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वे जो आत्महत्या करते हैं..!

गैर-शादीशुदा लोगों में आत्महत्या की प्रवृति विवाहितों की तुलना में ज्यादा होती है - प्रसिद्ध किताब ‘स्यूसाइड’ में एमिल दुर्खाईम का एक निष्कर्ष यह भी था। आत्महत्या का आधार सामाजिक स्थितियों में देखने वाले दुर्खाइम के इस कथन से उनके हमवतन अल्बेयर कामू शायद ही सहमत हों। कामू आत्महत्या को एक “अबूझ दार्शनिक पहेली ” मानते थे।

लेकिन बात नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के एक्सीडेंटल डेथ्स एंड स्यूसाइड इन इंडिया नामक रिपोर्ट के तथ्यों की रिपोर्टिंग की हो तो अख़बार दुर्खाइम और कामू दोनों को एक साथ गलत सिद्ध करते हैं। बीते कई सालों की तरह इस बार भी एनसीआरबी की एक्सीडेंटल डेथ्स एंड स्यूसाइड इन इंडिया(2013) रिपोर्ट से जुड़ी खबरों का शीर्षक है – ‘ओह! कुंवारों के मुकाबले शादीशुदा लोग ज्यादा करते हैं ये काम ’ यानी आत्महत्या !
 
लेकिन रिपोर्ट किसी एक साल में देश में हुई आत्महत्याओं की संख्या बताते हुए जो तथ्य पेश करती है, उससे एक अलग तस्वीर भी उभर सकती है, ऐसी तस्वीर जो बता सके कि आज के भारत में किन लोगों के लिए गरिमा-पूर्वक जीवन-निर्वाह करना सबसे ज्यादा कठिन साबित हो रहा है। ऐसे लोगों में एक है ‘हाऊसवाइफ’ यानी वह महिला जो काम तो दिन-रात करती है लेकिन जिसके काम की ना तो अर्थव्यवस्था के भीतर गणना होती है, ना ही कोई भुगतान।
 
इस माह आई एनसीआरबी की रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2013 में भारत में कुल एक लाख से ज्यादा(1,34,799) लोगों ने आत्महत्या के चलते जान गंवायी। इनमें महिलाओं की संख्या 44,256 थी और आत्महत्या की राह अपनाने वाली महिलाओं की इस संख्या में कुल 22,742  यानी 51.4% महिलाएं हाऊसवाइफ थीं। आत्महत्या करने वाले कुल लोगों की संख्या का यह 16.9 प्रतिशत है।

यह आंकड़ा देशस्तर का है। राज्य-स्तर पर भिन्नता बहुत ही ज्यादा है। मिसाल के लिए मध्यप्रदेश में आत्महत्या करने वाले कुल लोगों में 25.1% तादाद महिलाओं की है, गुजरात में 24.2% है तो उत्तरप्रदेश में 22.1%। इस आंकड़े के साथ एक बात यह जोड़ लें कि आत्महत्या करने वाली कुल महिलाओं में सर्वाधिक संख्या(97.1%)  वैसी आत्महत्याओं का है जिनके जड़ में रिपोर्ट के अनुसार ‘दहेज संबंधी विवाद’ हैं।

रिपोर्ट के तथ्य बताते हैं कि सामाजिक सुरक्षा से वंचित आबादी के बारे में आत्महत्या की आशंका सबसे ज्यादा है। इसमें सबसे पहला नाम आता है वैसे लोगों का जो या तो निरक्षर हैं या फिर मुश्किल से माध्यमिक स्तर की शिक्षा हासिल कर पाये हैं और इस कारण जिनकी दशा जीविका के मामले में खस्ताहाल है। रिपोर्ट के अनुसार आत्महत्या करनेवाले कुल लोगों में मात्र 3.3% लोग स्नातक स्तर की शिक्षा वाले थे और मात्र 0.5% लोग एमए स्तर की शिक्षा प्राप्त थे। जबकि जबकि आत्महत्या करने वाले कुल लोगों में निरक्षर, प्राथमिक या फिर माध्यमिक स्तर तक की शिक्षा प्राप्त लोगों की कुल संख्या तकरीबन 65 प्रतिशत है।
इसी के अनुकूल, आत्महत्या करने वाले कुल लोगों सरकारी श्रेणी की नौकरी करने वाले लोगों की संख्या 1.3% है, पब्लिक सेक्टर यानी सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरी करने वाले लोगों की संख्या 1.9%, जबकि प्राइवेट श्रेणी की नौकरी करने वाले लोगों की संख्या 9.2% जबकि छात्रों की संख्या 6.2% और बेरोजगारों की संख्या 7.2% है।

इस मामले में छात्रों और बेरोजगारों से भी ज्यादा दुभार्ग्य के मारे हैं वैसे लोग जिन्हें जीविका ना तो निजी क्षेत्र में हासिल है ना ही सरकारी क्षेत्र में बल्कि जो रोज की रोटी चलाने के लिए स्वरोजगार में लगे हैं। एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार आत्महत्या करने वाले कुल लोगों में स्वरोजगार में लगे लोगों की संख्या 38.0% है। इस 38.0% की तादाद में 8.7% लोग खेती-बाड़ी यानी किसान श्रेणी के हैं जबकि 5.2% लोग छोटे-मोटे व्यवसायी तथा 2.9% लोग पेशेवर श्रेणी के।


