Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 73
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 74
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
Notice (8): Undefined variable: urlPrefix [APP/Template/Layout/printlayout.ctp, line 8]news-clippings/130-kidney-disease-deaths-in-15-years-in-one-chhattisgarh-village-but-govt-yet-to-find-cause.html"/> न्यूज क्लिपिंग्स् | छत्तीसगढ़ के एक गांव में 15 साल में 130 किडनी की बीमारी से मौतें हुईं, वजह कोई नहीं जानता | Im4change.org
Resource centre on India's rural distress
 
 

छत्तीसगढ़ के एक गांव में 15 साल में 130 किडनी की बीमारी से मौतें हुईं, वजह कोई नहीं जानता

-द प्रिंट,

छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले के सुपेबेड़ा और 9 अन्य गावों में किडनी की क्रोनिक बीमारी से पिछले 15 सालों में होने वाली 130 मौतें एक पहेली बनी हुई हैं वहीं इस इलाके की करीब 10-15 हजार की आबादी इसकी जद में आ चुकी है.

राज्य सरकार का कहना है कि रायपुर से करीब 250 किलोमीटर दूर देवभोग हीरा खदान के पास स्थित इन गांवों में फैली क्रोनिक किडनी डिसीज़ (सीकेडी) के कारणों का पता लगाने का निरंतर प्रयास जारी है लेकिन इसका कोई एक कारण अब तक सामने नहीं आया है.

सुपेबेड़ा के ग्रामीणों का कहना है कि उनके 1800 की जनसंख्या वाले गांव में पिछले 15 सालों में 130 लोगों की मौत हो चुकी है और करीब 80% घरों में एक या एक से ज्यादा लोग किडनी की बीमारी का इलाज करा रहे हैं.

ग्रामीणों का यह भी कहना है कि यह बीमारी सुपेबेड़ा तक सीमित नहीं है बल्कि इससे लगने वाले 9-11 अन्य गांवों को भी प्रभावित किया है. इस क्षेत्र की करीब 15 हजार की आबादी सीकेडी की जद में आ चुकी है. हालांकि प्रमुखता से सुपेबेड़ा गांव का नाम ही लिया जाता है क्योंकि यहां के लोगों ने अपनी सुरक्षा के लिए आवाज उठाना शुरू कर दिया है.

बीमारी का कोई ठोस कारण सामने नहीं आया: सरकार
छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री टी एस सिंहदेव ने दिप्रिंट को बताया कि सुपेबेड़ा और उससे लगने वाले गांवों में क्रोनिक किडनी डिसीज़ (सीकेडी) के ही लक्षण मिले हैं. इससे कई लोगों की मौत हो चुकी है लेकिन इस बीमारी का अभी तक कोई एक कारण पुख्ता तौर पर सामने नहीं आया है.

उन्होंने कहा, ‘पीने के पानी में आर्सेनिक, फ्लोराइड और किडनी की बीमारी को जन्म देने वाले अन्य हैवी मेटल्स की अधिक मात्रा के अतिरिक्त जेनेटिक, शराब का सेवन जैसे दूसरे कारण भी हो सकते हैं.’

‘सुपेबेड़ा में पानी और मिट्टी के कुछ सैम्पलों की जांच की गई है जिससे पानी में हैवी मेटल्स की मात्रा ज्यादा देखी गई है लेकिन इसे पुख्ता तौर पर सीकेडी का मुख्य कारण नहीं माना जा सकता. राज्य सरकार द्वारा एम्स और पीजीआई चंडीगढ़ के विशेषज्ञों से सुपेबेड़ा और अन्य क्षेत्रों में सीकेडी के अध्ययन के लिए आग्रह किया गया है. उनके रिपोर्ट के बाद ही बीमारी के पुख्ता कारण सामने आ सकते हैं.’

