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तेजी से पिघल रहे हैं हिमालयी ग्लेशियर

हिमालय के पिघलते ग्लेशियर को लेकर अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरणवादियों और भारत सरकार के बीच लगातार विवाद बना रहता है।भारत सरकार मानती है कि पर्यावरणवादी हिमालयी ग्लेशियर के पिघलने की बात को बढ़ा-चढ़ा कर बताते हैं।हाल ही में आई एक नई रिपोर्ट से भारत सरकार और पर्यावरणवादियों की बहस पर विराम लगने की संभावना है क्योंकि इस रिपोर्ट में हिमालयी ग्लेशियरों के पिघलने की दर की माप-जोख की गई है।(देखें नीचे दी गई लिंक)

 

हिमालय के ग्लेशियर वैश्विक औसत से कहीं ज्यादा तेज गति से पिघल रहे हैं।इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माऊंटेन डेवलपमेंट (आईसीआईएमओडी), यूनाइडेट नेशन्स एन्वायर्नमेंट प्रोग्राम और सेंटर फॉर इंटरनेशनल क्लाइमेट एंड एन्वायर्नमेंटल रिसर्च  के वैज्ञानिक विश्लेषण वाली रिपोर्ट में कहा गया है कि उच्चतर हिमालयी क्षेत्रों में ग्लेशियरों के पिघलने की दर कहीं ज्यादा है। अध्ययन में कहा गया है कि हिमालयी विस्तार में तापमान एक दशक में औसतन 0.6 डिग्री सेंटीग्रेड की दर से बढ़ रहा है जो पिछली सदी के वैश्विक तापमान वृद्धि के औसत (0.74 डिग्री सेंटीग्रेड) से ज्यादा है।

 

अध्ययन के मुताबिक हिमालय के हिन्दू-कुश इलाके में स्थित ग्लेशियर कहीं ज्यादा तेजी से पिघल रहे हैं और आशंका है कि इस सदी के अंत तक इनका 40 से 80 फीसदी हिस्सा समाप्त हो जाएगा। अध्ययन में यह भी कहा गया है कि कराकोरम इलाके के ग्लेशयर इस मामले में कहीं ज्यादा स्थिर हैं।

 

पिछले 11 दिसंबर को कोपेनहेगन में जारी किए गए इस रिपोर्ट में कहा गया है कि हिन्दू-कुश हिमालयी क्षेत्र के रहने वाले लोग और इस इलाके में बहने वाली नदियों के बेसिन को जलवायु के बदलाव की स्थितियों के मद्देनजर बरसों पुरानी रिवायत में बदलाव लाना पड़ रहा है।

 

 हिन्दू-कुश क्षेत्र के बारे में रिपोर्ट के कुछ महत्वपूर्ण तथ्य-

 

हिमालयी क्षेत्र में ग्लेशियरों के पिघलने की गति पिछली सदी की तुलना में कहीं ज्यादा तेज है और इस क्षेत्र का तापमान एक दशक में औसतन 0.9 डिग्री सेंटीग्रेड के औसत से बढ़ रहा है।

 

 हिमालयी क्षेत्र में ग्लेशियरों के पिघलने की गति के आधार पर अनुमान लगाया गया है कि इस सदी के अंत तक ग्लेशियरों का 40-80 फीसदी हिस्सा समाप्त हो जाएगा। सिर्फ कराकोरम इलाके के ग्लेशियर इस बदलाव से बचे रहेंगे।एशिया में कुल अनाज की ऊपज का 55 फीसदी हिस्सा नदियों के पानी से होने वाली सिंचाई पर निर्भर है। विश्व के लिए यह आंकड़ा 25 फीसदी का है।दूसरे शब्दों में कहें तो कुल तकरीबन ढाई अरब आबादी की भूख नदी-जल सिंचित खेती से मिटती है। ग्लेशियरों के पिघलने का विश्व की खाद्य-सुरक्षा पर दुष्प्रभाव पड़ेगा।

 

तत्काल नजर आने वाले सर्वाधिक गंभीर परिणामों में शामिल हैं मौसम के पुराने चक्र में भारी उलटफेर।कहीं वर्षा घनघोर होगी तो कहीं लोग वर्षा को तरसेगें, कहीं बाढ़ से भारी तबाही आएगी तो कहीं भयंकर सूखे का दुष्काल होगा। इसके संकेत हिमालयी क्षेत्र से बहने वाली नदियों के मार्ग में पड़ने वाले इलाकों में दिखने लगे हैं।

 

हिमालयी हिन्दूकुश क्षेत्र के ग्लेशियरों और बर्फ के पिघलने के आधार पर बने जल-संसाधनों के पर तकरीबन 1.3 अरब लोगों का जीना निर्भर है।

 

अनुमान है कि चीन के 51 करोड़ 60 लाख लोग, भारत और बांग्लादेश के कुल 52 करोड़ लोग, पाकिस्तान और उत्तरी भारत के कुल 17 करोड़ और मध्य एशिया के 4 करोड़ 90 लाख लोग हिमालयी ग्लेशियरों के पिघलने से प्रभावित होंगे।

.इस विषय पर विस्तार के लिए देखें निम्नलिखित लिंक-

http://www.grida.no/_res/site/file/publications/Final_Adap
tation%20Synthesis%20Report_low%20res.pdf

 

http://www.unep.org/Documents.Multilingual/Default.asp?Doc
umentID=606&ArticleID=6408&l=en&t=long

 

http://books.icimod.org/index.php/search/subject/3

 

Climate change threatening survival of Himalayan communities: UN report , The United Nations, 11 December, 2009,

http://www.un.org/apps/news/story.asp?NewsID=33228&Cr=
drought&Cr1
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