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नहीं थम रहा ओडिसा में भुखमरी की मौतों का सिलसिला- एशियन ह्यूमन राइटस् कमीशन

प्रचलित मान्यता है कि अधिकारियों तक सूचना नहीं पहुंच पाती कि कौन सा व्यक्ति भुखमरी की चपेट में आने वाला है, इसलिए किसी व्यक्ति की भुखमरी से मौत हो जाती है। लेकिन जब प्रशासन को पहले से खबरदार किया जा चुका हो फिर भी किसी की भुखमरी से मौत हो तो क्या यह किसी की हत्या करने सरीखा नहीं माना जाएगा? एशियन ह्यूमन राईटस् कमीशन की एक हालिया रिपोर्ट से पता चलता है उड़ीसा में भ्रष्टाचार और उपेक्षा के बीच लोग भुखमरी के शिकार हैं और इस वजह से मौत भी हो रही है। और, इससे भी भयानक तथ्य यह कि भोजन की कमी की ऐसी ही स्थिति में आशंका है कि कई और ग्रामीण दम तोड़ सकते हैं।

एशियन ह्यूमन राईटस् कमीशन की रिपोर्ट के अनुसार ओड़ीसा के नुआपाडा जिले के सिनापली प्रखंड में करनबहेली पंचायत के गांव गुलियाडोंगरी के निवासी लक्ष्मण जगत की मौत भुखमरी और बीमारी के बीच गुजरे 25 नवंबर,2011 को हुई।विपदा झेल रहे ग्रामीणों और नागरिक संगठनों ने प्रशासन से साफ-साफ शब्दों में कहा था कि कानून और नियमों के अनुसार स्थिति को देखते हुए लक्ष्मण जगत को चावल सहित अन्य सुविधायें देने के लिए समुचित कदम उठाये जायें

एशियन ह्यूमन राईटस् कमीशन के अनुसार प्रशासन बीते 11 जुलाई 2011 से सार्वजनिक वितरण प्रण
ली
के माध्यम से खाद्यान्न मुहैया करवाने में नाकाम रहा।सालो भर सूखे के कारण इलाके में खेती-बाड़ी का काम नहीं हो सका लेकिन प्रशासन मनरेगा के नियमों के अनुसार भोजन के बदले काम मुहैया कराने में असफल रहा। सूखाग्रस्त इस इलाके में एक तरफ गरीब जन भोजन जुटाने में भारी कठिनाई झेल रहे हैं तो दूसरी तरफ प्रशासन गरीब, विधवा तथा वृद्धजनों की जरुरतों को ध्यान में रखकर बनायी गई सामाजिक सुरक्षा योजना को लागू करने के बजाय भ्रष्टाचार में लिप्त है।

एशियन ह्यूमन राईटस् कमीशन की रिपोर्ट में कहा गया है कि लक्ष्मण की गंभीर स्थिति को देखते हुए ग्रामीणों ने प्रशासन के पास कई दफे मदद की गुहार लगाते हुए गांव में चावल बंटवाने की अर्जी भेजी। हैरत में डालने वाली बात यह है कि प्रखंड विकास पदाधिकारी(बीडीओ) और जिला कलेक्टर जैसे आला अधिकारियों से अनियमितता की शिकायत के बावजूद इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया गया।

एशियन ह्यूमन राईटस् कमीशन की रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि कई बार की शिकायत के बावजूद प्रशासन कोई कदम उठाने में नाकाम रहा। प्रखंड के मार्केंटिंग ऑफिसर तथा पंचायत के एक्जीक्यूटिव ऑफिसर की मिलीभगत से अनुदानित चावल की 62 बोरियों को कथित तौर पर तस्करी के जरिए ले जा रहे ट्रक को जब ग्रामीणों ने पकड़ा तब जाके प्रशासन ने कदम उठाये। ट्रक पर चावल पंचायत प्रधान जानकारी के बगैर ले जाया जा रहा था ताकि इसे बाजार में चोरी से बेचा जा सके। पुलिस के पास शिकायत दर्ज कराने पर एक्जिक्यूटिव ऑफिसर को जेल भेज दिया गया ।

