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निर्धारित लक्ष्य से पीछे चल रही प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, कवरेज भी घटा !

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का बजट-आबंटन अंतरिम बजट (2019-20) में घट गया है. एक तथ्य यह भी है कि फसल बीमा योजना पिछले दो सालों से अपने निर्धारित लक्ष्य को पूरा करने में नाकाम रही है. बजट-आबंटन घटने की एक वजह यह भी हो सकती है.

 

साल 2017-18 की बजट घोषणाओं के क्रियान्वयन की स्थिति बताने वाले दस्तावेज में कहा गया था कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना(पीएमएफबीवाय) की कवरेज सकल फसलित क्षेत्र का 2017-18 में 40 प्रतिशत तथा 2018-19 में 50 प्रतिशत कर दी जायेगी. गौरतलब है कि साल 2016-17 में फसल बीमा योजना का कवरेज सकल फसलित क्षेत्र का 30 प्रतिशत था.

 

लेकिन लोकसभा में दिए गए कृषि मंत्रालय के राज्यमंत्री के जवाब(अतारांकित प्रश्न संख्या 3398) से पता चलता है कि विभिन्न फसलों की बुवाई का 29 प्रतिशत हिस्सा ही साल 2016-17 में पीएमएफबीवाय) की कवरेज में था और 2017-18 में यह कवरेज का दायरा घटकर 25.0 प्रतिशत रह गया. दूसरे शब्दों में कहें तो प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के अंतर्गत बीमित कृषि-भूमि का दायरा साल 2016-17 के 5.63 हैक्टेयर से घटकर 2017-18 में 4.90 हैक्टेयर रह गया.

 

कुछ राज्यों में एक साल के भीतर(2016-17 से 2017-18) प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के अंतर्गत बीमित भूमि के दायरे में तेज कमी आयी है. मिसाल के लिए राजस्थान में 2016-17 में सकल फसलित क्षेत्र का 44.0 प्रतिशत हिस्से योजना के अंतर्गत बीमित था लेकिन साल 2017-18 में बीमित कृषि-भूमि का दायरा घटकर 29 प्रतिशत रह गया.


लोकसभा में दिये गये मंत्री के उत्तर से यह भी पता चलता है कि साल 2016-17 में 5.72 करोड़ किसान पीएमएफबीवाय के अंतर्गत बीमित किये गये थे लेकिन साल 2017-18 में योजना के अंतर्गत बीमित किसानों की संख्या घटकर 4.88 करोड़ हो गई. बीमित किसानों की संख्या में सबसे तेज गिरावट वाले राज्य महाराष्ट्र तथा उत्तरप्रदेश रहे. महाराष्ट्र में योजना के अंतर्गत बीमित किसानों की संख्या 2016-17 के 1.20 करोड़ से घटकर 1.00 करोड़ तथा उत्तरप्रदेश में बीमित किसानों की संख्या 67.7 लाख से घटकर साल 2017-18 में 52.9 लाख हो गई.

 

कृषि राज्यमंत्री के लोकसभा में 11 दिसंबर 2018 को दिये गये जवाब (प्रश्न संख्या 17) से पता चलता है कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के अंतर्गत 2018 में लगभग 3.33 करोड़ किसानों का पंजीकरण हुआ है जबकि साल 2017 के खऱीफ मौसम के दौरान योजना के अंतर्गत पंजीकृत किसानों की तादाद 3.48 करोड़ थी.

 

गौरतलब है कि 2018 के खरीफ मौसम तक योजना के अंतर्गत पंजीकृत किसानों का आंकड़ा अंतरिम है. अभी राजस्थान, मध्यप्रदेश सरीखे कुछ राज्यों के आंकड़े उपलब्ध नहीं हो सके हैं. इसी आधार पर 11 दिसंबर 2018 को लोकसभा में एक प्रश्न के जवाब में कृषिमंत्री राधामोहन सिंह ने कहा कि 2018 के खरीफ मौसम तक योजना के अंतर्गत बीमित किसानों की संख्या 2017 की तादाद से ज्यादा हो सकती है.



