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भारत की खेतिहर आबादी में सबसे तेज गति से इजाफा- नई रिपोर्ट

बीते तीन दशक में भारत की खेतिहर आबादी दुनिया के दूसरे देशों के मुकाबले सबसे तेज गति से बढ़ी है। वर्ल्डवाच इंस्टीट्यूट के एक नये अध्ययन के अनुसार साल 1980 से 2011 के बीच भारत में खेतिहर आबादी में 50 फीसदी और चीन में 33 फीसदी की बढोतरी हुई है जबकि अमेरिका की खेतिहर आबादी में इसी अवधि में 37 फीसदी की कमी आई है। (कृपया देखें नीचे दी गई लिंक-1 )


यूरोप में खेती पर आधारित आबादी की तदाद में 66 फीसदी की कमी आई है जबकि उत्तरी अमेरिका में 45 फीसदी की। खेती पर आधारित आबादी की संख्या बीते तीन दशकों में दक्षिणी अमेरिका में 35 फीसदी घटी है तो कैरेबियाई देशों में 13 फीसदी। 


खेती पर आधारित वैश्विक आबादी की घट-बढ़ के रुझानों का जिक्र करते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि बीते तीन दशकों में दुनिया की कुल आबादी में खेती पर आधारित आबादी का प्रतिशत घटा है परंतु तुलनात्मक रुप से खेतिहर आबादी की कुल संख्या में बढ़ोतरी हुई है और इस बढ़ोतरी में सबसे ज्यादा योगदान एशियाई तथा अफ्रीकी देशों का है।


साल 1980 में दुनिया में खेती पर आधारित आबादी की तदाद 2 अरब 20 करोड़ थी जो साल 2011 में बढ़कर 2 अरब 60 करोड़ हो गई है। गौरतलब है कि सन् 1980 में विश्व में खेती पर आधारित आबादी की संख्या गैर-खेतिहर आबादी के बराबर थी।


रिपोर्ट के अनुसार साल 1980 से 2011 के बीच अफ्रीका में खेतिहर आबादी 63 फीसदी बढ़ी जबकि गैर-खेतिहर आबादी में 221 फीसदी का इजाफा हुआ। एशिया में खेतिहर आबादी में तीन दशकों के बीच 20 फीसदी का इजाफा हुआ जबकि गैर-खेतिहर आबादी 134 फीसदी बढ़ी।


शहरों की ओर बढ़ते पलायन और खेती-बाड़ी की स्थितियों में आये सुधार को रिपोर्ट में यूरोप और अमेरिका के देशों में खेती पर आश्रित आबादी में आई कमी की प्रमुख वजह बताया गया है। रिपोर्ट के अनुसार बड़े पैमाने पर हुए यंत्रीकरण, फसलों की उन्नत प्रजाति, उर्वरकों और कीटनाशकों के बढ़ते इस्तेमाल तथा राज्यप्रदत्त सब्सिडी की वजह से अमेरिकी और यूरोपीय महादेश में खेती-बाड़ी की स्थिति पहले की तुलना में ज्यादा स्थिर और कृषि-उत्पादों के मूल्य ज्यादा आकर्षक हुए हैं।


वर्ल्डवाच की रिपोर्ट में खेतिहर आबादी में हुई वैश्विक घट-बढ़ के जिन रुझानों का जिक्र किया गया है उसकी पुष्टी भारत के संदर्भ में हाल ही में प्रकाशित एसोचैम की एक रिपोर्ट से भी होती है स्ट्रक्चर शिफ्ट इन रुरल एम्पलॉयमेंट नामक एसोचैम की रिपोर्ट में कहा गया है कि खेती और खेती पर आधारित गतिविधियों पर आश्रित श्रमशक्ति का आकार भारत में पिछले एक दशक में 11 प्रतिशत कम हुआ है जिससे संकेत मिलते हैं कि जीविका के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में एक बड़ी तादाद अर्थव्यवस्था के द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्र का रुख कर रही है।


एसोचैम की रिपोर्ट के अनुसार साल 1999-2000 में खेती-बाड़ी और इससे जुड़ी गतिविधियों पर जीविका के लिए आश्रित लोगों की संख्या 60 प्रतिशत(कुल 26 करोड़ 10 लाख) थी जो साल 2011-12 में घटकर में 49 प्रतिशत(23 करोड़ 10 लाख) हो गई। नवीनतम जनगणना के अनुसार 2001 में देश में कुल आबादी में किसान 31.7 फीसदी थे, 2011 में घटकर वे 24.6 फीसदी रह गए। देश में २००१ से २०११ के बीच किसानों की संख्या में 90 लाख की कमी आई है। (देखें लिंक संख्या-2 और 3)


बहरहाल, यूरोप और अमेरिका में खेती-बाड़ी की बेहतर दशा का जो बखान वर्ल्डवाच में किया गया है, वह सिक्के का एक पहलू है। तस्वीर का दूसरा पक्ष यह भी है कि संयुक्त राज्य अमेरिका में उपज और पशुधन का मूल्य बीते पाँच सालों में बढ़ा है लेकिन खेतों की संख्या घटी है, साथ ही खेती करने वाले लोगों की उम्र लगातार बढ़ रही है यानि खेती-बाड़ी में नौजवान आबादी शामिल नहीं हो रही। अमेरिकी सरकार द्वारा हाल ही में जारी खेती-बाड़ी से संबंधित जनगणना के अनुसार साल 2012 में अमेरिकी में मात्र 20 लाख खेत(फार्म) रह गये हैं और 2007 की तुलना में खेतों की संख्या में 4 प्रतिशत की कमी आई है।(देखें लिंक संख्या- 4 और 5)

http://www.worldwatch.org/asia-and-africa-home-95-percent-
global-agricultural-population-0


http://www.financialexpress.com/news/11-pc-dip-in-workforc
e-engaged-in-agriculture-sector-assocham/1220802


http://www.shukrawar.net/details.php?id=1731

http://www.agcensus.usda.gov/Newsroom/2014/02_20_2014.php

http://nation.time.com/2014/02/20/number-of-u-s-farms-decl
ines-farmers-getting-older/