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सूखाग्रस्त राज्यों में कितने ग्रामीण परिवारों को मिला है मनरेगा का रोजगार ?

रोजी रोटी अधिकार अभियान ने मनरेगा से संबंधित सरकारी आकलनों के हवाले से कहा है कि सूखे की मार झेल रहे राज्यों में केवल 7 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों को मनरेगा के अंतर्गत 100 दिन से ज्यादा का रोजगार मिला है.

 

गौरतलब है कि सूखाग्रस्त राज्यों को राहत देने के मुद्दे पर दायर स्वराज अभियान की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पूछा है कि क्या सरकार मनरेगा के तहत 100 दिन प्रतिवर्ष रोज़गार उपलब्ध करवाने के अपनी कानूनी दायित्व के प्रति गंभीर है?

 

सरकार ने पिछले साल सितंबर महीने में वादा किया था कि सूखा-प्रभावित राज्यों में मनरेगा के अंतर्गत काम मांगने वालों को 150 दिन का रोजगार दिया जायेगा.

 

मामले में केंद्र सरकार के जवाब का अभी इंतजार है लेकिन रोजी रोटी अधिकार अभियान द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति से हालत का अनुमान लगाया जा सकता है. अभियान के अनुसार पिछले वित्तवर्ष में साल 2015-16 में 58 प्रतिशत मजदूरी का भुगतान समय पर नहीं हुआ क्योंकि केंद्र सरकार मनरेगा के लिए धन देने में कोताही बरत रही है.

 

राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के अंतर्गत 24 राज्यों को 12,483 करोड़ रुपये का भुगतान बाकी रहते पिछले वित्तवर्ष का समापन हो गया है. बकाया रकम इन राज्यों में साल 2015-16 में कार्यक्रम पर खर्च की गई कुल रकम का एक चौथाई से ज्यादा है.


धन की कमी के कारण इन 24 राज्यों में, जिसमें सूखाग्रस्त 9 राज्य भी शामिल हैं, लाखों मजदूर भुगतान में होने वाली देरी के कारण भारी कठिन झेल रहे हैं.

 

अभियान ने आरोप लगाया है कि सरकार रोजगार गारंटी कार्यक्रम को धन के लिए तरसा रही है और अपने वादे पूरे करने की जगह झूठे दावे पेश कर रही है. वित्त मंत्रालय ने वादा किया था कि साल 2015-16 में अगर नरेगा के अंतर्गत खर्चा 34,699 करोड़ के आबंटित बजट से ज्यादा होता है तो 5000 करोड़ रुपये अतिरिक्त दिए जायेंगे लेकिन 2000 करोड़ ही दिए गए हैं.

 

गौरतलब है कि नये बजट (2016-17) में मनरेगा के लिए 38500 करोड़ रुपये का आबंटन करते हुए वित्तमंत्री ने कहा था कि अगर यह राशि खर्च हो गई तो फिर यह एक वित्तवर्ष में मनरेगा पर खर्च की हुई सबसे ज्यादा राशि होगी लेकिन रोजी रोटी अधिकार अभियान ने मनरेगा पर बीते सालों में खर्च की गई रकम के आकलन के आधार पर कहा है कि कार्यक्रम पर 2010-11 में 39,377 करोड़ रुपये की रकम खर्च हुई और 2013-14 में मनरेगा पर 38,552 करोड़ रुपये खर्च हुए.

 

अभियान ने ध्यान दिलाया है कि लगातार दो सालों 2015-16 और 2014-15 में केंद्र सरकार ने नरेगा के मद में दिए जाने वाले धन के आबंटन में कोताही बरती है. 2014-15 के अंत में मनरेगा के मद मे 9 राज्यों का 1203 करोड़ रुपया केंद्र सरकार पर बकाया था. इन राज्यों को 2015-16 के लिए आबंटित मनरेगा की राशि मिलने के बाद ही बकाया राशि दी गई.

 

अभियान को आशंका है कि नये वित्तवर्ष में भी कुछ ऐसा ही होने वाला है क्योंकि 2016-17 के लिए आबंटित 38500 करोड़ रुपये की राशि में से 30 प्रतिशत हिस्सा पिछले वित्तवर्ष की बकाया राशि के भुगतान में खर्च होगा. गौरतलब है कि मनरेगा के लिए चालू वित्तवर्ष के आबंटन के अतिरिक्त और कोई राशि देने की बात वित्तमंत्रालय ने नहीं कही है.

(पोस्ट में इस्तेमाल की गई तस्वीर साभार- डाऊन टू अर्थ)