प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का बजट

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का बजट-आबंटन साल 2018-19(बी.ई.) के 13000 करोड़ से बढ़ाकर अंतरिम बजट 2019-20(बी.ई.) में 14000 करोड़ कर दिया गया है. लेकिन, फसल बीमा योजनाओं में बजट-व्यय में हल्की कमी आयी है. यह साल 2018-19(बी.ई) के 0.53 प्रतिशत से घटकर 2019-20(बी.ई) 0.50 प्रतिशत हो गई है. फसल बीमा योजनाओं पर हुये व्यय को सकल घरेलू उत्पाद के अनुपात के रुप में देखें तो यह साल 2018-19 तथा 2019-20 में 0.07 प्रतिशत पर स्थिर रहा है.(बजट आबंटन से संबंधित आंकड़ों के लिए कृपया हमारे अंग्रेजी न्यूज एलर्ट की तालिका 4 देखें) 

 

हालांकि कृषि तथा संबद्ध् क्षेत्रों पर बजट व्यय साल 2018-19(बी.ई.) तथा 2019-20(बी.ई.) के बीच 134.9 प्रतिशत बढ़ा है लेकिन फसल बीमा योजना पर व्यय की बढ़ोत्तरी दो सालों के बीच मात्र 7.7 प्रतिशत की हुई है. गौरतलब है कि साल 2018-19(बी.ई.) से 2019-20(बी.ई.) के बीच कृषि तथा संबद्ध क्षेत्रों में व्यय की भारी बढ़ोत्तरी में प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना का योगदान हो सकता है. दो हैक्टेयर तक की जोत के किसानों को सालाना छह हजार रुपये नकदी देने की यह योजना हाल ही में शुरु की गई है. 

 

फसल बीमा के अंतर्गत दावे तथा भुगतान

कृषिमंत्री ने 11 दिसंबर 2018 को एक प्रश्न के जवाब में लोकसभा में बताया कि किसानों से प्रीमियम के तौर पर 2016-17 में 4216 करोड़ रुपये एकत्रित किये गये(इंश्योरेन्स कंपनियों द्वारा 22,345.51 करोड़ रुपये का प्रीमियम एकत्रित किया गया था) और इसके बरक्स 16,279.25 करोड़ रुपये के दावे का भुगतान हुआ. इसी तरह साल 2017-18 (खरीफ 2017) में किसानों से 3038.70 करोड़ रुपये प्रीमियम के तौर पर हासिल हुये(इंश्योरेन्स कंपनियों को प्रीमियम के रुप में कुल 19,767.46 करोड़ रुपये मिले) और कुल 16,967.92 करोड़ रुपये का दावे के मद में भुगतान हआ. 

 

लेकिन प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की आधिकारिक वेबसाइट पर दिये गये आंकड़े के मुताबिक साल 2016-17 तथा 2017 के खऱीफ के मौसम में दावे के मद में क्रमशः 16,177.72 करोड़ (खरीफ 2016 में 10,496.34 करोड़ रुपये तथा 2016-17 के रबी मौसम में 5,681.38 करोड़ रुपये) तथा 17,209.94 करोड़ रुपये का भुगतान हुआ. गौरतलब है कि ये आंकड़े लोकसभा में 11 दिसंबर 2018 को कृषिमंत्री द्वारा बताये गये आंकड़ों से मेल नहीं खाते जबकि साल 2016-17 तथा खरीफ 2017 में इंश्योरेंस कंपनियों को प्रीमियम के तौर पर जो राशि हासिल हुई उसके आंकड़ें(लोकसभा में मंत्री के जवाब तथा प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की आधिकारिक वेबसाइट के तथ्यों से तुलना करने पर) आपस में मेल में हैं. यही बात किसानों से प्रीमियम के तौर पर हासिल की गई रकम पर लागू होती है. 

 

पाठकों को याद होगा कि केंद्र सरकार ने 2016 के खऱीफ मौसम में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की शुरुआत की थी. इसका मकसद मौसम की मार से फसल की तबाही की स्थिति में किसान को होनेवाले नुकसान से बचाने का था. योजना 1 अप्रैल 2016 से लागू हुई और पहले से जारी फसल बीमा योजना नेशनल एग्रीकल्चर इंश्योरेंस स्कीम तथा मोडिफाइड नेशनल एग्रीकल्चरल इंश्योरेंस स्कीम हटा दी गई. वाटरबेस्ड क्रॉप इंश्योरेंस स्कीम पूर्ववत जारी है लेकिन इस योजना में लिये जाने वाले प्रीमियम को प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के मेल में लाया गया है. प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना तथा वाटरबेस्ड क्रॉप इंश्योरेन्स स्कीम में से किसी को अपने लिए चुनने का जिम्मा राज्यों पर छोड़ा गया है.