में लिए गए पारिवारिक फैसलों में भी कार्यक्रम के हितग्राही परिवारों की महिलाओं की भागीदारी तुलनात्मक रुप से ज्यादा थी।


बीते दो दशकों की तेज आर्थिक प्रगति के बावजूद भारत की एक तिहाई आबादी रोजाना सवा डॉलर से भी कम खर्चे पर गुजारा करती है। आबादी की एक बहुत बड़ी तादाद भोजन की कमी की शिकार है। योजना आयोग के साल 2013 के आंकड़ों में कहा गया है कि भारत में कुपोषण के शिकार बच्चों की संख्या विश्व में सबसे ज्यादा है।


शोध के अनुसार देश के तकरीबन 2 करोड़ परिवार भूमिहीन हैं तथा इन परिवारों के लिए जीविका का मुख्य स्रोत खेतिहर मजूदरी है।निजो गृहो- निजो भूमि के हितग्राही परिवारों की स्थिति में आया परिवर्तन इस तथ्य की तरफ संकेत करता है कि देश के भूमिहीन परिवारों को घर और और घर के आस-पास खेती के लिए छोड़ी सी भी जमीन मुहैया करायी जाय तो उनकी जीवन-स्थितियों में सकारात्मक बदलाव लाया जा सकता है।

इस कथा के विस्तार के लिए कृपया निम्नलिखित लिंक खोलें- 

http://www.ifpri.org/sites/default/files/publications/gaapcollection2013.pdf

(पोस्ट में इस्तेमाल की गई तस्वीर साभार http://news.mydosti.com/newsphotos/others/LandlessMarchV2Oct92012.jpg से)