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चिराग तले अंधेरा....

अधिकारों की हिफाजत में कानून बनाना एक बात है और सच्चाई की जमीन पर उतार पाना एकदम दूसरी बात।देश की राजधानी दिल्ली को ही देखें। एक तरफ तो शिक्षा के बुनियादी अधिकार को साकार करने के लिए कानून अमल में आ गया है दूसरी तऱफ देश की राजधानी दिल्ली में में कामगार तबके की आबादी वाले कॉलोनियों में बच्चे नियमित पढ़ाई लिखाई से वंचित हो रहे हैं।
दिल्ली में रोजमर्रा की बुनियादी सुविधाओं के अभाव से जूझ रही कॉलोनियों की संख्या १६३९ है और दिल्ली सरकार ने खुद इनमें से कुल ४३९ कॉलोनियों में अनुदानित बिजली आपूर्ति रोक रखी है।नतीजतन बहुसंख्यक कामगार तबके की आबादी वाले इन कॉलोनियों में बच्चे नियमित पढ़ाई-लिखाई के लिए भी मोहताज हैं।
जन-संघर्ष वाहिनी, नेशनल एलायंस फॉर पीपल्स मूवमेंट और दिल्ली सोलिरिटी ग्रुप द्वारा संयुक्त रुप से जारी एक संयुक्त प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि नागरिक संगठनों और रेजीडेन्ड वेलफेयर एसोसिएशन द्वारा चलाये जा संघर्ष के बावजूद अभी तक कुल १२०० कॉलोनियों में ही विकास-कार्य शुरू किया जा सका है। जन-संघर्ष वाहिनी और साथी संगठनों ने शेष कॉलोनियों में दैनिक सुविधाएं मुहैया कराने और बस किराये में ३ नवंबर से किए गए इजाफे के विरोध में मुख्यमंत्री आवास तक लांग मार्च आयोजित करने का ऐलान किया है।( कृपया प्रेस नोट की मूल प्रति के लिए देखें हमारा अंग्रेजी संस्करण)
संघर्ष वाहिनी का आरोप है कि बहुसंख्यक ग्रामीण आबादी वाले भारत में आजादी के बाद से विकास कार्यों में गैरबराबरी हुई है और गांवों की कीमत पर शहर बसाये गए हैं। विकास कार्यों की गैरबराबरी के कारण भूमिहीन दलित, आदिवासी, छोटे किसान और गंवई गरीब आजीविका की तलाश में शहरों का रुख करने के लिए बाध्य होते हैं। ज्यादातर को दिल्ली जैसे महानगर में १००-३०० रुपये रोजाना का काम असंगठित क्षेत्र में मिल जाता है लेकिन आजीविका की तलाश में पलायन करके पहुंचे इस तबके के अधिकांश जन या तो झुग्गी-बस्तियों में पनाह लेने के लिए मजबूर होते हैं या फिर भू माफिया और भवन निर्माताओं की सांठगांठ से बनी ऐसी कॉलानियों में रहने को बाध्य होते हैं जिन्हें सरकार ने अनधिकृत कॉलोनी का दर्जा देकर रिहायश की बुनियादी सुविधाओं से वंचित कर रखा है।
प्रेस नोट के अनुसार अकेले दिल्ली में झुग्गी-बस्तियों में ६ लाख लोग रहते हैं और ७.५ पांच लाख लोगों की रिहायश भूमाफिया द्वारा कब्जाए गई जमीन पर बनी ऐसी कॉलोनियों में है जिन्हें सरकार ने अनधिकृत करार देकर रोजमर्रा की सुविधाओं(बिजली,पानी आदि) से वंचित कर रखा है।संघर्षवाहिनी के अनुसार इस आबादी का ९५ फीसदी हिस्सा अपनी रोजाना की आमदनी के लिए असंगठित क्षेत्र पर निर्भर है लेकिन सरकार जानबूझ कर ऐसे हालात पैदा कर रही है कि आवास और आजीविका की समस्या से जूझ रही कामगार तबके की यह विशाल आबादी ना अपने गांव लौट सके और ना ही दिल्ली मे रह सके। सरकार की इसी मंशा का एक नमूना है पिछले ३ नवंबर को बस किराये में किया गया इजाफा।

गौरतलब है कि दुनिया के महानगरों में तेजी से बढ़ती झुग्गी बस्तियों की तादाद पर केंद्रित यूएन की एक हालिया रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि शहरी आबादी के तेज विस्तार से दुनिया के कई बड़े शहरों में सामाजिक तनाव की स्थितियां पैदा हो रही हैं। संयुक्त राष्ट्रसंघ द्वारा जारी मानव बसाहट से संबंधित एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अनियोजित मानव बस्तियों (यानी झुग्गी-झोपड़ी)  के अस्त-व्यस्त हालात शहरों में व्यापक स्तर पर हिंसा और अराजकता की स्थिति को जन्म दे सकते हैं। प्लानिंग सस्टेनेबल सिटीज-ग्लोबल रिपोर्ट ऑन ह्यूमन सेटेलमेंट-2009 नामक इस रिपोर्ट में कहा गया है कि रोजाना विश्व भर के शहरों में 2 लाख की तादाद में नए लोग बसने के लिए दाखिल होते हैं और ऐसे में झुग्गी-झोपड़ियों की बढ़ती तादाद को नियंत्रित करना आवश्यक हो गया है। संयुक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्ट के अनुसार झुग्गी-बस्तियों की बढ़वार की समस्य़ा सबसे ज्यादा एशिया में है और विश्व के कुछ सर्वाधिक अनियोजित शहर भारत में हैं।(देखें नीचे दी गई लिंक संख्या-१ और २)
 
१.
http://www.unhabitat.org/downloads/docs/GRHS_2009Brief.pdf
२.
http://www.im4change.org/articles.php?articleId=377