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Resource centre on India's rural distress
 
 

विकसित राज्यों में घट रही हैं बेटियां-- नई रिपोर्ट

एक नई रिपोर्ट के मुताबिक देश में बाल लिंग-अनुपात बीते एक दशक में घटा है। साल 2001 में देश में बाल लिंग -अनुपात 927 था जो 2011 में घटकर 918 हो गया। मिसिंग गर्ल्स: मैपिंग द एडवर्स चाइल्ड सेक्स रेशियो इन इंडिया नामक इस रिपोर्ट के अनुसार देश के कुल 640 जिलों में से 429 जिलों में बाल लिंग अनुपात में कमी आई है। (देखें नीचे दी गई लिंक).

 

रिपोर्ट के मुताबिक कुल 26 जिलों में बाल लिंग-अनुपात में 50 अंकों से भी ज्यादा की गिरावट आई है जबकि 52 जिले ऐसे हैं जहां लिंग-अनुपात में गिरावट 30 से 49 अंकों की है।


रजिस्ट्रार जेनरल एंड सेन्सस कमीशनर द्वारा जारी इस रिपोर्ट के तथ्यों के अनुसार कुल 35 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से 13 में बाल लिंग-अनुपात राष्ट्रीय औसत( 1000 लड़कों पर 918 लड़कियां) से कम है। बाल लिंग-अनुपात अरुणाचल में अधिकतम(972) तथा हरियाणा में न्यूनतम(834) पाया गया। जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली, चंडीगढ़, राजस्थान, उत्तराखंड, गुजरात तथा महाराष्ट्र में प्रति हजार लड़कों पर लड़कियों की संख्या 900 से कम है। (आरेख के लिए यहां क्लिक करें).


जनगणना के नवीनतम आंकड़े इस तथ्य की पुष्टी करते हैं कि आर्थिक समृद्धि को लैंगिक समानता के धरातल पर परिवर्तित करने के लिए विशेष प्रयासों की जरुरत हैं। हरियाणा (879) और पंजाब (895) जैसे कुछ समृद्ध राज्यों में बाल-लिंगानुपात का घटता अनुपात इस जरुरत का संकेत करता है।
बाल-लिंग अनुपात के मामले में शीर्ष के पाँच राज्य हैं : केरल (1,084), तमिलनाडु (996), अरुणाचल प्रदेश (993), छत्तीसगढ़ (991) और मेघालय (989)। इनमें से कुछ राज्य मानव-विकास सूचकांक तथा महिला साक्षरता के लिहाज से भी अन्य राज्यों से कहीं बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं।


गौरतलब है कि 25 प्रतिशत से ज्यादा जनजातीय आबादी वाले आदिवासी जिलों में बाल लिंग-अनुपात राष्ट्रीय औसत से बेहतर है लेकिन साल 2001 के मुकाबले 2011 में इस स्थिति में भारी बदलाव है। साल 2001 में 120 जनजातीय जिलों में बाल लिंग-अनुपात 950 या इससे ज्यादा था जबकि साल 2011 में ऐसे जिलों की संख्या घटकर 90 रह गई है।.


सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय की एक अन्य रिपोर्ट, विमेन एंड मेन इन इंडिया(2014) में बाल-लिंग अनुपात(0-6 आयु-वर्ग) के लिहाज से सबसे नीचे के राज्य हैं: हरियाणा (834), पंजाब (846), जम्मू और कश्मीर (862), राजस्थान (888), उत्तराखंड (890) और गुजरात (890)। इस रिपोर्ट में बाल-लिंगानुपात(0-6 आयु वर्ग) के लिहाज से शीर्ष के पाँच राज्य हैं: अरुणाचल प्रदेश (972), मेघालय (970), मिजोरम (970), छत्तीसगढ़ (969)तथा केरल।


बाल-लिंगानुपात का उपयोग समाज विज्ञानी किसी समाज में व्याप्त लैंगिक-भेदभाव के संकेतक के रुप में करते हैं। महिलाओं को आयु-प्रत्याशा तथा उत्तरजीविता के लिहाज से पुरुषों की अपेक्षा मजबूत माना जाता है। समाज विज्ञानियों के अनुसार लैंगिक-भेदभाव की समस्या की वजह से पितृ-सत्ताक समाज में अजन्मे कन्या शिशु की आयु-प्रत्याशा कम होती है। विशेषज्ञ 0-6 आयु-वर्ग के लिंगानुपात को विशेष रुप से तरजीह देते हैं ताकि कन्या भ्रूण हत्या जैसी समस्या के कारण पैदा होने वाले लैंगिक भेदभाव की परख की जा सके। कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के उद्देश्य से बनाये गये पीसीपीएनडीटी एक्ट(1994) के लचर क्रियान्वयन के कारण देश के कई हिस्सों में कन्या भ्रूण हत्या की समस्या से निपटने में मुश्किलें आ रही हैं। द लॉ एंड सन प्रीफेरेंस इन इंडिया नामक एक रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि सरकारी नीतियों में दो बच्चों का मानक अपनाये जाने के कारण ज्यादातर लोग परिवार का आकार छोटा रखने के लिए चाहते हैं कि वे बेटे को जन्म दे और यह भी कन्या भ्रूण-हत्या को रोकने के उद्देश्य से बनाये गये कानून के दुरुपयोग के पीछे एक प्रच्छन्न वजह का काम करता है।

इस कथा के विस्तार के लिए देखें--

 

Mapping the Adverse Child Sex Ratio in India Census 2011 (Please click here to access)

 

Women and Men in India 2014, 16th Edition (Please click here to access)

 

Chapter 1: 'Population' in Women and Men in India 2014 (Please click here to access)

 

"The Law and Son Preference in India: A Reality Check" by Advocate Kirti Singh, United Nations, November, 2013 (Please click here to access)

 

Maneka Gandhi Releases ‘The State of the Girl Child' Report "Pathways to Power" (Please click here to access)

 

More girls go ‘missing'; sex ratio declines -Smriti Kak Ramachandran, The Hindu, 30 November, 2014 (Please click here to access)

Image Courtesy: Himanshu Joshi