क्या है एम्स और अन्य विशेषज्ञों की रिपोर्ट में
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) रायपुर, रामकृष्ण केयर हॉस्पिटल रायपुर, जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज रायपुर और जॉर्ज इंस्टिट्यूट ऑफ ग्लोबल हेल्थ, नई दिल्ली के विशेषज्ञों द्वारा सुपेबेड़ा के किडनी मरीजों की अक्टूबर 2020 में जारी एक अध्यन रिपोर्ट में कहा गया है कि इन मरीजों में किडनी रोग के जनक माने जाने वाले हैवी मेटल्स आर्सेनिक, कैडमियम, मरकरी और लीड की मात्रा ज्यादा पाई गई थी.

‘सीकेडी ऑफ अननोन ओरिजिन इन सुपेबेड़ा छत्तीसगढ़, इंडिया ‘ के नाम से इंटरनेशनल सोसाइटी ऑफ नेफ्रोलॉजी द्वारा प्रकाशित इस रिपोर्ट में कहा गया, ’10 मरीजों के यूरीन परीक्षण में क्रोमियम, मैंगनीज़, फ्लोराइड और निकल की मात्रा काफी ज्यादा पाई गई है. लेकिन यूरीन में इन हैवी मेटल्स की उपस्थिति से यह नहीं कहा जा साकता कि ये किडनी की बीमारी के मुख्य कारक है. इसके लिए सीरम की जांच भी आवश्यक होगी.’

रिपोर्ट में कहा गया, ‘यह भारत में सीकेडी मरीजों के एक नए क्षेत्र में मिलने की पहली पुख्ता रिपोर्ट है जो अन्य रिपोर्ट्स से अलग है. इस गांव और आसपास के क्षत्रों में सीकेडी के लोड और उसके कारण की जानकारियों के लिए और विस्तृत अध्यन की आवश्यकता है.’

इस अध्यन रिपोर्ट में किडनी की बीमारी के संभावित कारणों में जेनेटिक हिस्ट्री को भी माना गया है. रिपोर्ट में सुपेबेड़ा के 12 किडनी मरीजों की जांच और उनके यूरीन परीक्षणों का पूरा उल्लेख है.

15 साल में 130 मौतें और ग्रामीणों का संघर्ष
सुपेबेड़ा में सीकेडी से अपने पिता को खो चुके त्रिलोचन सोनवानी ने दिप्रिंट को बताया, ‘गांव में इस बीमारी से अब तक करीब 130 मौतें हो चुकी हैं और कई लोग अभी इससे जूझ रहे हैं लेकिन सरकार के स्तर पर इसके समाधान के लिए अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है जबकि गांव के लोग इसके लिए लगतार संघर्ष कर रहे हैं.’

सोनवानी और दूसरे ग्रामीणों का कहना है कि सीकेडी से होने वाली मौतों का मुख्य कारण सुपेबेड़ा और दूसरे गांवों के बोरवेल के पानी में हैवी मेटल की ज्यादा मात्रा का होना है.

सोनवानी कहते हैं, ‘सुपेबेड़ा में शायद ही ऐसा कोई घर होगा जहां या तो किडनी के मरीज न हों या फिर वहां पिछले डेढ़ दशक में इस बीमारी से किसी की मौत न हुई हो. गांव में किडनी की बीमारी से मौत का सिलसिला पिछले 15 सालों से चल रहा है जब पहली मौत 2005 में 45 वर्षीय नीलाम्बर नेताम की हुई.’

सोनवानी के अनुसार, ‘गांववालों को 2016 तक ये मौतें सामान्य लगती थी लेकिन मई 2017 में एक महीने के अंदर 23 ग्रामीणों की मौत ने यहां के निवासियों को विचलित कर दिया. इन मृतकों में 22-23 वर्ष के युवा भी थे. लगातार हो रही मौतों से परेशान होकर हम लोगों ने ओडिशा के भोपालपटनम और विशाखापट्टनम के अस्पतालों, जहां उनका इलाज चल रहा था, से पता लगाया तो जानकारी मिली कि सभी की मौत किडनी फेल होने से हुई थी. वहां के डॉक्टरों ने बताया कि गांव का पानी दूषित हो चुका है, उसमें हैवी मेटल की मात्रा बहुत अधिक है.’

पूरी रपट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.