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सहायता योजनाओं की जानकारी से दूर छोट-मंझोले उद्योग - नई रिपोर्ट

‘मछरी जल बीच मरत पियासी' ! इस उलटबांसी का अर्थ समझना हो तो गरीबी और बेरोजगारी दूर करने के लिहाज से महत्वूर्ण माने जाने वाले सूक्ष्म, छोटे और मंझोले उद्यमों की हालत पर गौर कीजिए!
 

हाल की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि छोटे, मंझोले और सूक्ष्म उद्यमों के विकास-विस्तार और सुधार के लिए सरकार ने 200 से ज्यादा सहायता योजनाएं चला रखी हैं लेकिन सूक्ष्म, छोटे, और मंझोले आकार के उद्यम (एमएसएमई) इनका भरपूर फायदा नहीं उठा पा रहे.

 

इसकी बड़ी वजह है उद्यमियों के बीच योजनाओं के बारे में जानकारी का अभाव.

 

पंजाब, आंध्रप्रदेश, राजस्थान, पश्चिम बंगाल और ओड़िशा में एमएसएमई सेक्टर के 154 उद्यमों के सर्वेक्षण पर आधारित इस रिपोर्ट के अनुसार तकरीबन 45 फीसद उद्यमियों को ही सरकारी सहायता योजनाओं के बारे में सामान्य तौर पर कोई ना कोई जानकारी है जबकि एमएसएमई सेक्टर के 55 फीसद उद्यमियों को किसी भी तरह की सहायता योजना के बारे में जानकारी नहीं है.

 

सर्वेक्षण रिपोर्ट के मुताबिक सरकारी सहायता योजना के बारे में जानकारी रखने वाले उद्यमियों में ज्यादातर को सिर्फ एक योजना के बारे में पता है. मिसाल के लिए सरकारी सहायता योजना से आगाह कुल 69 उद्यमियों में से मात्र 35 ने कहा कि उन्हें एक ना एक योजना के बारे में पता है. कुल 13 उद्यमियों को 2 से 3 सहायता योजनाओं के बारे में जानकारी थी जबकि 8 उद्यमी 4 या इससे ज्यादा सरकारी सहायता योजनाओं से आगाह थे.

 

सर्वेक्षण के नमूने में शामिल केवल 17 उद्यमियों को राज्य सरकारों द्वारा चलायी जा रही सहायता योजनाओं के बारे में पता था जबकि 108 उत्तरदाताओं ने कहा कि वे एमएसएमई की सहायता के लिए चलायी जा रही केंद्र सरकार की योजनाओं के बारे में जानते हैं.

 

फाऊंडेशन फॉर एमएसएमई कलस्टर द्वारा तैयार की गई इस रिपोर्ट में सर्वेक्षण के लिए पंजाब, पश्चिम बंगाल तथा ओड़िशा में प्रत्येक से 36 तथा पंजाब, आंध्रप्रदेश और राजस्थान में हरेक राज्य से 41 एमएसएमई को नमूने के रुप में शामिल किया गया था.

 

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ कारपोरेट अफेयर्स तथा भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक(सिड्बी) सहित कई संस्थाओं के सहयोग से तैयार इस रिपोर्ट के अनुसार एमएसएमई के ज्यादातर उद्यमियों को सरकारी विभागों से सहायता हासिल करने में बहुत ज्यादा कठिनाई पेश आती है.

 

रिपोर्ट के अनुसार डिस्ट्रिक्ट इंडस्ट्रिज सेंटर्स तथा एमएसएमई डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट के पदाधिकारी सरकारी सहायता योजनाओं के बारे में जानकारी के प्रमुख(27.3 फीसद) स्रोत हैं. योजनाओं को बारे में जानकारी मुहैया कराने के मामले में इसके बाद विभिन्न उद्योग संघों(तकरीबन 26 फीसद) तथा समाचार-पत्रो(26 फीसद) का नंबर इसके बाद है. एमएसएमई की सहायता के लिए चलायी जा रही योजनाओं की जानकारी देने में रेडियो और टेलिविजन, सर्वेक्षण के मुताबिक, सबसे पीछे हैं.

 

सर्वेक्षण से यह भी पता चलता है कि सरकारी सहायता योजनाओं के तहत सुविधा हासिल करने की प्रक्रियाएं बहुत जटिल हैं. प्रक्रियागत जटिलता के कारण ज्यादातर उद्यमी सहायता योजना के फायदों से वंचित रहते हैं.

 

मौका मुआयना के आधार पर सर्वेक्षण में कहा गया है कि एमएसएमई की तीन बड़ी जरुरते हैं- समय पर पर्याप्त मात्रा में कर्ज, प्रौद्योगिकी को बेहतर बनाने के लिए सहायता और उत्पाद को बाजार से जोड़ने के लिए संपर्क सूत्र बहाल करना.

 

गौरतलब है कि एमएसएमई श्रमप्रधान होते हैं. सो, इन्हें बेरोजगारी और गरीबी दूर करने के लिहाज से एक महत्वपूर्ण क्षेत्र माना जाता है. हाल की खबरों के मुताबिक देश में बेरोजगारी पिछले पांच सालों के अधिकतम(5फीसदी) पर है और औद्योगिक उत्पादन भी इस साल अप्रैल-अगस्त के बीच पिछले साल की इसी अवधि की तुलना में नीचे आया है.

 

एमएसएमई मंत्रालय की वार्षिक रिपोर्ट(2015-16) के मुताबिक सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम आकार के उद्यमों में रोजगार 2006-07 के 805.23 लाख से बढ़कर 2014-15 में 1171.32 लाख हो गया है. विनिर्माण के क्षेत्र में सक्रिय एमएसएमई इकाइयों का सकल घरेलू उत्पाद में योगदान साल 2012-13 में 7.03 फीसद था जबकि सेवा क्षेत्र में सक्रिय ऐसी इकाइयों का योगदान जीडीपी में 30.5 फीसद रहा.

 

सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम आकार की इकाइयों के वर्गीकरण के आधार को जानने के लिए कृपया यहां क्लिक करें.