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भोजन का अधिकार विधेयक-छूट ना जाये पत्तल में छेद

भोजन के अधिकार बिल पर चर्चा चल निकली है और अपनी निष्ठा जताते हुए सरकार ने उसको अमली जामा पहनाने की कवायद शुरु कर दी है। ऐसे में नागरिक-संगठनों के कार्यकर्ता और गंवई समस्याओं के गहरे जानकार विशेषज्ञों को यह आशंका सता रही है कि पोषण की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लक्ष्य से जुड़ा यह महत्वाकांक्षी बिल  अपने मूल मंतव्य से चूककर कहीं सूरदास को सूंघाने के लिए कढ़ाही में चढाया हुआ घी बनकर ना रह जाये। मुख्य चिन्ता तो इस बात की है कि  सारे प्रावधान, उपबंध और मुहावरेबाजी के बावजूद कहीं ऐसा ना हो कि यह बिल हर जगह हर समय और हरेक को आहार उपलब्ध करवाने के मामले में असफल  साबित हो और कहीं किसी नागरिक को प्रावधानों के बावजूद भूखे पेट ना सोना पड़ जाये।

भोजन का अधिकार विधेयक से जुड़ी चिन्ताओं के कई छोर हैं। पहली और गहरी चिन्ता तो यही है कि निर्धनतम परिवारों को अन्नपूर्णा अंत्योदय योजना के अन्तर्गत मुहैया कराये जा रहे अनाज(३५ किलो प्रतिमाह प्रति परिवार-इसके अन्तर्गत बीपीएल परिवारों को साढ़े चार रुपये प्रति किलो की दर से गेहूं और पांच रुपये पैंसठ पैसे प्रति किलो के दर से चावल दिया जाता है जबकि अन्नपूर्णा अंत्योदय योजना के तहत राशनकार्डधारियों को क्रमशः दो और तीन रुपये की दर से यही अनाज दिया जाता है) की मात्रा घटाकर तीन रुपये प्रति किलों की दर से २५ किलोग्राम ना कर दिया जाय। यह बात खास रुप से चिन्ता जगाने वाली होगी क्योंकि ग्रामीण इलाकों में आमदनी घट रही है और देश का आधे से अधिक हिस्सा सूखे की चपेट में आ गया है।

नागरिक संगठन और ग्रामीण मामलों के जनपक्षी विशेषज्ञ यह भी महसूस करते हैं कि इस सिलसिले में जो वैधानिक अधिकार लोगों को हासिल हो चुके हैं, मसलन नरेगा के अन्तर्गत, उनके दायरे को कम करने के बजाय बढ़ाया जाय और उसमें मां बनने वाली उम्र की स्त्रियों के पोषण तथा वृद्धावस्था पेंशन जैसे प्रावधानों को शामिल किया जाय क्योंकि इससे आहार की सुरक्षा तो सुनिश्चित होगी है साथ में ये उपाय भुखमरी की स्थिति से निबटने में मददगार साबित होंगे। इसके अतिरिक्त आप्रवासी मजदूर, अपंगता जनित अक्षमता के शिकार, स्कूल-वंचित बच्चों तथा गर्भिणी स्त्रियों और नवजात शिशुओं की पोषणगत सुरक्षा के लक्ष्यकेंद्रित कार्यक्रमों का भी मसला प्रस्तावित विधेयक में शामिल किया जाता है या नहीं-यह सवाल जेरे-बहस है।

योजनाओं सं जुड़े वैधानिक अधिकार के पक्ष के अतिरिक्त ग्रामीण विकास के विशेषज्ञों को इन कार्यक्रमों की पारदर्शिता और जवाबदेही को लेकर भी शक हो रहा है। इसी वजह से माना जा रहा है कि प्रस्तावित विधेयक अगर लागू अमल में आता है और जन-भागीदारी या फिर सोशल-ऑडिट का इसके भीतर विधान नहीं होता तो फिर भ्रष्टाचार की मैली गंगा ऐसा उफनेगी कि एकबारगी सारे कगार टूट जायेंगे। .

एक तर्क यह भी है कि ग्रामीण लोगों की एक बड़ी तादाद एक समय में गरीबी रेखा से नीचे हो जाती है तो दूसरे समय में ऊपर और यह क्रम उनकी जिन्दगी में बड़ी जल्दी-जल्दी आता है जबकि बिल किसी व्यक्ति की आर्थिक दशा को कम से कम पूरे पांच साल के लिए वर्गीकृत कर देगा और इसके आधार पर उस व्यक्ति की भाजन के अधिकार विषयक पात्रता को तय करेगा। इस तरह के प्रावधान से लाभार्थी की पात्रता का सवाल हमेशा बना रहेगा। एक बात और, चूंकि भोजन की सुरक्षा का संबंध पोषणगत सुरक्षा से है इसलिए संतुलित भोजन के तत्व मसलन दाल, उच्च पोषकता के मोटहन (इससे किसानों को सूखे की स्थिति में राहत मिल सकती है) , खाद्यतेल और कुछेक मसालों को भी देने का प्रावधान प्रस्ताविक विधेयक में होना चाहिए।

नीचे दिए गए लिंक में आपके भोजन के अधिकार के विषय में पक्ष-विपक्ष के ढेर सारे मत-अभिमत और तथ्य मिलेंगे साथ ही आप पढेंगे कि विशेषज्ञों ने इस सिलसिले में सुझाव क्या दिए हैं।:

Jean Dreze (2009), A Grain of Good Sense, Outlook, 20 July.
http://outlookindia.com/full.asp?fodname=20090720&fnam
e=JCol+Jean&sid=1

Brinda Karat (2009), For inclusive approach to food security, The Hindu, 30 June.
http://www.hindu.com/2009/06/30/stories/2009063060470800.htm

Reetika Khera (2009), Right to Food Act: Beyond Cheap Promises, Economic and Political Weekly, 18 July, 2009. Available online and attached.
http://epw.in/epw/uploads/articles/13728.pdf

Biraj Patnaik, How to Tackle India's Hunger, Live Mint, 2 July, 2009
http://www.livemint.com/2009/07/02205358/How-to-tackle-Ind
ia8217s-hu.htmlhttp://www.livemint.com/2009/07/02205358/Ho
w-to-tackle-India8217s-hu.html

M. S. Swaminathan, Synergy between Food Security Act and NREGA, June 1, 2009
http://www.hindu.com/2009/06/01/stories/2009060153470800.htm

Harsh Mander (2009), Exiling Hunger from Every Home, The Hindu, 5 July
http://www.hindu.com/mag/2009/07/05/stories/2009070550070300.htm

Himanshu (2009), Cheaper Grains only one part of a Food Security Act, 24 July, Live Mint.
http://www.livemint.com/Articles/2009/06/23195210/Cheaper-
grain8217s-only-one.html