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Resource centre on India's rural distress
 
 

इस सूखे में संभावना

इस साल के सूखे ने एक बार फिर ध्यान दिलाया है कि देश के जिन इलाकों में सिंचाई के साधनों के टोटे हैं वहां चावल और गेंहूं जैसे पेट भर पानी पीकर लहलहानी वाली फसलों के बजाय मोटहन मसलन-ज्वार-बाजार,मरुआ-मसुरिया जैसी फसलों को उपजाने की जरुरत है क्योंकि इन फसलों को पानी की कम जरुरत होती है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार देश की कुल ७० फीसदी कृषि भूमि सिंचाई के लिए सिर्फ वर्षाजल पर निर्भर है और यह भूमि देश के उन इलाकों में है जहां पानी की कमी है। इस तथ्य दिन के उजाले की तरह साफ है कि देश में मोटहन उपजाने का एक भरा पूरा संसार है और यह फसल सूखे के वक्त किसान के लिए संकटमोचन साबित हो सकती है, खासकर उन इलाकों में जहां पानी की कमी है या फिर जो इलाके थोड़े कम उपजाऊ हैं। 

बहरहाल, सूखे के हालात कुछ और इशारा करते हैं मगर हमारी नीति ठीक उसके उल्टे चल रही है। मिसाल के लिए सरकार ने जिस भोजन के अधिकार बिल का प्रस्ताव किया है उसके अन्तर्गत गरीब परिवारों को मोटहन के बजाय चावल और गेंहूं देने की बात कही जा रही है और इसके चलते किसान संकट के बावजूद चावल-गेहूं उपजाने पर जोर दे रहे हैं। मिड डे मील योजना में भी मोटहन को शामिल नहीं किया गया है जबकि यह सर्वविदित तथ्य है कि मोटहन पोषक तत्वों से भरपूर होता है। सरकार ने गरमा धान की फसल की रोपाई पर भी अंकुश लगाने के कोई उपाय नहीं किये जबकि गरमा धान की फसल भूजल का भंडार तेजी से सोख रही है।

संयुक्त राष्ट्र संघ के एन्वायरन्मेंट प्रोग्राम के मुताबिक देश में कम वर्षा वाले ९१ जिले शुष्क भूमि-क्षेत्र के अन्तर्गत आते हैं। ये ही जिले सूखे की सर्वाधिक आशंका वाले जिले हैं। इन जिलों में सिंचाई योजनाओं के चरण नहीं पड़े हैं और इन्हें फसलों की सिंचाई के लिए सिर्फ आसमान की मेहरबानी पर रहना पड़ता है। सिंचाई के लिए वर्षाजल पर आधारित इलाकों का देश की कृषिनीति के लिए क्या महत्व है इसका अंदाजा इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि भारत में ४२ फीसदी खाद्यान्न, ८१ फीसदी दलहन और ९० फीसदी तेलहन खालिस ऐसे ही इलाकों से हासिल होता है और ध्यान रहे कि देश के ८४ फीसदी गरीब वर्षाजल सिंचित खेतिहर इलाकों में आबाद हैं।

नीचे कुछ नाम सुझाये जा रहे हैं। इनमें पहले दो को संटर फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट एग्रीकल्चर( www.csa-India.org) ने उपलब्ध कराया है। इन दो शीर्षकों से उपलब्ध सामग्री से स्थिति की व्यापकता का अनुमान किया जा सकता है। तीसरी लिंक योजना आयोग की  एक समिति की है जिसमें भारत में खेती की दुर्दशा के कारणों की पड़ताल की गई है। अंतिम लिंक में आपको सिंचाई के लिए वर्षाजल पर निर्भर खेती की मीमांसा करता एक अंतर्राष्ट्रीय प्रशंसा प्राप्त आलेख मिलेगा। (अगर लिंक सीधे नहीं खुल रहा तो कृपया कॉपी-पेस्ट का तरीक अपनायें)।

1.  Dryland agri-concise  
2.  A land well tended finally yields   
3. 
http://www.rainfedfarming.org/documents/Policy/Policy1.pdf
4. http://www.rainfedfarming.org/documents/Information/JohnKe
rr_Paper.pdf