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122 साल की समतुल निशा का इंतकाल

जमशेदपुर : देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद और प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के नजदीकी रहे महरूम ताजुद्दीन खान की बेवा समतुल निशा का 122 साल (परिवारवालों के अनुसार) की उम्र में मंगलवार को इंतकाल हो गया. समतुल निशा के शव को जाकिरनगर कब्रिस्तान में सुपूर्द-ए-खाक किया गया.

आजादी की जंग में जहां ताजुद्दीन ने डॉ राजेंद्र प्रसाद के साथ मिलकर अंगरेजों के खिलाफ संघर्ष किये थे वहीं देश के जवाहरलाल नेहरू के निजी चालक के रूप में लंबा अरसा बिताया था. इस ऐतिहासिक रिश्ते को स्व. इंदिरा गांधी ने भी ताउम्र बरकरार रखा. समतुल निशा को इंदिरा गांधी के प्रयासों से हर माह पेंशन मिलता था.

उनका गांधी परिवार से नजदीकी का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि एक मर्तबा अपने पुत्र मो.शहाबुद्दीन को टाटा स्टील में नौकरी दिलाने के लिए इंदिरा गांधी से समतुल निशा ने गुजारिश की तो उन्होंने टाटा स्टील के तत्कालीन वाइस प्रेसिडेंट आरएस पांडेय को सीधे पत्र लिखा. जिससे मो.शहाबुद्दीन की नौकरी हुई.

तिरंगा साथ रखतीं थीं

122 साल की उम्र में पूरी तरह स्वस्थ समतुल निशा सोमवार को तबीयत नासाज होने के कारण टीएमएच इलाज कराने पहुंची तो चिकित्सकों ने उन्हें स्वस्थ बताकर घर भेज दिया था और घर पर ही उन्होंने अंतिम सांस ली. मांसाहारी भोजन की शौकीन समतुल निशा कभी बीमार नहीं पड़ीं. समतुल निशा हमेशा तिरंगा अपने पास रखती थी. उनके तकिया का कवर तिरंगे के कलर का रहता था जिस पर वह सिर रखती थीं. सोमवार को टीएमएच से लौटने के बाद वे टेंपो से खुद ही उतर कर घर गयीं.

..तो पेंशन नहीं लिया

इंदिरा गांधी के कहने पर बेटे को मिली नौकरी के बाद उन्होंने स्वेच्छा से 1958 में पेंशन बंद करा लिया था. समतुल निशा के पुत्र मो.शहाबुद्दीन वर्ष 2002 में टाटा स्टील से रिटायर हुए.

पटना से आया था परिवार

ताजुद्दीन खान मूल रूप से पटना (बिहार) के पास स्थित तेरगाना थाना के चराइसुना गांव के निवासी थे. पटना के पास ही स्थित शदाकत आश्रम जो कांग्रेस का मुख्यालय था वहां वे अक्सर गाड़ी चलाकर पंडित जवाहरलाल नेहरू को लेकर आते थे. इस गांव के पास स्थित कोरजी मोहल्ला में ताजुद्दीन रहते थे.