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16 बेमिसाल गांवः तस्वीर और तकदीर बदली इन गांवों ने

असली भारत गांव में बसता है। देश और दुनिया में भले ही चांद पर जाने की बात हो लेकिन गांव का महत्‍व आज भी कायम है। पेश है देश के 16 ऐसे अनोखे गांव की कहानी जो इस दौर में भी मिसाल बने हुए हैं। कहीं किसी एक ही गांव ने देश को दिए है 47 आईएएस अधिकारी तो कोई गांव पूरी दुनिया को साम्‍प्रदायिक सौहार्द का पाठ पढ़ा रहा है। कहीं गांव में मिनी लंदन बसता है तो कोई गांव आरओ वाटर प्लांट, सीसीटीवी, वाईफाई के लिए दुनियाभर में नाम कमा रहा है।

मलाणा, हिमाचल प्रदेश। अगर आप को हर सामान छूकर देखने की आदत है तो इस गांव से दूर ही रहिए आपको इसके बदले 1000 का जुर्माना भरना पड़ेगा। गांव का नियम तो यही है। जुर्माना लगाने वाला यह गांव है हिमाचल प्रदेश के कुल्लू का मलाणा गांव। पहाड़ों के बीच प्रकृति की गोद में बसा गांव पर्यटकों को अपने पास खींच लाता है। पर्यटक गांव के बाहर और बाजार में जगह-जगह बोर्ड पर लगी चेतावनी- गांव का कुछ भी सामान छुआ तो 1000 जुर्माना देना होगा। पर्यटक यह पढ़कर सतर्क हो जाते हैं। अगर रुकना भी हुआ तो गांव के बाहर टेंट लगाकर रात गुजारते हैं।

इस अनोखी परंपरा की वजह से यह गांव दुनिया भर में पहचान बना चुका है। गांव के मूल निवासी अपने को सिंकदर की सेना का वंशज बताते हैं। सिंकदर की सेना जब यूनान लौट रही थी, तो उसमें से कुछ सैनिक इसी गांव में बस गए थे। वे यूनानी परंपरा को यहां जीवित रखा। यहां पर 2 हजार साल पुरानी लोकतांत्रिक व्यवस्था भी जिंदा है। यहां आने वालों पर गांव वाले नजर रखते हैं। किसी से जबरिया वसूली नहीं हो और नियम की जानकारी सबको हो, इसलिए हर जगह नोटिस बोर्ड लगाए गए हैं। यहां शॉपिंग से पहले पर्यटकों को दुकान के बाहर से से सामान मांगना पड़ता है। दुकानदार उसकी कीमत बताता है और रुपए दुकान के बाहर ही रखने होते हैं। अंदर पर्यटक नहीं आ सकता। इसके बाद उसे सामान वहीं रख दिया जाता है।

शेतपाल, महाराष्ट्र। आमतौर पर लोग सांप को देखते ही मार देते हैं या सपेरे को बुलवा लेते हैं। मगर यह गांव इस मामले में बहुत अलग है। सांप यहां मारे नहीं बल्कि घरों में पाले जाते हैं। और उनकी पूजा भी होती है। यह गांव हैं हाईटेक सिटी पुणे से लगभग 200 किमी दूर पर बसा शोलापुर जिले का शेतपाल। नाम के मुताबिक यह गांव सांपों को ही पालते हैं। सबसे जहरीले सांपों में शुमार कोबरा को घर में रखने के लिए विशेष विश्राम स्थल बनाया जाता है। और इसे स्थान को देवस्थानम यानी देवताओं का निवास स्थान कहा जाता है। यहां हजारों की संख्या में कोबरा हैं।


घरों में सांप ऐसे तफरी करते हैं, जैसे वे घर के सदस्य हों। लोग भी अपना काम इनकी मौजूदगी में बेपरवाह होकर करते हैं। बच्चों के साथ स्कूल में भी सांप आसानी से रहते हैं। सबसे खास बात यह है कि इस गांव में आज तक सांप के दंश से कोई मौत नहीं हुई है।


