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महाजनों और बहुराष्ट्रीय बीज कंपनियों के खिलाफ अनाज बैंक

आंध्र प्रदेश का एक छोटा सा गांव अब पूरे देश को रास्ता दिखा रहा है। खास बात यह है कि यह ३४ महिला किसानों की एक पहल है। इन किसानों ने एक अनाज बैंक बनाया है, जो अपने-आप में एक अनूठा उदाहरण है। यह पहल यह साबित करती है कि अगर परंपरागत ज्ञान को ठीक से प्रोत्साहित किया जाए, तो उससे गरीब लोगों की आजीविका के लिए टिकाऊ ज़रिए विकसित किए जा सकते हैं।

यह कहानी आंधप्रदेश के एक जिले मेडक के प्यालायरम नाम के गांव की है(देखें नीचे दी गई लिंक)। यहां एक एनजीओ की मदद से महिला किसानों ने तय किया कि अब वे सरकारी मदद पर निर्भर रहने के बजाय अपने संसाधनों से अपने बीज की रक्षा और खेती का विस्तार करेंगी। प्यालायरम गरीबी और खाद्य असुरक्षा से पीड़ित आंध्र प्रदेश के हजारों गांवों में एक रहा है। लगातार सूखे और बीज की परंपरागत प्रजातियों के खत्म होने का बहुत बुरा असर इन किसानों की आजीविका पर पड़ा है। ये किसान महंगे कृत्रिम बीज नहीं अपना सकते, जिनसे खेती में बड़ी मात्रा में पानी और खाद एवं कीटनाशकों आदि की जरूरत पड़ती है। इसी वजह से हर गुजरते साल के साथ करोड़ों किसानों की सामाजिक-आर्थिक दशा बिगड़ती गई है।

दूसरी तरफ सरकार के राहत कार्यक्रमों के तहत लोगों को खाद्यान्न के तौर पर सिर्फ गेहूं और चावल की ही सप्लाई की जाती है। ये अनाज गरीब ग्रामीणों, खासकर बच्चों, महिलाओं और बुजुर्ग लोगों की पोषण संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर पाते। इसी वजह से गांवों में आज लाखों लोग घोर कुपोषण से पी़ड़ित पाए जाते हैं।

इसी पृष्ठभूमि में इन ३४ महिला किसानों ने एनजीओ डेक्कन डेवलपमेंट सोसायटी (डीडीएस) की मदद से एक शुरुआत की। उन्होंने एक ज़ीन बैंक की स्थापना की। मकसद था ऊंचे दर्जे के बीजों की निर्बाध आपूर्ति को सुनिश्चित करना। इसके लिए फसलों की विभिन्न प्रजातियों, खासकर उनकी परंपरागत प्रजातियों के संरक्षण के उपाय किए गए।

परंपरागत बीजों और उनके भंडारण तरीकों के बारे में महिला किसानों के ज्ञान ने चमत्कारी नतीजे दिए। सूखे से लड़ने में सक्षम फसलों- बाजार, जवार, बीन्स, लोबिया, चना, और अनाज की कुछ अन्य स्थानीय प्रजातियों के बीज इकट्ठे किए गए। इन अनाजों में पौष्टिकता भी पर्याप्त होती है। इनसे मनुष्य और पशुओं दोनों के पौष्टिक आहार उपलब्ध होता है। इसीलिए इन अनाजों के बीज का बैंक बनाया गया।

किसानों ने इन बीजों को सुरक्षित रखने के लिए मिट्टी के बरतनों, गनी बैग्स और गोबर एवं लाल मिट्टी से पोती लकड़ी की टोकरियों का इस्तेमाल किया। बीजों को शुष्क रखने तथा उन्हें कीट एवं कीटाणुओं से बचाने के लिए लकड़ी की राख और नीम के पत्तों का उपयोग किया गया। बीज बरतनों में रखने के पहले को उन्हें धूप में सुखा लिया जाता है, ताकि उन पर से नमी बिल्कुल हट जाए। पहले किसान अधिक से अधिक १५ से २० प्रकार के बीजों को अपने भंडार में रखते थे। लेकिन अब अनाज बैंक के सहारे उन्होंने ७० से ८० प्रकार के बीजों को सुरक्षित रखना शुरू कर दिया है।

