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2016 में लंबित थे बच्चों के यौन उत्पीड़न के एक लाख से ज्यादा मामले

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में जानकारी दी गई है कि 2016 में देशभर में बच्चों के यौन उत्पीड़न के एक लाख से ज्यादा मामले दर्ज थे, लेकिन निचली अदालतों में सिर्फ 229 मामलों का निपटारा किया गया। इन आंकड़ों को हाल ही में प्रधान न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविल्कर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ के समक्ष पेश किया गया। पीठ ने देशभर के हाई कोर्टों के रजिस्ट्रार जनरल को आदेश दिया कि वे "प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंसस" (पॉस्को) के तहत बच्चों के साथ यौन उत्पीड़न के लंबित मामलों के आंकड़े जुटाकर उन्हें संकलित करें। सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें इसके लिए चार हफ्ते का समय दिया है। इस अधिनियम के तहत निचली अदालतों द्वारा आरोप पत्र का संज्ञान लिए जाने के एक साल के भीतर मामले का निपटारा आवश्यक है।

आठ महीने की एक बच्ची के साथ उसके बालिग कजिन द्वारा दुष्कर्म के मामले में जनहित याचिका दायर करने वाले अधिवक्ता अलख आलोक श्रीवास्तव ने 2016 के राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों का जिक्र करते हुए बताया कि पॉस्को के 70,435 मामले पहले से लंबित थे और उस साल 30,891 नए मामले अदालतों के समक्ष प्रस्तुत किए गए। इस तरह कुल मामलों की संख्या 1,01,326 हो गई, लेकिन इनमें से सिर्फ 229 मामलों का ही निपटारा किया गया।

याचिका में सर्वोच्च अदालत से ऐसे दिशानिर्देश बनाए जाने की मांग की गई है जिससे पॉस्को के तहत 12 साल से कम उम्र के बच्चों के साथ दुष्कर्म के मामलों की जांच और उनके मुकदमों का निपटारा एफआइआर दर्ज किए जाने के छह महीनों के भीतर किया जा सके। मामले की अगली सुनवाई 20 अप्रैल को होगी।

बुजुर्गों के खिलाफ 40 फीसद अपराध महाराष्ट्र-मध्य प्रदेश में

देश में वरिष्ठ नागरिकों के खिलाफ करीब 40 फीसद अपराध 2014 से 2016 के बीच सिर्फ महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में दर्ज हुए। केंद्रीय गृह मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, दिल्ली ऐसे अपराधों के मामले में शीर्ष सात राज्यों में शुमार थी, लेकिन 2016 में यहां इन अपराधों में भारी कमी दर्ज हुई। अलग-अलग करके देखें तो इस सूची में महाराष्ट्र शीर्ष पर है। उसके बाद मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और छत्तीसगढ़ का स्थान है। खास बात यह है कि उक्त अवधि में जम्मू-कश्मीर में बुजुर्गों के खिलाफ अपराध का कोई मामला दर्ज नहीं हुआ। जबकि उत्तराखंड, असम, अरुणाचल प्रदेश और नगालैंड में इन तीन साल में 10 से भी कम मामले दर्ज हुए।