रह चुका है भारत और एशिया का सबसे स्वच्छ गांव

मावल्यान्‍नॉग, मेघालय। केन्द्र सरकार द्वारा स्वच्छता अभियान चलाकर साफ-सफाई के लिए जागरुक किया जा रहा है। सफाई के मामले में अधिकांश शहरों, गांवों की स्थिति ठीक नहीं है वहीं मेघालय का मावल्यान्‍नॉग गांव सभी के लिए आदर्श है। यह न केवल सफाई बल्कि शिक्षा में भी अव्वल है। भगवान का बगीचा के नाम से भी जाना जाने वाला यह गांव 2003 में एशिया का और 2005 में भारत का सबसे स्वच्छ गांव बना।

गांव के लोग खुद साफ-सफाई करते हैं। बच्चे, युवा, बुजुर्ग जिसे भी रास्ते में भी कहीं पर कचरा दिख जाता है तो रुककर उसे उठाकर डस्टबिन में डालते हैं फिर आगे बढ़ते हैं। कचरे को बांस की डस्टबिन में जमा करते हैं, फिर इसे एक जगह एकत्रित कर खाद तैयार करते हैं। इसका खेती में उपयोग करते हैं। इनकी आजीविका का प्रमुख साधन सुपारी की खेती है। 95 परिवारों के गांव में 100 फीसदी लोग साक्षर हैं। अधिकांश लोग अंग्रेजी में ही बात करते हैं। पर्यटकों की दृष्टि से भी यहां कई स्थानों पर ग्रामीण स्टाइल के टी स्टाल और रेस्टोरेंट हैं। भगवान का बगीचा गांव शिलांग से 90, चेरापूंजी से 92 और भारत-बांग्लादेश बार्डर से 90 किमी दूर स्थित है।


ये है एनआरआईज का टंकियों वाला गांव

उप्पलां, पंजाब। पंजाब के जालंधर शहर में एक गांव है उप्पलां। इस गांव के अधिकांश लोग विदेश में रहते हैं इसलिए एनआरआईज वाला गांव भी कहा जाता है, लेकिन इसकी पहचान टंकियों वाले गांव से अधिक होती है। वैसे तो पंजाबियों की पहचान सफेद कुर्ता और सम्मां वाली पोशाक होती है, लेकिन एक एनआरआई की पहल पर इस गांव की पहचान बदल गई।

एनआरआई संतोख सिंह ने एयर इंडिया वाली कोठी बनाई और छत पर टंकी रखी। इसके बाद अन्य लोगों ने अपनी पहचान के लिए अलग-अलग टंकिया रख लीं। कोई गुलाब का फूल वाली टंकी बना खुशहाली का संकेत दे रहा है तो कोई घोड़ा के आकार की टंकी बनाकर रुतबे वाले परिवार का। कोई शेर बनाकर अपनी बहादुरी का इजहार किया है तो कोई बाज बनाकर अपनी दमदारी प्रस्तुत की है।
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तरसेम सिंह उप्पल 70 साल पहले हांगकांग गए थे। उन्होंने वहां पर शिप में सफर किया था। इसके बाद उन्हें तय किया कि वे अपने घर पर शिप बनवाएंगे और 1995 में शिप वाली कोठी बनवाई। गुरुदेव सिंह 82 वर्ष ने बब्बर शेर वाला मकान बनाया तो लंबे समय तक यह चर्चा का विषय रहा। ऐसा इसलिए क्योंकि गुरुदेव सिंह ने खुद की प्रतिमा बनवाकर बब्बर शेर पर बिठा दी थी। ऐसा करने पर गांव के लोगों ने इसका विरोध किया। बोले शेर पर तो माता जी बैठती हैं। इसके बाद अपनी प्रतिमा हटा ली। शेर की प्रतिमा वैसे ही है।