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दक्षिण-पश्चिम मॉनसून ने दगा किया, नये साल में खाद्यान्न उत्पादन कम होने के आसार

आशंका है कि खाद्यान्न उत्पादन के मामले में चालू कृषिवर्ष पिछले साल (2016-17) के मुकाबले फीका साबित हो. कृषि  मंत्रालय के शुरुआती आकलनों से पता चलता है कि 2017-18 में खरीफ फसलों का उत्पादन पिछले साल के मुकाबले 2.8 प्रतिशत घट सकता है. 


साल 2017-18 में खरीफ की फसलों का खाद्यान्न उत्पादन 134.7 मिलियन टन रहने का अनुमान है जबकि 2017-18 में खरीफ में खाद्यान्न का उत्पादन 185.5 मिलियन टन हुआ था. गौरतलब है कि 2016-17 में गुजरे 2015-16 के मुकाबले खाद्यान्न उत्पादन(खरीफ) में 10.7 फीसद का इजाफा हुआ था.  


खरीफ सीजन में खाद्यान्न घटने का एक कारण दक्षिण-पश्चिम मॉनसून(जून-सितंबर) का कमजोर होना हो सकता है. बीते पांच सालों में खरीफ सीजन में हुए खाद्यान्न उत्पादन और दक्षिण-पश्चिम मॉनसून के दौरान हुई बारिश पर केंद्रित इन्क्लूसिव मीडिया फॉर चेंज के तुलनात्मक अध्ययन से जाहिर होता है कि 2016 की अपेक्षा 2017 में दक्षिण-पश्चिम मॉनसून की बारिश में प्रतिशत पैमाने पर दो अंकों की कमी आयी है.( देखें इस लिंक पर चार्ट-1)   


केंद्रीय जल आयोग के नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक 28 सितंबर 2017 तक देश के 91 जलागारों में कुल 103.429 अरब घनमीटर(बीसीएम) पानी मौजूद था जबकि पिछले साल इन जलागारों में उक्त अवधि में उपलब्ध पानी की मात्रा 116.590 बीसीएम थी. इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि देश में दक्षिण-पश्चिम मॉनसून के दौरान पिछले साल के मुकाबले कम बारिश हुई है.


विभिन्न फसलों का उत्पादन


कृषि मंत्रालय द्वारा साल 2017-18 के लिए जारी प्रथम अग्रिम आकलन से संकेत मिलता है कि पिछले साल के मुकाबले खाद्यान्न के उत्पादन में लगभग 2 प्रतिशत की कमी आयेगी.आकलन के मुताबिक दलहन के उत्पादन में पिछले साल की तुलना में 7.5 प्रतिशत कमी आने की आशंका है. इस साल के लिए दलहन का उत्पादन 9.7 मिलियन टन रहने की उम्मीद की जा रही है. पिछले साल के मुकाबले इस साल मोटे अनाज और तेलहन के उत्पागन में क्रमशः 3.7 प्रतिशत और 7.7 प्रतिशत की कमी आने की आशंका जतायी गई


दक्षिण पश्चिम मॉनसून


भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की हाल की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि लंबी अवधि के औसत के ऐतबार से देखें तो दक्षिण-पश्चिम मॉनसून के दौरान सबसे ज्यादा बारिश(एलपीए का 100 प्रतिशत) दक्षिण के प्रायद्वीपीय इलाके में हुई जबकि सबसे कम बारिश(एलपीए का 90 फीसद) पश्चिमोत्तर भारत में हुई. लंबी अवधि के औसत(एलपीए) के ऐतबार से देखें तो मध्य भारत में दक्षिण-पश्चिम मॉनसून के दौरान 94 प्रतिशत और पूर्वी तथा पूर्वोत्तर भारत में 94 फीसद बारिश हुई. 


भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की रिपोर्ट में कहा गया है कि कुल 36 मेट्रोलॉजिकल संभागों में से 25 संभाग(यानी देश का 65 प्रतिशत इलाका) में दक्षिण-पश्चिम मॉनसून के दौरान सामान्य बारिश हुई जबकि 5 संभागों(देश का 18 फीसद इलाका) में अत्यधिक बारिश हुई.


रिपोर्ट के मुताबिक देश के 17 फीसद इलाके यानि 6 संभागों में दक्षिण-पश्चिम मॉनसून की बारिश सामान्य से कम रही. सामान्य से कम बारिश वाले 6 संभागों में से 4 पश्चिमोत्तर भारत( पश्चिम तथा पूर्वी यूपी, पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़ तथा दिल्ली) में हैं जबकि 2 संभाग मध्य भारत(पूर्वी मध्यप्रदेश तथा विदर्भ) के हैं.


भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की वेबसाइट के तथ्यों से पता चलता है कि देश में जून महीने में लंबी अवधि के औसत के ऐतबार से 104 प्रतिशत बारिश हुई, जुलाई में 102 फीसद जबकि अगस्त में बारिश की मात्रा घटकर 87 प्रतिशत हो गई और सितंबर में 88 प्रतिशत. मौसमविज्ञान के आंकड़े संकेत करते हैं कि बाद के महीनों में दक्षिण-पश्चिम मॉनसून से सामान्य से कम बारिश हुई.