गैर सरकारी संगठन डीडीसी का दावा है कि इस पहल से प्यालायरम गांव के लोगों की पोषण संबंधी जरूरतें ठीक ढंग से पूरी हो रही हैं। लोगों के पास खाने के लिए ज्यादा अनाजों का विकल्प है। डीडीसी के मुताबिक यह अनुभव इस बात को जाहिर करता है कि लोग उन कृषि गतिविधियों को आसानी से अपना लेते हैं, जो उनकी परंपरा के तहत होती हैं और जिनमें स्थानीय कृषि तौर-तरीकों का ख्याल रखा जाता है।

इस अनुभव ने ग्रामीण इलाकों में बड़े पैमाने पर अनाज बैंक बनाने के महत्त्व को रेखांकित किया है। ऐसे बैंकों से आपदा और आपातकालीन स्थितियों में स्थानीय समुदायों को बड़ी मदद मिल सकती है, खासकर उस समय जब सरकार से फौरी सहायता आने में देर हो रही हो। साथ ही अनाज बैंकों से किसानों को स्थानीय महाजनों से मुक्ति मिलती है, जो युगों से किसानों का शोषण करते रहे हैं। प्यालायरम के अनुभव के आधार पर डीडीसी का कहना है कि ऐसे अनाज बैंक किफायती भी होते हैं, क्योंकि इनमें स्थानीय पहल पर भरोसा किया जाता है। साथ ही यह जमीनी स्तर की पहल है, ना कि गांवों पर ऊपर से थोपी गई कोई योजना।

इसी तरह की एक पहल उत्तरप्रदेश के महोबा जिले के एक गांव चंदौली में हुई है (देखें नीचे दी गई लिंक)। इस गांव में ग्रामीणों ने फसल कटाई के दिनों में न सिर्फ घर-घर जाकर अनाज एकत्र किया बल्कि किसानों को उनकी जरुरतों से मेल खाती शर्तों के आधार पर अनाज देने की भी पेशकश की।इस गांव में महाजनों से अनाज लेने पर किसान के लिए उसका डेढ़ गुना लौटाने का चलना था और इस चलन की काट में अनाज बैंक ने गरीब किसानों को मुफ्त अनाज देने की पेशकश की। जिन किसानों के पास दो एकड़ से लेकर पांच एकड़ रकबे तक के खेत हैं उनसे अनाज बैंक सूद के रुप में उपज का बड़ा मामूली सा हिस्सा प्रतीक के तौर पर लेता है।
 
विशेष जानकारी के लिए निम्नलिखित लिंक देखें-
 
 
 

Rural women set up grain bank in Uttar Pradesh, 13 August, 2009,

http://news.oneindia.in/2009/08/13/ruralwomen-set-up-grain
-bank-in-uttar-pradesh.html

Women run grain bank in Gujarat, http://www.youtube.com/watch?v=bXhQTWBPBrE

Village Grain Banks Scheme, http://fcamin.nic.in/dfpd/EventDetails.asp?EventId=913&
;Section=Welfare%20Schemes&ParentID=0&Parent=1&
;check=0

Grain banks provide food security in Betul,

http://www.empowerpoor.org/programmereport.asp?report=627
 
Grain bank scheme to aid poor families by Ravi Reddy, 6 May, 2006,

http://www.thehindu.com/2006/05/06/stories/2006050615820400.htm

http://thatshindi.oneindia.in/cj/utkarsh-sinha/2010/grain-
bank-village-chandauli.html

 
 
http://www.growthindia.org/?p=3940
 
 
No starvation deaths in villages with grain banks,
http://infochangeindia.org/200403153381/Agriculture/Storie
s-of-change/No-starvation-deaths-in-villages-with-grain-ba
nks.html

 
 
http://idl-bnc.idrc.ca/dspace/bitstream/10625/36450/1/127684.pdf
 
 
Do grain banks displace moneylenders? Matching-based evidence from rural India by Ruchira Bhattamishra, The World Bank,
http://www.bu.edu/econ/neudc/papers/Section%203/Session%20
12/256.pdf

 
 
Winning the battle against hunger, silently by Ramesh Menon
http://www.indiatogether.org/2010/apr/agr-millets.htm
 
 
Community Operated Food Banks: An Analysis by Anupriya Singhal,

http://www.ccsindia.org/ccsindia/interns2002/23.pdf
 
 
Grain banks to prevent starvation,
http://www.deccanchronicle.com/hyderabad/grain-banks-preve
nt-starvation-163

 
 
Banks that provide insulation against hunger! by Pankaj Jaiswal,
http://www.hindustantimes.com/Banks-that-provide-insulatio
n-against-hunger/Article1-529460.aspx

 

 
 
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