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100 नहीं, 32 दिन मिलता है काम- ए. जयजीत

भोपाल. क्या महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून (मनरेगा) वास्तव में 100 दिन की रोजगार गारंटी सुनिश्चित करता है? कम से कम प्रदेश में तो बिल्कुल नहीं। यह खुलासा राज्य योजना आयोग के एक ताजा अध्ययन से हुआ है। इस अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में केवल एक फीसदी परिवारों को ही पूरे 100 दिन का रोजगार नसीब हो पाया है।


औसतन देखें तो एक साल में एक परिवार को 32 दिन ही काम मिल पाया।


यह अध्ययन राज्य योजना आयोग की पॉवर्टी मॉनिटरिंग एंड पॉलिसी सपोर्ट यूनिट (पीएमपीएसयू) ने किया है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में 6.70 लाख परिवारों को 100 दिन का रोजगार मिला है,लेकिन अध्ययन रिपोर्ट कहती है कि महज 18 हजार परिवार ही पूरा रोजगार हासिल कर पाए।


आठ फीसदी परिवार तो ऐसे भी थे, जिन्हें 10 दिन से भी कम काम मिला। गौरतलब है कि इस कानून में ग्रामीण क्षेत्र के लोगों के लिए 100 दिन के काम की गारंटी दी गई है।


टिकाऊ जीवन पर सवाल : मनरेगा का एक मकसद लोगों के सामने टिकाऊ आजीविका का सृजन करना है।


अध्ययन से खुलासा हुआ है कि 81 फीसदी परिवार अपनी कमाई का सबसे बड़ा भाग भोजन पर खर्च करते हैं। 55 फीसदी परिवारों के खर्च का सबसे बड़ा हिस्सा दवाओं पर और 41 फीसदी परिवारों का कपड़ों पर होता है।


विशेषज्ञों के मुताबिक इसका मतलब यही है कि परिवार अपनी रोजाना की जरूरतों में ही उलझे रहते हैं और बेहतर जिंदगी जीने के लिए यह योजना उतनी सफल नहीं हुई, जितनी अपेक्षित है।


बॉक्स : यह है हकीकत


नियम : काम मांगने के 15 दिन के भीतर रोजगार मिलना चाहिए। हकीकत : केवल 50 फीसदी लोगों को ही यह रोजगार मिल पाया। धारणा : हर परिवार को प्रति दिन मजदूरी में १क्क् रुपए मिल जाते हैं। हकीकत : प्रदेश में औसतन प्रति परिवार 59.20 रुपए ही मजदूरी मिलती है।


सरकारी दावा : पात्र परिवारों में 99 फीसदी के जॉब कार्ड बन चुके हैं। हकीकत : 20.48 लाख यानी 24 फीसदी परिवारों के पास जॉब कार्ड नहीं हैं।


विशेषज्ञ राय : तीन बातें सुनिश्चित हों


1. जो भी व्यक्ति काम मांगे, उसे 100 दिन का काम अनिवार्य रूप से मिले। इससे बहुत सी दिक्कतें अपने आप कम हो जाएंगी। 2. लोगों को भुगतान में बहुत देरी होती है। ऐसी व्यवस्था हो कि इसमें एक हफ्ते से ज्यादा वक्त नहीं लगे। 3. सोशल ऑडिटिंग को मजबूत करना होगा। इससे समुदाय की मॉनिटरिंग सुधरेगी। (डॉ योगेश कुमार के अनुसार। डॉ योगेश ग्रामीण विकास के क्षेत्र में कार्य करते हैं और ‘समर्थन’ के कार्यकारी निदेशक हैं।)


बॉक्स : छोटी-सी आशा भी


इस अध्ययन में मनरेगा के पक्ष में कुछ सकारात्मक बातें भी सामने आई हैं। सर्वे में 75 फीसदी लोगों ने स्वीकार किया कि उनके गांवों में एप्रोच रोड को लेकर विकास हुआ है। इसी तरह 14 फीसदी लोगों ने कहा कि उनके यहां सिंचित भूमि में सुधार हुआ है।


मांग नहीं तो कैसे दें काम?


यह रिपोर्ट स्पेसिफिक नहीं कहती कि अमुक जगह लोगों को काम नहीं मिल रहा। ऐसे में विभाग भला कैसे कार्रवाई कर सकता है? फिर प्रदेश में मांग होगी,तो ही उसके अनुरूप हम काम खोल पाएंगे।


आर परशुराम,अपर मुख्य सचिव,पंचायत एवं ग्रामीण विकास