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कुपोषण-मछरी जल बीच मरत पियासी


कुपोषण के बारे में अक्सर मान लिया जाता है कि यह तो गरीब राज्यों का लक्षण है और अपेक्षाकृत समृद्ध राज्य कुपोषण को मिटाने की राह पर हैं। लेकिन सच्चाई इसके उलट है। कुपोषण की शिकार महिलाओं और औसत से कम वजन के बच्चों की एक बड़ी तादाद धनी माने जाने वाले राज्यों में मौजूद है और ध्यान रहे कि इन दोनों को मानव-विकास के निर्देशांक में बड़ा महत्वपूर्ण माना जाता है।
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हरियाणा और गुजरात जैसे राज्यों में प्रति व्यक्ति आय ज्यादा है लेकिन ये राज्य इस समृद्धि को महिलाओं और बच्चों की जिन्दगी में साकार करने में असफल रहे हैं। मिसाल के लिए औसत से कम वजन के बच्चों की सर्वाधिक तादाद के मामले में गुजरात देश के राज्यों के बीच चौथे पादान पर है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-३ के आंकड़ों के अनुसार गुजरात में ३ साल तक के आयुवर्ग में औसत से कम वजन के बच्चों की तादाद ४७.४ फीसदी है। औसत वजन मगर अपेक्षाकृत कम बढ़वार वाले बच्चों की तादाद भी गुजरात में ज्यादा है। ०-३ साल के आयु वर्ग के ऐसे बच्चों की संख्या जिन राज्यों में अधिक है उनमें गुजरात तीसरे पादान पर है। इस मामले में हरियाणा में भी सूरते हाल(३५.९ फीसदी) निराशाजनक है। इस मामले में इन धनी राज्यों के अपेक्षा  केरल(२१.१ फीसदी), मणिपुर(२४.७ फीसदी) और त्रिपुरा(३० फीसदी) जैसे राज्यों का रिकार्ड कहीं बेहतर है। शायद इसका एक कारण यह भी है कि केरल और मणिपुर जैसे राज्यों में महिलाएं अपेक्षाकृत ज्यादा संख्या में साक्षर हैं। 
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के नवीनतम(२००५-०६) आंकड़े बताते हैं कि गुजरात में ३ साल से कम उम्र के ८० फीसदी बच्चे एनीमिया के शिकार हैं। पंजाब और राजस्थान में भी इस उम्र के बच्चे भारी तादाद में एनीमिया के शिकार हैं। यही बात एनीमिया की शिकार महिलाओं की संख्या के बारे में भी राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आंकड़े बताते हैं। प्रति व्यक्ति आय के पैमाने पर समृद्ध माने जाने वाले राज्य हरियाणा, गुजरात और महाराष्ट्र में एनीमिया से जूझ रही महिलाओं की तादाद क्रमश ५६, ५५ और ४८ फीसदी है जबकि इस मामले में राष्ट्रीय औसत ५५.३ फीसदी का है।

गुजरात के ग्रामीण अंचलों में गरीबी की दर १३.८ फीसदी और हरियाणा के ग्रामीण अंचलों में ९.२ फीसदी है जबकि ग्रामीण गरीबी का राष्ट्रीय औसत २१.८ फीसदी है। जाहिर है कि गुजरात और हरियाणा के गांवों में गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों की संख्या प्रतिशत पैमाने पर राष्ट्रीय औसत से बेहतर है। एक पेंच यह भी है कि समृद्ध माने जाने वाले इन राज्यों के ग्रामीण अंचलों में कुपोषित महिलाओं और बच्चों की तादाद भी राष्ट्रीय औसत से कम है। ये आंकड़े एक तरह से हमारे नीति निर्माताओं की सोच पर टिपण्णी हैं जो यह मानकर चलते हैं कि अगर किसी राज्य की सकल घरेलू उत्पाद दर ज्यादा हो और गरीबों का अनुपात भी कम हो इससे आबादी की सेहत और पोषण को सूचित करने वाले निर्देशांक बेहतर होंगे।

समृद्ध माने जाने वाले राज्यों में कुपोषण की चिन्ताजनक दशा के क्या कारण हो सकते हैं। कुछ संभावित उत्तर हैं- सालों साल स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढांचे की उपेक्षा, घरों में लैंगिक-पूर्वाग्रह के चलते मादा भ्रूण की हत्या और स्त्री मात्र की सामाजिक उपेक्षा। यह स्थिति नीतियों के क्रियान्वयन की असफलता और बढ़ते उपचार खर्च के साथ और गंभीर हुई है।

ग्रामीण भारत में आहार असुरक्षा की स्थिति का आकलन करते हुए साल २००९ की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि गुजरात, महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे धनी राज्यों में आहार असुरक्षा की स्थिति गंभीर है। यह बात तो खैर जगजाहिर ही है कि देश के एक समृद्ध राज्य महाराष्ट्र में किसान आत्महत्या कर रहे हैं।

नीचे राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-३ के आंकड़े और उसपर केंद्रित बहस से संबंधित कुछ लिंक दिए जा रहे हैं।


http://www.reliefweb.int/rw/RWFiles2009.nsf/FilesByRWDocUn
idFilename/MYAI-7PH7LH-full_report.pdf/$File/full_report.p
df

 
http://www.nfhsindia.org/
http://www.indiatogether.org/2007/apr/chi-nutrition.htm
http://rbidocs.rbi.org.in/rdocs/Publications/PDFs/87549.pdf 
http://planningcommission.gov.in/plans/planrel/fiveyr/11th
/11_v2/11v2_ch4.pdf

http://motherchildnutrition.org/india/pdf/nfhs3/mcn-nfhs3-
chapter10-nutrition-and-anaemia.pdf

http://motherchildnutrition.org/india/pdf/mcn-india-countd
own-to-2015.pdf

http://www.csrindia.org/PDF/Female%20Foeticide%20Ranjana%2
0Kumari%20Feb2006.pdf