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पशुपालन है भूमिहीन परिवारों की जीविका का मुख्य आधार- एनएसएसओ की रिपोर्ट

गंवई इलाकों में सबसे गरीब लोगों के लिए पशुपालन अब भी जीविका का मुख्य स्रोत बना हुआ है। एनएसएसओ की 17 वीं दौर की गणना पर आधारित एक रिपोर्ट के अनुसार जिन खेतिहर परिवारों के पास 0.01 हैक्टेयर या इससे कम रकबे की जमीन है उनमें तकरीबन 20 प्रतिशत परिवार जीविका के लिए मुख्य रुप से पशुपालन पर निर्भर हैं। गौरतलब है कि ऐसे परिवारों में भूमिहीन परिवार भी शामिल हैं।

बहरहाल, रिपोर्ट के तथ्य इस बात की निशानदेही करते हैं कि जमीन की मिल्कियत का आकार बढ़ने के साथ-साथ आमदनी के प्रमुख स्रोत के रुप में पशुपालन पर निर्भरता कम होते जाती है।

रिपोर्ट के अनुसार जिन खेतिहर परिवारों के पास 0.01 से 0.40 हैक्टेयर तक की जमीन है उनमें 5 प्रतिशत परिवार आमदनी के मुख्य स्रोत के रुप में पशुपालन पर निर्भर हैं लेकिन इसके तुरंत बाद भूमि की मिल्कियत के आधार पर रिपोर्ट में जिन खेतिहर परिवारों को रखा गया है उनमें आमदनी के मुख्य स्रोत के रुप में पशुपालन पर निर्भर खेतिहर परिवारों की संख्या 2.5 प्रतिशत है। हालांकि रिपोर्ट में यह बात भी दर्ज है कि जिन खेतिहर परिवारों के पास 10 हैक्टेयर या इससे ज्यादा जमीन की मिल्कियत है वैसे परिवारों में तकरीबन 5.5% परिवार आमदनी के मुख्य स्रोत के रुप में पशुपालन पर निर्भर हैं।

ध्यान देने योग्य है कि देश में सीमांत किसान-परिवारों की संख्या कुल ग्रामीण परिवारों की संख्या का तीन चौथाई है। सीमांत किसान परिवारों के भीतर वैसे परिवारों को शामिल किया जाता है जिनके पास 0.002 हैक्टेयर से 1.0 हैक्टेयर की जमीन हो। देश में भूमिहीन खेतिहर परिवारों की संख्या कुल ग्रामीण परिवारों की संख्या का 7.4 प्रतिशत है। भूमिहीन खेतिहर परिवारों में वैसे परिवारों को शामिल किया गया है जिनके पास 0.002 हैक्टेयर या इससे कम रकबे की जमीन है।एनएसएसओ की रिपोर्ट के तथ्यों के विश्लेषण से पता चलता है कि भूमिहीन और सीमांत खेतिहर परिवारों की औसत मासिक आमदनी साल 2012 के जुलाई महीने से साल 2013 के जून महीने के बीच उनके औसत मासिक खर्च से ज्यादा थी।

4,529 गांवों के सर्वेक्षण पर आधारित की इंडीकेटर्स ऑफ सिचुएशन एसेसमेंट सर्वे ऑफ एग्रीकल्चरल हाऊसहोल्ड इन इंडिया नामक यह रिपोर्ट बताती है कि साल 2012 के जुलाई महीने से साल 2013 के जून महीने के बीच देश के तकरीबन 4 प्रतिशत खेतिहर परिवार आमदनी के प्रमुख स्रोत के रुप में पशुपालन पर निर्भर थे।(कृपया आरेख के लिए यहां क्लिक करें)

रिपोर्ट के तथ्यों के अनुसार तमिलनाडु, गुजरात, पंजाब, हरियाणा जैसे राज्यों में 9 प्रतिशत ज्यादा खेतिहर परिवार आमदनी के प्रमुख स्रोत के रुप में पशुपालन पर निर्भर हैं।