एक्सीडेंटल डेथ्स एंड स्यूसाइड इन इंडिया(2013) नामक रिपोर्ट के कुछ अन्य तथ्य

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साल 2003 में भारत में आत्महत्या करने वाले लोगों की संख्या 1,10,851 थी जो साल 2013 में बढ़कर 1,34,799 हो गई। यह एक दशक के भीतर तकरीबन 21 प्रतिशत का इजाफा है।
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आत्महत्या करने वाले कुल लोगों में सरकारी श्रेणी की नौकरी करने वाले लोगों की संख्या 1.3% है जबकि प्राइवेट श्रेणी की नौकरी करने वाले लोगों की संख्या 9.2%
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आत्महत्या करने वाले कुल लोगों में पब्लिक सेक्टर यानी सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरी करने वाले लोगों की संख्या 1.9% है जबकि छात्रों की संख्या 6.2% और बेरोजगारों की संख्या 7.2%
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आत्महत्या करने वाले कुल लोगों में स्वरोजगार में लगे लोगों की संख्या 38.0% है। इस 38.0% की तादाद में 8.7% लोग खेती-बाड़ी यानी किसान श्रेणी के हैं जबकि 5.2% लोग छोटे-मोटे व्यवसायी तथा 2.9% लोग पेशेवर श्रेणी के।
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मध्यप्रदेश में आत्महत्या करने वाले कुल लोगों में 25.1% तादाद महिलाओं की है, गुजरात में जितने लोगों ने साल 2013 में आत्महत्या की राह अपनायी उसमें महिलाओं की तादाद 24.2% है जबकि उत्तरप्रदेश में 22.1%
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आत्महत्या करने वाले लोगों में सर्वाधिक संख्या (22.1%) प्राथमिक स्तर तक की शिक्षा हासिल करने वाले लोगों की है। माध्यमिक स्तर तक की शिक्षा प्राप्त करने वाले लोगों की संख्या 23.6% तथा निरक्षर लोगों की संख्या 18.5% है। आत्महत्या करनेवाले कुल लोगों में मात्र 3.3% लोग स्नातक स्तर की शिक्षा वाले थे तथा मात्र 0.5% लोग एम ए स्तर की शिक्षा प्राप्त थे।
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आंध्रप्रदेश में आत्महत्या करनेवाले कुल लोगों में निरक्षर लोगों की तादाद 33.1%, दादरा नगर हवेली में 31.0%, राजस्थान में 30.3% तथा अरुणाचल प्रदेश में 28.4% थी। सिक्किम में आत्महत्या करनेवाले 40.2% लोग प्राथमिक स्तर की शिक्षा प्राप्त थे जबकि गुजरात में 37.6% , नगालैंड में 32.4% तथा पश्चिम बंगाल में ऐसे लोगों की तादाद 32.2% थी।  मिजोरम में आत्महत्या करने वाले लोगों में 61.1% लोग माध्यमिक श्रेणी की शिक्षा प्राप्त थे जबकि त्रिपुरा में ऐसे लोगों की तादाद 41.3% तथा अंडमान निकोबार में 38.3% और नगालैंड में 37.8% थी।
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आत्महत्या करने की एक बड़ी वजहपारिवारिक समस्या’(24.0%) रही जबकि दूसरी बड़ी वजह रही बीमारी 19.6% नशे की लत’ (3.4%), ‘प्रेम-संबंध’ (3.3%), ‘दीवालिया होना और आर्थिक-स्थिति में अचानक परिवर्तन’ (2.0%), 'परीक्षा में असफलता’ (1.8%), ‘दहेज संबंधी झगड़े’ (1.7%) और बेरोजगारी’ (1.6%) आत्महत्या की अन्य प्रमुख वजहों में शामिल हैं।
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साल 2013 में आत्महत्या करने वाले लोगों में पुरुष: स्त्री अनुपात 67.2:32.8 का रहा। यह पिछले साल यानी 2012 की तुलना में तनिक ज्यादा (66.2:33.8) है।
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जहां तक कारणों का सवाल है, आत्महत्या करने वाली कुल महिलाओं में सर्वाधिक संख्या दहेज संबंधी विवाद’(97.1%), वाले कारण की श्रेणी में है। इसके बाद ' बांझपन ‘ (64.8%), तथा तलाक (55.6%) जैसे कारण महिलाओं की आत्महत्या के प्रेरक कारणों में अव्वल रहे।
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आत्महत्या करने वाले लोगों में युवा (15-29 ) तथा मध्य आयु-वर्ग (30-44 ) के लोगों की संख्या बहुतायत है। आत्महत्या करने वाले कुल लोगों में 34.4% 15-29 आयु-वर्ग के थे जबकि 33.8% मध्य आयु-वर्ग के।
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आत्महत्या करने वाली कुल महिलाओं में गृहिणी श्रेणी की महिलाओं की संख्या सबसे ज्यादा है (कुल 44,256 में 22,742 यानी 51.4%)। आत्महत्या करने वाले कुल लोगों की संख्या का यह 16.9 प्रतिशत है। (कुल 1,34,799 में 22,742 ).