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पीडीएस में डीबीटी : झारखंड सरकार के फैसले पर सर्वेक्षण ने उठाये सवाल

डीबीटी यानि प्रत्यक्ष नकदी हस्तांतरण की तरकीब सरकारी दस्तावेजों में भले अच्छी जान पड़े लेकिन जमीनी सच्चाई यही है कि लागू किए जाने की सूरत में लोग उसका विरोध करते हैं. झारखंड के रांची जिल के नगरी प्रखंड में कुछ ऐसा ही देखने में आया है जहां सार्वजनिक वितरण प्रणाली के जरिए अनुदानित मूल्य पर अनाज देने की जगह सरकार लाभार्थियों के अधार-सत्यापित बैंक खाते में नकदी प्रदान कर रही है.
 

नगड़ी प्रखंड में सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अंतर्गत लाभार्थियों के आधार-सत्यापित बैंक खाते में नकदी का हस्तांतरण 2017 के अक्तूबर माह से जारी है. ऐसा प्रायोगिक तौर(पायलट बेसिस) पर किया जा रहा है. बहरहाल, इस प्रखंड के 13 गांवों के 244 घरों के सर्वेक्षण पर आधारित एक अध्ययन का निष्कर्ष है कि योजना के लाभार्थियों को बैंक खाते की रकम हासिल करने में बहुत सी कठिनाइयों का सामना कर पड़ रहा है.


मिसाल के लिए सर्वेक्षण में शामिल 95 फीसद लाभार्थियों का कहना है कि डीबीटी की रकम किस बैंक खाते में जमा की जायेगी, इसके बारे में उन्हें अधिकारियों ने कोई सूचना नहीं दी. नतीजतन, ज्यादातर लाभार्थियों को बहुत भाग-दौड़ करने के बाद नकदी हस्तांतरण के अपने बैंक खाते का पता चला और इस कारण उन्हें राशन दुकान से अनाज लेने में मुश्किल आयी. सर्वेक्षण से पता चलता है कि लाभार्थियों के घर से बैंक की दूरी औसतन 4.5 कि.मी. है.
 

इस साल(2018) के फरवरी में जिला आपूर्ति अधिकारी तथा प्रखंड आपूर्ति अधिकारी के हाथों जारी एक नोटिस में साफ-साफ चेतावनी दी गई है कि अगर लाभार्थी अपने आधार-सत्यापित बैंक खाते में हस्तांतरित की गई नकदी का इस्तेमाल राशन की खरीद में नहीं करता है तो अनुदान रोक दिया जायेगा. नोटिस में आगे यह भी कहा गया है लाभार्थी को बैंक खाते में हस्तांतरित रकम से नियमित रुप से सरकारी राशन-दुकान से राशन की खरीद करनी होगी, ऐसा नहीं करने पर रकम उससे वापस महसूल की जायेगी.

भोजन का अधिकार अभियान की एक विज्ञप्ति के मुताबिक सस्ता अनाज(चावल) देने की जगह लाभार्थियों के बैंक खाते में नकदी का हस्तांतरण किया जा रहा है ताकि वे 32 रुपये प्रति किलो के बाजार-दर से सरकारी राशन दुकान से अनाज(चावल) खरीदें. गौरतलब है कि डीबीटी योजना के अमल में आने से पहले नगड़ी प्रखंड के पीडीएस लाभार्थियों को सरकारी राशन दुकान से 1 रुपये प्रतिकिलो की दर से राशन मिलता था. बीते 26 फरवरी को लाभार्थियों ने झारखंड सरकार की नकदी हस्तांतरण की योजना के खिलाफ कई जगहों पर प्रदर्शन किया और रैली निकाली.

 

नगड़ी प्रखंड में हुए सर्वेक्षण के मुख्य निष्कर्ष इस प्रकार हैं:

 

• सर्वेक्षण में नमूने के तौर पर शामिल परिवारों के पास औसतन 3.4 बैंक खाते हैं. लेकिन ज्यादातर लोगों को नहीं बताया गया कि उनके किस बैंक खाते में नकदी का हस्तांतरण किया जायेगा. इस कारण कई परिवारों को नकदी हस्तांतरण वाले खाते का पता करने के लिए बहुत भाग-दौड़ करनी पड़ी.

 

• सर्वेक्षण में शामिल ज्यादातर(70 फीसद) उत्तरदाताओं ने कहा कि डीबीटी का पैसा बैंक खाते में आया है या नहीं इसकी जानकारी के लिए सिवाय बैंक जाने के उनके पास और कोई तरीका नहीं है. लाभार्थियों के घर से बैंक की दूरी औसतन 4.5 कि.मी. है.

 

• खाते में आयी रकम की जानकारी के लिए बैंक जाने के अतिरिक्त बहुत से लाभार्थियों को स्थानीय प्रज्ञा केंद्र जाना होता है जहां उन्हें नकदी दी जाती है. इसके बाद लाभार्थी राशन-दुकान जाते हैं. लाभार्थियों के घर से प्रज्ञाकेंद्र की दूरी औसतन 4.3 किमी. है.

 

• साल 2017 के अक्तूबर महीने से लाभार्थियों को डीबीटी के चार किश्त मिलने जाने चाहिए लेकिन अभी तक लाभार्थियों को औसतन 2.1 किश्तें मिली हैं.

 

• साल 2017 के अक्तूबर माह से लाभार्थियों को अबतक राशन-दुकान से 4 दफे मासिक राशन मिलना चाहिए लेकिन लाभार्थी राशन-दुकान से औसतन 2.5 दफे ही राशन उठा पाये हैं.

 

• सर्वेक्षण के तुरंत पहले लाभार्थियों ने जब राशन-दुकान से अपने हिस्से का अनाज उठाया था तो उन्हें बैंक, प्रज्ञा केंद्र तथा राशन-दुकान जाने तथा वहां कतार में लगने में औसतन 12 घंटे खर्च करने पड़े थे. तकरीबन 28 फीसद उत्तरदाताओं ने कहा कि उन्हें अनाज उठाने में कम से कम 15 घंटे खर्च करने पड़े. यह अवधि लगभग दो दिन के काम के बराबर है.

 

• ज्यादातर(97प्रतिशत) उत्तरदाता चाहते हैं कि डीबीटी प्रणाली वापस ले ली जाय और पुराना तरीका अपनाते हुए 1 रुपये प्रतिकिलो के हिसाब से राशन दुकान से लाभार्थियों को राशन(चावल) दिया जाय.