Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 73
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 74
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
Notice (8): Undefined variable: urlPrefix [APP/Template/Layout/printlayout.ctp, line 8]news-clippings/1000-करोड़-की-फसल-बर्बादी-से-धीमी-होगी-विकास-की-चाल-प्रकाशकांत-10667.html"/> न्यूज क्लिपिंग्स् | 1000 करोड़ की फसल बर्बादी से धीमी होगी विकास की चाल-- प्रकाशकांत | Im4change.org
Resource centre on India's rural distress
 
 

1000 करोड़ की फसल बर्बादी से धीमी होगी विकास की चाल-- प्रकाशकांत

पूरे देश की ही तरह मध्य प्रदेश के अर्थतंत्र की रीढ़ भी खेती है। इसी खेती ने 2008 की विश्व मंदी में भी देश की अर्थव्यवस्था को डूबने से बचाया था। हालांकि, यही खेती खुद भी कभी सूखे तो कभी अतिवृष्टि की शिकार होती रही है। नईम की इन पंक्तियों की तर्ज पर कि 'सूखे का हुआ कभी/कभी हुआ बाढ़ का/पहला दिन मेरे आषाढ़ का"।

इस बार आषाढ़ तो नहीं मगर सावन-भादौ की भारी बारिश से पूर्वी मध्यप्रदेश के सीहोर-होशंगाबाद से लेकर रीवा-सतना तक के 35 जिलों की खरीफ फसल बर्बाद हो चुकी है। शासकीय स्तर पर दी गई प्रारंभिक जानकारी के मुताबिक पूर्वी मप्र की करीब चार लाख हेक्टेयर में बोयी गई अनुमानत: 1000 हजार करोड़ की सोयाबीन, धान, मक्का, मूंग और उड़द की फसल नष्ट हो गई है। जिन 31 जिलों में सामान्य से अधिक वर्षा हुई, वहां सवा तीन लाख हेक्टेयर में सोयाबीन सड़ चुकी है। जबकि लगभग एक लाख हेक्टेयर में मक्का, धान जैसी फसलों को जबर्दस्त नुकसान हुआ है। पश्चिमी मध्य प्रदेश के कुछ हिस्से दोबारा बोवनी के सकट से पहले ही गुजर चुके हैं।

बहरहाल, मानसूनी अनिश्चितता के चलते अगर भारतीय कृषि को जुआ कहा गया है तो फसल की इस बार की यह बर्बादी इसी का उदाहरण है। इस बार की बारिश से जन हानि तो हुई ही, फसलों के रूप में जबर्दस्त धन हानि भी हुई है। नुकसान प्रभावित क्षेत्रों में सर्वे के आदेश दे दिए गए हैं। ऐसे मौकों पर हर सरकार को यह करना ही पड़ता है। पहले सर्वे, फिर नुकसान का आनावारी निर्धारण और उसके बाद नुकसान प्रभावित किसान को तयशुदा दर पर मुआवजे का वितरण! बरसों से यह सरकारी कर्मकांड होता आया है। फसल नष्ट होने के एवज में मिलने वाला मुआवजा कई बार इतना हास्यास्पद होता है कि उसे लेना किसान को अपमानजनक लगता है। सरकारी अमले की अड़ंगेबाजी तो खैर अपनी जगह होती ही है। इस सब में फसल के लिए निजी स्रोतों से संसाधन जुटाने वाले किसान की जो फजीहत होती हैं, वह तो किसी हिसाब में ही नहीं ली जा पाती। आमतौर पर औसत किसान का कम अवधि के छोटे कर्जों के सहारे चलने वाला निजी अर्थतंत्र नाजुक-से संतुलन पर टिका होता है। इस तरह की प्राकृतिक आपदाएं उस संतुलन को बुरी तरह बिगाड़ देती हैं। जिसे फिर से कायम करने के लिए उस किसान को अगली अच्छी फसलों का इंतजार करना होता है। अगर वे भी ठीक से आ जाएं तो!

बेशक, ये आपदाएं राज्य के विकास कार्यक्रम को भी प्रभावित करती हैं। विकास पर खर्च के लिए रखा धन आपदाओं से निपटने में झोंकना पड़ता है। इससे राज्य आर्थिक रूप से पिछड़ते हैं। इस बार फसलों को हुआ लगभग 1000 करोड़ रुपए का नुकसान मप्र की विकास की रफ्तार को धीमा करेगा।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)