लक्ष्मण जगत की मृत्यु की सूचना मिलने के बावजूद प्रशासन ने दो गांवो में चावल बंटवाये और एक गांव में चावल आधा-अधूरा बंटा। इस तरह प्रशासन सूखा प्रभावित इस इलाके के कई गांवों में राहतकार्य को सुचारु रुप से लागू करने में असफल रहा। कुछ और ग्रामीण, खासकर विधवा, बच्चे और वृद्धजन लक्ष्मण जगत की गति को प्राप्त हो सकते हैं क्योंकि वे भी समान परिस्थितियों में भुखमरी झेल रहे हैं। सरकार ने क्षेत्र में व्याप्त सूखे की स्थिति पर ध्यान नहीं दिया और भ्रष्टाचार तथा उपेक्षा में लिप्त रही। मुद्दा सिर्फ यह नहीं है कि प्रशासन विपदा प्रभावित इलाके में चावल बंटवाने में नाकाम रहा है बल्कि एशियन ह्यूमन राइटस् कमीशन के अनुसार प्रशासन के भ्रष्टाचार और अकर्मण्यता के कारण इस इलाके में सामाजिक सुरक्षा का पूरा ताना-बाना ही तितर-बितर हो गया है।

एशियन ह्यूमन राइटस् कमीशन ने बीते दिसंबर माह में भी प्रशासनिक उपेक्षा की एक ऐसी ही सत्यकथा को सार्वजनिक किया था। यह सत्यकथा एक ही परिवार के उन चार बच्चों के बारे में थी जिनके मां-बाप बीते सितंबर और नवंबर महीने में भुखमरी और बीमारी के शिकार होकर मौत की भेंट चढ़े । बच्चों के पिता बाबाजी सेठी की भोजन की कमी और शारीरिक कमजोरी के बीच हाड़तोड़ परिश्रम करते हुए मौत हुई जबकि बाबाजी की मृत्यु के बाद बच्चों की मां ने कैंसर से जूझते हुए इलाज के अभाव में भुखमरी की दशा के बीच दम तोड़ा। (कृपया देखें- http://www.humanrights.asia/news/hunger-alerts/AHRC-HAC-010-2011)

 

एशियन ह्यूमन राइटस् कमीशन ने प्रशासन की असफलता की तरफ ध्यान खींचने के लिए मुख्यमंत्री के नाम पत्र लिखने का एक अभियान चलाया है। उपरोक्त घटना का सबसे दुखद पक्ष यह है कि पीडित और उसकी पत्नी भुखमरी से मरे जबकि उनके पास अंत्योदय अन्न योजना के अंतर्गत दिया जाने वाला कार्ड था।इस योजना के अन्तर्गत सर्वाधिक गरीब व्यक्ति मुफ्त भोजन के अतिरिक्त कई अन्य सुविधायें दी जाती हैं जिसमें मुफ्त चिकित्सा भी शामिल है।

 

( भुखमरी से संबंधित अन्य कथाओं के लिए निम्नलिखित लिंक देखे जा सकते हैं)

 
http://www.humanrights.asia/news/hunger-alerts/AHRC-HAC-00
1-2012

http://www.humanrights.asia/news/hunger-alerts/AHRC-HAU-00
3-2011

http://www.im4change.org/news-alert/ahrc-28-children-die-o
f-malnutrition-in-mp-1266.html


Too little, too late by Harsh Mander, The Hindustan Times, 25 December, 2011, http://www.hindustantimes.com/News-Feed/ColumnsOthers/Too-
little-too-late/Article1-787098.aspx


Let there be no starvation deaths: Supreme Court, The Hindu, 15 September, 2011, http://www.thehindu.com/todays-paper/tp-national/article24
54542.ece


Starvation line? Govt firm on poverty limit by Basant Kumar Mohanty, The Telegraph, 30 May, 2011, http://www.telegraphindia.com/1110530/jsp/nation/story_140
47300.jsp

Court on starvation deaths: ‘there cannot be two Indias' by J Venkatesan, The Hindu, 21 April, 2011, http://www.hindu.com/2011/04/21/stories/2011042165341400.htm
There can't be two Indias: Supreme Court by Dhananjay Mahapatra, The Times of India, 21 April, 2011, http://timesofindia.indiatimes.com/india/There-cant-be-two
-Indias-Supreme-Court/articleshow/8041699.cms