रिपोर्ट के अनुसार खेतिहर परिवारों की औसत मासिक आमदनी 2012 की जुलाई से 2012 के जून महीने के बीच. 6426/-रुपये थी। इसमें पशुपालन के जरिए आमदनी के. 763/-रुपये हासिल हुए जबकि खेती-बाड़ी से. 3081/-रुपये। (इससे संबंधित आरेख के लिए यहां क्लिक करें)

जिन खेतिहर परिवारों के पास 0.01 हैक्टेयर से कम जमीन है उनकी औसत मासिक आमदनी में पशुपालन से प्राप्त आमदनी ( 1181/- रुपये) का हिस्सा खेती से प्राप्त आमदनी ( 30/-रुपये) से ज्यादा है।  

राष्ट्रीय स्तर पर देखें तो पशुपालन पर खेतिहर परिवारों ने औसत मासिक खर्च 1388/ रुपये का किया जबकि पशुपालन से खेतिहर परिवारों को औसत मासिक आमदनी  दी गई अवधि में 2604/-रुपय़े की हुई। पशुपालन पर खेतिहर परिवारों द्वारा किए गए औसत मासिक खर्च में राज्यवार बहुत ज्यादा भिन्नता है। मिसाल के लिए दी गई अवधि में झारखंड में खेतिहर परिवारों का पशुपालन पर औसत मासिक खर्च. 283/-रुपये था जबकि पंजाब में 3561/-रुपये। ठीक इसी तरह की भिन्नता पशुपालन से प्राप्त औसत आमदनी में भी लक्ष्य की जा सकती है। पशुपालन के जरिए छत्तीसगढ के खेतिहर परिवारों को औसत मासिक आमदनी 426/-रुपये की हुई जबकि अरुणाचल प्रदेश में खेतिहर परिवारों की दी गई अवधि में पशुपालन के जरिए औसत मासिक आमदनी. 9511/-रुपये की थी।
एनएसएसओ की रिपोर्ट के तथ्यों के विश्लेषण से पता चलता है कि ज्यादा भूस्वामित्व वाले खेतिहर परिवार पशुपालन पर कहीं ज्यादा खर्च करते हैं और इसी के अनुकूल उन्हें पशुपालन से अपेक्षाकृत ज्यादा आमदनी भी होती है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि देश में कृषिभूमि का 1.00% - 1.80% हिस्सा पशुपालन में इस्तेमाल किया जाता है।

गौरतलब है कि भैंस और गाय जैसे दुधारु पशुओं की संख्या में कमी आई है। एनएसएसओ की 59 वें दौर(2002-2003) की गणना में यह संख्या 23 करोड़ थी जो 70 वें दौर की गणना(2012-13) में घटकर 20 करोड़ 40 हजार रह गई है। साल 2012 की पशुगणना में दुधारु पशुओं की संख्या में 2007 की तुलना में 1.6 प्रतिशत की कमी बतायी गई थी।

70 वें दौर की गणना के अनुसार देश में बकरी और भेड़ सरीखे पशुओं की संख्या 9 करोड़ 90 लाख है। 59 वें दौर की गणना में यह संख्या 9 करोड़ 50 लाख थी। साल 2012-13 में मुर्गी आदि की संख्या रिपोर्ट के अनुसार 25 करोड़ 50 लाख थी जबकि साल 2002-03 की एनएसएसओ रिपोर्ट में यह संख्या 18 करोड़ 20 लाख बतायी गई थी।

कथा के विस्तार के लिए देखें निम्नलिखित लिंक-

 

Key Indicators of Situation Assessment Survey of Agricultural Households in India (January - December 2013), NSS 70th Round, Ministry of Statistics and Programme Implementation, GoI, December 2014 (Please click here to access)



Key Indicators of Land and Livestock Holdings in India, NSSO 70th Round (published in December 2014), Report no. NSS KI (70/18.1), MoSPI, GoI, December 2014,

Please click link1 and link 2



19th Livestock Census-2012 (published in 2014), Ministry of Agriculture (Please click here to access)
       

Image Courtesy: Shambhu Ghatak